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ओल्ड इस गोल्ड - ई मेल के बहाने यादों के खजाने - ०५...जब खानसाब ने सुनाई गज़ल

'ओल्ड इज़ गोल्ड' के साप्ताहिक अंक 'ईमेल के बहाने, यादों के ख़ज़ाने' में आप सभी का स्वागत है। पिछले हफ़्ते की प्रस्तुति के लिए हमें दो टिप्पणियाँ प्राप्त हुईं थीं। उसमें पहली टिप्पणी थी इंदु जी की जिन्होंने शरद तैलंग जी की आवाज़ में गानें सुनना चाहा हैं। तो शरद जी, इंदु जी ने जो ज़िम्मेदारी हमें सौंपी थीं, वह अब हम आपको सौंप रहे हैं। जल्द से जल्द आप अपने स्वरबद्ध किए हुए द्ष्यंत कुमार की ग़ज़ल अपनी आवाज़ में रेकॊर्ड कर हमारे ईमेल पते oig@hindyugm.com पर भेजें। और उस प्रस्तुति की दूसरी टिप्पणी थी महेन्द्र वर्मा जी का जिन्होंने हमसे ग़ैर फ़िल्मी रचनाओं को 'ओल्ड इज़ गोल्ड' में शामिल करने का अनुरोध किया है। तो महेन्द्र जी, इसके जवाब में हम यही कह सकते हैं कि 'ओल्ड इज़ गोल्ड' का जो स्वरूप है, उसमें हम केवल सुनहरे दौर के फ़िल्मी गीत ही सुनवाते हैं और उनसे जुड़ी बातें करते हैं। ग़ैर फ़िल्मी गीतों और ग़ज़लों के लिए 'आवाज़' का एक दूसरा स्तंभ है ' महफ़िल-ए-ग़ज़ल ' जो हर बुधवार को पेश होता है। उसमें आप अपनी पसंद पूरी कर सकते हैं और अपने सुझाव आप उस स