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रात्रिकालीन राग : SWARGOSHTHI – 237 : RAGAS OF NIGHT

स्वरसाधिका लता मंगेशकर को उनके जन्मदिवस पर हार्दिक मंगलकामना  स्वरगोष्ठी – 237 में आज रागों का समय प्रबन्धन – 6 : रात के दूसरे प्रहर के राग लता जी के दिव्य स्वर में जयजयवन्ती  ‘मनमोहना बड़े झूठे...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर हमारी श्रृंखला- ‘रागों का समय प्रबन्धन’ की छठी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। है। उत्तर भारतीय रागदारी संगीत की अनेक विशेषताओं में से एक विशेषता यह भी है कि संगीत के प्रचलित राग परम्परागत रूप से ऋतु प्रधान हैं या प्रहर प्रधान। अर्थात संगीत के प्रायः सभी राग या तो अवसर विशेष या फिर समय विशेष पर ही प्रस्तुत किये जाने की परम्परा है। बसन्त ऋतु में राग बसन्त और बहार तथा वर्षा ऋतु में मल्हार अंग के रागों के गाने-बजाने की परम्परा है। इसी प्रकार अधिकतर रागों को गाने-बजाने की एक निर्धारित समयावधि होती है। उस विशेष समय पर ही राग को सुनने पर आनन्द प्राप्त होता है। भारतीय कालगणना के सिद्धान्तों का प्रतिपादन करने वाले प्राचीन मनीषियों ने दिन औ

'सिने पहेली' आज स्वरसाम्राज्ञी लता मंगेशकर के नाम

सिने-पहेली # 38   (22 सितंबर, 2012)  'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' के सभी पाठकों और श्रोताओं को सुजॉय चटर्जी का सप्रेम नमस्कार, और स्वागत है आप सभी का आपके मनपसंद स्तंभ 'सिने पहेली' में। एक आवाज़ है जो पिछले सात दशकों से दुनिया की फ़िज़ाओं में गूंज रही है। यह वह स्वरगंगा है जिसमें जिसने भी डुबकी लगाई, उसने ही तृप्ति पायी। नाद की इस अधिष्ठात्री की आवाज़ में संगम की पवित्रता है जो हर मन को पवित्र कर देती है। इस स्वरधारा में कभी नदिया का अल्हड़पन है तो कभी झरने की चंचलता, और कभी उन्मुक्त व्योम में मन को लीन कर देने वाली शक्ति है इस आवाज़ में। यह स्वर एक ऐसा अतिथि है जिसे दुनिया के किसी भी घर में प्रवेश करने के लिए किसी के अनुमति की ज़रूरत नहीं पड़ती। यह स्वर एक साथ करोड़ों घरों में गूंजती है, हर रोज़। हम कितने ख़ुशनसीब हैं कि हमने अपने जीवन काल में इस आवाज़ का रस पान किया। अफ़सोस तो उन लोगों के लिए होता है जो इस आवाज़ के आने से पहले ही इस दुनिया को छोड़ चुके थे। अमृत पर तो केवल देवताओं का अधिकार है, पर इस स्वर का अमृत सभी के लिए है। जिसने भी इसका रस पान किया, मुग्ध हो