स्वरगोष्ठी – 230 में आज   रंग मल्हार के – 7 : कजरी गीतों का उपशास्त्रीय रूप  ‘बरसन लागी बदरिया रूम झूम के...’                  ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक  स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी है, हमारी लघु श्रृंखला ‘रंग मल्हार  के’। श्रृंखला की सातवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब  संगीत-प्रेमियों का एक बार पुनः हार्दिक स्वागत करता हूँ। यह श्रृंखला,  वर्षा ऋतु के रस और गन्ध से पगे गीत-संगीत पर केन्द्रित है। इस श्रृंखला  में अब तक आप वर्षा ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले रागों और उनमें निबद्ध कुछ  चुनी हुई रचनाएँ सुन रहे थे और हम उन पर चर्चा कर रहे हैं। इसके साथ ही  सम्बन्धित राग के आधार पर रचे गए फिल्मी गीत भी हम प्रस्तुत कर रहे हैं।  भारतीय संगीत के अन्तर्गत मल्हार अंग के सभी राग पावस ऋतु के परिवेश की  सार्थक अनुभूति कराने में समर्थ हैं। आम तौर पर इन रागों का गायन-वादन  वर्षा ऋतु में अधिक किया जाता है। इसके साथ ही कुछ ऐसे सार्वकालिक राग भी  हैं जो स्वतंत्र रूप से अथवा मल्हार अंग के मेल से भी वर्षा ऋतु के अनुकूल  परिवेश रचने में सक्षम होते ...