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ये खेल होगा नहीं दुबारा...बड़ी हीं मासूमियत से समझा रहे हैं "निदा" और "जगजीत सिंह"

महफ़िल-ए-ग़ज़ल #५० म हफ़िल-ए-गज़ल की जब हमने शुरूआत की थी, तब हमने सोचा भी नहीं था कि गज़लों का यह सफ़र ५०वीं कड़ी तक पहुँचेगा। लेकिन देखिए, देखते हीं देखते वह मुकाम भी हमने हासिल कर लिया। यह आप सबके प्यार और हौसला-आफ़ज़ाई के कारण हीं मुमकिन हो पाया है, नहीं तो हर बार कुछ नया लाना इतना आसान नहीं होता। उम्मीद है कि हम आपकी उम्मीदों पर खड़े उतर रहे हैं। हर बार आपके लिए कुछ नया लाने में हमारा भी बड़ा फ़ायदा है। न जाने ऐसे कितने नगीने हैं जो मिट्टी-तले दबे रहते हैं और उनका हक़ बनता है कि हम उन्हें जानें, पहचानें और हमारा भी हक़ बनता है कि हम उन नगीनों से नावाकिफ़ नहीं रहें। बस इसी फ़ायदे के लिए हम हर बार आपके सामने आते रहते हैं। आपने जिस तरह हमारा आज तक साथ दिया है, बस यही इल्तज़ा है कि आगे भी साथ बने रहिएगा। इसी दुआ के साथ पिछली कड़ी के अंकों का खुलासा करते हैं। तो हिसाब कुछ यूँ बनता है: सीमा जी: ४ अंक, शामिख जी: २ अंक और शरद जी: १ अंक। अब बारी है आज के प्रश्नों की| ये रहे प्रतियोगिता के नियम और उसके आगे दो प्रश्न: हम आपसे दो सवाल पूछेंगे जिसके जवाब आज के या फिर पिछली कड़ियों के आलेख मे

दर्द-ए-उल्फ़त छुपाऊँ कहाँ....लता ने किया एक मासूम सवाल शंकर जयकिशन के संगीत में

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 219 गी तकार शैलेन्द्र, संगीतकार जोड़ी शंकर-जयकिशन और गायिका लता मंगेशकर की जब एक साथ बात चलती है तो इतने सारे मशहूर, हिट और शानदार गीत एक के बाद एक ज़हन में आते जाते हैं कि जिनका कोई अंत नहीं। चाहे राज कपूर की फ़िल्मों के गानें हों या किसी और फ़िल्मकार के, इस टीम ने 'बरसात' से जो सुरीली बरसात शुरु की थी उसकी मोतियों जैसी बूँदें हमें आज तक भीगो रही है। लेकिन ऐसे बेशुमार हिट गीतों के बीच बहुत से ऐसे गीत भी समय समय पर बने हैं जो उतनी ज़्यादा लोकप्रिय नहीं हुए और इन हिट गीतों की चमक धमक में इनकी मंद ज्योति कहीं गुम हो गई, खो गई, लोगों ने भुला दिया, समय ने उन पर पर्दा डाल दिया। ऐसा ही एक गीत आज के अंक में सुनिए। फ़िल्म 'औरत' का यह गीत है "दर्द-ए-उल्फ़त छुपाऊँ कहाँ, दिल की दुनिया बसाऊँ कहाँ"। बड़ा ही ख़ुशरंग और ख़ुशमिज़ाज गीत है यह जिसमें है पहले पहले प्यार की बचैनी और मीठे मीठे दर्द का ज़िक्र है। मज़ेदार बात यह है कि बिल्कुल इसी तरह का गीत शंकर जयकिशन ने अपनी पहली ही फ़िल्म 'बरसात' में लता जी से गवाया था। याद है न आपको हसरत साहब का

मेक ए विश...कह रहे हैं अमिताभ...इस दिवाली मांग ही डालिए कुछ अपने जिन्नी से

ताजा सुर ताल (26) दोस्तों आज ताजा सुर ताल में मैं सजीव सारथी अकेला ही हूँ आपके स्वागत के लिए क्योंकि आपके प्रिय होस्ट सुजॉय दुर्गा पूजा की खुशियाँ अपने परिवार के साथ बांटने घर गए हुए है....खैर आज मैं जो गीत आपको सुनवाने जा रहा हूँ, वो एक "रैप" सोंग है, रैप यानी एक सधे हुए पेटर्न पर गीत की पंक्तियों को तेजी से बोलना, बरसों पहले अशोक कुमार ने फिल्म आशीर्वाद के लिए "रेलगाडी" गीत गाया था कुछ इसी अंदाज़ में, याद है न ?, पता नहीं उस ज़माने में इसे रैप ही कहते थे या कुछ और....पाश्चात्य संगीत की इस मशहूर संगीत परंपरा को हिन्दुस्तान में बाबा सहगल ने अपने "ठंडा ठंडा पानी" से लोकप्रिय बनाया..बाद में रहमान ने भी कुछ गीतों में रैप का इस्तेमाल किया....आजकल तो ये लगभग हर गीत का हिस्सा बन चूका है. आज कल लगभग हर दूसरे गीत हिप होप बनाने के लिए उसमें कुछ अंग्रेजी शब्दों का मायाजाल बुनकर उसे रैप शैली में गवा दिया जाता है. खैर हमने जो आज का गीत चुना है वो कोई मामूली रैप नहीं है..पूछिए क्यों ... जी हाँ, ये रैप कोई इंसान नहीं बल्कि एक जिन्नी का है, "जिन्नी" ? अरे आप जि