स्वरगोष्ठी – 263 में आज 
होली और चैती के रंग – 1 : राग काफी 
राग काफी में रची-बसी फागुनी रचनाएँ 
‘रेडियो
 प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर आज से हमारी
 नई श्रृंखला – ‘होली और चैती के रंग’ आरम्भ हो रही है। श्रृंखला की पहली 
कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत और 
अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला में हम ऋतु के अनुकूल भारतीय संगीत के कुछ 
ऐसे रागों और रचनाओं की चर्चा करेंगे, जिन्हें ग्रीष्मऋतु के शुरुआती 
परिवेश में गाने-बजाने की परम्परा है। भारतीय समाज में अधिकतर उत्सव और 
पर्वों का निर्धारण ऋतु परिवर्तन के साथ होता है। शीत और ग्रीष्म ऋतु की 
सन्धिबेला में मनाया जाने वाला पर्व- होलिकोत्सव, प्रकारान्तर से पूरे देश 
में आयोजित होता है। यह उल्लास और उमंग का, रस और रंगों का, गायन-वादन और 
नर्तन का पर्व है। अबीर-गुलाल के उड़ते बादलों और पिचकारियों से निकलती 
इन्द्रधनुषी फुहारों के बीच आज के अंक में और अगले अंक में भी हम फागुन की 
सतरंगी छटा से सराबोर होंगे। संगीत के सात स्वर, इन्द्रधनुष के सात रंग बन 
कर हमारे तन-मन पर छा जाएँगे। भारतीय संगीत की सभी शैलियों- शास्त्रीय, 
उपशास्त्रीय, सुगम, लोक और फिल्म संगीत में फाल्गुनी रस-रंग में पगी असंख्य
 रचनाएँ हैं, जो हमारा मन मोह लेती हैं। आज हम आपको राग काफी के स्वरों पर 
तैरती कुछ फागुनी रचनाएँ सुनवा रहे हैं। 
हमारे संगीत का एक अत्यन्त मनमोहक राग है-
 काफी। इस राग में होली विषयक रचनाएँ खूब मुखर हो जातीं हैं। आइए, पहले हम 
राग काफी के स्वरों की संरचना पर विचार करते हैं। राग काफी, काफी थाट का 
आश्रय राग है और इसकी जाति है सम्पूर्ण-सम्पूर्ण, अर्थात आरोह-अवरोह में 
सात-सात स्वर प्रयोग किए जाते हैं। आरोह में सा रे ग(कोमल) म प ध नि(कोमल) सां तथा अवरोह में सां नि(कोमल) ध प म ग(कोमल)
 रे सा स्वरों का प्रयोग किया जाता है। इस राग का वादी स्वर पंचम और संवादी
 स्वर षडज होता है। कभी-कभी वादी कोमल गान्धार और संवादी कोमल निषाद का 
प्रयोग भी मिलता है। दक्षिण भारतीय संगीत का राग खरहरप्रिया राग काफी के 
समतुल्य राग है। राग काफी, ध्रुवपद और खयाल की अपेक्षा उपशास्त्रीय संगीत 
में अधिक प्रयोग किया जाता है। ठुमरियों में प्रायः दोनों गान्धार और दोनों
 धैवत का प्रयोग भी मिलता है। टप्पा गायन में शुद्ध गान्धार और शुद्ध निषाद
 का प्रयोग वक्र गति से किया जाता है। इस राग का गायन-वादन रात्रि के दूसरे
 प्रहर में किए जाने की परम्परा है, किन्तु फाल्गुन में इसे किसी भी समय 
गाया-बजाया जा सकता है। 
लोक,
 फिल्म और सुगम संगीत की रचनाओं में शब्दों का महत्त्व अधिक होता है, 
किन्तु जैसे-जैसे हम शास्त्रीयता की ओर बढ़ते है शब्दों की अपेक्षा स्वरों 
का महत्त्व बढ़ता जाता है। हमारे संगीत की एक विधा है, तराना, जिसमें शब्दों
 की अपेक्षा स्वर बेहद महत्त्वपूर्ण हो जाते हैं। सुप्रसिद्ध गायिका मालिनी
 राजुरकर ने राग काफी में एक मोहक तराना गाया है। अब हम आपके लिए द्रुत 
तीनताल में निबद्ध वही काफी का तराना प्रस्तुत कर रहे हैं। लीजिए सुनिए यह 
तराना और शब्दों के स्थान पर काफी के स्वरों में होली के परिवेश का अनुभव 
कीजिए। 
राग काफी : द्रुत तीनताल में निबद्ध तराना : स्वर – विदुषी मालिनी राजुरकर 
होली,
 उल्लास, उत्साह और मस्ती का प्रतीक-पर्व होता है। इस अनूठे परिवेश का 
चित्रण भारतीय संगीत की सभी शैलियों में मिलता है। उपशास्त्रीय संगीत में 
तो होली गीतों का सौन्दर्य खूब निखरता है। ठुमरी-दादरा, विशेष रूप से पूरब 
अंग की ठुमरियों में होली का मोहक चित्रण मिलता है। उपशास्त्रीय संगीत की 
वरिष्ठ गायिका विदुषी गिरिजा देवी की गायी अनेक होरी हैं, जिनमे राग काफी 
के साथ-साथ होली के परिवेश का आनन्द भी प्राप्त होता है। बोल-बनाव से 
गिरिजा देवी जी गीत के शब्दों में अनूठा भाव भर देतीं हैं। आम तौर पर होली 
गीतों में ब्रज की होली का जीवन्त चित्रण होता है। अब हम आपको विदुषी 
गिरिजा देवी के स्वरों में जो काफी होरी सुनवा रहे हैं, उसमें राधा-कृष्ण 
की होली का अत्यन्त भावपूर्ण चित्रण है। लीजिए, आप भी सुनिए, यह मनमोहक 
काफी होरी। 
काफी होरी : ‘तुम तो करत बरजोरी...’ : स्वर – विदुषी गिरिजा देवी 
अब
 हम आपको सुनवाते है, राग काफी पर आधारित एक फिल्मी गीत। 1963 में एक 
फिल्म- ‘गोदान’ प्रदर्शित हुई थी। उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचन्द की 
कालजयी कृति ‘गोदान’ पर आधारित थी यह फिल्म, जिसके संगीतकार थे 
विश्वविख्यात सितार-वादक पण्डित रविशंकर। फिल्म के प्रायः सभी गीत रागों और
 विभिन्न लोक संगीत शैलियों पर आधारित थे। इन्हीं में एक होली गीत भी था, 
जिसे गीतकार अनजान ने लिखा और मोहम्मद रफी और साथियों ने स्वर दिया था। यह 
होली गीत फिल्म में गोबर की भूमिका निभाने वाले अभिनेता महमूद और उनके 
साथियों पर फिल्माया गया था। इस गीत के माध्यम से परदे पर ग्रामीण होली का 
परिवेश साकार हुआ था। लोकगीत के स्वरूप में होते हुए भी राग काफी के 
स्वर-समूह स्पष्ट रूप से परिलक्षित होते हैं। आइए, हम सब आनन्द लेते है, 
फिल्म- ‘गोदान’ के इस होली गीत का। आप यह गीत सुनिए और मुझे आज के इस अंक 
को यहीं विराम देने की अनुमति दीजिए। 
राग काफी : फिल्म – गोदान : ‘होली खेलत नन्दलाल बिरज में...’ : मुहम्मद रफी 
संगीत पहेली 
 
‘स्वरगोष्ठी’
 के 263वें अंक की संगीत पहेली में आज हम आपको राग आधारित फिल्मी गीत का एक
 अंश सुनवा रहे हैं। इसे सुन कर आपको निम्नलिखित तीन में से किन्हीं दो 
प्रश्नों के उत्तर देने हैं। ‘स्वरगोष्ठी’ के 270वें अंक की पहेली के 
सम्पन्न होने के बाद जिस प्रतिभागी के सर्वाधिक अंक होंगे, उन्हें इस वर्ष 
की दूसरी श्रृंखला (सेगमेंट) का विजेता घोषित किया जाएगा। 
1 – गीत का यह अंश सुन कर बताइए कि यह किस राग पर आधारित गीत है? 
2 – गीत में प्रयोग किये गए ताल का नाम बताइए। 
3 – क्या आप गीत की गायिका की आवाज़ को पहचान रहे हैं? हमें उनका नाम बताइए। 
आप उपरोक्त तीन में से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर केवल swargoshthi@gmail.com  या  radioplaybackindia@live.com पर इस प्रकार भेजें कि हमें शनिवार, 2 अप्रैल, 2016 की मध्यरात्रि से पूर्व तक अवश्य प्राप्त हो जाए। COMMENTS
 में दिये गए उत्तर मान्य हो सकते है, किन्तु उसका प्रकाशन पहेली का उत्तर 
भेजने की अन्तिम तिथि के बाद किया जाएगा। इस पहेली के विजेताओं के नाम हम 
‘स्वरगोष्ठी’ के 265वें अंक में प्रकाशित करेंगे। इस अंक में प्रकाशित और 
प्रसारित गीत-संगीत, राग, अथवा कलासाधक के बारे में यदि आप कोई जानकारी या 
अपने किसी अनुभव को हम सबके बीच बाँटना चाहते हैं तो हम आपका इस संगोष्ठी 
में स्वागत करते हैं। आप पृष्ठ के नीचे दिये गए COMMENTS के माध्यम से तथा swargoshthi@gmail.com अथवा radioplaybackindia@live.com पर भी अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं। 
पिछली पहेली के विजेता 
‘स्वरगोष्ठी’
 क्रमांक 261 की संगीत पहेली में हमने आपको वर्ष 1979 में प्रदर्शित फिल्म 
‘मीरा’ से एक राग आधारित गीत का एक अंश सुनवा कर आपसे तीन प्रश्न पूछा था। 
आपको इनमें से किसी दो प्रश्न का उत्तर देना था। इस पहेली के पहले प्रश्न 
का सही उत्तर है- राग – पूर्वी, दूसरे प्रश्न का सही उत्तर है- ताल – सितारखानी और तीसरे प्रश्न का उत्तर है- गायिका – वाणी जयराम। 
इस बार की संगीत पहेली में पाँच प्रतिभागी सही उत्तर देकर विजेता बने हैं। ये विजेता हैं - वोरहीज, न्यूजर्सी से डॉ. किरीट छाया, जबलपुर, मध्यप्रदेश से क्षिति तिवारी, पेंसिलवेनिया, अमेरिका से विजया राजकोटिया, हैदराबाद से डी. हरिणा माधवी और चेरीहिल, न्यूजर्सी से प्रफुल्ल पटेल। सभी पाँच प्रतिभागियों को ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ की ओर से हार्दिक बधाई। 
पिछली श्रृंखला के विजेता 
‘स्वरगोष्ठी’
 पहेली की पहली श्रृंखला 251वें अंक से लेकर 260वें अंक के बीच आयोजित की 
गई थी। 251वें अंक में पहेली का प्रश्न नहीं पूछा गया था। इस प्रकार 9 अंको
 में अधिकतम 18 अंक हुए। श्रृंखला के कुल 12 प्रतिभागियों के प्राप्तांकों 
की गणना करने के बाद पहले तीन स्थान पर 6 प्रतिभागियों ने विजेता होने का 
सम्मान प्राप्त किया है। 18 में से 18 अंक अर्जित कर प्रथम स्थान पर चार 
विजेता हैं- वोरहीज, न्यूजर्सी से डॉ. किरीट छाया, जबलपुर, मध्यप्रदेश से क्षिति तिवारी, पेंसिलवेनिया, अमेरिका से विजया राजकोटिया और हैदराबाद से डी. हरिणा माधवी। 16 अंक प्राप्त कर दूसरे स्थान पर चेरीहिल, न्यूजर्सी से प्रफुल्ल पटेल विजेता हुए हैं। इसी क्रम में 4 अंक अर्जित कर मिन्नेसोटा, अमेरिका से दिनेश कृष्णजोइस ने तीसरा स्थान प्राप्त किया है। सभी विजेताओं को ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ की ओर से हार्दिक बधाई।    
अपनी बात 
मित्रो,
 ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ में आप पर्व 
और ऋतु के अनुकूल श्रृंखला ‘होली और चैती के रंग’ की पहली कड़ी का रसास्वादन
 कर रहे हैं। श्रृंखला के पहले अंक में हमने आपसे राग काफी की चर्चा की। 
‘स्वरगोष्ठी’ साप्ताहिक स्तम्भ के बारे में हमारे पास हर सप्ताह आपकी 
फरमाइशे आती हैं। हमारे कई पाठकों ने ‘स्वरगोष्ठी’ में दी जाने वाली रागों 
के विवरण के प्रामाणिकता की जानकारी माँगी है। उन सभी पाठकों की जानकारी के
 लिए बताना चाहूँगा कि रागों का जो परिचय इस स्तम्भ में दिया जाता है, वह 
प्रामाणिक पुस्तकों से पुष्टि करने का बाद ही लिखा जाता है। यह पुस्तकें 
है; संगीत कार्यालय, हाथरस द्वारा प्रकाशित और श्री वसन्त द्वारा संकलित और
 श्री लक्ष्मीनारायण गर्ग द्वारा सम्पादित ‘राग-कोष’, संगीत सदन, इलाहाबाद 
द्वारा प्रकाशित और श्री हरिश्चन्द्र श्रीवास्तव द्वारा लिखित पुस्तक ‘राग 
परिचय’ तथा आवश्यकता पड़ने पर पण्डित विष्णु नारायण भातखण्डे के ग्रन्थ 
‘क्रमिक पुस्तक मालिका’। हम इन ग्रन्थों से साभार पुष्टि करके ही आप तक 
रागों का परिचय पहुँचाते हैं। आप भी अपने विचार, सुझाव और फरमाइश हमें भेज 
सकते हैं। हम आपकी फरमाइश पूर्ण करने का हर सम्भव प्रयास करते हैं। आपको 
हमारी यह श्रृंखला कैसी लगी? हमें ई-मेल अवश्य कीजिए। अगले रविवार को एक नए
 अंक के साथ प्रातः 9 बजे ‘स्वरगोष्ठी’ के इसी मंच पर आप सभी 
संगीतानुरागियों का हम स्वागत करेंगे। 
प्रस्तुति : कृष्णमोहन मिश्र   
 
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