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मोहब्बत तर्क की मैंने गरेबाँ सी लिया मैंने.. दिल पर पत्थर रखकर खुद को तोड़ रहे हैं साहिर और तलत

महफ़िल-ए-ग़ज़ल #८९ "स ना-ख़्वाने-तक़दीसे-मशरिक़ कहां हैं?" - मुमकिन है कि आपने यह पंक्ति पढी या सुनी ना हो, लेकिन इस पंक्ति के इर्द-गिर्द जो नज़्म बुनी गई थी, उससे नावाकिफ़ होने का तो कोई प्रश्न हीं नहीं उठता। यह वही नज़्म है, जिसने लोगों को गुरूदत्त की अदायगी के दर्शन करवाएँ, जिसने बर्मन दा के संगीत को अमर कर दिया, जिसने एक शायर की मजबूरियों का हवाला देकर लोगों की आँखों में आँसू तक उतरवा दिए और जिसने बड़े हीं सीधे-सपाट शब्दों में "चकला-घरों" की हक़ीकत बयान कर मुल्क की सच्चाई पर पड़े लाखों पर्दों को नेस्तनाबूत कर दिया... अभी तक अगर आपको इस नज़्म की याद न आई हो तो जरा इस पंक्ति पर गौर फरमा लें- "जिसे नाज़ है हिन्द पर वो कहाँ हैं?" पूरी की पूरी नज़्म वही है, बस एक पंक्ति बदली गई है और वो भी इसलिए क्योंकि फिल्म और साहित्य में थोड़ा फर्क होता है.. फिल्म में हमें अपनी बात खुलकर रखनी होती है। जहाँ तक मतलब का सवाल है तो "सना-ख़्वाने..." में पूरे पूरब का जिक्र है, वहीं "जिसे नाज़ है..." में अपने "हिन्दुस्तान" का बस। लेकिन इससे लफ़्ज़ो

कांकरिया मार के जगाया.....लता का चुलबुला अंदाज़ और निखरा कल्याणजी-आनंदजी के सुरों में

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 423/2010/123 क ल्याणजी-आनंदजी के स्वरबद्ध गीतों का सिलसिला जारी है 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की लघु शृंखला 'दिल लूटने वाले जादूगर' के अन्तर्गत। आज कल्याणजी-आनंदजी के संगीत का जो रंग आप महसूस करेंगे, वह रंग है लोक संगीत का, और साथ ही साथ छेड़-छाड़ का, मस्ती का, चुलबुलेपन का। यह एक बेहद यूनिक गीत है। यूनिक इसलिए कहा क्योंकि आम तौर पर हमारी फ़िल्मों में कुछ महफ़िलों में, पार्टियों में गाए जाने वाले किस्म के गीत होते हैं, कुछ लोक नृत्य के गीत होते हैं, और कुछ सड़क पर नाचती गाती टोलियों के टपोरी किस्म के नृत्य गीत होते हैं। लेकिन अगर इन तीनों विविध और एक दूसरे से बिलकुल भिन्न शैलियों को एक ही गाने में इस्तेमाल कर दिया जाए तो कैसा रहेगा? जी हाँ, कल्याणजी-आनंदजी ने यही कमाल तो कर दिखाया है आज के प्रस्तुत गीत में। फ़िल्म 'हिमालय की गोद में' का यह चुलबुला सा गीत लता मंगेशकर की आवाज़ में आज सुनिए इस महफ़िल में। माला सिंहा, जो एक रस्टिक, यानी कि गाँव की गोरी जो शहरी तौर तरीकों से बिल्कुल बेख़बर है, उसे मनोज कुमार एक शहरी पार्टी में ले जाते हैं और वहाँ उन्हे

बहुत कुछ खत्म होके भी हिमेश भाई और संगीत के दरम्यां कुछ तो बाकी है.. और इसका सबूत है "मिलेंगे मिलेंगे"

ताज़ा सुर ताल २३/२०१० सुजॊय - सभी श्रोताओं व पाठकों का स्वागत है 'ताज़ा सुर ताल' के एक और ताज़े अंक में। इस शुक्रवार वह फ़िल्म आख़िर रिलीज़ हो ही गई जिसकी लोग बड़ी बेसबरी से इंतज़ार कर रहे थे। 'रावण'। अभी दो दिन पहले एक न्यूज़ चैनल पर इस फ़िल्म से संबंधित 'ब्रेकिंग्‍ न्यूज़' का शीर्षक था "मिया पर बीवी हावी"। ग़लत नहीं कहा था उस न्यूज़ चैनल ने। हालाँकि अभिषेक ने अच्छा काम किया है, लेकिन ऐश की अदाकारी की तारीफ़ करनी ही पड़ेगी। देखते हैं फ़िल्म कैसा व्यापार करता है इस पूरे हफ़्ते में। विश्व दीपक - मैने रावण देखी और मुझे तो बेहद पसंद आई। मैने ना सिर्फ़ इस फिल्म का हिन्दी संस्करण देखा बल्कि इसका तमिल संस्करण (रावणन) भी देखा.. और दुगना आनंद हासिल किया । चलिए 'रावण' से आगे बढ़ते हैं। आज हम इस स्तंभ में जिस फ़िल्म के गानें सुनने जा रहे हैं, वह कई दृष्टि से अनोखा है। पहली बात तो यह कि इस फ़िल्म की मेकिंग बहुत पहले से ही शुरु हो गई थी जब शाहीद और करीना का ब्रेक-अप नहीं हुआ था। तभी तो यह जोड़ी नज़र आएगी इस फ़िल्म में। शायद यही बात फ़िल्म की सफलता का कारण