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अमन का सन्देश भी है "खान" के सूफियाना संगीत में...

ताज़ा सुर ताल 05/ 2010 सजीव - सुजॊय, वेल्कम बैक! उम्मीद है छुट्टियों का तुमने भरपूर आनंद उठाया होगा! सुजॊय - बिल्कुल! और सब से पहले तो मैं विश्व दीपक तन्हा जी का शुक्रिया अदा करता हूँ जिन्होने मेरी अनुपस्थिति में 'ताज़ा सुर ताल' की परंपरा को बरक़रार रखने में हमारा सहयोग किया। सजीव - निस्सन्देह! अच्छा सुजॊय, आज फरवरी का दूसरा दिन है, यानी कि साल २०१० का एक महीना पूरा हो चुका है, लेकिन अब तक एक भी फ़िल्म इस साल की बॊक्स ऒफ़िस पर अपना सिक्का नहीं जमा पाया है। पिछले हफ़्ते 'वीर' रिलीज़ हुई थी, और इस शुक्रवार को 'रण' और 'इश्क़िया' एक साथ प्रदर्शित हुई हैं। 'वीर' ने अभी तक रफ़्तार नहीं पकड़ी है, देखते हैं 'रण' और 'इश्क़िया' का क्या हश्र होता है। 'चांस पे डांस', 'प्यार इम्पॊसिबल', और 'दुल्हा मिल गया' भी पिट चुकी है। सुजॊय - मैंने सुना है कि 'इश्क़िया' के संवदों में बहुत ज़्यादा अश्लीलता है। विशाल भारद्वाज ने 'ओम्कारा' की तरह इस फ़िल्म के संवादों में भी काफ़ी गाली गलोच और अश्लील शब्द डाले हैं। ऐ

अफसाना लिख रही हूँ....उमा देवी की आवाज़ में एक खनकता नगमा

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 332/2010/32 ह मारी याद आएगी' शृंखला की दूसरी कड़ी में आपका स्वागत है। दोस्तों, यह शृंखला समर्पित है उन कमचर्चित पार्श्वगायिकाओं के नाम जिन्होने फ़िल्म संगीत के सुनहरे दौर में कुछ बेहद सुरीले और मशहूर गीत गाए हैं, लेकिन उनका बहुत ज़्यादा नाम न हो सका। आज एक ऐसी गायिका का ज़िक्र जिन्होने दो दो पारियाँ खेली हैं इस फ़िल्म जगत में। जी हाँ, पार्श्व गायिका के रूप में अपना करीयर शुरु करने के बाद जब उन्हे लगा कि इस क्षेत्र में वो बहुत ज़्यादा कामयाब नहीं हो पाएँगी, तो उन्होने अपनी प्रतिभा को अभिनय के क्षेत्र में आज़माया। और एक ऐसी हास्य अभिनेत्री बनीं कि वो जिस किसी फ़िल्म में भी आतीं लोगों को हँसा हँसा कर लोट पोट कर देतीं। गायन के क्षेत्र में तो उनका बहुत ज़्यादा नाम नहीं हुआ लेकिन उनके हास्य अभिनय से सजे अनगिनत फ़िल्में और फ़िल्म जगत की बेहतरीन कॊमेडियन के रूप में उनका नाम आज भी सम्मान से लिया जाता है। आप समझ ही चुके होंगे कि आज हम बात कर रहे हैं गायिका उमा देवी, यानी कि हम सब की चहेती टुनटुन की। उत्तर प्रदेश के एक खत्री परिवार में जन्मे उमा देवी को अभिनय से ज़्या

चोरी चोरी आग सी दिलमें लगाकर चल दिए...सुलोचना कदम की मीठी शिकायत याद है क्या ?

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 331/2010/31 सं गीत रसिकों, 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की एक और महफ़िल में आप सभी का हम हार्दिक स्वागत करते हैं। दोस्तों, यह सच है कि आकाश की सुंदरता सूरज और चांद से है, लेकिन सिर्फ़ ये ही दो काफ़ी नहीं। इनके अलावा भी जो असंख्य झिलमिलाते और टिमटिमाते सितारे हैं, जिनमें से कुछ उज्जवल हैं तो कुछ धुंधले, इन सभी को एक साथ लेकर ही आकाश की सुंदरता पूरी होती है। कुदरत का यही नमूना फ़िल्म संगीत के आकाश पर भी लागू होता है। जहाँ एक तरफ़ लता मंगेशकर और आशा भोसले एक लम्बे समय से सूरज और चांद की तरह फ़िल्म जगत में अपनी रोशनी बिखेर रहीं हैं, वहीं दूसरी तरफ़ बहुत सारी ऐसी गायिकाएँ भी समय समय पर उभरीं हैं जिनका नाम ज़रा कम हुआ, या फिर युं कहिए कि प्रतिभाशाली होते हुए भी जिन्हे गायन के बहुत ज़्यादा मौके नहीं मिले। लेकिन इन सभी कमचर्चित गायिकाएँ कुछ ऐसे ऐसे गानें गाकर गईं हैं कि ना केवल ये गानें उनकी पहचान बन गई बल्कि उनका नाम भी फ़िल्म संगीत के इतिहास में सम्माननीय स्तर पर दर्ज करवा दिया। आज फ़िल्म संगीत का आकाश इन सभी सितारों के गाए गीतों से झिलमिला रही हैं। इन कमचर्चित गायिकाओं

दे दी हमें आजादी बिना खडग बिना ढाल.....साबरमती के संत को याद कर रहा है आज आवाज़ परिवार

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 330/2010/30 आ ज है ३० जनवरी। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का बलिदान दिवस। बापु के इस स्मृति दिवस को पूरा देश 'शहीद दिवस' के रूप में पालित करता है। बापु के साथ साथ देश के उन सभी वीर सपूतों को श्रद्धांजली अर्पित करने और सेल्युट करने का यह दिन है जिन्होने इस देश की ख़ातिर अपने प्राण न्योछावर कर दिए हैं। 'आवाज़' और 'हिंद युग्म' परिवार की ओर से, और हम अपनी ओर से इस देश पर मर मिटने वाले हर वीर सपूत को सलाम करते हैं, उनके सामने अपना सर झुका कर उन्हे सलामी देते हैं। आइए आज 'ओल्ड इज़ गोल्ड' में सुनें कवि प्रदीप का लिखा हुआ वह गीत जो बापु पर लिखे गए तमाम गीतों में लोगों के दिलों में बहुत ही लोकप्रिय स्थान रखता है। आशा भोसले और साथियो की आवाज़ों में फ़िल्म 'जागृति' का यह गीत है "दे दी हमें आज़ादी बिना खड्ग बिना ढाल, साबरमती की संत तूने कर दिया कमाल, रघुपति राघव राजा राम"। 'जागृति' १९५४ की फ़िल्म थी 'फ़िल्मिस्तान' के बैनर तले बनी हुई। यह एक देशभक्ति मूलक फ़िल्म थी जिसकी कहानी एक अध्यापक और उनके छात्रों के मधुर

मैं एक बच्चे को प्यार कर रही थी - इस्मत चुगताई

सुनो कहानी: मैं एक बच्चे को प्यार कर रही थी 'सुनो कहानी' इस स्तम्भ के अंतर्गत हम आपको सुनवा रहे हैं प्रसिद्ध कहानियाँ। पिछले सप्ताह आपने अनुराग शर्मा की आवाज़ में उन्हीं की हिंदी कहानी " गरजपाल की चिट्ठी " का पॉडकास्ट सुना था। आवाज़ की ओर से आज हम लेकर आये हैं इस्मत चुगताई की आत्मकथा ''कागज़ी है पैरहन'' से एक बहुत ही सुन्दर, मार्मिक प्रसंग " मैं एक बच्चे को प्यार कर रही थी ", जिसको स्वर दिया है अनुराग शर्मा ने। अनुराग वत्स के प्रयास से इस प्रसंग का टेक्स्ट सबद... पर उपलब्ध है। कहानी का कुल प्रसारण समय 6 मिनट 15 सेकंड है। सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं। यदि आप भी अपनी मनपसंद कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, धारावाहिको, प्रहसनों, झलकियों, एकांकियों, लघुकथाओं को अपनी आवाज़ देना चाहते हैं हमसे संपर्क करें। अधिक जानकारी के लिए कृपया यहाँ देखें। चौथी के जोडे क़ा शगुन बडा नाजुक़ होता है। ~ इस्मत चुगताई (1911-1991) हर शनिवार को आवाज़ पर सुनें एक नयी कहानी मेरे घर शिकायत पहुंची कि मैं चाँदी के भगवान की मूर्ति चुरा रही थी। अम्मा ने

जब दिल ही टूट गया....सहगल की दर्द भरी आवाज़ और मजरूह के बोल

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 329/2010/29 'ओ ल्ड इज़ गोल्ड' में पिछले तीन दिनो से आप शरद तैलंग जी के पसंद के गाने सुनते आ रहे हैं, जो 'महासवाल प्रतियोगिता' में सब से ज़्यादा सवालों के सही जवाब देकर विजेयता बने थे। आज उनकी पसंद का आख़िरी गीत, और गीत क्या साहब, यह तो ऐसा कल्ट सॊंग् है कि ६५ साल बाद भी लोग इस गीत को भुला नहीं पाए हैं। कुंदन लाल सहगल की आवाज़ में बेहद मक़बूल, बेहद ख़ास, नौशाद साहब की अविस्मरणीय संगीत रचना "जब दिल ही टूट गया, हम जी के क्या करेंगे"। फ़िल्म 'शाहजहाँ' का यह मशहूर गीत लिखा था मजरूह सुल्तानपुरी साहब ने। दोस्तों, अब तक 'ओल्ड इज़ गोल्ड' में आपने सहगल साहब के कुल दो गीत सुन चुके हैं। एक तो हाल ही में उनकी पुण्यतिथि पर फ़िल्म 'ज़िंदगी' की लोरी " सो जा राजकुमारी " सुनवाया था, और एक गीत हमने आपको फ़िल्म 'शाहजहाँ' से ही सुनवाया था " ग़म दिए मुस्तक़िल " अपने ५०-वें एपिसोड को ख़ास बनाते हुए। लेकिन उस दिन हमने इस फ़िल्म की चर्चा नहीं की थी, बल्कि नौशाद साहब की सहगल साहब पर लिखी हुई कविता से रु-ब-रु क

19वाँ विश्व पुस्तक मेला में होगा आवाज़ महोत्सव, ज़रूर पधारें

हिन्द-युग्म साहित्य को कला की हर विधा से जोड़ने का पक्षधर है। इसलिए हम अपने आवाज़ मंच पर तमाम गतिविधियों के साथ-साथ साहित्य को आवाज़ की विभिन्न परम्पराओं से भी जोड़ने की कोशिश कर रहे हैं। इसी क्रम में हमने प्रेमचंद की कहानियों को 'सुनो कहानी' स्तम्भ के माध्यम से पॉडकास्ट करना शुरू किया ताकि उन्हें इस माध्यम से भी संग्रहित किया जा सके। 19वाँ विश्व पुस्तक मेला जो प्रगति मैदान, नई दिल्ली में 30 जनवरी से 7 फरवरी 2010 के मध्य आयोजित हो रहा है, में हिन्द-युग्म प्रेमचंद की 15 कहानियों के एल्बम 'सुनो कहानी' को जारी करेगा। इसी कार्यक्रम में जयशंकर प्रसाद, सुमित्रानंदन पंत, सूर्यकांत त्रिपाठी निराला, महादेवी वर्मा, रामधारी सिंह दिनकर, मैथिलीशरण गुप्त की प्रतिनिधि कविताओं के संगीतबद्ध एल्बम ‘काव्यनाद’ का लोकार्पण भी होगा। उल्लेखनीय है कि 18वें विश्व पुस्तक मेला में भी हिन्द-युग्म ने इंटरनेट की हिन्दी दुनिया का प्रतिनिधित्व किया था और अपने पहला उत्पाद के तौर पर कविताओं और संगीतबद्ध गीतों के एल्बम 'पहला सुर' को जारी किया था। सन् 2008 में इंटरनेट पर हिन्दी का जितना बड़ा संसार