सावन की आहट करीब सुनाई दे रही है, चिलचिलाती धुप और गर्मी के लम्बे महीनों के बाद कितना सुखद होता बारिश की पहली बूंदों में भीगना. अब मानसून को तो आदत है तड़पाने की जब आये तब आये, संगीत प्रेमियों के लिए कम से कम ये सुविधा है कि जब चाहें सुरों की रिमझिम फुहारों में नहा सकते हैं. नए सुर ताल में आज हम आपको ले चलेंगें पूर्वोत्तर भारत के उस छोटे से हिल स्टेशन पर जिसे वर्षा की राजधानी कहा जाता हैं, जहाँ मेघ खुल कर बरसते हैं, जहाँ हवाओं में हर पल घुली रहती है एक सौंधी महक और जहाँ फ़िज़ा भीगे भीगे ख़्वाबों को बारहों माह संवारती है. लेकिन उससे पहले जिक्र उस फनकार का जिसके सुरों के पंख लगा कर हम उस रमणीय स्थान तक पहुंचेंगें.

मेरठ में जन्में कैलाश खेर का बचपन दिल्ली की गलियों में बीता. उस्ताद नुसरत फतह अली खान की आवाज़ ने नन्हीं उमर में ही उन्हें अपना दीवाना बना दिया था. पिता भी लोक गीतों के गायक थे, तो बचपन में ही उन्हें शास्त्रीय संगीत की तालीम लेनी शुरू कर दी थी और शुरू हो गया था सफ़र इस नए संगीत सितारे का. दिल्ली में ही वो अपने घर वालों से अलग रहे काफी लम्बे अरसे तक और अपने हुनर को मांझते रहे, संवारते रहे और जब उन्हें लगा कि अब सूफियाना संगीत की गहराइयों में उतरने के लिए उनकी आवाज़ तैयार हो चुकी है, वो मुंबई चले आये. नदीम श्रवण के लिए "रब्बा इश्क न होवे" गाने की बाद उनकी जिंदगी बदलने आया वो गीत जिसे हिंदी फिल्मों के सदाबहार श्रेष्ठ १०० गीतों की श्रेणी में हमेशा स्थान मिलेगा. चूँकि इस गीत में वो बाकयदा परदे पर नज़र भी आये, तो लोगों ने इस गायक को और उसकी खनकती डूबती आवाज़ को बखूबी पहचान भी लिया और अपना भी लिया कुछ ऐसे कि फिर कैलाश खेर को कभी पीछे मुड़कर नहीं देखना पड़ा. ये गीत था फिल्म "वैसा भी होता है" का "अल्लाह के बन्दे". नए गायकों को आजमाने के लिए जाने जाते हैं ए आर रहमान. पर कैलाश उन गिने चुने फनकारों में से हैं जिनके दीवाने खुद ए आर आर भी हैं. एक साक्षात्कार में उन्होंने स्वीकार किया कि "अल्लाह के बन्दे" गीत उनके सबसे पसंदीदा गीतों में से एक है. हालाँकि गायकी में जमने से पहले कैलाश ने अपना पारिवारिक व्यवसाय को चलने की कोशिश भी की थी, पर वहां वो बुरी तरह नाकाम रहे, तब अपने दोस्तों परेश और नरेश के कहने पर उन्होंने गायिकी में किस्मत आजमाने का मन बनाया था. परेश और नरेश आज उनके बैंड "कैलाशा" के हिस्सा हैं.
सफलता कभी भी उनके सर चढ़ कर नहीं बोली, वो मन से फकीर ही रहा. हिंदी के अलावा, सभी प्रमुख क्षेत्रीय भाषाओं में भी उन्हें भरपूर गाने का मौका मिला. दरअसल कैलाश बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं. बतौर गीतकार और संगीतकार भी उन्हें खासी सफलता मिली है. २००८ में आई "दसविदानिया" में मुक्कमल फिल्म के संगीत को अपने दम पर कमियाबी दिलवाई. "मंगल पांडे" के "मंगल मंगल" और "कारपोरेट" के "ओ सिकंदर" गाने में भी वो परदे पर नज़र आये. अपनी आवाज़ को निभाते हुए. पहली एल्बम "आवारगी" (२००५) खासी मकबूल हुई, पर "कैलासा" (२००६) ने उन्हें घर घर पहुंचा दिया. अगली एल्बम जो २००७ में आई "झूमो रे" के गीत "सैयां" ने इतनी लोकप्रियता हासिल की कि उनके आलोचक भी हैरान रह गए. इस माह लगभग २ साल के अन्तराल के बाद कैलाश लौटे हैं अपनी नयी एल्बम "चन्दन में" के साथ. दो सालों में बहुत कुछ बदल गया. कैलाश आज एक ब्रांड है हिन्दुस्तानी सूफी संगीत में, और अब वो विवाहित भी हो चुके हैं तो जाहिर है जिंदगी के बदलते आयामों के साथ साथ संगीत का रंग भी बदलेगा. एल्बम में जितने भी नए गाने हैं उनमें सूफी अंदाज़ कुछ नर्म पड़ा है, लगता है जैसे अब कैलाश नुसरत साहब के प्रभाव से हटकर अपनी खुद की ज़मीन तलाश रहे हैं. इस नयी एल्बम से कैलाश अपने चाहने वालों को बिलकुल भी निराश नहीं करते हैं. एल्बम निश्चित सुनने लायक है और इस एल्बम से कम से कम ३ गीत हम इस शृंखला में आपको सुनवाने की कोशिश करेंगें, पर आज हम जिस गीत को लेकर आये हैं उसे सुनकर आपका भी मन भीग जायेगा और आप भी रिकॉर्ड वर्षा प्राप्त करने वाले पूर्वोत्तर में बसे "चेरापूंजी" नाम के उस खूबसूरत हिल स्टेशन में पहुँच जायेगें. गीत के बोल कमाल के हैं, और बीच बीच में बजती बांसुरी आपको कहीं और ही ले उड़ती है. तो पेश है कैलाश खेर की ताज़ा एल्बम "चन्दन में" से ये गीत -"भीग गया मेरा मन..." पर गीत सुनने से पहले ज़रा इन शब्दों पर गौर कीजिये. ७ मिनट लम्बे इस गीत में चेरापूंजी की सुन्दरता का बेहद सुंदर बखान है -
तीखी तीखी सी नुकीली सी बूँदें,
बहके बहके से बादल उनिन्दें.
गीत गाती हवा में,
गुनगुनाती घटा में,
भीग गया मेरा मन...
मस्तियों के घूँट पी,
शोखियों में तैर जा,
इश्क की गलियों में आ,
इन पलों में ठहर जा,
रब का है ये आइना,
शक्ल हाँ इसको दिखा.
जिंदगी घुड़दौड़ है,
दो घडी ले ले मज़ा,
चमके चमके ये झरनों के धारे,
तन पे मलमल सी पड़ती फुहारें,
पेड़ हैं मनचले से,
पत्ते हैं चुलबुले से,
भीग गया मेरा मन....
डगमगाती चांदनी,
हंस रही है जोश में,
और पतंगें गा रहे,
राग मालकॉस में,
बन के नाचे बेहया,
बेशरम पगली हवा,
जिंदगी मिल के गले,
हंस रही दे दे दुआ,
बरसे बरसे रे अम्बर का पानी,
जिसको पी पी के धरती दीवानी,
खिलखिलाने लगी है,
मुस्कुराने लगी है
भीग गया मेरा मन....
ये तो थी नए संगीत में हमारी पसंद. अब आप बताएं आपको ये गीत कैसा लगा. यदि आप समीक्षक होते तो प्रस्तुत गीत को ५ में से कितने अंक देते. कृपया ज़रूर बताएं आपकी वोटिंग हमारे सालाना संगीत चार्ट के निर्माण में बेहद मददगार साबित होगी.
क्या आप जानते हैं ?
आप नए संगीत को कितना समझते हैं चलिए इसे ज़रा यूं परखते हैं. वो कौन सा गीत है जिसमें कैलाश खेर ने मकरंद देशपांडे के लिए गायन किया था, ए आर रहमान के संगीत निर्देशन में, क्या आप जानते हैं ?
अक्सर हम लोगों को कहते हुए सुनते हैं कि आजकल के गीतों में वो बात नहीं. "ताजा सुर ताल" शृंखला का उद्देश्य इसी भ्रम को तोड़ना है. आज भी बहुत बढ़िया और सार्थक संगीत बन रहा है, और ढेरों युवा संगीत योद्धा तमाम दबाबों में रहकर भी अच्छा संगीत रच रहे हैं, बस ज़रुरत है उन्हें ज़रा खंगालने की. हमारा दावा है कि हमारी इस शृंखला में प्रस्तुत गीतों को सुनकर पुराने संगीत के दीवाने श्रोता भी हमसे सहमत अवश्य होंगें, क्योंकि पुराना अगर "गोल्ड" है तो नए भी किसी कोहिनूर से कम नहीं. क्या आप को भी आजकल कोई ऐसा गीत भा रहा है, जो आपको लगता है इस आयोजन का हिस्सा बनना चाहिए तो हमें लिखे.