स्वरगोष्ठी – 161 में आज   लोक संगीत का रस-रंग जब उपशास्त्रीय मंच पर बिखरा     ‘चैत मासे चुनरी रंगइबे हो रामा, पिया घर लइहें...’           ‘ रेडियो प्लेबैक इण्डिया ’  के मंच पर साप्ताहिक स्तम्भ ‘ स्वरगोष्ठी ’  के एक नए अंक के साथ मैं कृष्णमोहन मिश्र ,  एक बार पुनः आप सब संगीतानुरागियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। मित्रों ,  आज हम आपसे संगीत की एक ऐसी शैली पर चर्चा करेंगे जो मूलतः ऋतु प्रधान लोक संगीत की शैली है ,  किन्तु अपनी सांगीतिक गुणबत्ता के कारण इस शैली को उपशास्त्रीय मंचों पर भी अपार लोकप्रियता प्राप्त है। भारतीय संगीत की कई ऐसी लोक - शैलियाँ हैं ,  जि नका प्रयोग उपशास्त्रीय संगीत के रूप में भी किया जाता है। होली पर्व के बाद ,  आरम्भ होने वाले चैत्र मास से ग्रीष्म ऋतु का आगमन हो जाता है। इस परिवेश में चैती गीतों का गायन आरम्भ हो जाता है। गाँव की चौपालों से लेकर मेलों में ,  मन्दिरों में चैती के स्वर गूँजने लगते हैं। आज के अंक से हम आपसे चैती गीतों के विभिन्न प्रयोगों पर चर्चा आरम्भ करेंगे। उत्तर भारत में इस गीत के प्रकारों को चैती ,  चैता और घाटो के नाम से जान...