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मेरे अल्लाह...बुराई से बचाना मुझको....इस दुआ के साथ ईद मुबारक

हिन्दयुग्म की हरदम ये कोशिश रही है कि हिन्दी को हौसला देने वाले नए चेहरे ढूंढें जाएँ.....नाज़िम नक़वी हिन्दयुग्म से जुड़ने वाली ऐसी ही हस्ती हैं...पिछले कुछ महीनों से वो हिन्दयुग्म की कोशिशों में अपना हाथ बंटाने को लेकर गंभीर थे......तो, हमने सोचा क्यूँ न ईद के मुबारक मौके पर उन्हें अपने पाठकों के सामने प्रस्तुत किया जाए... परिचय के नाम पर यही कहना मुनासिब है कि पत्रकारिता को दुकानदारी न समझने वाले चंद बचे-खुचे नामों में एक हैं... आप भी ईद के मौके पर उनके इस आलेख को दिल में उतारिये और हिन्दयुग्म पर इनका स्वागत कीजिये.....आपकी टिप्पणियों का भी इंतज़ार रहेगा.... आप सबको ईद की मुबारकबाद....मुन्नवर जी का ये शेर याद आ रहा है.. "बच्चे भी ग़रीबी को समझने लगे शायद, अब जाग भी जाते हैं तो सहरी नहीं खाते.... " "तुम गले से आ मिलो, सारा गिला जाता रहे" ईद हमारी गंगा-जमनी तहज़ीब के उन ख़ास त्योहारों में से है जिन्हें सदियों से हम साथ मनाते आ रहे हैं। लेकिन 21वीं सदी के इस माहौल में चाहे ईद हो या दीवाली, सिर्फ़ रस्में अदा हो रही हैं। किसी शायर का ये शेर ऐसे ही हालात का आइना है – मि

एक संवेदनशील फ़िल्म जी बी रोड की सच्चाईयों पर

दिल्ली की इन "बदनाम गलियों" पर गुप्त कैमरे से शूट हुई मनुज मेहता की लघु फ़िल्म का प्रीमिअर, आज आवाज़ पर ये कूचे, ये नीलामघर दिलकशी के, ये लुटते हुए कारवाँ जिंदगी के, कहाँ है कहाँ है मुहाफिज़ खुदी के, सना- ख्वाने- तकदीसे- मशरिक कहाँ हैं. ये पुरपेच गलियां, ये बेख्वाब बाज़ार, ये गुमनाम राही, ये सिक्कों की झंकार, ये इस्मत के सौदे, ये सौदों पे तकरार, सना- ख्वाने- तकदीसे- मशरिक कहाँ हैं. ताअफ़्फ़ुन से पुरनीम रोशन ये गलियां, ये मसली हुई अधखिली जर्द कलियाँ, ये बिकती हुई खोखली रंग रलियाँ, सना- ख्वाने- तकदीसे- मशरिक कहाँ हैं. मदद चाहती हैं ये हव्वा की बेटी, यशोदा की हमजिंस, राधा की बेटी, पयम्बर की उस्मत, जुलेखा की बेटी, सना- ख्वाने- तकदीसे- मशरिक कहाँ हैं. बुलाओ, खुदयाने-दी को बुलाओ, ये कूचे ये गलियां ये मंज़र दिखाओ, सना- ख्वाने- तकदीसे- मशरिक को लाओ, सना- ख्वाने- तकदीसे- मशरिक कहाँ हैं. साहिर लुधिअनावी की इन पंक्तियों में जिन गलियों का दर्द सिमटा है, उनसे हम सब वाकिफ हैं. इन्हीं पंक्तियों को जब रफी साहब ने अपनी आवाज़ दी फ़िल्म "प्यासा" के लिए (जिन्हें नाज़ है हिंद पर वो कहाँ हैं..

सुनिए प्रेमचंद की अमर कहानी "ईदगाह" ( ईद विशेषांक )

ईद के शुभ अवसर पर प्रेमचंद की प्रसिद्ध कहानी 'ईदगाह' का प्रसारण 'सुनो कहानी' के सभी पाठकों को ईद की शुभकामनाएं! इस स्तम्भ के अंतर्गत हम आपको सुनवा रहे हैं उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद की प्रसिद्ध कहानियाँ। पिछले सप्ताह आपने अनुराग शर्मा की आवाज़ में प्रेमचंद की कहानी ' अमृत ' का पॉडकास्ट सुना था। आवाज़ की ओर से ईद के शुभ अवसर पर हम लेकर आये हैं प्रेमचंद की कालजयी रचना ईदगाह, जिसको स्वर दिया है अनुराग शर्मा ने। सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं। नीचे के प्लेयर से सुनें. (प्लेयर पर एक बार क्लिक करें, कंट्रोल सक्रिय करें फ़िर 'प्ले' पर क्लिक करें।) (Broadband कनैक्शन वालों के लिए) (Dial-Up कनैक्शन वालों के लिए) यदि आप इस पॉडकास्ट को नहीं सुन पा रहे हैं तो नीचे दिये गये लिंकों से डाऊनलोड कर लें (ऑडियो फ़ाइल तीन अलग-अलग फ़ॉरमेट में है, अपनी सुविधानुसार कोई एक फ़ॉरमेट चुनें) VBR MP3 64Kbps MP3 Ogg Vorbis आज भी अपनी मनपसंद कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, धारावाहिको, प्रहसनों, झलकियों, एकांकियों, लघुकथाओं को अपनी आवाज़ देना चाहते हैं, तो यहा