ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 541/2010/241 न मस्कार! दोस्तों, 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की इस नई सप्ताह में आप सभी का बहुत बहुत स्वागत है। इन दिनों 'ओल्ड इज़ गोल्ड' में जारी है लघु शृंखला 'हिंदी सिनेमा के लौह स्तंभ'। इसके पहले और दूसरे खण्डों में आपने क्रम से वी. शांताराम और महबूब ख़ान के फ़िल्मी सफ़र की कहानी जानी और साथ ही इनके पाँच पाँच फ़िल्मों के गानें सुनें। आज से हम शुरु कर रहे हैं इस शृंखला का तीसरा खण्ड, और इस खण्ड के लिए हमने चुना है एक और महान फ़िल्मकार को, जिन्हें हम बिमल रॊय के नाम से जानते हैं। बिमल रॊय हिंदी सिनेमा के बेहतरीन निर्देशकों में से एक हैं जिनकी फ़िल्में कालजयी बन गईं हैं। उनकी सामाजिक और सार्थक फ़िल्मों, जैसे कि 'दो बिघा ज़मीन, परिणीता', 'बिराज बहू', 'मधुमती', 'सुजाता' और 'बंदिनी' ने उन्हें शीर्ष फ़िल्मकारों में दर्ज कर लिया। आइए बिमल दा क्ली कहानी शुरु करें शुरु से। बिमल रॊय का जन्म १२ जुलाई १९०९ के दिन ढाका के एक बंगाली परिवार में हुआ था। उस समय ढाका ब्रिटिश भारत का हिस्सा हुआ करता था, और जो अब बांगलादेश की र