Skip to main content

Posts

अनकथ तेरी शहादत को, किस पैमाने पर तोल, लिखूँ ?

दो बोल लिखूँ! शब्दकोष खाली मेरे, क्या कुछ मैं अनमोल लिखूँ! आक्रोश उतारुँ पन्नों पर, या रोष उतारूँ पन्नों पर, उनकी मदहोशी को परखूँ, तेरा जोश उतारूँ पन्नों पर? इस कर्मठता को अक्षर दूँ, निस्सीम पर सीमा जड़ दूँ? तू जिंदादिल जिंदा हममें, तुझको क्या तुझसे बढकर दूँ? अनकथ तेरी शहादत को, किस पैमाने पर तोल, लिखूँ? मैं मुंबई का दर्द लिखूँ, सौ-सौ आँखें सर्द लिखूँ, दहशत की चहारदिवारी में बदन सुकूँ का ज़र्द लिखूँ? मैं आतंक की मिसाल लिखूँ, आशा की मंद मशाल लिखूँ, सत्ता-विपक्ष-मध्य उलझे, इस देश के नौनिहाल लिखूँ? या "राज"नेताओं के आँसू का, कच्चा-चिट्ठा खोल,लिखूँ? फिर "मुंबई मेरी जान" कहूँ, सब भूल, वही गुणगान कहूँ, डालूँ कायरता के चिथड़े, निज संयम को महान कहूँ? सच लिखूँ तो यही बात लिखूँ, संघर्ष भरे हालात लिखूँ, हर आमजन में जोश दिखे, जियालों-से जज़्बात लिखूँ। शत-कोटि हाथ मिले जो, तो कदमों में भूगोल लिखूँ! हैं शब्दकोष खाली मेरे, क्या कुछ मैं अनमोल लिखूँ? हिंद युग्म के कवि विश्व दीपक "तन्हा" की ये कविता बहुत कुछ कह जाती है दोस्तों. आवाज़ के कुछ मित्रों ने इन ताज़ा घटनाओं पर हम तक अ

पॉडकास्ट कवि सम्मेलन - नवम्बर २००८

डॉक्टर मृदुल कीर्ति कविता प्रेमी श्रोताओं के लिए प्रत्येक मास के अन्तिम रविवार का अर्थ है पॉडकास्ट कवि सम्मेलन । लीजिये आपके सेवा में प्रस्तुत है नवम्बर २००८ का पॉडकास्ट कवि सम्मलेन। अगस्त , सितम्बर और अक्टूबर २००८ की तरह ही इस बार भी इस ऑनलाइन आयोजन का संयोजन किया है हैरिसबर्ग, अमेरिका से डॉक्टर मृदुल कीर्ति ने। आवाज़ की ओर से हर महीने प्रस्तुत किए जा रहे इस प्रयास में गहरी दिलचस्पी और सहयोग के लिए धन्यवाद! आप सभी के प्रेम के लिए हम आपके आभारी हैं। इस बार भी हमें अत्यधिक संख्या में कवितायें प्राप्त हुईं और हमें आशा है कि आप अपना सहयोग इसी प्रकार बनाए रखेंगे। हम बहुत सी कविताओं को उनकी उत्कृष्टता के बावजूद इस माह के कार्यक्रम में शामिल नहीं कर सके हैं और इसके लिए क्षमाप्रार्थी है। कुछ कवितायें समयाभाव के कारण इस कार्यक्रम में स्थान न पा सकीं एवं कुछ रिकॉर्डिंग ठीक न होने की वजह से। कवितायें भेजते समय कृपया ध्यान रखें कि वे १२८ kbps स्टीरेओ mp3 फॉर्मेट में हों और पृष्ठभूमि में कोई संगीत न हो। ऑडियो फाइल के साथ अपना पूरा नाम, नगर और संक्षिप्त परिचय भी भेजना न भूलें । पॉडकास्ट कवि सम्मे

सुनो कहानी: प्रेमचंद की 'सौत'

उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद की लघु कहानी 'सौत' 'सुनो कहानी' इस स्तम्भ के अंतर्गत हम आपको सुनवा रहे हैं उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद की प्रसिद्ध कहानियाँ। पिछले सप्ताह आपने अनुराग शर्मा की आवाज़ में प्रेमचंद की रचना ' बंद दरवाजा ' का पॉडकास्ट सुना था। आवाज़ की ओर से आज हम लेकर आये हैं मानव मूल्यों को केन्द्र में रखती हुई प्रेमचंद की कहानी "सौत" , जिसको स्वर दिया है लन्दन निवासी कवयित्री श्रीमती शन्नो अग्रवाल ने। सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं। कहानी का कुल प्रसारण समय है: 19 मिनट और 37 सेकंड। यदि आप भी अपनी मनपसंद कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, धारावाहिको, प्रहसनों, झलकियों, एकांकियों, लघुकथाओं को अपनी आवाज़ देना चाहते हैं हमसे संपर्क करें। अधिक जानकारी के लिए कृपया यहाँ देखें। मैं एक निर्धन अध्यापक हूँ...मेरे जीवन मैं ऐसा क्या ख़ास है जो मैं किसी से कहूं ~ मुंशी प्रेमचंद (१८८०-१९३६) हर शनिवार को आवाज़ पर सुनिए प्रेमचंद की एक नयी कहानी रजिया को साड़ी की उतनी चाह न थी जितनी रामू और दसिया के आनन्द में विघ्न डालने की। बोली, &qu

मेरी आगोश में आज है...कहकशां....

मैं देखता हूँ तुम्हारे हाथ चटख नीली नसों से भरे और उंगलियों में भरी हुई उड़ान मैं सोचता हूँ तुम्हारी अनवरत देह की सफ़ेद धूप और उसकी गर्म आंचश मैं जीत्ताता हूँ तुमको तुम्हारे व्याकरण और नारीत्व की शर्तो के साथ मैं हारता हूँ एक पूरी उम्र तुम्हारे एवज में! हिंद युग्म के इस माह के यूनिकवि डॉ मनीष मिश्रा की इन पक्तियों में छुपे कुछ भाव लिए है हमारे दूसरे सत्र का ये २२ वां गीत जहाँ "जीत के गीत" की तिकडी ऋषि एस , बिस्वजीत नंदा और सजीव सारथी लौटे हैं लेकर एक नया गीत "तू रूबरू" लेकर. सुनिए ये ताज़ा तरीन गीत और अपने विचार देकर हमारा मार्गदर्शन/ प्रोत्साहन करें. The composer singer and lyricist trio Rishi S , Biswajith Nanda , and Sajeev Sarathie of super successful "jeet ke geet" fame is back again with their new creation called "tu ru-ba-ru". This time the mood is much more romantic with a bit sufiayana feel in it. so enjoy this brand new offering from the awaaz team, and leave your valuable comments. Lyrics- गीत के बोल तू रूबरू.... चार सू....सिर्फ़ तू...

नए राग से बांधे अक्सर बिछडे स्वर टूटी सरगम के...

हिन्दी ब्लॉग जगत पर पहली बार - पॉडकास्ट पुस्तक समीक्षा पुस्तक - साया (काव्य संग्रह) लेखिका - रंजना भाटिया "रंजू" समीक्षक - दिलीप कवठेकर युगों पहले जिस दिन क्रौंच पक्षी के वध के बाद वाल्मिकी के मन में करुणा उपजी थी, तो उनके मन की संवेदनायें छंदों के रूप में उनकी जुबान पर आयी, और संभवतः मानवी सभ्यता की पहली कविता नें जन्म लिया.तब से लेकर आज तक यह बात शाश्वत सी है, कि कविता में करुणा का भाव स्थाई है. अगर किसी भी रस में बनी हुई कविता होगी तो भी उसके अंतरंग में कहीं कोई भावुकता का या करुणा का अंश ज़रूर होगा. रंजना (रंजू) भाटिया की काव्य रचनायें "साया" में कविमन नें भी यही मानस व्यक्त किया है,कहीं ज़ाहिर तो कहीं संकेतों के माध्यम से. इस काव्यसंग्रह "साया" का मूल तत्व है - ज़िंदगी एक साया ही तो है, कभी छांव तो कभी धूप ... मुझे जब इस कविता के पुष्पगुच्छ को समीक्षा हेतु भेजा गया, तो मुझे मेरे एहसासात की सीमा का पता नहीं था. मगर जैसे जैसे मैं पन्ने पलटता गया, अलग अलग रंगों की छटा लिये कविताओं की संवेदनशीलता से रु-ब-रु होने लगा, और एक पुरुष होने की वास्तविकता का और उन

अमर उजाला पर आवाज़ भी

हिन्द-युग्म के बाल-उद्यान पृष्ठ को अमर-उजाला में आप कई बार पढ़ भी चुके हैं। अब बारी है हिन्द-युग्म के संगीत-पृष्ठ की। २५ नवम्बर के हिन्दी दैनिक अमर उजाला के 'ब्लॉग कोना' स्तम्भ में आवाज़ पर सलिल चौधरी के बारे में २४ नवम्बर २००८ को प्रकाशित आलेख 'सलिल दा के बहाने येसुदास की बात' के कुछ अंश प्रकाशित हुए हैं। आप भी पढ़ें-

षड़ज ने पायो ये वरदान - एक दुर्लभ गीत

येसू दा का जिक्र जारी है, सलिल दा के लिए वो "आनंद महल" के गीत गा रहे थे, उन्हीं दिनों रविन्द्र जैन साहब भी अभिनेता अमोल पालेकर के लिए एक नए स्वर की तलाश में थे. जब उन्होंने येसू दा की आवाज़ सुनी तो लगा कि यही एक भारतीय आम आदमी की सच्ची आवाज़ है, दादा(रविन्द्र जैन) ने बासु चटर्जी जो कि फ़िल्म "चितचोर" के निर्देशक थे, को जब ये आवाज़ सुनाई तो दोनों इस बात पर सहमत हुए कि यही वो दिव्य आवाज़ है जिसकी उन्हें अपनी फ़िल्म के लिए तलाश थी. उसके बाद जो हुआ वो इतिहास बना. चितचोर के अविस्मरणीय गीतों को गाकर येसू दा ने राष्टीय पुरस्कार जीता और उसके बाद दादा और येसू दा की जुगलबंदी ने खूब जम कर काम किया. वो सही मायनों में संगीत का सुनहरा दौर था. जब पूरे पूरे ओर्केस्ट्रा के साथ हर गीत के लिए जम कर रिहर्सल हुआ करती थी, जहाँ फ़िल्म के निर्देशक भी मौजूद होते थे और गायक अपने हर गीत में जैसे अपना सब कुछ दे देता था. येसू दा और रविन्द्र दादा के बहाने हम एक ऐसे ही गीत के बनने की कहानी आज आपको सुना रहे हैं. येसू दा की माने तो ये उनका हिन्दी में गाया हुआ सबसे बहतरीन गीत है. पर दुखद ये है कि न