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भूल गया सब कुछ .... याद रहे मगर बख्शी साहब के लिखे सरल सहज गीत

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 386/2010/86 आ नंद बक्शी उन गीतकारों मे से हैं जिन्होने संगीतकारों की कई पीढ़ियों के साथ कंधे से कंधा मिलाते हुए हिट काम किया है। जहाँ एक तरफ़ सचिन देव बर्मन के साथ काम किया है, वहीं उनके बेटे राहुल देव बर्मन के साथ भी एक लम्बी पारी खेली है। कल्याणजी-आनंदजी के धुनों पर भी गानें लिखे हैं और विजु शाह के भी। चित्रगुप्त - आनंद मिलिंद, श्रवण - संजीव दर्शन आदि। फ़िल्म 'देवर' में संगीतकार रोशन के साथ भी काम किया है, और रोशन साहब के बेटे राजेश रोशन के साथ तो बहुत सारी फ़िल्मों में उनका साथ रहा। आज हम आपको बक्शी साहब का लिखा और राजेश रोशन का स्वरबद्ध किया हुआ एक गीत सुनवाना चाहेंगे। इस गीत के बारे में ख़ुद आनंद बक्शी साहब से ही जानिए, जो उन्होने विविध भारती के जयमाला कार्यक्रम में कहे थे: " मरहूम रोशन मेरे मेहरबान दोस्तों में से थे। उनके साथ मैंने काफ़ी गीत लिखे हैं। मुझे ख़ुशी है कि उनका बेटा राजेश उनके नाम को रोशन कर रहा है। राजेश रोशन के साथ मुझे फ़िल्म 'जुली' में काम करने का मौका मिला। तो फ़िल्म 'जुली' का गीत, जिसे लता और किशोर ने गाया है

सुनो कहानी: मैं एक भारतीय

'सुनो कहानी' इस स्तम्भ के अंतर्गत हम आपको सुनवा रहे हैं प्रसिद्ध कहानियाँ। पिछले सप्ताह आपने अनुराग शर्मा की आवाज़ में शरद जोशी की कहानी " बुद्धिजीवियों का दायित्व " का पॉडकास्ट सुना था। आज हम आपकी सेवा में प्रस्तुत कर रहे हैं अनुराग शर्मा की एक कहानी " मैं एक भारतीय ", जिसको स्वर दिया है अनुराग शर्मा ने। कहानी "मैं एक भारतीय" का कुल प्रसारण समय 3 मिनट 15 सेकंड है। सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं। "मैं एक भारतीय" का टेक्स्ट बर्ग वार्ता ब्लॉग पर उपलब्ध है। यदि आप भी अपनी मनपसंद कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, धारावाहिको, प्रहसनों, झलकियों, एकांकियों, लघुकथाओं को अपनी आवाज़ देना चाहते हैं हमसे संपर्क करें। अधिक जानकारी के लिए कृपया यहाँ देखें। पतझड़ में पत्ते गिरैं, मन आकुल हो जाय। गिरा हुआ पत्ता कभी, फ़िर वापस ना आय।। ~ अनुराग शर्मा हर शनिवार को आवाज़ पर सुनें एक नयी कहानी कमलाकन्नन ने उनकी बात समझ कर उनसे बात करना शुरू किया। ( अनुराग शर्मा की " मैं एक भारतीय " से एक अंश ) नीचे के प्लेयर से सुनें. (प्

बागों में बहार आई, होंठों पे पुकार आई...जब बख्शी साहब ने आवाज़ मिलाई लता के साथ इस युगल गीत में

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 385/2010/85 'मैं शायर तो नहीं', आनंद बक्शी के लिखे गीतों पर आधारित इस शृंखला में आज हम सुनेंगे ख़ुद बक्शी साहब की ही आवाज़ में एक गीत, लेकिन उस गीत के ज़िक्र से पहले हम आपको उनके जीवन से जुड़ी कुछ अहम तारीख़ों से रु-ब-रु करवाना चाहेंगे। ये हैं वो तारीख़ें - माँ का निधन - १९४० कैम्ब्रिज कॊलेज, रावलपिण्डी से निवृत्ति - ६ मार्च १९४३ 'रॊयल इण्डियन नेवी' में भर्ती - १२ जुलाई १९४४ 'रॊयल इण्डियन नेवी' से मुक्ति - ५ अप्रैल १९४६ देश विभाजन के बाद रावलपिण्डी से पलायन - २ अक्तुबर १९४७ 'कॊर्प्स ऒफ़ सिग्नल्स' में भर्ती - १५ अक्तुबर १९४७ 'कॊर्प्स ऒफ़ सिग्नल्स' से मुक्ति - १२ अप्रैल १९५० बम्बई में पहली बार काम की तलाश में आगमन - १९५१ ई.एम.ई (The Corps of Electrical and Mechanical Engineers) में भर्ती - १६ फ़रवरी १९५१ कमला मोहन से विवाह - २ अक्तुबर १९५४ ई.एम.ई से मुक्ति - २७ अगस्त १९५६ बम्बई में दूसरी बार आगमन - अक्तुबर १९५६ आनंद बक्शी के दादाजी सुघरमल वैद बक्शी रावलपिण्डी में ब्रिटिश राज के दौरान सुपरिंटेंडेण्ट ऒफ़ पुलिस थे। उनके पिता