पिछले सोमवार दिनांक 3 अप्रैल 2017 को शास्त्रीय संगीत की सुप्रसिद्ध गायिका पद्मविभूशण किशोरी अमोनकर (आमोणकर) का 84 वर्ष की आयु में देहावसन हो जाने से हिन्दुस्तानी शास्त्रीय गायन जगत को गहरी हानी पहुँची है। शास्त्रीय संगीत जगत में किशोरी जी का जो स्थान रिक्त हुआ है, उसकी पूर्ति हो पाना असंभव है। संयोग से आगामी सोमवार 10 अप्रैल को किशोरी जी का जन्मदिवस है। आइए आज ’चित्रकथा’ में स्वर्गीया किशोरी अमोनकर जी को श्रद्धा-सुमन अर्पित करें उनकी गाई उन रचनाओं को याद करते हुए जिन्होंने फ़िल्म-संगीत के धरोहर को समृद्ध किया है।
किशोरी अमोनकर (10 अप्रैल 1932 - 3 अप्रैल 2017) |
10 अप्रैल 1932 को बम्बई में जन्मीं किशोरी अमोनकर ने संगीत की पहली शिक्षा अपनी माँ मोगुबाई कुर्डिकर से ली जो जयपुर-अतरौली घराने की जानीमानी गायिका थीं। साथ ही भिंडीबाज़ार घराने के अंजनी मालपेकर से भी उन्होंने तालीम ली। पारम्परिक रागों में निबद्ध ख़याल गायकी में उन्होंने महरथ हासिल की। भजन और ठुमरी में भी किशोरी अमोनकर का कोई सानी नहीं। एक प्रसिद्ध शास्त्रीय गायिका के रूप में वो 60 के दशक के शुरु में प्रतिष्ठित हुईं। 1964 में वी. शान्ताराम एक नृत्यप्रधान फ़िल्म बना रहे थे ’गीत गाया पत्थरों ने’। अपनी पुत्री राजश्री और अभिनेत्र जीतेन्द्र को उन्होंने इस फ़िल्म में लौन्च किया। ’झनक झनक पायल बाजे’ में एक से बढ़ कर एक शास्त्रीय-संगीत जगत के फ़नकारों के द्वारा फ़िल्म के गीतों को सजाने के बाद ’गीत गाया पत्थरों ने’ के शीर्षक गीत के लिए उन्होंने किशोरी अमोनकर को चुना। उन दिनों फ़िल्म-संगीत अपने पूरे शबाब पर थी। हर गायिका की तरह किशोरी के मन में भी फ़िल्म में गाने की इच्छा जागृत हुई। उनकी माँ और गुरुजी ने उन्हें समझाया कि उनके परिवार के लिए गीत-संगीत व्यवसाय नहीं बल्कि साधना है और इसलिए उन्हें फ़िल्मी गायन से दूर रहना चाहिए। पर किशोरी की तीव्र इच्छा थी फ़िल्म में गाने की। इसलिए उन्होंने अपनी माँ और गुरुजी के सुझाव को नज़रंदाज़ कर वी. शान्ताराम की फ़िल्म में मिले मौके को हाथोंहाथ ग्रहण कर लिया।
राजश्री का सुन्दर नृत्य और उस पर किशोरी अमोनकर की मनमोहक आवाज़, असर तो होना ही था। हसरत जयपुरी के लिखे और कमचर्चित संगीतकार रामलाल द्वारा स्वरबद्ध इस गीत के दो संस्करण थे। एक तो किशोरी जी का गाया एकल, और दूसरा संस्करण एक युगल गीत था आशा भोसले और महेन्द्र कपूर की आवाज़ों में। जब इन दो संस्करणों में त्लनात्मक समीक्षा हुई तब किशोरी अमोनकर के गाए संस्करण को दिग्गजों ने ऊँचा स्थान दिया। इस गीत में राग दुर्गा की छाया थी जिसमें किशोरी जी को अपनी स्वरभाषा के ज्ञान को शब्दभाषा में ढालना था। बेहद ख़ूबसूरती के साथ फ़िल्म का यह शीर्षक गीत "गीत गाया पत्थरों ने..." उन्होंने गाया जो 1965 के बिनाका गीतमाला के वार्षिक कार्यक्रम के दसवें पायदान का सर्वाधिक लोकप्रिय गीत बना। इस कामयाबी के बावजूद किशोरी अमोनकर ने फ़िल्म जगत से अपने सारे रिश्ते समाप्त करने का निर्णय लिया। इसके दो कारण थे। पहला कारण यह था कि जब ’गीत गाया पत्थरों ने’ गीत कामयाब हुई, तब उनकी माँ ने उन्हें चेतावनी दे दी कि अगर उसने फिर कभी किसी फ़िल्म के लिए गाया तो वो उसे अपने दो तानपुरों को छूने तक नहीं देंगी। किशोरी जी को अपनी ग़लती का अहसास हुआ। लेकिन सिर्फ़ यही एक कारण नहीं था फ़िल्म जगत से मुंह मोड़ने का। जैसा कि हम सभी जानते हैं उन दिनों फ़िल्म जगत में लौबी हुआ करती थी। जानेमाने संगीत इतिहासकार वामनराव हरि देशपाण्डे ने एक लेख में लिखा है कि किशोरी और उनकी माँ का इस फ़िल्म में गाने को लेकर कड़वा अनुभव रहा जब उन्होंने इस गीत के ग्रामोफ़ोन रेकॉर्ड्स को सभी दुकानों से यकायक ग़ायब होते हुए देखा। वैसे भी वो फ़िल्मी गायन के क्षेत्र में नहीं रहतीं, लेकिन कुछ प्रभावशाली लोगों द्वारा उन्हें अलग-थलग करने की साज़िश ने उनके दिल को बहुत ज़ोर का ठेस पहुँचाया। शक़ की उंगली लता मंगेशकर की तरफ़ उठी, पर सबूत के अभाव में इसकी पुष्टि कभी नहीं हो सकी। लेकिन ऐसा कई गायिकाओं के साथ हो चुका है। इस फ़िल्म के बाद किशोरी अमोनकर ने अपना पूरा ध्यान शास्त्रीय संगीत में लगा दिया और दिन दुगुनी रात चौगुनी उन्नति करती चली गईं।
’गीत गाया पत्थरों ने’ बनने के 26 वर्ष बाद किशोरी अमोनकर फिर एक बार फ़िल्म जगत में क़दम रखे। इस बार फ़िल्मकार थे गोविन्द निहलानी। 1982 की अपनी फ़िल्म ’विजेता’ में शास्त्रीय संगीत का प्रयोग करने वाले गोविन्द निहलानी ने 1990 में अपनी फ़िल्म ’दृष्टि’ के लिए एक शास्त्रीय गायिका की आवाज़ लेने की सोच रहे थे। उन्हीं के शब्दों में यह फ़िल्म ग्यारह आंदोलनों में बनाया गया था और हर एक आन्दोलन के लिए एक सांकेतिक गीत था। इसके लिए उन्होंने किशोरी अमोनकर से गीत और आलाप गवाने का निर्णय लिया। लेकिन अमोनकर तो फ़िल्मों से दूर जा चुकी थीं। गोविन्द निहलानी ने जब उन्हें फ़िल्म की कहानी सुनाई और यह भी कहा कि वो अपने गीत ख़ुद कम्पोज़ कर सकती हैं, तब किशोरी अमोनकर को कहानी भी पसन्द आई और ख़ुद के रचे गीतों को गाने की बात से ख़ुश होकर फ़िल्म स्वीकार कर ली। फ़िल्म की कहानी में वैवाहिक विवाद और एक्स्ट्रामैरिटल अफ़ेअर्स के प्रसंगों को सुन कर अमोनकर ने निहलानी के सामने यह शर्त रख दी कि उनके किसी भी गीत को प्रेम-संपादन (lovemaking) दृश्य के पार्श्व में नहीं रखा जाएगा। उनकी सारी शर्तों तो निहलानी मान गए। अमोनकर जुट गईं फ़िल्म की धुनों को तैयार करने में। गीतों के लिए बोल थे वसन्त देव ने जिन्होंने ’उत्सव’ फ़िल्म में कई सुन्दर गीत लिखे थे। किशोरी अमोनकर के लिए इस फ़िल्म में संगीत देना एक बड़ी चुनौती थी। इसका मुख्य कारण था उनके जयपुर घराने के शैली का अनम्य या दृढ़ होना। ताल, अलंकार और स्वरूप, सभी बहुत दृढ़ होते हैं इस घराने के। ऐसे में एक फ़िल्मी संगीतकार न होते हुए अपने संगीत को फ़िल्म के संगीत के लिए ढाल पाना आसान काम नहीं था। और फिर समय की भी सीमा थी।
’दृष्टि’ फ़िल्म में तीन गीत और तीन आलाप थे। पहला गीत "मेघा झर झर बरसत रे..." को किशोरी अमोनकर ने राग मलहार की शैली में स्वरबद्ध किया है। गीत के बीच बीच में आलाप बेहद सुन्दर बन पड़े हैं। यूं तो इस फ़िल्म में कई आलाप उन्होंने गाए हैं जिनका प्रयोग पाश्वसंगीत के रूप में किया गया है, लेकिन इस गीत के भीतर गाए हुए आलाप बेहद सुन्दर हैं। ऐसे ही एक आलाप का प्रयोग गोविन्द निहलानी ने एक लम्बे प्रेम-संपादन वाले दृश्य के लिए कर लिया और किशोरी अमोनकर को दिए अपने वादे से मूकर गए। फ़िल्म के रिलीज़ होने के बाद जब किशोरी जी ने फ़िल्म देखी तो उन्हें ज़बरदस्त झटका लगा। उनकी माँ ग़ुस्से से आग-बबूला हो गईं। अमोनकर ने अन्तिम फ़ैसला ले लिया अब चाहे कुछ भी हो जाए, वो फ़िल्म जगत फिर कभी वापस नहीं आएँगी। फ़िल्म की दूसरी रचना थी रघुनन्दन पांशिकर के साथ गाया उनका युगल गीत "सावनिया संझा में अंबर झर आई, का चाल चलत काम राधा भरमाई"। यह भी वर्षा का गीत है। इस गीत को मुख्य रूप से रघुनन्दन जी ने ही गाया है जबकि किशोरी जी की आवाज़ आलापों में सुनाई देती है। रघुनन्दन मराठी मंच के प्रसिद्ध अभिनेता प्रभाकर पांशिकर के पुत्र हैं। 11 वर्ष की आयु में उन्होंने संगीत की विधिवत शिक्षा लेनी शुरु कर दी थी। पंडित वसन्तराव कुलकर्णी से शुरुआती तालीम लेने के बाद उन्होंने जयपुर-अतरौली घराने की विधिवत तालीम किशोरी अमोनकर से लेनी शुरु की। अगले 17 वर्षों तक वो किशोरी जी के शिष्य बने रहे और उन्हीं की निगरानी में संगीत की सेवा करते रहे। इस तरह से जब ’दृष्टि’ में एक शास्त्रीय युवा गायक (इरफ़ान ख़ान) के पार्श्वगायन के लिए एक पुरुष आवाज़ की ज़रूरत पड़ी तो किशोरी जी ने अपने शिष्य को गाने का मौक़ा दिया और इस तरह से गुरु-शिष्य की जोड़ी ने गीत-संगीत का ऐसा समा बाँधा कि यह गीत फ़िल्म-संगीत के ख़ज़ाने का एक अनमोल नगीना बन गया।
’दृष्टि’ फ़िल्म का समापन फ़िल्म के नायक निखिल (शेखर कपूर) और नायिका संध्या (डिम्पल कापड़िया) के समुन्दर के किनारे बैठे हुए एक दृश्य से होता है जिसमें निखिल संध्या से पूछ रहे हैं कि उनके रिश्ते में आख़िर दिक्कत क्या थी जो एक दूसरे से इतना दूर कर दिया। समुन्दर किनारे बैठे वो बारिश का आनन्द ले रहे हैं और पार्श्व में चार अन्तरों का एक गीत चल रहा है। गीत के बोल इशारा कर रहे हैं कि वो एक दूसरे के साथ पुनर्मिलन के लिए तैयार हैं। यह संवाद के माध्यम से बोला नहीं जाता, लेकिन समाप्ति का यह गीत इसी तरफ़ इशारा कर रहा है। इस अन्तिम गीत के बोल हैं "एक ही संग हुते जो हम और तुम काहे बिछुड़ा रे" जिसे सुनते हुए हमें "ज्योति कलश छलके" गीत की याद आ जाती है। वैसे "ज्योति कलश छलके" राग देशकर पर आधारित है। किशोरी जी की आवाज़ में चार अन्तरों का यह गीत राग भूपाली पर आधारित है। इस गीत को छोटा ख़याल (अविलम्बित ख़याल) भी कहा जा सकता है। फ़िल्म के मुख्य भाव को उजागर करता यह गीत किशोरी अमोनकर के दिलकश आलापों और संगीत के तालों से सुसज्जित होकर जैसे रसों और भावनाओं का संचार कर रहे हों। वसन्त देव के छोटे-छोटे बोल गीत की सुन्दरता पे चार चाँद लगाते हैं। इस गीत से फ़िल्म समाप्त होता है। वैसे इसी गीत का एक और संस्करण भी है जिसमें किसी साज़ का प्रयोग नहीं हुआ है। निखिल और संध्या के एक दूसरे से अलग होने वाले दृ्श्य के बाद यह संस्करण पार्श्व में बजता है। जैसा कि ’गीत गाया पत्थरों ने’ फ़िल्म के गीत के बाद किशोरी जी ने कहा कि उन्होंने अपने स्वरभाषा को शब्दभाषा के साथ मिलाया है, इस गीत में भी वही प्रयोग सुनाई देता है। गीत का करुण रस किशोरी अमोनकर के स्वरभाषा से पूर्णता को प्राप्त करता है।
किशोरी अमोनकर ने केवल दो फ़िल्मों में अपनी आवाज़ दी और एक फ़िल्म में संगीत दिया। हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत के लौहस्तंभ किशोरी अमोनकर का इन दो फ़िल्मों में योगदान कला की दृष्टि से अद्वितीय है, अतुलनीय है। फ़िल्म जगत हमेशा ॠणी रहेगी उनकी जिन्होंने अपनी पारस प्रतिभा से इन दोनों फ़िल्मों के संगीत को स्वर्णिम बना दिया। किशोरी अमोनकर भले एक फ़िल्मी पार्श्वगायिका नहीं थीं, लेकिन बस इन चार गीतों के माध्यम से उन्होंने यह सिद्ध कर दिया कि उनका मुकाम फ़िल्मी पार्श्वगायिकाओं से बहुत उपर है।
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शोध,आलेख व प्रस्तुति : सुजॉय चटर्जी
प्रस्तुति सहयोग : कृष्णमोहन मिश्र
रेडियो प्लेबैक इण्डिया
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-Mukesh Garg