स्वरगोष्ठी – 276 में आज
मदन मोहन के गीतों में राग-दर्शन – 9 : राष्ट्रीय पुरस्कार से अलंकृत संगीत    
‘बइयाँ ना धरो ओ बलमा...’ 
‘रेडियो
 प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर इन दिनों 
हमारी श्रृंखला – ‘मदन मोहन के गीतों में राग-दर्शन’ जारी है। श्रृंखला की 
नौवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र अपने साथी सुजॉय चटर्जी के साथ आप सभी 
संगीत-प्रेमियों का एक बार फिर हार्दिक स्वागत करता हूँ। यह श्रृंखला आप तक
 पहुँचाने के लिए हमने फिल्म संगीत के सुपरिचित इतिहासकार और ‘रेडियो 
प्लेबैक इण्डिया’ के स्तम्भकार सुजॉय चटर्जी का सहयोग लिया है। हमारी यह 
श्रृंखला फिल्म जगत के चर्चित संगीतकार मदन मोहन के राग आधारित गीतों पर 
केन्द्रित है। श्रृंखला के प्रत्येक अंक में हम मदन मोहन के स्वरबद्ध किसी 
राग आधारित गीत की चर्चा और फिर उस राग की उदाहरण सहित जानकारी दे रहे हैं।
 गत 25 जून को हमने मदन मोहन का 93वाँ जन्मदिन मनाया। श्रृंखला की नौवीं 
कड़ी में आज हम आपको राग चारुकेशी के स्वरों में पिरोये गए 1970 में 
प्रदर्शित फिल्म ‘दस्तक’ से एक सुमधुर गीत का रसास्वादन कराएँगे। इस राग 
आधारित गीत को स्वर दिया है, लता मंगेशकर ने। संगीतकार मदन मोहन द्वारा राग
 चारुकेशी के स्वर में निबद्ध फिल्म ‘दस्तक’ के इस गीत के साथ ही राग का 
यथार्थ स्वरूप उपस्थित करने के लिए हम सुप्रसिद्ध सारंगी वादक उस्ताद 
सुल्तान खाँ की सारंगी पर राग चारुकेशी का आलाप और एक विलम्बित रचना भी 
प्रस्तुत कर रहे हैं। 
संगीतकार
 मदन मोहन के गीतों की बात चल रही हो और 1970 की फ़िल्म ’दस्तक’ के 
गीत-संगीत की चर्चा ना हो, तो शायद चर्चा अधूरी रह जाए। 70 का दशक मदन मोहन
 के संगीत सफ़र का अन्तिम अध्याय था। पिछले दो दशकों से उत्कृष्ट संगीत देने
 के बावजूद जब उन्हें कोई भी विशिष्ट पुरस्कार कहीं से नहीं मिला तो इस बात
 का अफ़सोस उन्हें ज़रूर था, ऐसा उनके परिवार वालों ने उनके वेबसाइट पर लिखा 
है। मदन जी को पुरस्कारों पर से ना केवल भरोसा उठ गया था बल्कि उनमें 
पुरस्कार प्राप्त करने में कोई इच्छा ही नहीं बची थी। इसलिए जब ’दस्तक’ के 
लिए उनका नाम राष्ट्रीय पुरस्कार के लिए चुना गया तो उन्होंने दिल्ली जाकर 
उसे ग्रहण करने से साफ़ इनकार कर दिया। उनकी यह नाराज़गी जायज़ थी, पर 
राष्ट्रपति द्वारा दिए जाने वाले पुरस्कार को ग्रहण करने से इनकार की बात 
सुन कर उनके परिवार वाले और फ़िल्म-जगत के उनके मित्र विक्षुब्ध हो उठे। 
बहुत लोगों ने उन्हें समझाया पर वो मानने के लिए तैयार नहीं। अन्त में 
अभिनेता संजीव कुमार, जिन्हें ’दस्तक’ फ़िल्म के लिए ही सर्वश्रेष्ठ अभिनेता
 का राष्ट्रीय पुरस्कार मिल रहा था, ने उनसे कहा कि मैं भी दिल्ली जा रहा 
हूँ इसी फ़िल्म के लिए पुरस्कार ग्रहण करने, तब जाकर मदन जी राज़ी हुए साथ 
चलने को। 
फ़िल्म
 ’दस्तक’ में कुल चार ही गीत थे - तीन लता की आवाज़ में और एक रफ़ी का गाया 
हुआ। "माई री मैं कासे कहूँ पीर अपने जिया की..." गीत फ़िल्म में लता जी की 
आवाज़ में है, पर मदन मोहन की आवाज़ में इसका एक संस्करण रेकॉर्ड पर उपलब्ध 
है। "हम हैं मताय-ए-कूचा-ओ-बाज़ार की तरह..." गीत के बारे में डॉ. अलका देव 
मारुलकर कहती हैं, "अभिजात संगीत, परिष्कृत संगीत, अमर्त्य संगीत की 
परिभाषा क्या है, यह हम नहीं जानते, लेकिन वैसा ही होगा जैसा मदन मोहन के 
गीत हैं, जिसे हम कहते हैं अभिरुचि सम्पन्न। ऐसा ही एक गीत है फ़िल्म 
’दस्तक’ में। इस गीत में करूण विलाप है, बाज़ार में बिकनेवाली कला का करूण 
विलाप!"।  फ़िल्म ’दस्तक’ का तीसरा लता जी का गाया गीत है "बइयाँ ना धरो ओ 
बलमा..." जिसे हमने आज के इस अंक के लिए चुना है। यह गीत राग चारुकेशी पर 
आधारित है। इस गीत की गायकी का सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह है कि लता जी ने 
इसे अपने सबसे कम स्वरमान (lowest pitch) पर गाया है। लता जी के अधिकतर गीत
 ऊँची पट्टी पर गाये गए हैं, पर यह गीत बिल्कुल विपरीत है। इस गीत के साथ 
एक दिलचस्प घटना भी जुड़ी हुई है। इसे लता जी के अपने शब्दों में ही पढ़िए - "शायरी
 पर वो बहुत ज़ोर देते थे। जब तक शब्दों में गहराई न हो, गीतकार को गीत का 
आलेख वापस लौटा देते थे। फिर कोशिश कीजिए, जब दिल से बात निकलेगी तब असर 
करेगी। एक दिन मजरूह साहब का गीत रेकॉर्ड हुआ। बहुत अच्छा रेकॉर्ड हुआ। 
तर्ज़ तो थी ही अच्छी, कविता बहुत ही सुन्दर थी। रेकॉर्डिंग के बाद मदन 
भइया इतने ज़्यादा ख़ुश थे कि फ़ौरन पहुँचे स्टुडियो में शाबाशी देने शायर 
को। आप जानते हैं किस तरह शाबाशी दी? बेचारे मजरूह साहब के पेट पर हल्के 
हल्के दर्जनों मुक्के बरसा दिए। मजरूह साहब ठहरे शायर, और वो भी 
सुल्तानपुर, उत्तर प्रदेश के, मरहबा का यह तरीक़ा उनके लिए यक़ीनन एक नया 
तजुर्बा था। पता नहीं पुरदर्द था या पुरकैफ़। मदन भइया बोले घर चलिए मैं 
आपको अपने हाथ से पका कर खाना खिलाऊँगा। रस चाहे स्वर का हो या रसोई का, वो
 दोनों में माहिर थे।"  आइए, राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त फिल्म ‘दस्तक’ का यही गीत सुनते हैं। 
राग चारुकेशी : “बइयाँ ना धरो ओ बलमा...” : लता मंगेशकर : फिल्म – दस्तक 
राग
 चारुकेशी मूलतः दक्षिण भारतीय संगीत पद्यति का राग है। उत्तर भारतीय संगीत
 में इस राग का प्रचलन कर्नाटक संगीत से ही हुआ है। यह सम्पूर्ण-सम्पूर्ण 
जाति का राग है। अर्थात आरोह और अवरोह में सात-सात स्वर प्रयोग किए जाते 
हैं। राग चारुकेशी में धैवत और निषाद स्वर कोमल तथा शेष सभी स्वर शुद्ध 
प्रयोग होते हैं। आरोह में – सा, रे, ग, म, प, ध(कोमल), नि(कोमल), सां तथा अवरोह में सां, नि(कोमल), ध(कोमल), प, म, ग, रे, सा स्वर
 होते हैं। राग का वादी स्वर पंचम और संवादी स्वर षडज होता है। राग 
चारुकेशी को दिन के दूसरे प्रहर में गाने-बजाने की परम्परा है। इस राग में 
यदि शुद्ध ऋषभ स्वर को कोमल ऋषभ स्वर में परिवर्तित कर दिया जाए तो यह राग 
बसन्त मुखारी की अनुभूति कराता है। इसी प्रकार यदि कोमल निषाद स्वर को 
शुद्ध निषाद स्वर में परिवर्तित कर दिया जाए तो राग नटभैरव का अनुभव होने 
लगता है। फिल्मों में राग चारुकेशी का सर्वाधिक प्रयोग संगीतकार कल्याणजी 
आनन्दजी ने किया है। राग चारुकेशी के यथार्थ स्वरूप को समझने के लिए अब हम 
इस राग में वाद्य-संगीत की एक रचना प्रस्तुत कर रहे हैं। देश के सुविख्यात 
सारंगी वादक उस्ताद सुल्तान खाँ की सारंगी पर राग चारुकेशी का आलाप और एक 
विलम्बित रचना भी प्रस्तुत कर रहे हैं। आप वाद्य संगीत की इस रचना में 
फिल्म ‘दस्तक’ के गीत के स्वर तलाश करने का प्रयास कीजिए और मुझे आज के इस 
अंक को यहीं विराम देने की अनुमति प्रदान कीजिए। 
राग चारुकेशी : सारंगी पर आलाप और विलम्बित लय की एक रचना : उस्ताद सुल्तान खाँ 
संगीत पहेली 
 
‘स्वरगोष्ठी’
 के 276वें अंक की संगीत पहेली में आज हम आपको एक बार पुनः संगीतकार मदन 
मोहन के संगीत से सजे एक राग आधारित गीत का अंश सुनवा रहे हैं। इसे सुन कर 
आपको निम्नलिखित तीन में से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर देने हैं। 
‘स्वरगोष्ठी’ के 280वें अंक की पहेली के सम्पन्न होने के बाद तक जिस 
प्रतिभागी के सर्वाधिक अंक होंगे, उन्हें इस वर्ष की तीसरी श्रृंखला 
(सेगमेंट) का विजेता घोषित किया जाएगा। 
1 – गीत के इस अंश को सुन का आपको किस राग का अनुभव हो रहा है? 
2 – गीत में प्रयोग किये गए ताल का नाम बताइए। 
3 – क्या आप गीत के गायक को पहचान सकते हैं? हमे गायक का नाम बताइए। 
आप उपरोक्त तीन में से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर केवल swargoshthi@gmail.com  या  radioplaybackindia@live.com पर इस प्रकार भेजें कि हमें शनिवार, 2 जुलाई, 2016 की मध्यरात्रि से पूर्व तक अवश्य प्राप्त हो जाए। COMMENTS
 में दिये गए उत्तर मान्य हो सकते है, किन्तु उसका प्रकाशन पहेली का उत्तर 
भेजने की अन्तिम तिथि के बाद किया जाएगा। इस पहेली के विजेताओं के नाम हम 
‘स्वरगोष्ठी’ के 278वें अंक में प्रकाशित करेंगे। इस अंक में प्रकाशित और 
प्रसारित गीत-संगीत, राग, अथवा कलासाधक के बारे में यदि आप कोई जानकारी या 
अपने किसी अनुभव को हम सबके बीच बाँटना चाहते हैं तो हम आपका इस संगोष्ठी 
में स्वागत करते हैं। आप पृष्ठ के नीचे दिये गए COMMENTS के माध्यम से तथा swargoshthi@gmail.com अथवा radioplaybackindia@live.com पर भी अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं। 
पिछली पहेली के विजेता 
 
‘स्वरगोष्ठी’
 क्रमांक 274 की संगीत पहेली में हमने आपको मदन मोहन के संगीत निर्देशन में
 बनी और 1964 में प्रदर्शित फिल्म ‘जहाँआरा’ से एक राग आधारित गीत का एक 
अंश सुनवा कर आपसे तीन प्रश्न पूछा था। आपको इनमें से किसी दो प्रश्न का 
उत्तर देना था। इस पहेली के पहले प्रश्न का सही उत्तर है- राग – छायानट, दूसरे प्रश्न का सही उत्तर है – ताल – कहरवा तथा तीसरे प्रश्न का उत्तर है- गायक और गायिका – मोहम्मद रफी और सुमन कल्याणपुर। 
इस
 बार की पहेली में चार प्रतिभागियों ने सही उत्तर देकर विजेता बनने का गौरव
 प्राप्त किया है। सही उत्तर देने वाले प्रतिभागी हैं - वोरहीज, न्यूजर्सी 
से डॉ. किरीट छाया, जबलपुर, मध्यप्रदेश से क्षिति तिवारी, पेंसिलवेनिया, अमेरिका से विजया राजकोटिया             और हैदराबाद से डी. हरिणा माधवी। इन सभी विजेताओं ने दो-दो अंक अर्जित किये है। सभी विजेता प्रतिभागियों को ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ की ओर से हार्दिक बधाई। 
अपनी बात 
 
मित्रो,
 ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ में जारी 
हमारी श्रृंखला ‘मदन मोहन के गीतों में राग-दर्शन’ की आज की कड़ी में आपने 
राग चारुकेशी का परिचय प्राप्त किया। इस श्रृंखला में हम फिल्म संगीतकार 
मदन मोहन के कुछ राग आधारित गीतों को चुन कर आपके लिए प्रस्तुत कर रहे हैं।
 ‘स्वरगोष्ठी’ साप्ताहिक स्तम्भ के बारे में हमारे पाठक और श्रोता नियमित 
रूप से हमें पत्र लिखते है। हम उनके सुझाव के अनुसार ही आगामी विषय 
निर्धारित करते है। हमारी अगली श्रृंखला “वर्षा ऋतु के राग” विषय पर आधारित
 होगी। इस श्रृंखला के लिए आप अपने सुझाव या फरमाइश ऊपर दिये गए ई-मेल पते 
पर शीघ्र भेजिए। हम आपकी फरमाइश पूर्ण करने का हर सम्भव प्रयास करेंगे। 
आपको हमारी यह श्रृंखला कैसी लगी? हमें ई-मेल अवश्य कीजिए। अगले रविवार को 
एक नए अंक के साथ प्रातः 8 बजे ‘स्वरगोष्ठी’ के इसी मंच पर आप सभी 
संगीतानुरागियों का हम स्वागत करेंगे। 
शोध व आलेख : सुजॉय चटर्जी
प्रस्तुति : कृष्णमोहन मिश्र 
रेडियो प्लेबैक इण्डिया
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