ए आर रहमान यानी समकालीन बॉलीवुड संगीत का बेताज बादशाह. लंबे समय तक शीर्ष पर राज करने के बाद रहमान इन दिनों सिर्फ चुनिन्दा फ़िल्में ही कर रहे हैं, यही कारण है कि संगीत प्रेमियों को उनकी हर नई एल्बम का बेसब्री से इंतज़ार रहता है. उनसे उम्मीदें इतनी अधिक बढ़ गयी हैं कि संगीत प्रेमियों को कुछ भी कम स्वीकार्य नहीं होता. ऐसे में उनकी नई प्रस्तुति राँझना  संगीत के कद्रदानों और उनके चहेतों की कसौटी पर कितना खरा उतर पायी है, आईये आज ज़रा इसी बात की तफ्तीश करें. राँझना  में गीत लिखे हैं इरशाद कामिल ने, जिनके साथ रहमान रोक स्टार  में जबरदस्त हिट गीतों की बरसात कर चुके हैं. 
इससे पहले कि हम राँझना  के गीतों की बात करें, हम आपको बता दें कि रहमान का संगीत सामान्य से कुछ अलग रहता है तो उस पर राय बनाने से पहले कम से कम ५-६ बार उन गीतों को अवश्य सुनें. नये गायक जसविंदर सिंह और शिराज उप्पल के स्वरों में शीर्षक गीत एक ऊर्जा से भरा गीत है. धुन बेहद 'कैची' है और संयोजन में रहमान से भारतीय वाद्यों को पाश्चात्य वाद्यों से साथ बेहद खूबसूरती से मिलाया है. इरशाद के शब्द अच्छे हैं.
पखावज और बांसुरी के मधुर स्वरों में मिश्री की तरह घुल जाती है श्रेया घोषाल की आवाज़, बनारसिया  फिल्म के एक प्रमुख पात्र के रूप में शहर बनारस को स्थापित करती है. शब्दों का बहतरीन जाल बिछाया है इरशाद ने यहाँ...तबले की थाप से समां और भी सुरीला हो जाता है जब गीत अंतरे तक आता है...अगला गीत पिया मिलेंगें  एक सूफी रोक्क् गीत है, जहाँ सुखविंदर की आवाज़ एक शांत समुन्दर की तरह फैलती है, रहमान संयोजन को बेहद सरल रखते हैं ताकि गीत के पंच तक आते आते कोरस का स्वर मुखरित होकर सामने आये....अकल के परदे पीछे कर दे  तोहे पिया मिलेंगें ....खूबसूरत अलफ़ाज़...
बनारसिया  की ही तरह एक और भारतीय रंग में रंग गीत है ए सखी  जिसमें चिन्मया, मधुश्री और सहेलियों के मिश्रित स्वरों में संवाद रुपी शब्द रचना हैं गीत की. कभी है वादी कभी संवादी ....जैसे फ्रेस से इरशाद एक खूबसूरत समां बांध देते हैं. गायिकाओं की आवाज़ में शहनाई जैसे वाद्यों के स्वर मुहँ से बनाकर निकलना गीत को और भी सुरीला बना देता है.... अगला गीत नज़र लाये न  रशीद अली और नीति मोहन की आवाजों में एक खूबसूरत रोमांटिक गीत है जहाँ समर्पण और अपने प्रेम को अपने तक समेट कर रखने की भावनाएं निखर कर सामने आती है. 
रहमान और रब्बी शेरगिल पहली बार एक साथ आये हैं तू मन शुधि  में, आरंभिक पर्सियन शब्दों के बाद गीत रब्बी के अनूठे उच्चारण वाले पंजाबी शब्दों में आगे बढ़ता है. मेरे ख़याल से ये एल्बम का सबसे शानदार गीत है. जब रब्बी गाते हैं हमसे वफाएं लेना  तो कदम ही नहीं दिल भी थिरक उठते हैं....खुद रहमान माइक के पीछे आते हैं अगले गीत ऐसे न देखो  के लिए, इस गीत की धुन और संयोजन जाने तू या जाने न  के शीर्षक गीत की याद दिला जाता है. धुन में नयेपन की कमी है पर रहमान की गायिकी उच्चतम स्तर की है जो श्रोताओं को स्वाभाविक ही गीत से जोड़ देता है, पर यहाँ बाज़ी मारी है इरशाद ने, शब्द देखिये - मैं उन लोगों का गीत, जो गीत नहीं सुनते, पतझर का पहला पत्ता , रेगिस्तान में खोया आँसू....वाह....
एक बार फिर बनारस का पार्श्व उभरता है इंस्ट्रूमेंटल लैंड ऑफ शिवा  में, मन्त्रों के उच्चारण की पृष्ठभूमि में ये छोटा सा संगीत का टुकड़ा अगर कुछ और लंबा होता तो आनंद आ जाता. अंतिम गीत तुम तक  में प्रमुख आवाज़ है रशीद अली की. ये गीत भी एक प्रेमी के एकतरफा समर्पण की दास्ताँ है मगर ये समर्पण भी एक जश्न है यहाँ...सरल धुन के चलते ये गीत एल्बम के अन्य गीतों से अधिक लोकप्रिय हो सकता है. भाई हमारी राय में रहमान और इरशाद की ये टीम संगीत प्रेमियों की उम्मीदों पर खरा उतरी  हैं. पर जैसा की हमने पहले कहा कि ये गीत आपसे कुछ सब्र चाहते हैं...ये वो गीत हैं जो धीरे धीरे आपके दिल में उतरेंगें और अगर इस मामले ये सफल रहे जो कि फिल्म की सफलता पर भी बहुत अधिक निर्भर करता है, तो फिर यक़ीनन वहाँ से कभी नहीं उतरेगें. 
एल्बम के बहतरीन गीत -
राँझना , बनारसिया, ए सखी, नज़र लाये न , तू मन शुधि, तुम तक   
हमारी रेटिंग  - ४.६ / ५           
संगीत समीक्षा - सजीव सारथी
   
आवाज़ - अमित तिवारी  
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