Skip to main content

Posts

Showing posts with the label rag bhairavi

डॉ. एन. राजम् की संगीत साधना : SWARGOSHTHI – 244 : DR. N. RAJAM

स्वरगोष्ठी – 244 में आज संगीत के शिखर पर – 5 : विदुषी एन. राजम् डॉ. राजम् के वायलिन तंत्र बजते ही नहीं गाते भी हैं   रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी हमारी सुरीली श्रृंखला – ‘संगीत के शिखर पर’ की पाँचवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र आप सब संगीत-रसिकों का एक बार पुनः अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला में हम भारतीय संगीत की विभिन्न विधाओं में शिखर पर विराजमान व्यक्तित्व और उनके कृतित्व पर चर्चा कर रहे हैं। संगीत गायन और वादन की विविध लोकप्रिय शैलियों में किसी एक शीर्षस्थ कलासाधक का चुनाव कर हम उनके व्यक्तित्व का उल्लेख और उनकी कृतियों के कुछ उदाहरण प्रस्तुत कर रहे हैं। आज श्रृंखला की पाँचवीं कड़ी में हम तंत्रवाद्य वायलिन अर्थात बेला की विश्वविख्यात साधिका विदुषी डॉ. एन. राजम् के व्यक्तित्व पर चर्चा करेंगे और गायकी अंग में उनके वायलिन वादन के कुछ उदाहरण भी प्रस्तुत करेंगे। आज के अंक में हम डॉ. राजम् द्वारा प्रस्तुत राग जोग में खयाल, राग भैरवी का दादरा और अन्त में एक मीरा भजन का रसास्वादन गायकी अंग में करेंगे।

उस्ताद अब्दुल करीम खाँ की गायकी : SWARGOSHTHI – 243 : USTAD ABDUL KARIM KHAN

स्वरगोष्ठी – 243 में आज संगीत के शिखर पर – 4 : उस्ताद अब्दुल करीम खाँ खाँ साहब सम्पूर्ण भारतीय संगीत के प्रतिनिधि संगीतज्ञ थे रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी हमारी सुरीली श्रृंखला – ‘संगीत के शिखर पर’ की चौथी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र आप सब संगीत-रसिकों का एक बार पुनः स्वागत करता हूँ। इस श्रृंखला में हम भारतीय संगीत की विभिन्न विधाओं में शिखर पर विराजमान व्यक्तित्व और उनके कृतित्व पर चर्चा कर रहे हैं। संगीत गायन और वादन की विविध लोकप्रिय शैलियों में किसी एक शीर्षस्थ कलासाधक का चुनाव कर हम उनके व्यक्तित्व का उल्लेख और उनकी कृतियों के उदाहरण प्रस्तुत कर रहे हैं। आज श्रृंखला की चौथी कड़ी में हम उन्नीसवीं शताब्दी के अन्तिम दशक और बीसवीं शताब्दी के आरम्भिक दशकों में अत्यन्त लोकप्रिय संगीतज्ञ उस्ताद अब्दुल करीम खाँ की गायकी पर चर्चा करेंगे। आज के अंक में हम खाँ साहब का गाया राग बसन्त में दो खयाल और राग झिंझोटी तथा राग भैरवी की दो ठुमरियाँ प्रस्तुत करेंगे। आ ज हम एक ऐसे संगीत-साधक के व्यक

जगजीत सिंह और राग : SWARGOSHTHI – 242 : JAGJEET SINGH AND RAGAS

स्वरगोष्ठी – 242 में आज संगीत के शिखर पर – 3 : जगजीत सिंह के गजल, गीत और भजन जगजीत सिंह के बेमिसाल मगर कमचर्चित राग प्रयोग की एक झलक 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी हमारी सुरीली श्रृंखला – ‘संगीत के शिखर पर’ की तीसरी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र आप सब संगीत-प्रेमियों का एक बार पुनः स्वागत करता हूँ। इस श्रृंखला में हम भारतीय संगीत की विभिन्न विधाओं में शिखर पर विराजमान व्यक्तित्व और उनकी प्रस्तुतियों की चर्चा करेंगे। संगीत गायन और वादन की विविध लोकप्रिय शैलियों में किसी एक शीर्षस्थ कलासाधक का चुनाव कर हम उनके व्यक्तित्व का उल्लेख और उनकी कृतियों के उदाहरण प्रस्तुत करेंगे। आज श्रृंखला की दूसरी कड़ी में हमारा विषय है, गजल गायकी और इस विधा में अत्यन्त लोकप्रिय रहे गायक जगजीत सिंह और उनकी गजल, गीत और भजन की राग आधारित प्रस्तुतियाँ। आज के अंक में हम जगजीत सिंह द्वारा प्रस्तुत राग दरबारी कान्हड़ा में निबद्ध एक द्रुत रचना, राग भैरवी में ठुमरियाँ और राग दरबारी कान्हड़ा के स्वरों में एक कीर्तन सुनवाएँगे।