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रविवार सुबह की कॉफ़ी और कुछ दुर्लभ गीत (२२)

कुछ फ़िल्में अपने गीत-संगीत के लिए हमेशा याद की जाती है. कुछ फ़िल्में अपनी कहानी को ही बेहद काव्यात्मक रूप से पेश करती है, जैसे उस फिल्म से गुजरना एक अनुभव हो किसी कविता से गुजरने जैसा. कैफ़ी साहब (कैफ़ी आज़मी) और फिल्म "नसीम" में उनकी अदाकारी को भला कौन भूल सकता है, ७० के दशक की एक फिल्म याद आती है -"हँसते ज़ख्म", जिसमें एक अनूठी कहानी को बेहद शायराना /काव्यात्मक अंदाज़ में निर्देशक ने पेश किया था. इत्तेफक्कन यहाँ भी फिल्म के गीतकार कैफ़ी आज़मी थे. ये तो हम नहीं जानते कि फिल्म कामियाब हुई थी या नहीं पर फिल्म अभिनेत्री प्रिया राजवंश की संवाद अदायगी, नवीन निश्चल के बागी तेवर और बलराज सहानी के सशक्त अभिनय के लिए आज भी याद की जाती है, पर फिल्म का एक पक्ष ऐसा था जिसके बारे में निसंदेह कहा जा सकता है कि ये उस दौर में भी सफल था और आज तो इसे एक क्लासिक का दर्जा हासिल हो चुका है, जी हाँ हम बात कर रहे हैं मदन मोहन, कैफ़ी साहब, मोहम्मद रफ़ी और लता मंगेशकर के रचे उस सुरीले संसार की जिसका एक एक मोती सहेज कर रखने लायक है. चलिए इस रविवार इसी फिल्म के संगीत पर एक चर्चा हो जाए. &qu

तेरी है ज़मीन तेरा आसमां...तू बड़ा मेहरबान....कहते हैं बच्चों की दुआएं खुदा अवश्य सुनता है...

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 269 बी. आर. चोपड़ा कैम्प के गीत संगीत के मुख्य रूप से कर्णधार हुआ करते थे साहिर लुधियानवी और रवि। लेकिन १९८० में इस कैम्प की एक फ़िल्म आई जिसमें गानें तो लिखे साहिर साहब ने, लेकिन संगीत के लिए चुना गया राहुल देव बर्मन को। शायद एक बहुत ही अलग सबजेक्ट की फ़िल्म और फ़िल्म में नई पीढ़ियों के किरदारों की भरमार होने की वजह से बी. आर. चोपड़ा (निर्माता) और रवि चोपड़ा (निर्देशक) ने यह निर्णय लिया होगा। जिस फ़िल्म की हम बात कर रहे हैं वह है 'दि बर्निंग् ट्रेन'। जब यह फ़िल्म बनी थी तो लोगों में बहुत ज़्यादा कौतुहल था क्योंकि फ़िल्म का शीर्षक ही बता रहा था कि फ़िल्म की कहानी बहुत अलग होगी, और थी भी। एक बहुत बड़ी स्टार कास्ट नज़र आई इस फ़िल्म में। धर्मेन्द्र, हेमा मालिनी, जीतेन्द्र, नीतू सिंह, परवीन बाबी, विनोद खन्ना और विनोद मेहरा जैसे स्टार्स तो थे ही, साथ में बहुत से बड़े बड़े चरित्र अभिनेता भी इस फ़िल्म के तमाम किरदारों में नज़र आए। फ़िल्म की कहानी बताने की ज़रूरत नहीं, क्योंकि यह एक ऐसी फ़िल्म है जिसे लगभग सभी ने देखी है और अब भी अक्सर टी.वी. पर दिखाई जाती है।

तोते की कहानी- रबिन्द्र नाथ टैगोर

सुनो कहानी: रबीन्द्र नाथ ठाकुर की "तोते की कहानी" 'सुनो कहानी' इस स्तम्भ के अंतर्गत हम आपको सुनवा रहे हैं प्रसिद्ध कहानियाँ। पिछले सप्ताह आपने अनुराग शर्मा की आवाज़ में हिंदी साहित्यकार गजानन माधव मुक्तिबोध की हृदयस्पर्शी कहानी " पक्षी और दीमक " का पॉडकास्ट सुना था। आज हम आपकी सेवा में प्रस्तुत कर रहे हैं रबीन्द्र नाथ ठाकुर की एक कहानी " तोते की कहानी ", जिसको स्वर दिया है शरद तैलंग ने। कहानी का कुल प्रसारण समय 8 मिनट 20 सेकंड है। सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं। यदि आप भी अपनी मनपसंद कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, धारावाहिको, प्रहसनों, झलकियों, एकांकियों, लघुकथाओं को अपनी आवाज़ देना चाहते हैं हमसे संपर्क करें। अधिक जानकारी के लिए कृपया यहाँ देखें। पक्षी समझते हैं कि मछलियों को पानी से ऊपर उठाकर वे उनपर उपकार करते हैं। ~ रबीन्द्र नाथ ठाकुर (1861-1941) हर शनिवार को आवाज़ पर सुनें एक नयी कहानी सुनार बुलाया गया। वह सोने का पिंजरा तैयार करने में जुट गया। ( रबीन्द्र नाथ ठाकुर की "तोते की कहानी" से एक अंश ) नीचे के प