Skip to main content

जाओ ना सताओ रसिया...छेड़-छाड़ से परिपूर्ण ठुमरी

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 691/2011/131

'ओल्ड इज गोल्ड' पर जारी 'फिल्मों में ठुमरी' विषयक श्रृंखला "रस के भरे तोरे नैन..." का नया अंक लेकर मैं कृष्णमोहन मिश्र पुनः उपस्थित हूँ| इन दिनों हम ठुमरी की विकास-यात्रा के विविध पड़ाव और ठुमरी के विकास में जिनका महत्वपूर्ण योगदान रहा है, ऐसे संगीतज्ञों और रचनाकारों के कृतित्व पर आपसे चर्चा कर रहे हैं| श्रृंखला की पहली पाँच कड़ियों में हमने 30 और 40 के दशक की फिल्मों तथा छठीं से दसवीं कड़ी तक 50 के दशक की फिल्मों में प्रयुक्त ठुमरियों का रसास्वादन कराया था| श्रृंखला के इस तीसरे सप्ताह में हमने आपको सुनवाने के लिए 60 के दशक की फिल्मों में प्रयोग की गई ठुमरियाँ चुनी हैं|

पिछली कड़ी में हमने आपसे "पछाहीं ठुमरी" शैली और दिल्ली के भक्त गायक-रचनाकार कुँवरश्याम के व्यक्तित्व-कृतित्व पर चर्चा की थी| "पछाहीं ठुमरी" के एक और अप्रतिम वाग्गेयकार (रचनाकार) फर्रुखाबाद के पण्डित ललन सारस्वत "ललनपिया" हुए हैं, जिन्होंने ठुमरी शैली के खजाने को खूब समृद्ध किया| फर्रुखाबाद निवासी "ललनपिया" का जन्म 1856 में हुआ था| वे भारद्वाज गोत्रीय सारस्वत ब्राह्मण थे और व्यवसाय से कथावाचक थे| उन्होंने अपने ताऊ पण्डित नन्हेंमल जी से संगीत-शिक्षा प्राप्त की थी| ललनपिया ने अनेक ध्रुवपद, धमार, सादरा, तराना, टप्पा, ठुमरी, दादरा, भजन, ग़ज़ल आदि विभिन्न प्रकार के गीतों की रचना की थी और वे इन शैलियों के गायन में भी कुशल थे, परन्तु उन्हें विशेष प्रसिद्धि ठुमरी-गायक और ठुमरी-वाग्गेयकार (रचनाकार) के रूप में मिली| ललनपिया की ठुमरियों में साहित्य और संगीत उच्चकोटि का होता था| ताल और लयकारी पर उनका अद्भुत अधिकार था| प्रायः पखावज और तबला-वादक उनके साथ संगति करने में घबराते थे| ललनपिया चूँकि कथावाचक थे अतः संस्कृत, हिन्दी, अवधी और ब्रजभाषा के अच्छे जानकार थे| उनकी ठुमरियों में ब्रजभाषा की मधुरता और रस-अलंकारों का अनूठा मिश्रण पाया जाता है| उनकी अधिकतर ठुमरियों में कृष्ण-भक्ति और श्रृंगार का अनूठा समन्वय मिलता है|

उन्होंने "ललनसागर" नामक एक वृहद् ग्रन्थ की रचना भी की थी, जिसमें उनकी ठुमरियाँ संग्रहीत हैं| इस ग्रन्थ का प्रथम संस्करण 1926 में और दूसरा 1927 में लखनऊ के मुंशी नवलकिशोर प्रेस से प्रकाशित हुआ था| ललनपिया के कृतित्व पर कई संगीतकारों, अध्येताओं और शोधार्थियों ने काफी कार्य किया है| लखनऊ के संगीतज्ञ भारतेन्दु वाजपेई ने ललनपिया की चुनिन्दा ठुमरियों का स्वरलिपि सहित संकलन "ललनपिया की ठुमरियाँ" नामक पुस्तक में किया है| इसी प्रकार फर्रुखाबाद के संगीताचार्य ओमप्रकाश मिश्र ने ललनपिया की अनेक दुर्लभ रचनाओं का संग्रह किया है| भातखंडे संगीत विश्वविद्यालय से कुछ छात्र-छात्राओं ने ललनपिया के कृतित्व पर शोध भी किये हैं|

आइए अब थोड़ी चर्चा आज प्रस्तुत की जाने वाली ठुमरी पर भी कर ली जाए| आज की ठुमरी हमने 1961 की फिल्म "रूप की रानी चोरों का राजा" से ली है| फिल्म में संगीत निर्देशन शंकर-जयकिशन का है| 'राहुल चित्र' के बैनर निर्मित और हरमन सिंह (एच.एस.) रवेल द्वारा निर्देशित इस फिल्म के नायक-नायिका देवानन्द और वहीदा रहमान हैं| ठुमरी -"जाओ ना सताओ रसिया..." नृत्यरत वहीदा रहमान पर फिल्माया गया है| यह ठुमरी राग "बागेश्वरी" और कहरवा ताल में निबद्ध है| राग बागेश्वरी में ठुमरी कम ही मिलती है, लेकिन संगीतकार जोड़ी शंकर-जयकिशन ने भक्ति रस प्रधान राग से श्रृंगार रस की सार्थक अनुभूति कराई है| यहाँ यह उल्लेख करना आवश्यक है कि यह ठुमरी गीतकार शैलेन्द्र ने एक पारम्परिक ठुमरी से प्रेरित होकर लिखा है| आइए श्रृंगार रस से परिपूर्ण यह ठुमरी आशा भोसले के भावपूर्ण स्वर में सुनते हैं-



क्या आप जानते हैं...
कि फिल्म "रूप की रानी चोरों का राजा" के नायक देवानन्द के लिए शंकर-जयकिशन के संगीत निर्देशन में एक गीत में महेंद्र कपूर, एक में सुवीर सेन और शेष गीत में तलत महमूद ने पार्श्वगायन किया था|

दोस्तों अब पहेली है आपके संगीत ज्ञान की कड़ी परीक्षा, आपने करना ये है कि नीचे दी गयी धुन को सुनना है और अंदाज़ा लगाना है उस अगले गीत का. गीत पहचान लेंगें तो आपके लिए नीचे दिए सवाल भी कुछ मुश्किल नहीं रहेंगें. नियम वही हैं कि एक आई डी से आप केवल एक प्रश्न का ही जवाब दे पायेंगें. हर १० अंकों की शृंखला का एक विजेता होगा, और जो १००० वें एपिसोड तक सबसे अधिक श्रृंखलाओं में विजय हासिल करेगा वो ही अंतिम महा विजेता माना जायेगा. और हाँ इस बार इस महाविजेता का पुरस्कार नकद राशि में होगा ....कितने ?....इसे रहस्य रहने दीजिए अभी के लिए :)

पहेली 12/शृंखला 19
गीत का ये हिस्सा सुनें-


अतिरिक्त सूत्र - ये एक युगल ठुमरी है.
सवाल १ - किस राग पर आधारित है रचना - ३ अंक
सवाल २ - संगीतकार कौन हैं - २ अंक
सवाल ३ - किन दो फनकारों की आवाजें हैं - १ अंक

पिछली पहेली का परिणाम -
वैसे तो मुकाबला मुख्यता क्षिति जी और अमित जी में ही है पर प्रतीक जी भी बढ़िया खेल रहे हैं और अविनाश जी भी, बस जरा सी कंसिस्टेंसी चाहिए, क्षिति जी, लगे रहिये बधाई

खोज व आलेख- कृष्ण मोहन मिश्र



इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को

Comments

Kshiti said…
Rag - Desh
AVADH said…
बहुत सुन्दर प्रस्तुति और उत्तम जानकारी.
क्षमा करें टोकने के लिए पर जहाँ तक मुझे याद है गायक सुबीर सेन द्वारा गया हुआ भजन ' आ जा रे आ जा, आ जा नैन दुआरे' पार्श्व-गीत (background)था और नायक देव आनंद पर नहीं फिल्माया गया था.
हाँ, तलत महमूद और महेंद्र कपूर दोनों ही ने अवश्य देव साहेब के लिए आवाज़ दी थी.
अवध लाल
अवध जी,
आपका कथन बिलकुल ठीक ही होगा; मैंने यह फिल्म नहीं देखी है| अपनी इस चूक के लिए मैं क्षमाप्रार्थी हूँ|
संगीतकार: लच्छीराम
आज मैं नियत समय पर घर पर नहीं था और छुट्टियों का मज़ा लेते हुए भ्रमण पर था. अभी अभी पहुंचा हूँ और सबसे पहले पहेली देखी.
क्षिती जी बधाई. पर सबसे अचंभे वाली बात जो देखी वो ये है कि बाकी सारे लोग गायब हैं. अविनाश जी,प्रतीक जी, हिंदुस्तानी जी आप सब कहाँ चले गए. पर मेरे लिए २ अंक जरूर बचा गए.
अवध जी आपने भी सवाल का उत्तर नहीं दिया.

Popular posts from this blog

काफी थाट के राग : SWARGOSHTHI – 220 : KAFI THAAT

स्वरगोष्ठी – 220 में आज दस थाट, दस राग और दस गीत – 7 : काफी थाट राग काफी में ‘बाँवरे गम दे गयो री...’  और  बागेश्री में ‘कैसे कटे रजनी अब सजनी...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ की सातवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। इस लघु श्रृंखला में हम आपसे भारतीय संगीत के रागों का वर्गीकरण करने में समर्थ मेल अथवा थाट व्यवस्था पर चर्चा कर रहे हैं। भारतीय संगीत में सात शुद्ध, चार कोमल और एक तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग किया जाता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 में से कम से कम पाँच स्वरों की उपस्थिति आवश्यक होती है। भारतीय संगीत में ‘थाट’, रागों के वर्गीकरण करने की एक व्यवस्था है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार सात मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते है। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल का प्रचलन है, जबकि उत्तर भारतीय संगीत में दस थाट का प्रयोग किया जाता है। इन...

खमाज थाट के राग : SWARGOSHTHI – 216 : KHAMAJ THAAT

स्वरगोष्ठी – 216 में आज दस थाट, दस राग और दस गीत – 3 : खमाज थाट   ‘कोयलिया कूक सुनावे...’ और ‘तुम्हारे बिन जी ना लगे...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ की तीसरी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। इस लघु श्रृंखला में हम आपसे भारतीय संगीत के रागों का वर्गीकरण करने के लिए मेल अथवा थाट व्यवस्था पर चर्चा कर रहे हैं। भारतीय संगीत में 7 शुद्ध, 4 कोमल और 1 तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग होता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 स्वरों में से कम से कम 5 स्वरों का होना आवश्यक है। संगीत में थाट रागों के वर्गीकरण की पद्धति है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार 7 मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते हैं। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल प्रचलित हैं, जबकि उत्तर भारतीय संगीत पद्धति में 10 थाट का प्रयोग किया जाता है। इसका प्रचलन पण्डित विष्णु नारायण भातखण्डे जी ने प्रारम्भ किया था। वर्तमान समय मे...

आसावरी थाट के राग : SWARGOSHTHI – 221 : ASAVARI THAAT

स्वरगोष्ठी – 221 में आज दस थाट, दस राग और दस गीत – 8 : आसावरी थाट राग आसावरी में ‘सजन घर लागे...’  और  अड़ाना में ‘झनक झनक पायल बाजे...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ की आठवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। इस लघु श्रृंखला में हम आपसे भारतीय संगीत के रागों का वर्गीकरण करने में समर्थ मेल अथवा थाट व्यवस्था पर चर्चा कर रहे हैं। भारतीय संगीत में सात शुद्ध, चार कोमल और एक तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग किया जाता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 में से कम से कम पाँच स्वरों की उपस्थिति आवश्यक होती है। भारतीय संगीत में ‘थाट’, रागों के वर्गीकरण करने की एक व्यवस्था है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार सात मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते है। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल का प्रचलन है, जबकि उत्तर भारतीय संगीत में दस थाट का प्रयोग किया ...