'बोलती कहानियाँ' स्तम्भ के अंतर्गत हम आपको सुनवा रहे हैं प्रसिद्ध कहानियाँ। पिछले सप्ताह आपने  रीतेश खरे "सब्र जबलपुरी"  की आवाज़ में निर्मल वर्मा की डायरी ' धुंध से उठती धुंध ' का अंश " क्या वे उन्हें भूल सकती हैं  का पॉडकास्ट सुना था। आज हम आपकी सेवा में प्रस्तुत कर रहे हैं बालमुकुन्द गुप्त  का व्यंग्य " मेले का ऊँट , जिसको स्वर दिया है अर्चना चावजी  ने।   इस प्रसारण का कुल समय 7 मिनट 33 सेकंड है। सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं।  यदि आप भी अपनी मनपसंद कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, धारावाहिको, प्रहसनों, झलकियों, एकांकियों, लघुकथाओं को अपनी आवाज़ देना चाहते हैं तो अधिक जानकारी के लिए कृपया admin@radioplaybackindia.com पर सम्पर्क करें।      समझ इस बात को नादां जो तुम में कुछ भी गैरत हो,  न कर उस काम को हरगिज कि जिसमें तुझको जिल्लत हो।   ~  "बालमुकुन्द गुप्त"  (1865 - 1907)    हर शुक्रवार को यहीं पर सुनें एक नयी कहानी    न जाने आप घर से खाकर गये थे या नहीं ...  ( बालमुकुन्द गुप्त की "मेले का ऊँट" से एक ...