स्वरगोष्ठी – ९० में आज    ‘पिया बिन नाहीं आवत चैन...’         ‘स्वरगोष्ठी’  के एक नए अंक के साथ मैं, कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों के बीच  उपस्थित हूँ और आपका हार्दिक स्वागत करता हूँ। मित्रों, आज से हम आरम्भ कर  रहे हैं, एक नई लघु श्रृंखला- ‘फिल्मों के आँगन में ठुमकती पारम्परिक  ठुमरी’। शीर्षक से आपको यह अनुमान हो ही गया होगा कि इस श्रृंखला में हम  आपके लिए कुछ ऐसी पारम्परिक ठुमरियाँ प्रस्तुत करने जा रहे हैं, जिन्हें  भारतीय फिल्मों में शामिल किया गया। फिल्मों का हिस्सा बन कर इन ठुमरियों  को इतनी लोकप्रियता मिली कि लोग मूल पारम्परिक ठुमरी को प्रायः भूल गए। इस  श्रृंखला में हम आपके लिए उप-शास्त्रीय संगीत की इस मनमोहक विधा के  पारम्परिक स्वरूप के साथ-साथ फिल्मी स्वरूप भी प्रस्तुत करेंगे।          ल घु  श्रृंखला- ‘फिल्मों के आँगन में ठुमकती पारम्परिक ठुमरी’  के आज के पहले  अंक का राग है, झिंझोटी और ठुमरी है- ‘पिया बिन नाहीं आवत चैन...’ । परन्तु  इस ठुमरी पर चर्चा से पहले ठुमरी शैली पर थोड़ी चर्चा आवश्यक है। ठुमरी  भारतीय संगीत की रस, रंग और भाव से परिपूर्ण शै...