स्वरगोष्ठी – 220 में आज
दस थाट, दस राग और दस गीत – 7 : काफी थाट 
राग काफी में ‘बाँवरे गम दे गयो री...’ 
और
बागेश्री में ‘कैसे कटे रजनी अब सजनी...’
और
बागेश्री में ‘कैसे कटे रजनी अब सजनी...’
‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के 
साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस
 राग और दस गीत’ की सातवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब 
संगीत-प्रेमियों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। इस लघु श्रृंखला में हम 
आपसे भारतीय संगीत के रागों का वर्गीकरण करने में समर्थ मेल अथवा थाट 
व्यवस्था पर चर्चा कर रहे हैं। भारतीय संगीत में सात शुद्ध, चार कोमल और एक
 तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग किया जाता है। एक राग की रचना के 
लिए उपरोक्त 12 में से कम से कम पाँच स्वरों की उपस्थिति आवश्यक होती है। 
भारतीय संगीत में ‘थाट’, रागों के वर्गीकरण करने की एक व्यवस्था है। सप्तक 
के 12 स्वरों में से क्रमानुसार सात मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते 
है। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल का 
प्रचलन है, जबकि उत्तर भारतीय संगीत में दस थाट का प्रयोग किया जाता है। इन
 दस थाट का प्रचलन पण्डित विष्णु नारायण भातखण्डे जी ने प्रारम्भ किया था। 
वर्तमान समय में रागों के वर्गीकरण के लिए यही पद्धति प्रचलित है। भातखण्डे
 जी द्वारा प्रचलित ये दस थाट हैं; कल्याण, बिलावल, खमाज, भैरव, पूर्वी, 
मारवा, काफी, आसावरी, तोड़ी और भैरवी। इन्हीं दस थाटों के अन्तर्गत 
प्रचलित-अप्रचलित सभी रागों को वर्गीकृत किया जाता है। श्रृंखला की आज की 
कड़ी में हम आपसे काफी थाट पर चर्चा करेंगे और इस थाट के आश्रय राग काफी में
 निबद्ध पण्डित भीमसेन जोशी के स्वरों में एक बन्दिश प्रस्तुत करेंगे। साथ 
ही काफी थाट के अन्तर्गत वर्गीकृत राग बागेश्री के स्वरों में निबद्ध एक 
बाँग्ला फिल्मी गीत का उदाहरण उस्ताद अमीर खाँ की आवाज़ में प्रस्तुत 
करेंगे। 
आधुनिक
 भारतीय संगीत में प्रचलित थाटों की श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ 
की आज की कड़ी में हम ‘काफी’ थाट का परिचय प्राप्त करेंगे और इस थाट के 
आश्रय राग ‘काफी’ और इसी थाट के अन्तर्गत आने वाले राग बागेश्री में एक 
फिल्मी गीत का आनन्द भी लेंगे। परन्तु उससे पहले प्राचीन संस्कृत ग्रन्थों 
में की गई थाट विषयक चर्चा की कुछ जानकारी आपसे बाँटेंगे। थाट को संस्कृत 
ग्रन्थों में मेल अर्थात स्वरों का मिलाना या इकट्ठा करना कहते हैं। इन 
ग्रन्थों में थाट अथवा मेल के विषय में जो व्याख्या की गई है, उसके अनुसार 
‘वह स्वर-समूह थाट कहलाता है, जो राग-निर्मिति में सक्षम हो’। पण्डित 
सोमनाथ अपने ‘राग-विवोध’ के तीसरे अध्याय में मेलों को परिभाषित करते हुए 
लिखते हैं- ‘थाट इति भाषायाम’ अर्थात, मेल को भाषा में थाट कहते हैं। 
‘राग-विवोध’ आज से लगभग चार सौ वर्ष पूर्व की रचना है। यह ग्रन्थ ‘थाट’ का 
प्राचीन आधार भी है। वर्तमान में प्रचलित दस थाटों का निर्धारण पण्डित 
विष्णु नारायण भातखण्डे ने किया है। आज हम आपसे थाट ‘काफी’ के विषय में कुछ
 चर्चा करेंगे। काफी थाट के स्वर होते हैं- सा, रे, ग॒, म, प, ध, नि॒। इस थाट 
में गान्धार और निषाद कोमल और शेष स्वर शुद्ध प्रयोग किए जाते हैं। काफी 
थाट का आश्रय राग ‘काफी’ होता है। राग ‘काफी’ में गांधार और निषाद स्वर 
कोमल प्रयोग किया जाता है। इसके आरोह के स्वर हैं- सारेग, म, प, धनिसां तथा
 अवरोह के स्वर हैं- सां नि ध, प, मग, रे, सा । इस राग का वादी स्वर पंचम 
और संवादी स्वर षडज होता है और इसका गायन-वादन समय मध्यरात्रि होता है। राग
 काफी में होली और रंगोत्सव से सम्बन्धित रचनाएँ खूब निखरती हैं। आइए, 
सुप्रसिद्ध गायक पण्डित भीमसेन जोशी के स्वरों में राग काफी की एक बन्दिश 
सुनते हैं। 
राग काफी : ‘बावरे गम दे गयो री...’ : पण्डित भीमसेन जोशी 
 
इस
 थाट के अन्तर्गत आने वाले कुछ अन्य प्रमुख राग हैं- भीमपलासी, पीलू, 
बागेश्री, आभोगी, चन्द्रकौंस, जोग, धानी, नीलाम्बरी, बहार, नायकी कान्हड़ा, 
गौड़ मल्हार आदि। राग बागेश्री भारतीय संगीत का अत्यन्त मोहक राग है। कुछ 
विद्वान इस राग को बागेश्वरी नाम से भी पुकारते हैं, किन्तु सुप्रसिद्ध 
गायिका विदुषी गंगूबाई हंगल के मतानुसार इस राग का नाम बागेश्री अधिक 
उपयुक्त होना चाहिए। इस राग को काफी थाट से अन्तर्गत माना जाता है। राग का 
एक प्रचलित स्वरूप भी है, जिसके आरोह में ऋषभ स्वर वर्जित होता है और पंचम 
स्वर का अल्पत्व प्रयोग किया जाता है। अवरोह में सातों स्वर प्रयोग होते 
हैं। इस प्रकार यह राग षाड़व-सम्पूर्ण जाति का हो जाता है। कुछ विद्वान आरोह
 में ऋषभ के साथ पंचम स्वर भी वर्जित करते हैं। इस राग में गान्धार और 
निषाद स्वर कोमल तथा शेष स्वर शुद्ध प्रयोग किए जाते हैं। कर्नाटक पद्यति 
में इस राग के समतुल्य राग नटकुरंजी है, जिसमें पंचम स्वर का प्रयोग नहीं 
किया जाता। राग बागेश्री में यदि पंचम और कोमल निषाद का प्रयोग न किया जाए 
तो यह राग आभोगी की अनुभूति कराता है। राग का वादी स्वर मध्यम और संवादी 
स्वर षडज होता है। रात्रि के दूसरे प्रहर, विशेष रूप से मध्यरात्रि में इस 
राग का सौन्दर्य खूब निखरता है। इस राग में भक्ति और श्रृंगार रस की रचनाएँ
 भली लगती है। अब हम आपको राग बागेश्री में बँधी एक मोहक फिल्मी गीत का 
रसास्वादन कराते हैं। इसे प्रस्तुत कर रहे हैं, सुप्रसिद्ध गायक उस्ताद 
अमीर खाँ। 1960 में प्रदर्शित बाँग्ला फिल्म ‘क्षुधित पाषाण’ से यह गीत 
हमने लिया है। कविगुरु रवीन्द्रनाथ ठाकुर की कथा पर विख्यात फिल्म-शिल्पी 
तपन सिन्हा के निर्देशन में फिल्म ‘क्षुधित पाषाण’ का निर्माण किया गया था।
 फिल्म की मुख्य भूमिका में सौमित्र चटर्जी और अरुन्धति देवी ने अभिनय किया
 था। फिल्म की कहानी के केन्द्र में एक शापित हवेली है, जिसमें एक सरकारी 
कारिन्दा उलझ जाता है। इस फिल्म का सर्वाधिक उललीखनीय पक्ष इसका संगीत है। 
मैहर परम्परा के उस्ताद अली अकबर खाँ फिल्म के संगीतकार थे। फिल्म ‘क्षुधित
 पाषाण’ में उन्होने एक गीत एक छोटा खयाल के रूप में शामिल किया था, जिसे 
उस्ताद अमीर खाँ और प्रतिमा बनर्जी ने राग बागेश्री में गाया था। आप यह गीत
 सुनिए और मुझे आज की इस कड़ी को यहीं विराम देने की अनुमति दीजिए। 
राग बागेश्री : ‘कैसे कटे रजनी...’ : उस्ताद अमीर खाँ और प्रतिमा बनर्जी : फिल्म क्षुधित पाषाण 
 
संगीत पहेली  
 
‘स्वरगोष्ठी’
 के 220वें अंक की संगीत पहेली में आज हम आपको छः दशक पुरानी एक लोकप्रिय 
हिन्दी फिल्म के एक राग आधारित गीत का अंश सुनवा रहे हैं। इस गीत के अंश को
 सुन कर आपको निम्नलिखित तीन में से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर देने 
हैं। ‘स्वरगोष्ठी’ के इस अंक के सम्पन्न होने तक जिस प्रतिभागी के सर्वाधिक
 अंक होंगे, उन्हें इस वर्ष की दूसरी श्रृंखला (सेगमेंट) का विजेता घोषित 
किया जाएगा। 
1 – गीत का यह अंश सुन कर बताइए कि इस अंश में किस राग की झलक है? 
2 – गीत के अंश में प्रयोग किये गए ताल को ध्यान से सुनिए और हमें ताल का नाम बताइए। 
3 – इस गीत के संगीतकार कौन हैं? हमे उनका नाम बताइए। 
आप उपरोक्त तीन में से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर केवल swargoshthi@gmail.com  या  radioplaybackindia@live.com
 पर इस प्रकार भेजें कि हमें शनिवार, 30 मई, 2015 की मध्यरात्रि से पूर्व 
तक अवश्य प्राप्त हो जाए। comments में दिये गए उत्तर मान्य हो सकते है, 
किन्तु उसका प्रकाशन अन्तिम तिथि के बाद किया जाएगा। इस पहेली के विजेताओं 
के नाम हम ‘स्वरगोष्ठी’ के 222वें अंक में प्रकाशित करेंगे। इस अंक में 
प्रकाशित और प्रसारित गीत-संगीत, राग, अथवा कलासाधक के बारे में यदि आप कोई
 जानकारी या अपने किसी अनुभव को हम सबके बीच बाँटना चाहते हैं तो हम आपका 
इस संगोष्ठी में स्वागत करते हैं। आप पृष्ठ के नीचे दिये गए comments के 
माध्यम से तथा swargoshthi@gmail.com अथवा radioplaybackindia@live.com पर भी अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं। 
पिछली पहेली के विजेता  
 
‘स्वरगोष्ठी’
 की 218वें अंक की संगीत पहेली में हमने आपको वर्ष 1960 में प्रदर्शित 
ऐतिहासिक फिल्म ‘मुगल-ए-आज़म’ के एक गीत का अंश सुनवा कर आपसे तीन प्रश्न 
पूछा गया था। आपको इनमें से किसी दो प्रश्न का उत्तर देना था। पहले प्रश्न 
का सही उत्तर है- राग सोहनी, दूसरे प्रश्न का सही उत्तर है- ताल दीपचन्दी 
और तीसरे प्रश्न का सही उत्तर है- गायक उस्ताद बड़े गुलाम अली खाँ। इस बार 
पहेली में हमारे एक नये श्रोता-पाठक, बड़ोदरा, गुजरात के केतनकुमार पताडिया 
की भी सहभागिता रही। केतन जी के तीनों उत्तर सही रहे। इनके अलावा हमारे 
नियमित प्रतिभागियों, पेंसिलवेनिया, अमेरिका से विजया राजकोटिया, जबलपुर से
 क्षिति तिवारी, रायपुर, छत्तीसगढ़ से राजश्री श्रीवास्तव और हैदराबाद से 
डी. हरिणा माधवी ने भी सही उत्तर दिये हैं। दिया हैं। सभी पाँच 
प्रतिभागियों को ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ की ओर से हार्दिक बधाई। 
अपनी बात   
 
मित्रो,
 ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ पर लघु 
श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ जारी है। इसके अन्तर्गत हम प्रत्येक 
अंक में भारतीय संगीत के प्रचलित दस थाट और उनके आश्रय रागों की चर्चा कर 
रहे हैं। साथ ही थाट से जुड़े अन्य रागों पर आधारित फिल्मी गीत भी प्रस्तुत 
कर रहे हैं। आपको यह श्रृंखला कैसी लगी? हमें अवश्य लिखिएगा। ‘स्वरगोष्ठी’ 
पर आगामी लघु श्रृंखला ‘वर्षा ऋतु के रागों’ पर केन्द्रित होगा। यदि आपने 
वर्षा ऋतु के रागों पर कोई आलेख तैयार किया है या इन रागों की कोई रचना 
आपको पसन्द है, तो हमें swargoshthi@gmail.com
 पर शीघ्र भेजें। हम उसे आपके नाम और परिचय के साथ प्रकाशित / प्रसारित 
करेंगे। अगले रविवार को एक नए अंक के साथ प्रातः 9 बजे ‘स्वरगोष्ठी’ के इसी
 मंच पर आप सभी संगीतानुरागियों का हम स्वागत करेंगे। 
प्रस्तुति : कृष्णमोहन मिश्र   
 
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