"अगस्त के अश्वारोही"  गीतों ने जनता की अदालत में अपनी धाक बखूबी जमाई है, अब बारी है, समीक्षकों के सुरीले कानों से होकर गुजरने की, यहीं फैसला होगा कि किस गीत में है दम, सरताज गीत बनने का. आईये, पहले चरण के पहले समीक्षक से  जानते हैं कि "अगस्त के अश्वारोही"  गीतों के बारे में उनकी क्या राय है.    मैं नदी .. इस गीत में  एक आशावाद झलकता है। कवि  प्रकृति  , नदी , पवन, धरा, पेड़ों, शाखों  जैसे हल्के फुल्के  शब्दों के माध्यम से अपनी बात बड़ी सरलता से कह देते हैं।  संगीत बढ़िया है पर जब गायिका गाती है  मैं  वहां , मुसाफिर मेरा मन.. जब संगीत अपनी लय खोता नजर आता है। मुसाफिर.. मेरा मन  शब्द में  संगीतकार उतना न्याय नहीं कर पाये, जितना गीत के बाकी के हिस्से में है।  पार्श्व संगीत  और दो पैरा के बीच में संगीत बढ़िया बना है, मानो नदी बह रही हो। गायिका मानसी की आवाज में एक अल्हड़पन नजर आता है, बढ़िया गाया भी है  परन्तु उन्हें  लगता है अभी ऊंचे सुर पर अभी मेहनत करनी होगी। कुल मिला कर प्रस्तुति बढ़िया कही जायेगी। गीत 4/5, संगीत 3/5, गायकी 3/5, प्रस्तुति 2/5, कुल 12/20. वास्तविक अंक 6/10 ....