कवि महेंद्र भटनागर     दोस्तों लीजिए पेश है वर्ष २०१२ का एक और प्लेबैक ओरिजिनल. ये गीत है वरिष्ठ कवि मेहन्द्र भटनागर का लिखा जिसे स्वरबद्ध किया और गाया है उन्हीं के गुणी सुपुत्र कुमार आदित्य ने, जो कि एक उभरते हुए गायक संगीतकार हैं. सुनें और टिप्पणियों के माध्यम से सम्न्बधित फनकारों तक पहुंचाएं.     गीत के बोल -     नभ के किन परदों के पीछे आज छिपा है चाँद ?   मैं पूछ रहा हूँ तुमसे ओ  नीरव जलने वाले तारो !  मैं पूछ रहा हूँ तुमसे ओ  अविरल बहने वाली धारो !   सागर की किस गहराई में आज छिपा है चाँद ?  नभ के किन परदों के पीछे आज छिपा है चाँद ?  ॰  मैं पूछ रहा हूँ तुमसे ओ  मन्थर मुक्त हवा के झोंको !  जिसने चाँद चुराया मेरा  उसको सत्वर भगकर रोको !  नयनों से दूर बहुत जाकर आज छिपा है चाँद ?  नभ के किन परदों के पीछे आज छिपा है चाँद ?  ॰  मैं पूछ रहा हूँ तुमसे ओ  तरुओ ! पहरेदार हज़ारों,  चुपचाप खड़े हो क्यों ? अपने  पूरे स्वर से नाम पुकारो !  दूर कहीं मेरी दुनिया से आज छिपा है चाँद !  नभ के किन परदों के पीछे आज छिपा है चाँद ?     संगीतकार गायक कुमार आदित्य                            ...