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दिल मगर कम किसी से मिलता है... बड़े हीं पेंचो-खम हैं इश्क़ की राहो में, यही बता रहे हैं जिगर आबिदा

महफ़िल-ए-ग़ज़ल #८८ "को "कोई अच्छा इनसान ही अच्छा शायर हो सकता है।" ’जिगर’ मुरादाबादी का यह कथन किसी दूसरे शायर पर लागू हो या न हो, स्वयं उन पर बिलकुल ठीक बैठता है। यों ऊपरी नज़र डालने पर इस कथन में मतभेद की गुंजाइश कम ही नज़र आती है लेकिन इसको क्या किया जाए कि स्वयं ‘जिगर’ के बारे में कुछ समालोचकों का मत यह है कि जब वह अच्छे इनसान नहीं थे, तब बहुत अच्छे शायर थे। ’जिगर’ के बारे में खुद कुछ कहूँ (इंसान खुद कुछ कहने की हालत में तभी आता है, जब उसने उस शख्सियत पर गहरा शोध कर लिया हो और मैं यह मानता हूँ कि मैने जिगर साहब की बस कुछ गज़लें पढी हैं, उनपर आधारित अली सरदार ज़ाफ़री का "कहकशां" देखा है और उनके बारे में कुछ बड़े लेखकों के आलेख पढे हैं.... इससे ज्यादा कुछ नहीं किया...... इसलिए मुझे नहीं लगता कि मैं इस काबिल हूँ कि अपनी लेखनी से दो शब्द या दो बोल निकाल सकूँ) इससे बेहतर मैंने यही समझा कि हर बार की तरह "प्रकाश पंडित" जी की पुस्तक का सहारा लिया जाए। तो अभी ऊपर मैंने ’जिगर’ की जो हल्की-सी झांकी दिखाई, वो "प्रकाश पंडित" जी की मेहरबानी से हीं संभ

"अखियाँ मिलाके अखियाँ" - गायिका सुरिंदर कौर की पुण्यतिथि पर 'आवाज़' की श्रद्धांजली

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 418/2010/118 अ भी कल यानी १४ तारीख़ को पुण्यतिथि थी इस गायिका की. ५ साल पहले, आज ही के दिन, सन् २००६ को पंजाब की कोकिला सुरिंदर कौर की आवाज़ हमेशा के लिए ख़ामोश हो गई थी। गायिका सुरिंदर कौर के गाए अनगिनत पंजाबी लोक गीतों को पंजाबी संगीत प्रेमी आज भी बड़े चाव से सुनते हैं और उनको याद करते हैं। सन् १९४७-४८ से लेकर १९५२-५३ के मध्य उन्होने हिंदी फ़िल्मों में पार्श्व गायन करके काफ़ी ख्याति प्राप्त की थी। ४० के दशक का वह ज़माना पंजाबी गायिकाओं का ज़माना था। ज़ोहराबाई, नूरजहाँ, शम्शाद बेग़म जैसी वज़नदार आवाज़ों के बीच सुरिंदर कौर ने भी अपनी पारी शुरु की। लेकिन जल्द ही पतली आवाज़ वाली गायिकाओं का दौर शुरु हो गया और ५० के दशक के शुरुआती सालों से ही इन वज़नदार और नैज़ल गायिकाएँ पीछे होती चली गईं। आज 'दुर्लभ दस' शृंखला के अंतर्गत हम लेकर आए हैं सुरिंदर कौर की आवाज़ में १९४८ की फ़िल्म 'नदिया के पार' का गीत "अखियाँ मिलाके अखियाँ"। यह 'आवाज़' की तरफ़ से इस सुरीली गायिका को श्रद्धांजली है उनके स्मृति दिवस पर। दोस्तों, इस आलेख के लिए खोज बीन कर

कहीं "मादनो" की मिठास से तो कहीं "मैं कौन हूँ" के मर्मभेदी सवालों से भरा है "मिथुन" के "लम्हा" का संगीत

ताज़ा सुर ताल २२/२०१० विश्व दीपक - ’ताज़ा सुर ताल' में हम सभी का स्वागत करते हैं। तो सुजॊय जी, पिछले हफ़्ते कोई फ़िल्म देखी आपने? सुजॊय - हाँ, 'राजनीति' देखी, लेकिन सच पूछिए तो निराशा ही हाथ लगी। कुछ लोगों को यह फ़िल्म पसंद आई, लेकिन मुझे तो फ़िल्म बहुत ही अवास्तविक लगी। सिर्फ़ बड़ी स्टारकास्ट के अलावा कुछ भी ख़ास बात नहीं थी। कहानी भी बेहद साधारण। ख़ैर, पसंद अपनी अपनी, ख़याल अपना अपना। विश्व दीपक - पसंद की अगर बात है तो आज हम 'टी.एस.टी' में जिस फ़िल्म के गानें लेकर हाज़िर हुए हैं, मुझे ऐसा लगता है कि इस फ़िल्म के गानें लोगों को पसंद आने वाले हैं। आज ज़िक्र फ़िल्म 'लम्हा' के गीतों का। सुजॊय - 'लम्हा' बण्टी वालिया व जसप्रीत सिंह वालिया की फ़िल्म है जिसमें मुख्य भूमिकाएँ निभाई हैं संजय दत्त, बिपाशा बासु, कुणाल कपूर, अनुपम खेर ने। निर्देशक हैं राहुल ढोलकिया। संगीत दिया है मिथुन ने, और यह फ़िल्म परदर्शित होने वाली है १६ जुलाई के दिन, यानी कि ठीक एक महीने बाद। जैसा समझ में आ रहा है कि कश्मीर के पार्श्व पर यह फ़िल्म आधारित है। इस फ़िल्म का म्युज़िक लौम्च