स्वरगोष्ठी – 241 में आज
संगीत के शिखर पर – 2 : बेगम अख्तर की ठुमरी और ग़ज़ल
विदुषी बेगम अख्तर को उनकी जन्मशती वर्ष-पूर्ति पर सुरीला स्मरण 
रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के 
साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी हमारी नई श्रृंखला – ‘संगीत 
के शिखर पर’ की दूसरी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र आप सब संगीतानुरागियों 
का एक बार फिर स्वागत करता हूँ। इस श्रृंखला में हम भारतीय संगीत की 
विभिन्न विधाओं में शिखर पर विराजमान व्यक्तित्व और उनकी प्रस्तुतियों की 
चर्चा करेंगे। संगीत गायन और वादन की विविध लोकप्रिय शैलियों में किसी एक 
शीर्षस्थ कलासाधक का चुनाव कर हम उनके व्यक्तित्व और उनकी कृतियों को 
प्रस्तुत करेंगे। आज श्रृंखला की दूसरी कड़ी में हमारा विषय है, उपशास्त्रीय
 संगीत और इस विधा में अत्यन्त लोकप्रिय गायिका विदुषी बेगम अख्तर के 
व्यक्तित्व तथा कृतित्व की संक्षिप्त चर्चा करेंगे और उनकी गायी राग मिश्र 
खमाज और काफी की ठुमरी तथा एक ग़ज़ल सुनवाएँगे। 
श्रृंगार और भक्तिरस से सराबोर 
ठुमरी और गजल शैली की अप्रतिम गायिका बेगम अख्तर का जन्म 7 अक्तूबर, 1914 
को उत्तर प्रदेश के फ़ैज़ाबाद नामक एक छोटे से नगर (तत्कालीन अवध) में एक 
कट्टर मुस्लिम परिवार में हुआ था। परिवार में किसी भी सदस्य को न तो संगीत 
से अभिरुचि थी और न किसी को संगीत सीखना-सिखाना पसन्द था। परन्तु अख्तरी 
(बचपन में उन्हें इसी नाम से पुकारा जाता था) को तो मधुर कण्ठ और संगीत के 
प्रति अनुराग जन्मजात उपहार के रूप में प्राप्त था। एक बार सुविख्यात 
सरोदवादक उस्ताद सखावत हुसेन खाँ के कानों में अख्तरी के गुनगुनाने की आवाज़
 पड़ी। उन्होने परिवार में ऐलान कर दिया कि आगे चल कर यह नन्ही बच्ची 
असाधारण गायिका बनेगी, और देश-विदेश में अपना व परिवार का नाम रोशन करेगी। 
उस्ताद ने अख्तरी के माता-पिता से संगीत की तालीम दिलाने का आग्रह किया। 
पहले तो परिवार का कोई भी सदस्य इसके लिए राजी नहीं हुआ किन्तु अख्तरी की 
माँ ने सबको समझा-बुझा कर अन्ततः मना लिया। उस्ताद सखावत हुसेन ने अपने 
मित्र, पटियाला के प्रसिद्ध गायक उस्ताद अता मुहम्मद खाँ से अख्तरी को 
तालीम देने का आग्रह किया। वे मान गए और अख्तरी उस्ताद के पास भेज दी गईं। 
मात्र सात वर्ष की आयु में उन्हें उस्ताद के कठोर अनुशासन में रियाज़ करना 
पड़ा। तालीम के दिनों में ही उनका पहला रिकार्ड- ‘वह असीरे दम बला हूँ...’ 
बना और वे अख्तरी बाई फैजाबादी बन गईं। उस्ताद अता मुहम्मद खाँ के बाद 
उन्हें पटना के उस्ताद अहमद खाँ से रागों की विधिवत शिक्षा मिली। इसके 
अलावा बेगम अख्तर को उस्ताद अब्दुल वहीद खाँ और हारमोनियम वादन में सिद्ध 
उस्ताद गुलाम मुहम्मद खाँ का मार्गदर्शन भी प्राप्त हुआ। 1934 में कलकत्ता 
(अब कोलकाता) के अल्फ्रेड थियेटर हॉल में बिहार के भूकम्प-पीड़ितों के 
सहायतार्थ एक संगीत समारोह का आयोजन किया गया था। इस समारोह में कई दिग्गज 
कलाकारों के बीच नवोदित अख्तरी बाई को पहली बार गाने का अवसर मिला। मंचीय 
कार्यक्रमों की भाषा में कहा जाए तो “अख्तरी बाई ने मंच लूट लिया”। बेगम 
अख्तर की गायकी का एक अलग ही अंदाज रहा है। उनकी भावपूर्ण गायकी का सहज 
अनुभव कराने के लिए अब हम प्रस्तुत करते हैं, एक ठुमरी। यह ठुमरी राग मिश्र
 खमाज में निबद्ध है, जिसके बोल हैं –“अँखियन नींद न आए...”। 
ठुमरी मिश्र खमाज : ‘अँखियन नींद न आए...’ : बेगम अख्तर 
![]()  | 
| पण्डित जसराज | 
होरी ठुमरी : ‘कैसी ये धूम मचाई...’ : बेगम अख्तर
 
बेगम
 अख्तर यद्यपि खयाल गायकी में अत्यन्त कुशल थीं किन्तु उन्हें ठुमरी और गज़ल
 गायन में सर्वाधिक ख्याति मिली। स्पष्ट उच्चारण और भावपूर्ण गायकी के कारण
 उन्हे चौथे और पाँचवें दशक की फिल्मों में भी अवसर मिला। उन्होने ईस्टर्न 
इण्डिया कम्पनी की फिल्मों- एक दिन का बादशाह, नल-दमयंती, नसीब का चक्कर 
आदि फिल्मों में काम किया। 1940 में बनी महबूब प्रोडक्शन की फिल्म ‘रोटी’ 
में उनके गाये गीतों ने तो पूरे देश में धूम मचा दिया था। विश्वविख्यात 
फ़िल्मकार सत्यजीत रे ने 1959 में फिल्म ‘जलसाघर’ का निर्माण किया था। यह 
फिल्म उन्नीसवीं शताब्दी की सामन्तवादी परम्परा और भारतीय संगीत की 
दशा-दिशा पर केन्द्रित थी। फिल्म ‘जलसाघर’ में गायन, वादन और नर्तन के 
तत्कालीन उत्कृष्ट कलाकारों को प्रत्यक्ष रूप में प्रस्तुत किया गया था। 
फिल्म में बिस्मिल्लाह खाँ (शहनाई), उस्ताद वहीद खाँ (सुरबहार), रोशन 
कुमारी (कथक), उस्ताद सलामत अली खाँ (खयाल गायन) के साथ बेगम अख्तर का गायन
 भी प्रस्तुत किया गया था। ![]()  | 
| कैफी आज़मी | 
गजल : ‘सुना करो मेरे जाँ इनसे उनसे अफसाने...’ : बेगम अख्तर 
संगीत पहेली  
‘स्वरगोष्ठी’
 के 241वें अंक की संगीत पहेली में आज हम आपको कण्ठ संगीत रचना का एक अंश 
सुनवा रहे हैं। इस संगीतांश को सुन कर आपको निम्नलिखित तीन में से किन्हीं 
दो प्रश्नों के उत्तर देने हैं। पहेली क्रमांक 250 के सम्पन्न होने तक जिस 
प्रतिभागी के सर्वाधिक अंक होंगे, उन्हें इस वर्ष की पाँचवीं श्रृंखला 
(सेगमेंट) के विजेताओं के साथ ही वार्षिक विजेताओं की घोषणा भी की जाएगी। 
1 – संगीत के इस अंश को सुन कर पहचानिए कि रचना के इस अंश में किस राग का स्पर्श है? 
2 – प्रस्तुत रचना किस ताल में निबद्ध है? ताल का नाम बताइए। 
3 – यह किस गायक की आवाज़ है? गायक का नाम बताइए। 
आप
 इन तीन में से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर केवल swargoshthi@gmail.com 
या radioplaybackindia@live.com पर ही शनिवार, 31 अक्टूबर, 2015 की 
मध्यरात्रि से पूर्व तक भेजें। COMMENTS में दिये गए उत्तर मान्य हो सकते 
है, किन्तु उसका प्रकाशन अन्तिम तिथि के बाद किया जाएगा। विजेता का नाम हम 
‘स्वरगोष्ठी’ के 243वें अंक में प्रकाशित करेंगे। इस अंक में प्रस्तुत किये
 गए गीत-संगीत, राग अथवा कलासाधक के बारे में यदि आप कोई जानकारी या अपने 
किसी अनुभव को हम सबके बीच बाँटना चाहते हैं तो हम आपका इस मंच पर स्वागत 
करते हैं। आप पृष्ठ के नीचे दिये गए COMMENTS के माध्यम से तथा 
swargoshthi@gmail.com अथवा radioplaybackindia@live.com पर भी अपनी 
प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं। 
पिछली पहेली के विजेता 
‘स्वरगोष्ठी’ के 239वें अंक की संगीत पहेली में हमने आपको उस्ताद अमजद अली खाँ द्वारा सरोद पर प्रस्तुत एक रचना का अंश सुनवाया था और आपसे तीन में से किसी दो प्रश्न का उत्तर पूछा था। पहले प्रश्न का सही उत्तर है- राग – कामोद, दूसरे प्रश्न का सही उत्तर है- ताल – दीपचंदी या चाँचर और तीसरे प्रश्न का सही उत्तर है- वाद्य – सरोद।
इस
 बार की पहेली के प्रश्नों का सही उत्तर देने वाले प्रतिभागी हैं, वोरहीज़, 
न्यूजर्सी से डॉ. किरीट छाया, पेंसिलवेनिया, अमेरिका से विजया राजकोटिया और
 जबलपुर से क्षिति तिवारी। तीनों प्रतिभागियों को ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’
 की ओर से हार्दिक बधाई। 
अपनी बात 
मित्रो,
 ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर 
जारी हमारी लघु श्रृंखला ‘संगीत के शिखर पर’ के आज के अंक में हमने आपसे 
ठुमरी, दादरा और गजल गायकी के शिखर पर प्रतिष्ठित बेगम अख्तर के व्यक्तित्व
 और कृतित्व पर संक्षिप्त चर्चा की है। अगले अंक में एक अन्य विधा के शिखर 
पर प्रतिष्ठित व्यक्तित्व पर चर्चा करेंगे। इस श्रृंखला को हमारे अनेक 
पाठकों ने पसन्द किया है। हम उन सबके प्रति आभार व्यक्त करते हैं। 
‘स्वरगोष्ठी’ के विभिन्न अंकों के बारे में हमें पाठकों, श्रोताओं और पहेली
 के प्रतिभागियों की अनेक प्रतिक्रियाएँ और सुझाव मिलते हैं। प्राप्त सुझाव
 और फरमार्इशों के अनुसार ही हम अपनी आगामी प्रस्तुतियों का निर्धारण करते 
हैं। आप भी यदि कोई सुझाव देना चाहते हैं तो आपका स्वागत है। अगले रविवार 
को प्रातः 9 बजे ‘स्वरगोष्ठी’ के नये अंक के साथ हम उपस्थित होंगे। हमें 
आपकी प्रतीक्षा रहेगी। 
प्रस्तुति : कृष्णमोहन मिश्र   


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