स्वरगोष्ठी – 275 में आज 
मदन मोहन के गीतों में राग-दर्शन – 8 : जन्मदिन पर विशेष प्रस्तुति   
‘बाद मुद्दत के ये घड़ी आई, आप आए तो ज़िन्दगी आई...’ 
‘रेडियो
 प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर इन दिनों 
हमारी श्रृंखला – ‘मदन मोहन के गीतों में राग-दर्शन’ जारी है। श्रृंखला की 
आठवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र अपने साथी सुजॉय चटर्जी के साथ आप सभी 
संगीत-प्रेमियों का एक बार फिर हार्दिक स्वागत करता हूँ। यह श्रृंखला आप तक
 पहुँचाने के लिए हमने फिल्म संगीत के सुपरिचित इतिहासकार और ‘रेडियो 
प्लेबैक इण्डिया’ के स्तम्भकार सुजॉय चटर्जी का सहयोग लिया है। हमारी यह 
श्रृंखला फिल्म जगत के चर्चित संगीतकार मदन मोहन के राग आधारित गीतों पर 
केन्द्रित है। श्रृंखला के प्रत्येक अंक में हम मदन मोहन के स्वरबद्ध किसी 
राग आधारित गीत की चर्चा और फिर उस राग की उदाहरण सहित जानकारी दे रहे हैं।
 इस सप्ताह 25 जून को मदन मोहन का 93वाँ जन्मदिन है। इस उपलक्ष्य में हम 
श्रृंखला की आठवीं कड़ी में आज हम आपको राग छायानट के स्वरों में पिरोये गए 
1964 में प्रदर्शित फिल्म ‘जहाँआरा’ से एक गीत का रसास्वादन कराएँगे। इस 
राग आधारित युगलगीत को स्वर दिया है, मोहम्मद रफी और सुमन कल्याणपुर ने। 
संगीतकार मदन मोहन द्वारा राग छायानट के स्वर में निबद्ध फिल्म ‘जहाँआरा’ 
के इस गीत के साथ ही राग का यथार्थ स्वरूप उपस्थित करने के लिए हम 
सुप्रसिद्ध गायिका विदुषी वीणा सहस्त्रबुद्धे के स्वरों में राग छायानट की 
मध्यलय का एक खयाल भी प्रस्तुत कर रहे हैं। 
संगीतकार
 मदन मोहन का जन्म 25 जून, 1924 को हुआ था। इस तिथि के अनुसार आगामी 25 जून
 को उनका 93वाँ जन्मदिन है। इस अवसर के लिए आज हम मदन मोहन का राग छायानट 
में पिरोया एक गीत प्रस्तुत कर रहे हैं। मदन मोहन द्वारा शास्त्रीय-संगीत 
पर आधारित फ़िल्मी गीतों की इस शृंखला की आठवीं कड़ी में आज बारी मोहम्मद रफ़ी
 और सुमन कल्याणपुर के गाए हुए एक युगल गीत की। फ़िल्म है ’जहाँआरा’। मदन 
मोहन को ’जहाँआरा’ के गीत-संगीत पर बहुत गर्व था। इस फ़िल्म को लेकर वो बहुत
 ज़्यादा उत्साहित थे। इस उत्साह का कारण यह था कि इस फ़िल्म में हर तरह के 
गीत रचने का उनके पास सुयोग था। ग़ज़ल, नज़्म, मुजरा, शास्त्रीय-संगीत आधारित 
गीत, प्यार भरा युगल गीत, ये सब फ़िल्म की कहानी के अनुरूप इस फ़िल्म में 
डाले जा सकते थे। इसलिए बड़े उत्साह के साथ मदन मोहन ने गीतकार राजेन्द्र 
कृष्ण के साथ इस फ़िल्म के गीत-संगीत पर काम करना शुरु किया। कुल नौ गीत 
बने, एक से बढ़ कर एक, एक से एक लाजवाब। इनमें से तीन गीत तलत महमूद की एकल 
आवाज़ में, दो गीत लता की एकल आवाज़ में, एक रफ़ी की एकल आवाज़ में, एक लता-तलत
 युगल, एक लता-आशा युगल और एक रफ़ी-सुमन युगल गीत थे। "वो चुप रहें तो 
मेरे दिल के दाग़ जलते हैं...", "फिर वही शाम वही ग़म वही तनहाई है...", "मैं
 तेरी नज़र का सुरूर हूँ...", "ऐ सनम आज यह क़सम खायें..." और "जब जब तुम्हे भुलाया तुम और याद आए..."
 जैसे गीतों ने धूम मचा दिये चारों तरफ़। इसी फ़िल्म के लिए मदन मोहन ने एक 
ऐसी क़व्वाली भी सोची थी जिसे वो चार मंगेशकर बहनों (लता, आशा, उषा, मीना) 
से गवा कर एक इतिहास रचना चाहते थे। मदन मोहन की पुत्री संगीता के अनुसार 
इस क़व्वाली की रेकॉर्डिंग् भी हुई थी, पर आश्चर्य की बात यह है कि ना तो इस
 अनोखी क़व्वाली को फ़िल्म में शामिल किया गया और ना ही इसे ग्रामोफ़ोन 
रेकॉर्ड पर उतारा गया, और आज कहीं भी इसकी कोई प्रति उपलब्ध नहीं है। रसिक 
श्रोताओं के लिए चार मंगेशकर बहनों की गाई एकमात्र फ़िल्मी क़व्वाली की क्या 
अहमियत है यह बताने की ज़रूरत नहीं। ख़ैर, मदन मोहन को लगा कि नौ गीतों से 
सजा यह अल्बम एक कम्प्लीट अल्बम है, विविधता और स्तर, दोनों क़ायम है एक एक 
गीत में। पर दुर्भाग्यवश इस फ़िल्म का वही हाल हुआ जो मदन मोहन की ज़्यादातर 
फ़िल्मों का हुआ करता था। ’जहाँआरा’ एक ही सप्ताह पूरी कर सिनेमाघरों से उतर
 गई। मदन मोहन को विश्वास था कि कम से कम इन गीतों के ज़रिए इस फ़िल्म को 
सफलता मिलेगी, पर ऐसा नहीं हुआ। वो बहुत निराश हुए थे। 
![]()  | 
| सुमन कल्याणपुर और मुहम्मद रफी | 
राग छायानट : ‘बाद मुद्दत के ये घड़ी आई...’ : मुहम्मद रफी और सुमन कल्याणपुर : फिल्म – जहाँआरा 
![]()  | 
| वीणा सहस्त्रबुद्धे | 
राग छायानट : ‘सन्देशवा पिया से मोरा कहियों जाय...’ : विदुषी वीणा सहस्त्रबुद्धे 
संगीत पहेली 
 
‘स्वरगोष्ठी’
 के 275वें अंक की संगीत पहेली में आज हम आपको एक बार पुनः मदन मोहन के राग
 आधारित फिल्मी गीत का एक अंश सुनवा रहे हैं। गीत के इस अंश को सुन कर आपको
 निम्नलिखित तीन में से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर देने हैं। 
‘स्वरगोष्ठी’ के 280वें अंक की पहेली के सम्पन्न होने के बाद जिस प्रतिभागी
 के सर्वाधिक अंक होंगे, उन्हें इस वर्ष के तीसरे सत्र (सेगमेंट) का विजेता
 घोषित किया जाएगा। 
1 – गीत के इस अंश को सुन कर आपको किस राग का अनुभव हो रहा है? 
2 – गीत में प्रयोग किये गए ताल का नाम बताइए। 
3 – क्या आप गीत की गायिका की आवाज़ को पहचान रहे हैं? हमें उनका नाम बताइए। 
आप उपरोक्त तीन में से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर केवल swargoshthi@gmail.com  या  radioplaybackindia@live.com पर इस प्रकार भेजें कि हमें शनिवार, 25 जून, 2016 की मध्यरात्रि से पूर्व तक अवश्य प्राप्त हो जाए। COMMENTS
 में दिये गए उत्तर मान्य हो सकते है, किन्तु उसका प्रकाशन पहेली का उत्तर 
भेजने की अन्तिम तिथि के बाद किया जाएगा। इस पहेली के विजेताओं के नाम हम 
‘स्वरगोष्ठी’ के 277वें अंक में प्रकाशित करेंगे। इस अंक में प्रकाशित और 
प्रसारित गीत-संगीत, राग, अथवा कलासाधक के बारे में यदि आप कोई जानकारी या 
अपने किसी अनुभव को हम सबके बीच बाँटना चाहते हैं तो हम आपका इस संगोष्ठी 
में स्वागत करते हैं। आप पृष्ठ के नीचे दिये गए COMMENTS के माध्यम से तथा swargoshthi@gmail.com अथवा radioplaybackindia@live.com पर भी अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं। 
पिछली पहेली के विजेता  
 
‘स्वरगोष्ठी’
 क्रमांक 273 की संगीत पहेली में हमने आपको वर्ष 1966 में प्रदर्शित फिल्म 
‘दुल्हन एक रात की’ से राग आधारित फिल्मी गीत का एक अंश सुनवा कर आपसे तीन 
प्रश्न पूछा था। आपको इनमें से किसी दो प्रश्न का उत्तर देना था। पहेली के 
पहले प्रश्न का सही उत्तर है- राग – पीलू, दूसरे प्रश्न का सही उत्तर है- ताल – कहरवा और तीसरे प्रश्न का उत्तर है- पार्श्वगायिका – लता मंगेशकर। 
इस
 बार की संगीत पहेली में चार प्रतिभागियों ने तीनों प्रश्नों का सही उत्तर 
देकर विजेता बनने का गौरव प्राप्त किया है। ये विजेता हैं - वोरहीज, 
न्यूजर्सी से डॉ. किरीट छाया,  जबलपुर, मध्यप्रदेश से क्षिति तिवारी, पेंसिलवेनिया, अमेरिका से विजया राजकोटिया और चेरीहिल, न्यूजर्सी से प्रफुल्ल पटेल। सभी चारो विजेताओं को ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ की ओर से हार्दिक बधाई। 
अपनी बात 
मित्रो,
 ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ में आप हमारी 
श्रृंखला ‘मदन मोहन के गीतों में राग-दर्शन’ का रसास्वादन कर रहे हैं। इस 
श्रृंखला में हम फिल्म संगीतकार मदन मोहन के कुछ राग आधारित गीतों को चुन 
कर आपके लिए प्रस्तुत कर रहे हैं। आज की इस कड़ी में हमने आपसे राग छायानट 
के बारे में चर्चा की। ‘स्वरगोष्ठी’ साप्ताहिक स्तम्भ के बारे में आप भी 
अपने सुझाव और फरमाइश हमें भेज सकते है। हम आपकी फरमाइश पूर्ण करने का हर 
सम्भव प्रयास करेंगे। आपको हमारी यह श्रृंखला कैसी लगी? हमें ई-मेल अवश्य 
कीजिए। अगले रविवार को श्रृंखला की एक एक नई कड़ी के साथ प्रातः 8 बजे 
‘स्वरगोष्ठी’ के इसी मंच पर आप सभी संगीतानुरागियों का हम स्वागत करेंगे। 
शोध व आलेख : सुजॉय चटर्जी 
 
प्रस्तुति : कृष्णमोहन मिश्र 
रेडियो प्लेबैक इण्डिया


Comments