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दोस्ती के तागों में पिरोये नाज़ुक से ज़ज्बात -"काई पो छे"

प्लेबैक वाणी -35 - संगीत समीक्षा - काई पो छे रूठे ख्वाबों को मना लेंगें, कटी पतंगों को थामेगें, सुलझा लेंगें उलझे रिश्तों का मांजा... गिटार के पेचों से खुलता है ये गीत, सारंगी के मांजे में परवाज़ चढ़ाता है, और अमित के सुरों से जब उन्हीं के स्वर मिलते हैं तो एक सकारात्मक उर्जा का संचार होता है. स्वानंद के शब्दों में बात है रिश्तों की, दोस्ती की और जिंदगी को जीत की दहलीज तक पहुंचा देने वाले ज़ज्बे के. अमित त्रिवेदी ने दिया है श्रोताओं को एक बेशकीमती तोहफा इस गीत के माध्यम से, मुझे जो सबसे अधिक प्रभावित करती है वो है वाध्यों का उनका चुनाव, हर गीत को किन किन गहनों से सजाना है ये अमित बखूबी जानते हैं. मुझे यकीन है कि मेरी ही तरह बहुत से श्रोताओं को उनकी हर नई पेशकश का बेसब्री से इन्तेज़ार रहता है.  आज हम जिक्र कर रहे हैं  ‘ काई पो छे ’  के संगीत की. उलझे रिश्तों को सुलझाते हुए आईये आगे बढते हैं अमित के संगीतबद्ध इस एल्बम में सजे अगले गीत की तरफ. अगला गीत भी दोस्ती के इर्द गिर्द है, मिली नायर की आवाज़ में गजब की ताजगी है, जैसे शबनम के मोती हों सुनहरी धूप में लि