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नवलेखन पुरस्कार वितरण समारोह की रिकॉर्डिंग

हिन्द-युग्म महत्वपूर्ण सार्वजनिक साहित्यिक समारोहों की रिकॉर्डिंग उपलब्ध कराता रहा है ताकि कार्यक्रम का आनंद वे लोग भी ले सकें जो सशरीर समारोह उसमें सम्मिलित नहीं हो सकते। सबसे पहले हमने उदय प्रकाश का कहानीपाठ सुनवाया। फिर तेजेन्द्र शर्मा और गौरव सोलंकी के कथापाठ की रिकॉर्डिंग सुनवाई थी। आज सुनिए १४ मार्च २००९ को भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा आयोजित नवलेखन पुरस्कार वितरण समारोह की रिकॉर्डिंग। इस कार्यक्रम की मुख्य अतिथि दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित थीं। कार्यक्रम की अध्यक्षता की भारतीय ज्ञानपीठ सम्मान २००६ से सम्मानित कवि कुँवर नारायाण। इसके अलावा इस कार्यक्रम में अतिथि के दौर पर अजित कुमार, कैलाश वाजपेयी, अशोक वाजपेयी, ऋता शुक्ल, रवीन्द्र कालिया उपस्थित थे। इस कार्यक्रम में १३ नई साहित्यकि पुस्तकों का विमोचन हुआ। जिसमें हिन्द-युग्मी विमल चंद्र पाण्डेय और पंकज सुबीर के पहले कहानी-संग्रहों का विमोचन भी शामिल था। शुरू के ५० सेकेण्ड की रिकॉर्डिंग हमारे पास उपलब्ध नहीं है। कुल समयः २ घण्टे १५ मिनट सुनें- आप भी अपने इर्द-गिर्द के होने वाले इस तरह के साहित्यिक आयोजनों की रिकॉर्डिंग podcas

भूलने वाले याद न आ...

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 23 न मस्ते दोस्तों, 'ओल्ड इस गोल्ड' की एक और सुरीली शाम के साथ हम हाज़िर हैं. दोस्तों, अब तक इस शृंखला में हमने आपको जितने भी गाने सुनवाए हैं वो 50 और 60 के दशकों के फिल्मों से चुने गये थे. लेकिन आज हम झाँक रहे हैं 40 के दशक में. इस दशक को हालाँकि कुछ लोग फिल्म संगीत का सुनहरा दौर नहीं मानते हैं, लेकिन इस दशक के आखिर के दो-तीन सालों में फिल्म संगीत में बहुत से परिवर्तन आए. देश के बँटवारे के बाद उस ज़माने के कई कलाकार पाकिस्तान चले गये, वहाँ के कई कलाकार यहाँ आ गये. नये गीतकार, संगीतकार और गायक गायिकाओं ने इस क्षेत्र में कदम रखा. फिल्म संगीत की धारा और लोगों की रूचि बदलने लगी. नये फनकारों के नये नये अंदाज़ जनता को रास आने लगा और यह फनकार तेज़ी से कामयाबी की सीढियाँ चढ़ने लगे. ऐसे ही एक संगीतकार थे नौशाद. नौशाद साहब ने अपनी पारी की शुरुआत 1942 में करने के बाद 1944 की फिल्म "रत्तन" में उन्हे पहली बड़ी कामयाबी नसीब हुई. इसके बाद उन्हे पीछे मुड्कर देखने की ज़रूरत महसूस नहीं हुई. सन् 1948 में उन्ही के संगीत से सजी एक फिल्म आई थी "अनोखी अदा"

"दिलवाले दुल्हनिया ले जायेंगे" ने रचा इतिहास, किये ७०० सप्ताह पूरे

सप्ताह की संगीत सुर्खियाँ (13) स्लम डॉग के बाल सितारों ने याद दिलाई शफीक सैयद की लगभग २० साल पहले मीरा नायर की फिल्म "सलाम बॉम्बे" बहुत चर्चित हुई थी, और विदेशी फिल्म की श्रेणी में भारत की तरफ से ऑस्कर में नामांकित भी हुई थी. इस फिल्म में सबसे ज्यादा वाह वाही लूटी थी एक चाय वाले की भूमिका में इसके बाल कलाकार शफीक सैयद ने. पर इस फिल्म के बाद सैयद को मुंबई में कोई काम नहीं मिला. थक हार कर १९९३ में वो बैंगलोर आ गये. दुःख की बात है की इतनी प्रतिभा होने के बाद भी सैयद आज ऑटो चला रहे हैं, जीविका के लिए. ५२ दिन की शूटिंग, उस ज़माने में १५००० रूपए का मेहनताना, अप्रत्याक्षित लोकप्रियता, राष्ट्रपति भवन में सत्कार. आज ये सब बातें सैयद के लिए एक सपना ही लगती होगी. पर ख़ुशी की बात ये है कि फिल्मों से उनका प्रेम आज भी बरकरार है, और अपने खाली समय में स्क्रिप्ट लिखते हैं. उम्मीद करें कि उनकी कहानी को भी कोई प्रोड्यूसर मिले. पप्पू के पास होने के बाद अब चुनाव आयोग का नया नारा -"वोट ऑन" "पप्पू" कामियाब हो गया. अब चुनाव आयोग ने इसी फार्मूले पर लोक सभा चुनावों के लिए फि