ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 698/2011/138 इ स श्रृंखला की आरम्भिक कड़ियों में ठुमरी शैली के विकास के प्रसंग में हमने अवध के नवाब वाजिद अली शाह के दरबार की चर्चा की थी| कथक नृत्य और ठुमरी का विकास नवाब के संरक्षण में ही हुआ था| श्रृंखला की चौथी कड़ी में हमने नवाब के दरबार में सुप्रसिद्ध पखावजी कुदऊ सिंह और नौ वर्षीय बालक बिन्दादीन के बीच अनोखे मुकाबले का प्रसंग प्रस्तुत किया था| यही बालक आगे चल कर कथक नृत्य के लखनऊ घराने का संस्थापक बना| मात्र नौ वर्ष की आयु में दिग्गज पखावजी कुदऊ सिंह से मुकाबला करने वाला बिन्दादीन 12 वर्ष की आयु तक तालों का ऐसा ज्ञाता हो गया, जिससे बड़े-बड़े तबला और पखावज वादक घबराते थे| बिन्दादीन के भाई थे कालिका प्रसाद| ये भी एक कुशल तबला वादक थे| आगे चल कर बिंदादीन कथक नृत्य को शास्त्रोक्त परिभाषित करने में संलग्न हो गए और तालपक्ष कालिका प्रसाद सँभालते थे| विन्ददीन द्वारा विकसित कथक नृत्य में ताल पक्ष का अनोखा चमत्कार भी था और भाव अभिनय की गरिमा भी थी| उन्होंने लगभग 1500 ठुमरियों की रचना भी की, जिनका प्रयोग परम्परागत रूप में आज भी किया जाता है| बिन्दादीन निःसन्तान थे, कि