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जीवन के अंतिम सच से जुडी एक जरूरी सीख मुकेश के इस गीत में

खरा सोना गीत - जो चला गया उसे भूल जा   प्रस्तोता - अंतरा चक्रवर्ती  स्क्रिप्ट - सुजोय चट्टरजी प्रस्तुति - संज्ञा टंडन

चैत्र मास में चैती गीतों का लालित्

स्वरगोष्ठी – 161 में आज लोक संगीत का रस-रंग जब उपशास्त्रीय मंच पर बिखरा ‘चैत मासे चुनरी रंगइबे हो रामा, पिया घर लइहें...’ ‘ रेडियो प्लेबैक इण्डिया ’ के मंच पर साप्ताहिक स्तम्भ ‘ स्वरगोष्ठी ’ के एक नए अंक के साथ मैं कृष्णमोहन मिश्र , एक बार पुनः आप सब संगीतानुरागियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। मित्रों , आज हम आपसे संगीत की एक ऐसी शैली पर चर्चा करेंगे जो मूलतः ऋतु प्रधान लोक संगीत की शैली है , किन्तु अपनी सांगीतिक गुणबत्ता के कारण इस शैली को उपशास्त्रीय मंचों पर भी अपार लोकप्रियता प्राप्त है। भारतीय संगीत की कई ऐसी लोक - शैलियाँ हैं , जि नका प्रयोग उपशास्त्रीय संगीत के रूप में भी किया जाता है। होली पर्व के बाद , आरम्भ होने वाले चैत्र मास से ग्रीष्म ऋतु का आगमन हो जाता है। इस परिवेश में चैती गीतों का गायन आरम्भ हो जाता है। गाँव की चौपालों से लेकर मेलों में , मन्दिरों में चैती के स्वर गूँजने लगते हैं। आज के अंक से हम आपसे चैती गीतों के विभिन्न प्रयोगों पर चर्चा आरम्भ करेंगे। उत्तर भारत में इस गीत के प्रकारों को चैती , चैता और घाटो के नाम से जान

चर्चा राग कल्याण अथवा यमन की

    स्वरगोष्ठी – 125 में आज भूले-बिसरे संगीतकार की कालजयी कृति – 5 ‘आँसू भरी है ये जीवन की राहें...’ राग यमन के सच्चे स्वरों का गीत  ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ पर जारी लघु श्रृंखला ‘भूले-बिसरे संगीतकार की कालजयी कृति’ की यह पाँचवीं कड़ी है और इस कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र आप सब संगीत-रसिकों का एक बार पुनः हार्दिक स्वागत करता हूँ। आज हमारी चर्चा का विषय होगा, राग यमन पर आधारित एक सदाबहार गीत- ‘आँसू भरी है ये जीवन की राहें...’। 1958 में प्रदर्शित फिल्म ‘परिवरिश’ के इस कालजयी गीत के संगीतकार दत्ताराम वाडेकर थे, जिनके बारे में वर्तमान पीढ़ी शायद परिचित हो। इसके साथ ही आज के अंक में हम राग यमन पर चर्चा करेंगे और आपको सुप्रसिद्ध सारंगी वादक उस्ताद सुल्तान खाँ का बजाया, राग यमन का भावपूर्ण आलाप भी सुनवाएँगे।   दत्ताराम सं गीतकार दत्ताराम की पहचान एक स्वतंत्र संगीतकार के रूप में कम, परन्तु सुप्रसिद्ध संगीतकार शंकर-जयकिशन के सहायक के रूप में अधिक हुई। इसके अलावा लोक-तालवाद्य ढप बजाने में वे सिद्धहस्त थे। फिल्म ‘जिस देश में गंग

गायक मुकेश फिल्म ‘अनुराग’ में बने संगीतकार

भारतीय सिनेमा के सौ साल – 34 स्मृतियों का झरोखा : ‘किसे याद रखूँ किसे भूल जाऊँ...’   भारतीय सिनेमा के शताब्दी वर्ष में ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ द्वारा आयोजित विशेष अनुष्ठान- ‘स्मृतियों का झरोखा’ में आप सभी सिनेमा-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत है। आज माह का पाँचवाँ गुरुवार है और नए वर्ष की नई समय सारिणी के अनुसार माह का पाँचवाँ गुरुवार हमने आमंत्रित अतिथि लेखकों के लिए सुरक्षित कर रखा है। आज ‘स्मृतियों का झरोखा’ का यह अंक आपके लिए पार्श्वगायक मुकेश के परम भक्त और हमारे नियमित पाठक पंकज मुकेश लिखा है। पंकज जी ने गायक मुकेश के व्यक्तित्व और कृतित्व पर गहन शोध किया है। अपने शुरुआती दौर में मुकेश ने फिल्मों में पार्श्वगायन से अधिक प्रयत्न अभिनेता बनने के लिए किये थे, इस तथ्य से अधिकतर सिनेमा-प्रेमी परिचित हैं। परन्तु इस तथ्य से शायद आप परिचित न हों कि मुकेश, 1956 में प्रदर्शित फिल्म ‘अनुराग’ के निर्माता, अभिनेता और गायक ही नहीं संगीतकार भी थे। आज के ‘स्मृतियों का झरोखा’ में पंकज जी ने मुकेश के कृतित्व के इन्हीं पक्षों, विशेष रूप से उनकी संगीतकार-प्र