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राग काफी गाने-बजाने का परिवेश

    ‘ स्वरगोष्ठी – 156 में आज फाल्गुन के रंग राग काफी के संग ‘कैसी करी बरजोरी श्याम, देखो बहियाँ मोरी मरोरी...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के मंच पर ‘स्वरगोष्ठी’ के एक नए अंक के साथ मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। मित्रों, पिछली तीन कड़ियों से हम आपसे बसन्त ऋतु के संगीत पर चर्चा कर रहे हैं। भारतीय पंचांग के अनुसार बसन्त ऋतु की आहट माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी को ही मिल जाती है। इसके उपरान्त रंग-रँगीले फाल्गुन मास का आगमन होता है। इस परिवेश का एक प्रमुख राग काफी होता है। स्वरों के माध्यम से फाल्गुनी परिवेश, विशेष रूप से हो के रस-रंग को अभिव्यक्त करने के लिए राग काफी सबसे उपयुक्त राग है। आज के अंक में हम पहले इस राग में एक ठुमरी प्रस्तुत करेंगे, जिसे परवीन सुल्ताना ने स्वर दिया है। इसके साथ ही डॉ. कमला शंकर का गिटार पर बजाया राग काफी की ठुमरी भी सुनेगे। आज की तीसरी प्रस्तुति डॉ. सोमा घोष की आवाज़ में राग काफी का एक टप्पा है।     रा ग काफी, काफी थाट का आश्रय राग है और इसकी जाति है सम्पूर्ण-सम्पूर्ण, अर्थात इस राग के

'काली घोड़ी द्वारे कड़ी...' : एक रोचक रागमाला गीत

प्लेबैक इण्डिया ब्रोडकास्ट रागो के रंग, रागमाला गीत के संग – 5  राग काफी, मालकौंस और भैरवी के माध्यम से क्रमशः विकसित होते प्रेम की अनुभूति कराता रागमाला गीत ‘काली घोड़ी द्वारे खड़ी...’ से लेकर ‘काली घोड़ी दौड़ पड़ी...’ तक फिल्म : चश्मेबद्दूर (1981) गायक : येशुदास और हेमन्ती शुक्ला गीतकार : इन्दु जैन संगीतकार : राजकमल आलेख : कृष्णमोहन मिश्र स्वर एवं प्रस्तुति : संज्ञा टण्डन आपको हमारी यह प्रस्तुति कैसी लगी? अपनी प्रतिक्रिया और सुझाव से हमें radioplaybackindia@live.com पर अवश्य अवगत कराएँ।  

पण्डित ओंकारनाथ ठाकुर के दिव्य स्वर में सूरदास का वात्सल्य भाव

  स्वरगोष्ठी – 150 में आज रागों में भक्तिरस – 18 कृष्ण की लौकिक बाललीला का अलौकिक चित्रण ‘मैया मोरी मैं नहीं माखन खायो...’ ‘ रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी लघु श्रृंखला ‘रागों में भक्तिरस’ की अठारहवीं कड़ी के साथ मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-रसिकों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। मित्रों, इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम आपके लिए भारतीय संगीत के कुछ भक्तिरस प्रधान राग और कुछ प्रमुख भक्तिरस कवियों की रचनाएँ प्रस्तुत कर रहे हैं। साथ ही उस भक्ति रचना के फिल्म में किये गए प्रयोग भी आपको सुनवा रहे हैं। श्रृंखला की पिछली दो कड़ियों में हमने आपसे पन्द्रहवीं शताब्दी के सन्त कवि कबीर के व्यक्तित्व और उनके एक पद- ‘चदरिया झीनी रे बीनी...’ पर चर्चा की थी। आज के अंक में हम सोलहवीं शताब्दी के कृष्णभक्त कवि सूरदास के एक लोकप्रिय पद- ‘मैया मोरी मैं नहीं माखन खायो...’ पर सांगीतिक चर्चा करेंगे। सूरदास के इस पद को भारतीय संगीत के अनेकानेक शीर्षस्थ कलासाधकों स्वर दिया है, परन्तु ‘स्वरगोष्ठी’ के आज के इस अंक में हम आपको यह पद स