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सुर संगम में आज - भैरवी ठुमरी - उस्ताद विलायत ख़ान (सितार) और उस्ताद बिस्मिल्लाह ख़ान (शहनाई)

सुर संगम - 02 उन दोनों में जो आपसी सम्मान और प्यार था, वो उनकी प्रस्तुतिओं में साफ़ महसूस की जा सकती थी। जब भी ये दोनों साथ में कॊन्सर्ट्स करते थे तो शो हाउसफ़ुल हुआ करता था, और जब दोनों साथ में रेकॊर्डिंग् करते थे तो उनके रेकॊर्ड्स भी हज़ारों, लाखों की तादाद में बिकते और आज भी बिकते हैं। सु प्रभात! रविवार की इस ठिठुरती सुबह में शास्त्रीय संगीत के इस स्तंभ 'सुर संगम' के साथ मैं, सुजॊय हाज़िर हूँ। पिछले सप्ताह से इस साप्ताहिक स्तंभ की शुरुआत हुई थी और हमने सुनी थी उस्ताद बड़े ग़ुलाम अली ख़ाँ साहब की गाई राग गुणकली। आज बारी एक जुगलबंदी की, और जिन दो कलाकारों की यह जुगलबंदी है, वे दोनों ही अपनी अपनी विधाओं में, अपने अपने साज़ों में बहुत ऊँचा मुकाम बनाया है, महारथ हासिल है। इनमें से एक हैं सुविख्यात सितार वादक उस्ताद विलायत ख़ान और दूसरे हैं शहनाई सम्राट उस्ताद बिस्मिल्लाह ख़ान। सन् १९६७ में इन दोनों के जुगलबंदी की एक रेकॊर्ड जारी हुई थी 'Duets From India' के शीर्षक से। हमने जुगलबंदी तो कहा, लेकिन तकनीकी दृष्टि से इसे जुगलबंदी नहीं कहेंगे, बल्कि यह एक भैरवी आधारित ठुमरी है।

ईमेल के बहाने यादों के ख़ज़ाने....मिलिए महेंद्र कपूर के बेटे रोहन कपूर से सुजॉय से साथ

महेन्द्र कपूर के बेटे रोहन कपूर से सुजॊय की बातचीत 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के दोस्तों, नमस्कार और स्वागत है इस साप्ताहिक विशेषांक में। युं तो 'ओल्ड इज़ गोल्ड' रविवार से लेकर गुरुवार तक प्रस्तुत होता रहता है, लेकिन शनिवार के इस ख़ास पेशकश में कुछ अलग हट के हम करने की कोशिश करते हैं। इस राह में और हमारे इस प्रयास में आप पाठकों का भी हमें भरपूर सहयोग मिलता रहता है और हम भी अपनी तरफ़ से कोशिश में लगे रहते हैं कि कलाकारों से बातचीत कर उसे आप तक पहूँचाएँ। दोस्तों, आज ८ जनवरी है, और कल, यानी ९ जनवरी को जयंती है फ़िल्म जगत के सुप्रसिद्ध पार्श्वगायक महेन्द्र कपूर जी का। उनकी याद में और उन्हें श्रद्धांजली स्वरूप हमने आमंत्रित किया उन्हीं के सुपुत्र रोहन कपूर को अपने पिता के बारे में हमें बताने के लिए। ज़रिया वही था, जी हाँ, ईमेल। तो लीजिए ईमेल के बहाने आज अपने पिता महेन्द्र कपूर की यादों से रोशन हो रहा है 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की यह महफ़िल। ******************************************* सुजॊय - रोहन जी, जब हर साल २६ जनवरी और १५ अगस्त के दिन पूरा राष्ट्र "मेरे देश की धरती" और

ऐ आँख अब ना रोना, रोना तो उम्रभर है...कितना दर्दीला है ये युगल गीत लता चितलकर का गाया

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 565/2010/265 सी . रामचन्द्र के स्वरबद्ध किए और उन्हीं के गाये हुए गीतों से सजी 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की लघु शृंखला 'कितना हसीं है मौसम' की पाँचवीं कड़ी में आप सभी का स्वागत है। दोस्तों, अब तक इस शृंखला में हमने चितलकर की आवाज़ में दो एकल गीत सुनें और बाक़ी के दो गीत उन्होंने लता जी के साथ गाया था। आइए आज एक बार फिर एक मशहूर लता-चितलकर डुएट सुना जाये। यह गीत है १९४९ की फ़िल्म 'सिपहिया' का, जिसके बोल हैं "ऐ आँख अब ना रोना, रोना तो उम्रभर है, पी जाएँ आँसूओं को, बस वो जिगर जिगर है"। गीतकार हैं राम चतुरवेदी। आइए आज अपको एक फ़ेहरिस्त दी जाये लता-चितलकर डुएट्स की। अलबेला (१९५१) - भोली सूरत दिल के खोटे, महफ़िल में मेरी कौन ये दीवाना आया, मेरे दिल की घड़ी करे टिक टिक टिक, शाम ढले खिड़की तले, शोला जो भड़के दिल मेरा धड़के। आज़ाद (१८५४) - कितना हसीं है मौसम। बारिश (१९५७) - कहते हैं प्यार किस को पंछी, फिर वही चाँद वही हम वही तन्हाई। भेदी बंगला (१९४९) - आँसू ना बहाना कांटों भरी राह से। हंगामा (१९५२) - झूम झूम झूम राही प्यार की दुनिया, उल्फ़त की ज़

ज़रा ओ जाने वाले.....और जाने वाला कब लौटता है, आवाज़ परिवार याद कर रहा है आज सी रामचंद्र को

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 564/2010/264 'ओ ल्ड इज़ गोल्ड' के दोस्तों नमस्कार, और बहुत बहुत स्वागत है इस स्तंभ में। आज है ५ जनवरी, और आज ही के दिन सन् १९८२ में हमसे हमेशा के लिए जुदा हुए थे वो संगीतकार और गायक जिन्हें हम चितलकर रामचन्द्र के नाम से जानते हैं। उन्हीं के स्वरबद्ध और गाये गीतों से सजी लघु शृंखला 'कितना हसीं है मौसम' इन दिनों जारी है 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर और आज इस शृंखला की है चौथी कड़ी। दोस्तों, सी. रामचन्द्र का ५ जनवरी १९८२ को बम्बई के 'के. ई. एम. अस्पताल' में निधन हो गया। पिछले कुछ समय से वे अल्सर से पीड़ित थे। २२ दिसम्बर १९८१ को उन्हें जब अस्पताल में भर्ती किया गया था, तभी से उनकी हालत नाज़ुक थी। अपने पीछे वे पत्नी, एक पुत्र तथा एक पुत्री छोड़ गये हैं। दोस्तों, अभी कुछ वर्ष पहले जब मैं पूना में कार्यरत था, तो मैं एक दिन सी. रामचन्द्र जी के बंगले के सामने से गुज़रा था। यकीन मानिए कि जैसे एक रोमांच हो आया था उस मकान को देख कर कि न जाने कौन कौन से गीत सी. रामचन्द्र जी ने कम्पोज़ किए होंगे इस मकान के अंदर। मेरा मन तो हुआ था एक बार अदर जाऊँ और उनके

नव दधीचि हड्डियां गलाएँ, आओ फिर से दिया जलाएँ... अटल जी के शब्दों को मिला लता जी की आवाज़ का पुर-असर जादू

महफ़िल-ए-ग़ज़ल #१०७ रा जनीति और साहित्य साथ-साथ नहीं चलते। इसका कारण यह नहीं कि राजनीतिज्ञ अच्छा साहित्यकार नहीं हो सकता या फिर एक साहित्यकार अच्छी राजनीति नहीं कर सकता.. बल्कि यह है कि उस साहित्यकार को लोग "राजनीति" के चश्मे से देखने लगते हैं। उसकी रचनाओं को पसंद या नापसंद करने की कसौटी बस उसकी प्रतिभा नहीं रह जाती, बल्कि यह भी होती है कि वह जिस राजनीतिक दल से संबंध रखता है, उस दल की क्या सोच है और पढने वाले उस सोच से कितना इत्तेफ़ाक़ रखते हैं। अगर पढने वाले उसी सोच के हुए या फिर उस दल के हिमायती हुए तब तो वो साहित्यकार को भी खूब मन से सराहेंगे, लेकिन अगर विरोधी दल के हुए तो साहित्यकार या तो "उदासीनता" का शिकार होगा या फिर नकारा जाएगा... कम हीं मौके ऐसे होते हैं, जहाँ उस राजनीतिज्ञ साहित्यकार की प्रतिभा का सही मूल्यांकन हो पाता है। वैसे यह बहस बहुत ज्यादा मायना नहीं रखती, क्योंकि "राजनीति" में "साहित्य" और "साहित्यकार" के बहुत कम हीं उदाहरण देखने को मिलते है, जितने "साहित्य" में "राजनीति" के। "साहित्य" में

कितना हसीं है मौसम, कितना हसीं सफर है....जब चितलकर की आवाज़ को सुनकर तलत साहब का भ्रम हुआ शैलेन्द्र को

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 563/2010/263 'ओ ल्ड इज़ गोल्ड' के दोस्तों, नमस्कार। आज ४ जनवरी है, यानी कि संगीतकार राहुल देव बर्मन की पुण्यतिथि। 'आवाज़' परिवार की तरफ़ से हम पंचम को दे रहे हैं श्रद्धांजली। आपको याद होगा पिछले साल इस समय हमने पंचम के गीतों से सजी लघु शृंखला ' दस रंग पंचम के ' प्रस्तुत किया था। और इस साल हम याद कर रहे हैं सी. रामचन्द्र को जिनकी कल, यानी ५ जनवरी को पुण्यतिथि है। 'कितना हसीं है मौसम' - सी. रामचन्द्र के गाये और स्वरबद्ध किए गीतों के इस लघु शृंखला की आज तीसरी कड़ी है। शुरुआती दिनों में सी. रामचन्द्र ने कई फ़िल्मों में संगीत दिया जिनमें से कुछ के नाम हैं 'सगाई', 'नमूना', 'उस्ताद पेड्रो', 'हंगामा', 'शगुफ़ा', '२६ जनवरी' वगेरह। पर जिन दो फ़िल्मों के संगीत से वे कामयाबी के शिखर पर पहुँचे, वो दो फ़िल्में थीं 'शहनाई' और 'अलबेला'। जैसा कि कल हमने आपको बताया था कि 'अलबेला' के गीतों ने उस फ़िल्म को चार चांद लगाये। सारे गानें हिट हुए और गली गली गूंजे। सिनेमाघरों में लोग खड़

दिल तो बच्चा है जी.....मधुर भण्डारकर की रोमांटिक कोमेडी में प्रीतम ने भरे चाहत के रंग

Taaza Sur Taal 01/2011 - Dil Toh Bachha Hai ji 'दिल तो बच्चा है जी'...जी हाँ साल २०१० के इस सुपर हिट गीत की पहली पंक्ति है मधुर भंडारकर की नयी फिल्म का शीर्षक भी. मधुर हार्ड कोर संजीदा और वास्तविक विषयों के सशक्त चित्रिकरण के लिए जाने जाते हैं. चांदनी बार, पेज ३, ट्राफिक सिग्नल, फैशन, कोपरेट, और जेल जैसी फ़िल्में बनाने के बाद पहली बार उन्होंने कुछ हल्की फुल्की रोमांटिक कोमेडी पर काम किया है, चूँकि इस फिल्म में संगीत की गुंजाईश उनकी अब तक की फिल्मों से अधिक थी तो उन्होंने संगीतकार चुना प्रीतम को. आईये सुनें कि कैसा है उनके और प्रीतम के मेल से बने इस अल्बम का ज़ायका. नीलेश मिश्रा के लिखे पहले गीत “अभी कुछ दिनों से” में आपको प्रीतम का चिर परिचित अंदाज़ सुनाई देगा. मोहित चौहान की आवाज़ में ये गीत कुछ नया तो नहीं देता पर अपनी मधुरता और अच्छे शब्दों के चलते आपको पसंद न आये इसके भी आसार कम है. “है दिल पे शक मेरा...” और प्रॉब्लम के लिए “प्रोब” शब्द का प्रयोग ध्यान आकर्षित करता है. दरअसल ये एक सामान्य सी सिचुएशन है हमारी फिल्मों की जहाँ नायक अपने पहली बार प्यार में पड़ने की अनुभूति व्यक