स्वरगोष्ठी – 266 में आज     होली और चैती के रंग – 4 : चैती गीतों के वर्ण्य-विषय     ‘चैत मासे चुनरी रंगइबे हो रामा, पिया घर लइहें...’           ‘रेडियो  प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर हमारी  श्रृंखला – ‘होली और चैती के रंग’ की चौथी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र आप  सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला  में हम ऋतु के अनुकूल भारतीय संगीत के कुछ ऐसे रागों और रचनाओं की चर्चा कर  रहे हैं, जिन्हें ग्रीष्मऋतु के शुरुआती परिवेश में गाने-बजाने की परम्परा  है। भारतीय समाज में अधिकतर उत्सव और पर्वों का निर्धारण ऋतु परिवर्तन के  साथ होता है। शीत और ग्रीष्म ऋतु की सन्धिबेला में मनाया जाने वाला पर्व-  होलिकोत्सव और चैत्रोत्सव प्रकारान्तर से पूरे देश में आयोजित होता है। यह  उल्लास और उमंग का, रस और रंगों का, गायन-वादन और नर्तन का पर्व है। भारतीय  संगीत की कई ऐसी लोक-शैलियाँ हैं, जिनका प्रयोग उपशास्त्रीय संगीत में भी  किया जाता है। होली पर्व के बाद, आरम्भ होने वाले चैत्र से ग्रीष्म ऋतु का  आगमन हो जाता है। इस परिवेश में पूरे उत्तर भारत...