स्वरगोष्ठी – 387 में आज
पूर्वांग और उत्तरांग राग – 2 : राग नन्द   
लता मंगेशकर के जन्मदिन के उपलक्ष्य में एक फिल्मी गीत और पण्डित कुमार गन्धर्व से राग नन्द सुनिए 
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| लता मंगेशकर | 
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| पण्डित कुमार गन्धर्व | 
आज के
 अंक में हमने आपके लिए दोनों मध्यम स्वरों से युक्त, अत्यन्त मोहक राग 
‘नन्द’ चुना है। इस राग को नन्द कल्याण, आनन्दी या आनन्द कल्याण के नाम से 
भी पहचाना जाता है। यह कल्याण थाट का राग माना जाता है। यह षाडव-सम्पूर्ण 
जाति का राग है, जिसके आरोह में ऋषभ स्वर का प्रयोग नहीं होता। इसके आरोह 
में शुद्ध मध्यम का तथा अवरोह में दोनों मध्यम का प्रयोग किया जाता है। 
इसका वादी स्वर षडज और संवादी स्वर पंचम माना जाता है। यह राग कामोद, हमीर 
और केदार के निकट होता है अतः राग नन्द के गायन-वादन के समय इन रागों से 
बचाना चाहिए। राग नन्द से मिल कर राग नन्द भैरव, नन्द-भैरवी, नन्द-दुर्गा 
और नन्द-कौंस रागों का निर्माण होता है। 
राग
 नन्द की सार्थक अनुभूति कराने के लिए आज हम आपको पण्डित कुमार गन्धर्व के 
स्वर में एक बन्दिश सुनवाएँगे। पण्डित कुमार गन्धर्व का जन्म आठ अप्रैल, 
1924 को बेलगाम, कर्नाटक के पास सुलेभवी नामक स्थान में एक संगीत-प्रेमी 
परिवार में हुआ था। माता-पिता का रखा नाम तो था शिवपुत्र सिद्धरामय्या 
कोमकलीमठ, किन्तु आगे चल कर संगीत-जगत ने उसे कुमार गन्धर्व के नाम से 
पहचाना। जिन दिनों कुमार गन्धर्व ने संगीत-जगत में पदार्पण किया, उन दिनों 
भारतीय संगीत दरबारी जड़ता से प्रभावित था। कुमार गन्धर्व, पूर्णनिष्ठा और 
स्वर-संवेदना से एकाकी ही संघर्षरत हुए। उन्होने अपनी एक निजी गायन-शैली 
विकसित की, जो हमें भक्ति-पदों के आत्म-विस्मरणकारी गायकी का स्मरण कराती 
थी। वे मात्र एक साधक ही नहीं अन्वेषक भी थे। उनकी अन्वेषण-प्रतिभा ही 
उन्हें भारतीय संगीत का कबीर बनाती है। उनका संगीत इसलिए भी रेखांकित किया 
जाएगा कि वह लोकोन्मुख रहा है। कुमार गन्धर्व ने अपने समय में गायकी की 
बँधी-बँधाई लीक से अलग हट कर अपनी एक भिन्न शैली का विकास किया। 1947 से 
1952 के बीच वे फेफड़े के रोग से ग्रसित हो गए। चिकित्सकों ने घोषित कर दिया
 की स्वस्थ हो जाने पर भी वे गायन नहीं कर सकेंगे, किन्तु अपनी साधना और 
दृढ़ इच्छा-शक्ति के बल पर संगीत-जगत को चमत्कृत करते हुए संगीत-मंचों पर 
पुनर्प्रतिष्ठित हुए। अपनी अस्वस्थता के दौरान कुमार गन्धर्व, मालवा अंचल 
के ग्राम्य-गीतों का संकलन और प्राचीन भक्त-कवियों की विस्मृत हो रही 
रचनाओं को पुनर्जीवन देने में संलग्न रहे। आदिनाथ, सूर, मीरा, कबीर आदि 
कवियों की रचनाओं को उन्होने जन-जन का गीत बनाया। वे परम्परा और प्रयोग, 
दोनों के तनाव के बीच अपने संगीत का सृजन करते रहे। कुमार गन्धर्व की 
सांगीतिक प्रतिभा की अनुभूति कराने के लिए अब हम आपको उनके प्रिय राग नन्द 
के स्वरों में एक बन्दिश सुनवाते हैं। तीनताल में निबद्ध इस खयाल के बोल 
हैं- “राजन अब तो आ जा रे...”। 
राग नन्द : ‘राजन अब तो आ जा रे...’ : पण्डित कुमार गन्धर्व 
राग
 नन्द में तीव्र मध्यम स्वर का अल्प प्रयोग अवरोह में पंचम स्वर के साथ 
किया जाता है, जैसा कि कल्याण थाट के अन्य रागों में किया जाता है। राग 
नन्द में राग बिहाग, कामोद, हमीर और गौड़ सारंग का सुन्दर समन्वय होता है। 
यह अर्द्धचंचल प्रकृति का राग होता है। अतः इसमें विलम्बित आलाप नहीं किया 
जाता। साथ ही इस राग का गायन मन्द्र सप्तक में नहीं होता। इस राग का हर 
आलाप अधिकतर मुक्त मध्यम से समाप्त होता है। आरोह में ही मध्यम स्वर पर 
रुकते हैं, किन्तु अवरोह में ऐसा नहीं करते। राग नन्द में पंचम और ऋषभ स्वर
 की संगति बार-बार की जाती है। आरोह में धैवत और निषाद स्वर अल्प प्रयोग 
किया जाता है, इसलिए उत्तरांग में पंचम से सीधे तार सप्तक के षडज पर 
पहुँचते है। 
भारतीय
 संगीत के इस बेहद मनमोहक राग नन्द के सौन्दर्य का आभास कराने के लिए अब हम
 आपको इस राग पर आधारित एक फिल्मी गीत सुनवाएँगे। लता मंगेशकर के सुरों और 
मदनमोहन के संगीत से सजे अनेक गीत कर्णप्रियता और लोकप्रियता की सूची में 
आज भी शीर्षस्थ हैं। दो दिन पहले ही हमने स्वरकोकिला लता मंगेशकर का 90वाँ 
जन्मदिन मनाया है। 28 सितम्बर, 2018 को उन्होने अपने जीवन के 89 वर्ष पूर्ण
 कर लिये हैं। हम सब उनके स्वस्थ और दीर्घ जीवन की कामना करते हैं। इस 
उपलक्ष्य में हम श्रद्धेया लता की आवाज़ में 1966 में प्रदर्शित फिल्म ‘मेरा
 साया’ का एक गीत है- ‘तू जहाँ जहाँ चलेगा मेरा साया साथ होगा...’ प्रस्तुत
 कर रहे हैं। राजा मेंहदी अली खाँ की गीत-रचना को मदनमोहन ने राग नन्द के 
आकर्षक स्वरों पर आधारित कर लोचदार कहरवा ताल में ढाला है। मदनमोहन से इस 
गीत को राग नन्द में निबद्ध किये जाने का आग्रह स्वयं लता मंगेशकर जी ने 
किया था। न जाने क्यों, हमारे फिल्म-संगीतकारों ने इस मनमोहक राग का प्रयोग
 लगभग नहीं के बराबर किया। आप यह गीत सुनिए और राग नन्द के सौन्दर्य में खो
 जाइए। आप यह गीत सुनिए और मुझे आज के इस अंक को यहीं विराम देने की अनुमति
 दीजिए। और हाँ, इस अंक की संगीत पहेली को हल करने का प्रयास करना न 
भूलिएगा। 
राग नन्द : ‘तू जहाँ जहाँ चलेगा...’ : लता मंगेशकर : फिल्म – मेरा साया 
संगीत पहेली 
 
‘स्वरगोष्ठी’
 के 387वें अंक की संगीत पहेली में आज हम आपको वर्ष 1950 में प्रदर्शित एक 
फिल्म से रागबद्ध गीत का अंश सुनवा रहे हैं। गीत के इस अंश को सुन कर आपको 
दो अंक अर्जित करने के लिए निम्नलिखित तीन में से कम से कम दो प्रश्नों के 
उत्तर देने आवश्यक हैं। यदि आपको तीन में से केवल एक अथवा तीनों प्रश्नों 
का उत्तर ज्ञात हो तो भी आप प्रतियोगिता में भाग ले सकते हैं। 390वें अंक 
की ‘स्वरगोष्ठी’ तक जिस प्रतिभागी के सर्वाधिक अंक होंगे, उन्हें वर्ष 2018
 के चौथे सत्र का विजेता घोषित किया जाएगा। इसके साथ ही पूरे वर्ष के 
प्राप्तांकों की गणना के बाद वर्ष के अन्त में महाविजेताओं की घोषणा की 
जाएगी और उन्हें सम्मानित भी किया जाएगा। 
1 – इस गीतांश को सुन कर बताइए कि इसमें किस राग की झलक है? 
2 – इस गीत में प्रयोग किये गए ताल को पहचानिए और उसका नाम बताइए। 
3 – इस गीत में किस पुरानी पार्श्वगायिका के स्वर हैं? 
आप उपरोक्त तीन मे से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर केवल swargoshthi@gmail.com या radioplaybackindia@live.com
 पर ही शनिवार, 6 अक्तूबर, 2018 की मध्यरात्रि से पूर्व तक भेजें। आपको यदि
 उपरोक्त तीन में से केवल एक प्रश्न का सही उत्तर ज्ञात हो तो भी आप पहेली 
प्रतियोगिता में भाग ले सकते हैं। COMMENTS में दिये गए उत्तर मान्य हो 
सकते हैं, किन्तु उसका प्रकाशन पहेली का उत्तर देने की अन्तिम तिथि के बाद 
किया जाएगा। “फेसबुक” पर पहेली का उत्तर स्वीकार नहीं किया जाएगा। विजेता 
का नाम हम उनके शहर, प्रदेश और देश के नाम के साथ ‘स्वरगोष्ठी’ के 389वें 
अंक में प्रकाशित करेंगे। इस अंक में प्रस्तुत गीत-संगीत, राग, अथवा 
कलासाधक के बारे में यदि आप कोई जानकारी या अपने किसी अनुभव को हम सबके बीच
 बाँटना चाहते हैं तो हम आपका इस संगोष्ठी में स्वागत करते हैं। आप पृष्ठ 
के नीचे दिये गए COMMENTS के माध्यम से तथा swargoshthi@gmail.com अथवा radioplaybackindia@live.com पर भी अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं। 
पिछली पहेली के विजेता 
 
‘स्वरगोष्ठी’
 की 385वें अंक की संगीत पहेली में हमने आपको वर्ष 1955 में प्रदर्शित 
फिल्म “झनक झनक पायल बाजे” के एक रागबद्ध गीत का अंश सुनवा कर आपसे तीन में
 से किसी दो प्रश्न के उत्तर पूछा था। पहले प्रश्न का सही उत्तर है; राग – अड़ाना, दूसरे प्रश्न का सही उत्तर है; ताल – तीनताल और तीसरे प्रश्न का सही उत्तर है; स्वर – उस्ताद अमीर खाँ।    
“स्वरगोष्ठी”
 की इस पहेली प्रतियोगिता में तीनों अथवा तीन में से दो प्रश्नो के सही 
उत्तर देकर विजेता बने हैं; कल्याण, महाराष्ट्र से शुभा खाण्डेकर, चेरीहिल न्यूजर्सी से प्रफुल्ल पटेल, वोरहीज, न्यूजर्सी से डॉ. किरीट छाया, मैरिलैण्ड, अमेरिका से विजया राजकोटिया, जबलपुर, मध्यप्रदेश से क्षिति तिवारी, फीनिक्स, अमेरिका से मुकेश लाडिया और हैदराबाद से डी. हरिणा माधवी।
 उपरोक्त सभी प्रतिभागियों को ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ की ओर से हार्दिक 
बधाई। सभी प्रतिभागियों से अनुरोध है कि अपने पते के साथ कृपया अपना उत्तर 
ई-मेल से ही भेजा करें। इस पहेली प्रतियोगिता में हमारे नये प्रतिभागी भी 
हिस्सा ले सकते हैं। यह आवश्यक नहीं है कि आपको पहेली के तीनों प्रश्नों के
 सही उत्तर ज्ञात हो। यदि आपको पहेली का कोई एक भी उत्तर ज्ञात हो तो भी आप
 इसमें भाग ले सकते हैं। 
अपनी बात 
मित्रों,
 ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ पर आज से 
आरम्भ हमारी नई श्रृंखला “पूर्वांग और उत्तरांग राग” की दूसरी कड़ी में आपने
 राग नन्द का परिचय प्राप्त किया। इस राग में आपने पण्डित कुमार गन्धर्व 
द्वारा प्रस्तुत एक खयाल रचना का रसास्वादन किया। साथ ही आपने लता मंगेशकर 
के जन्मदिन के उपलक्ष्य में उनके स्वर में इस राग पर केन्द्रित एक फिल्मी 
गीत फिल्म “मेरा साया” से सुना। हमें विश्वास है कि हमारे अन्य पाठक भी 
“स्वरगोष्ठी” के प्रत्येक अंक का अवलोकन करते रहेंगे और अपनी प्रतिक्रिया 
हमें भेजते रहेगे। आज के अंक और श्रृंखला के बारे में यदि आपको कुछ कहना हो
 तो हमें अवश्य लिखें। हमारी वर्तमान अथवा अगली श्रृंखला के लिए यदि आपका 
कोई सुझाव या अनुरोध हो तो हमें swargoshthi@gmail.com
 पर अवश्य लिखिए। अगले अंक में रविवार को प्रातः 7 बजे हम ‘स्वरगोष्ठी’ के 
इसी मंच पर एक बार फिर सभी संगीत-प्रेमियों का स्वागत करेंगे। 
प्रस्तुति : कृष्णमोहन मिश्र   
 
राग नन्द : SWARGOSHTHI – 387 : RAG NAND : 30 सितम्बर, 2018 


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