भूली-बिसरी यादें        भारतीय सिनेमा के शताब्दी वर्ष में आयोजित विशेष श्रृंखला ‘स्मृतियों के  झरोखे से’ के एक नये अंक के साथ मैं कृष्णमोहन मिश्र अपने साथी सुजॉय  चटर्जी के साथ आपके बीच उपस्थित हुआ हूँ। आज मास का पहला गुरुवार है और  पहले व तीसरे गुरुवार को हम आपके लिए मूक और सवाक फिल्मों की कुछ रोचक  दास्तान लेकर आते हैं। तो आइए पलटते हैं, भारतीय फिल्म-इतिहास के कुछ  सुनहरे पृष्ठों को।        यादें मूक फिल्मों के युग की : नवयुवक सालुंके बने थे तारामती     अन्ततः 3मई, 1913 को मुम्बई के कोरोनेशन  सिनेमा में दादा साहब फालके द्वारा निर्मित प्रथम मूक फिल्म ‘राजा  हरिश्चन्द्र’ का पहला सार्वजनिक प्रदर्शन हुआ। विदेशी उपकरणों की सहायता से  किन्तु भारतीय कथानक पर भारतीय कलाकारों द्वारा इस फिल्म का निर्माण हुआ  था। ढुंडिराज गोविन्द फालके, उपाख्य दादा साहब फालके भारतीय फिल्म जगत के  पहले निर्माता-निर्देशक ही नहीं बल्कि पहले पटकथा लेखक, कैमरामैन, मेकअप  मैन, कला निर्देशक, सम्पादक आदि भी थे। फिल्म का एक उल्लेखनीय तथ्य यह भी  है कि भारत की इस पहली फिल्म के नायक दत्तात्रेय दामोदर दबके थे जबकि  नायि...