रंगोत्सव पर सभी पाठकों और श्रोताओं को हार्दिक शुभकामनाएँ          स्वरगोष्ठी – 308 में आज     राग और गाने-बजाने का समय – 8 : रात के चौथे प्रहर के राग     पण्डित मल्लिकार्जुन मंसूर से सुनिए राग परज - “अँखियाँ मोरी लागि रही...”            ‘रेडियो  प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर हमारी  श्रृंखला – “राग और गाने-बजाने का समय” की आठवीं और समापन कड़ी में मैं  कृष्णमोहन मिश्र आप सब संगीतानुरागियों का स्वागत करता हूँ। भारतीय संगीत  की अनेक विशेषताओं में से एक विशेषता यह भी है कि उत्तर भारतीय संगीत के  प्रचलित राग परम्परागत रूप से ऋतु प्रधान हैं अथवा प्रहर प्रधान। अर्थात  संगीत के प्रायः सभी राग या तो अवसर विशेष या फिर समय विशेष पर ही प्रस्तुत  किये जाने की परम्परा है। बसन्त ऋतु में राग बसन्त और बहार तथा वर्षा ऋतु  में मल्हार अंग के रागों के गाने-बजाने की परम्परा है। इसी प्रकार अधिकतर  रागों के प्रयोग का एक निर्धारित समय होता है। उस विशेष समय पर ही राग को  सुनने पर आनन्द प्राप्त होता है। भारतीय कालगणना के सिद्धान्तों का  प्रतिपादन करने वाले प्राचीन मनीषियों ने दिन...