ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 710/2011/150
वर्षा गीतों पर आधारित श्रृंखला "उमड़ घुमड़ कर आई रे घटा" की समापन कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र आपका हार्दिक स्वागत करता हूँ| इस श्रृंखला का समापन हम राग "जयन्ती मल्हार" और इस राग पर आधारित एक आकर्षक गीत से करेंगे| परन्तु आज के राग और गीत पर चर्चा करने से पहले संगीत के रागों और फिल्म-संगीत के बारे में एक तथ्य की ओर आपका ध्यान आकर्षित करना आवश्यक है| शास्त्रीय संगीत में रागानुकुल स्वरों की शुद्धता आवश्यक होती है| परन्तु सुगम और फिल्म संगीत में रागानुकुल स्वरों की शुद्धता पर कड़े प्रतिबन्ध नहीं होते| फिल्मों के संगीतकार का ज्यादा ध्यान फिल्म के प्रसंग और चरित्र की ओर होता है| इस श्रृंखला में प्रस्तुत किये गए दो गीतों को छोड़ कर शेष गीतों में एकाध स्थान पर राग के निर्धारित स्वरों में आंशिक मिलावट की गई है; इसके बावजूद राग का स्पष्ट स्वरुप इन गीतों में नज़र आता है| गीतों को चुनने में यही सावधानी बरती गई है|
आज हमारी चर्चा में राग "जयन्ती मल्हार" है| वर्षा ऋतु में गाये-बजाये जाने वाले रागों में "जयन्ती मल्हार" भी एक प्रमुख राग है| राग के नाम से ही स्पष्ट हो जाता है कि यह "जयजयवन्ती" और "मल्हार" के मेल से बनता है| वैसे राग "जयजयवन्ती" स्वतंत्र रूप से वर्षा ऋतु के परिवेश को रचने में समर्थ है| राग "जयजयवन्ती" की विलम्बित त्रिताल की एक प्रचलित रचना के शब्दों पर ध्यान दीजिए, इससे आपको राग की क्षमता का अनुमान हो जाएगा|
दामिनि दमके, डर मोहे लागे| उमगे दल-बादल श्याम घटा|
लिख भेजो सखि, उस नंदन को, मेरी खोल किताब देखो बिथा|
"जयजयवन्ती" के साथ जब "मल्हार" का मेल हो जाता है, तब इस राग से अनुभूति और अधिक मुखर हो जाती है| राग "जयन्ती मल्हार" के पूर्वांग में "जयजयवन्ती" और उत्तरांग में "मल्हार" की प्रधानता रहती है| इस राग के आरोह-अवरोह में कोमल और शुद्ध, दोनों निषाद का प्रयोग होता है| अवरोह में कोमल और शुद्ध गान्धार का प्रयोग "मल्हार"का गुण प्रदर्शित करता है| "जयजयवन्ती" की तरह "जयन्ती मल्हार" का वादी स्वर ऋषभ और संवादी स्वर पंचम होता है|
आज हम राग "जयन्ती मल्हार" पर आधारित एक प्यारा सा गीत, जिसे हम आपके लिए लेकर आए हैं वह 1976 में प्रदर्शित फिल्म "शक" से लिया गया है| विकास देसाई और अरुणा राजे द्वारा निर्देशित इस फिल्म के संगीत निर्देशक बसन्त देसाई थे| इस श्रृंखला में बसन्त देसाई द्वारा संगीतबद्ध किया यह तीसरा गीत है| श्रृंखला की सातवीं कड़ी में हम यह चर्चा कर चुके हैं कि वर्षाकालीन रागों पर आधारित सर्वाधिक गीत बसन्त देसाई ने ही संगीतबद्ध किया है| हालाँकि जिस दौर की यह फिल्म है, उस अवधि में बसन्त देसाई का रुझान फिल्म संगीत से हट कर शिक्षण संस्थाओं में संगीत के प्रचार-प्रसार की ओर अधिक हो गया था| फिल्म संगीत का मिजाज़ भी बदल गया था| परन्तु उन्होंने बदले हुए दौर में भी अपने संगीत में रागों का आधार नहीं छोड़ा| फिल्म "शक" बसन्त देसाई की अन्तिम फिल्म साबित हुई| फिल्म के प्रदर्शित होने से पहले एक लिफ्ट दुर्घटना में उनका असामयिक निधन हो गया| फिल्म "शक" का राग "जयन्ती मल्हार" के स्वरों पर आधारित जो गीत हम सुनवाने जा रहे हैं, उसके गीतकार हैं गुलज़ार और इस गीत को स्वर दिया है आशा भोसले ने| आइए सुनते हैं यह रसपूर्ण गीत-
इसी गीत के साथ "ओल्ड इज गोल्ड" की श्रृंखला "उमड़ घुमड़ कर आई रे घटा" को यहीं विराम लेने के लिए कृष्णमोहन मिश्र को अनुमति दीजिए| इस श्रृंखला में जिन वर्षाकालीन रागों को हमने सम्मिलित किया है, उनके परिचय में सहयोग देने के लिए मैं जाने-माने "इसराज" वादक, वैदिककालीन वाद्य "मयूर वीणा" के अन्वेषक-वादक पण्डित श्रीकुमार मिश्र का ह्रदय से आभारी हूँ| आपको यह श्रृंखला कैसी लगी, हमें अवगत अवश्य कराएँ|
क्या आप जानते हैं...
कि संगीतकार बसन्त देसाई ने कई वृत्तचित्रों में भी संगीत दिया था| फारेस्ट जड के चर्चित वृत्तचित्र "मानसून" में मल्हार-प्रेमी बसन्त देसाई ने संगीत देकर अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति प्राप्त की थी|
आज के अंक से पहली लौट रही है अपने सबसे पुराने रूप में, यानी अगले गीत को पहचानने के लिए हम आपको देंगें ३ सूत्र जिनके आधार पर आपको सही जवाब देना है-
सूत्र १ - ये फिल्म एक क्लास्सिक का दर्जा रखती है हिंदी फिल्म इतिहास में.
सूत्र २ - एक मशहूर लेखक की किताब पर आधारित इस फिल्म के इस गीत को स्वर दिया था रफ़ी साहब ने.
सूत्र ३ - इस दर्द भरे गीत का पहला अंतरा शुरू होता है इस शब्द से - "प्यार"
अब बताएं -
गीतकार बताएं - २ अंक
फिल्म के निर्देशक बताएं - ३ अंक
संगीतकार बताएं - २ अंक
सभी जवाब आ जाने की स्तिथि में भी जो श्रोता प्रस्तुत गीत पर अपने इनपुट्स रखेंगें उन्हें १ अंक दिया जायेगा, ताकि आने वाली कड़ियों के लिए उनके पास मौके सुरक्षित रहें. आप चाहें तो प्रस्तुत गीत से जुड़ा अपना कोई संस्मरण भी पेश कर सकते हैं.
पिछली पहेली का परिणाम -
कड़े मुकाबले में एक बार फिर अमित जी विजयी बनकर निकले हैं, बहुत बधाई, साथ में क्षति जी को भी बधाई जिन्होंने जम कर मुकाबला किया, इस बार की पहेली में भाग लेने के लिए सभी श्रोताओं का आभार, ये अब तक का सबसे रोचक मुकाबला रहा.
खोज व आलेख- कृष्ण मोहन मिश्र
वर्षा गीतों पर आधारित श्रृंखला "उमड़ घुमड़ कर आई रे घटा" की समापन कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र आपका हार्दिक स्वागत करता हूँ| इस श्रृंखला का समापन हम राग "जयन्ती मल्हार" और इस राग पर आधारित एक आकर्षक गीत से करेंगे| परन्तु आज के राग और गीत पर चर्चा करने से पहले संगीत के रागों और फिल्म-संगीत के बारे में एक तथ्य की ओर आपका ध्यान आकर्षित करना आवश्यक है| शास्त्रीय संगीत में रागानुकुल स्वरों की शुद्धता आवश्यक होती है| परन्तु सुगम और फिल्म संगीत में रागानुकुल स्वरों की शुद्धता पर कड़े प्रतिबन्ध नहीं होते| फिल्मों के संगीतकार का ज्यादा ध्यान फिल्म के प्रसंग और चरित्र की ओर होता है| इस श्रृंखला में प्रस्तुत किये गए दो गीतों को छोड़ कर शेष गीतों में एकाध स्थान पर राग के निर्धारित स्वरों में आंशिक मिलावट की गई है; इसके बावजूद राग का स्पष्ट स्वरुप इन गीतों में नज़र आता है| गीतों को चुनने में यही सावधानी बरती गई है|
आज हमारी चर्चा में राग "जयन्ती मल्हार" है| वर्षा ऋतु में गाये-बजाये जाने वाले रागों में "जयन्ती मल्हार" भी एक प्रमुख राग है| राग के नाम से ही स्पष्ट हो जाता है कि यह "जयजयवन्ती" और "मल्हार" के मेल से बनता है| वैसे राग "जयजयवन्ती" स्वतंत्र रूप से वर्षा ऋतु के परिवेश को रचने में समर्थ है| राग "जयजयवन्ती" की विलम्बित त्रिताल की एक प्रचलित रचना के शब्दों पर ध्यान दीजिए, इससे आपको राग की क्षमता का अनुमान हो जाएगा|
दामिनि दमके, डर मोहे लागे| उमगे दल-बादल श्याम घटा|
लिख भेजो सखि, उस नंदन को, मेरी खोल किताब देखो बिथा|
"जयजयवन्ती" के साथ जब "मल्हार" का मेल हो जाता है, तब इस राग से अनुभूति और अधिक मुखर हो जाती है| राग "जयन्ती मल्हार" के पूर्वांग में "जयजयवन्ती" और उत्तरांग में "मल्हार" की प्रधानता रहती है| इस राग के आरोह-अवरोह में कोमल और शुद्ध, दोनों निषाद का प्रयोग होता है| अवरोह में कोमल और शुद्ध गान्धार का प्रयोग "मल्हार"का गुण प्रदर्शित करता है| "जयजयवन्ती" की तरह "जयन्ती मल्हार" का वादी स्वर ऋषभ और संवादी स्वर पंचम होता है|
आज हम राग "जयन्ती मल्हार" पर आधारित एक प्यारा सा गीत, जिसे हम आपके लिए लेकर आए हैं वह 1976 में प्रदर्शित फिल्म "शक" से लिया गया है| विकास देसाई और अरुणा राजे द्वारा निर्देशित इस फिल्म के संगीत निर्देशक बसन्त देसाई थे| इस श्रृंखला में बसन्त देसाई द्वारा संगीतबद्ध किया यह तीसरा गीत है| श्रृंखला की सातवीं कड़ी में हम यह चर्चा कर चुके हैं कि वर्षाकालीन रागों पर आधारित सर्वाधिक गीत बसन्त देसाई ने ही संगीतबद्ध किया है| हालाँकि जिस दौर की यह फिल्म है, उस अवधि में बसन्त देसाई का रुझान फिल्म संगीत से हट कर शिक्षण संस्थाओं में संगीत के प्रचार-प्रसार की ओर अधिक हो गया था| फिल्म संगीत का मिजाज़ भी बदल गया था| परन्तु उन्होंने बदले हुए दौर में भी अपने संगीत में रागों का आधार नहीं छोड़ा| फिल्म "शक" बसन्त देसाई की अन्तिम फिल्म साबित हुई| फिल्म के प्रदर्शित होने से पहले एक लिफ्ट दुर्घटना में उनका असामयिक निधन हो गया| फिल्म "शक" का राग "जयन्ती मल्हार" के स्वरों पर आधारित जो गीत हम सुनवाने जा रहे हैं, उसके गीतकार हैं गुलज़ार और इस गीत को स्वर दिया है आशा भोसले ने| आइए सुनते हैं यह रसपूर्ण गीत-
इसी गीत के साथ "ओल्ड इज गोल्ड" की श्रृंखला "उमड़ घुमड़ कर आई रे घटा" को यहीं विराम लेने के लिए कृष्णमोहन मिश्र को अनुमति दीजिए| इस श्रृंखला में जिन वर्षाकालीन रागों को हमने सम्मिलित किया है, उनके परिचय में सहयोग देने के लिए मैं जाने-माने "इसराज" वादक, वैदिककालीन वाद्य "मयूर वीणा" के अन्वेषक-वादक पण्डित श्रीकुमार मिश्र का ह्रदय से आभारी हूँ| आपको यह श्रृंखला कैसी लगी, हमें अवगत अवश्य कराएँ|
क्या आप जानते हैं...
कि संगीतकार बसन्त देसाई ने कई वृत्तचित्रों में भी संगीत दिया था| फारेस्ट जड के चर्चित वृत्तचित्र "मानसून" में मल्हार-प्रेमी बसन्त देसाई ने संगीत देकर अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति प्राप्त की थी|
आज के अंक से पहली लौट रही है अपने सबसे पुराने रूप में, यानी अगले गीत को पहचानने के लिए हम आपको देंगें ३ सूत्र जिनके आधार पर आपको सही जवाब देना है-
सूत्र १ - ये फिल्म एक क्लास्सिक का दर्जा रखती है हिंदी फिल्म इतिहास में.
सूत्र २ - एक मशहूर लेखक की किताब पर आधारित इस फिल्म के इस गीत को स्वर दिया था रफ़ी साहब ने.
सूत्र ३ - इस दर्द भरे गीत का पहला अंतरा शुरू होता है इस शब्द से - "प्यार"
अब बताएं -
गीतकार बताएं - २ अंक
फिल्म के निर्देशक बताएं - ३ अंक
संगीतकार बताएं - २ अंक
सभी जवाब आ जाने की स्तिथि में भी जो श्रोता प्रस्तुत गीत पर अपने इनपुट्स रखेंगें उन्हें १ अंक दिया जायेगा, ताकि आने वाली कड़ियों के लिए उनके पास मौके सुरक्षित रहें. आप चाहें तो प्रस्तुत गीत से जुड़ा अपना कोई संस्मरण भी पेश कर सकते हैं.
पिछली पहेली का परिणाम -
कड़े मुकाबले में एक बार फिर अमित जी विजयी बनकर निकले हैं, बहुत बधाई, साथ में क्षति जी को भी बधाई जिन्होंने जम कर मुकाबला किया, इस बार की पहेली में भाग लेने के लिए सभी श्रोताओं का आभार, ये अब तक का सबसे रोचक मुकाबला रहा.
खोज व आलेख- कृष्ण मोहन मिश्र
इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को
Comments
'Pyar main jinke sab....'
क्योंकि प्रश्न में दिए गए संकेत के अनुसार एक अन्तरा 'प्यार' शब्द से शुरू होता है अतः लगता है कि अविनाश जी का उत्तर ही सही हैं. क्षिति जी ने जिस गीत का हवाला दिया है उसमें तो मुखड़े में 'प्यार' आता है.
एक बार फिर बहुत बहुत आभार सहित,
अवध लाल