अंधे जहाँ के अंधे रास्ते, जाए तो जाए कहाँ... शैलेन्द्र ने पेश किया अर्थपूर्ण काव्यात्मक अभिव्यक्ति का उत्कृष्ट उदाहरण
ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 234
कल शंकर साहब के जन्मदिवस के अवसर पर हमने सुना था फ़िल्म 'असली नक़ली' का युगल गीत। शंकर जयकिशन और देव आनंद के कॊम्बिनेशन का वह एक सदाबहार गीत रहा है। आइए आज भी शंकर जयकिशन और देव आनंद का ही एक और गीत सुनें। कल हमने आपको यह भी बताया था कि शुरु शुरु में जब शंकर जयकिशन देव साहब के लिए गानें बना रहे थे तो पार्श्वगायन के लिए तलत महमूद और हेमन्त कुमार की आवाज़ें ले रहे थे, बाद में रफ़ी साहब बने देव आनंद की आवाज़। तो आज ऐसी एक फ़िल्म जिसमें देव साहब का प्लेबैक किया था तलत साहब और हेमन्त दा ने। यह फ़िल्म है 'पतिता'। इस फ़िल्म में कम से कम तीन एकल गीत हैं तलत महमूद की आवाज़ में और शैलेन्द्र के लिखे हुए जिन्हे बेहद शोहरत हासिल हुई, और एक युगल गीत लता जी और हेमन्त दा का गाया हुआ और हसरत जयपुरी का लिखा हुआ ऐसा था जिसका शुमार आज इस जोड़ी के सदाबहार युगल गीतों में होता है। याद है ना वह युगल गीत "याद किया दिल ने कहाँ हो तुम, झूमती बहार है कहाँ हो तुम"! लेकिन आज हम सुनेंगे तलत महमूद का गाया और शैलेन्द्र का लिखा "अंधे जहाँ के अंधे रास्ते जाऊँ तो जाऊँ कहाँ"। तलत साहब के गाए इस फ़िल्म के दो और गीत हैं "हैं सब से मधुर वो गीत जिन्हे हम दर्द के सुर में गाते हैं" और "तुझे अपने पास बुलाती है तेरी दुनिया, कब से बाहें फैलाती हैं तेरी दुनिया"। 'पतिता' अमीय चक्रबर्ती की फ़िल्म थी। शंकर जयकिशन की ज़बरदस्त कामयाबी के मद्दे नज़र राज कपूर कैम्प के बाहर के फ़िल्मकार भी अपनी फ़िल्मों के लिए इस संगीतकार जोड़ी को साइन करवाना चाहते थे। देवेन्द्र गोयल, डी. डी. कश्यप और रमेश सहगल जैसे नामचीन फ़िल्म निर्माताओं के साथ साथ अमीय चक्रबर्ती ने जब अपने बैनर 'मार्स मूवीज़' की स्थापना की तो अपनी पहली ही फ़िल्म 'दाग़' में शंकर जयकिशन को संगीतकार नियुक्त किया। यह १९५२ की बात थी। इसके अगले ही साल १९५३ में बनी 'पतिता' और एक बार फिर वही सुरीली कामयाबी की दास्तान दोहराई गई।
'पतिता' में देव आनंद की नायिका बनीं उषा किरण। यहाँ यह बताना ज़रूरी है कि अमीय साहब ने अपनी पहली फ़िल्म 'दाग़' में उषा किरण से एक छोटा सा रोल करवाया था, और अगले ही साल 'पतिता' में उन्हे बतौर नायिका कास्ट कर किया। और आइए अब ज़रा सी बातें करें आज के प्रस्तुत गीत के बारे में। भले ही यह गीत समाज में फैली अंधकार की ओर हमारा ध्यान आकर्षित कर रहा है, लेकिन शंकर जयकिशन ने इस गाने का ऐसा ऒर्केस्ट्रेशन किया है कि गीत बड़ा ही शानदार बन पड़ा है। शंकर जयकिशन का भव्य ऒर्केस्ट्रेशन इंडस्ट्री में चर्चा का विषय बन गया था उन दिनों। वो शंकर जयकिशन ही थे जिन्होने फ़िल्मी गीतों में ऐकोर्डियन साज़ का इस्तेमाल लोकप्रिय किया। इस साज़ के इस्तेमाल का एक महत्वपूर्ण उदाहरण है आज का यह गीत। और इस गीत में ख़ुद जयकिशन ने स्वतंत्र रूप से ऐकोर्डियन बजाया था और साहब क्या ख़ूब बजाया था! और संगीत के साथ साथ बोल भी ऐसे कि जो हमारा ध्यान समाज के उस वर्ग की ओर आकृष्ट करती है जो इसी समाज के सताए हुए हैं, जिन्हे अंग्रेज़ी में कहते हैं 'less privileged'| "हमको ना कोई बुलाए, ना कोई पलकें बिछाए, ऐ ग़म के मारों मंज़िल वहीं है दम ये टूटे जहाँ"। इसी उम्मीद के साथ कि समाज के सारे अंधकार दूर होंगे, लोगों की आँखों पर छाए सामाजिक अंधेपन का इलाज होगा, आइए सुनते हैं तलत साहब की मख़मली आवाज़ में आज का यह गीत।
और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाइये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. याद रहे सबसे पहले सही जवाब देने वाले विजेता को मिलेंगें 2 अंक और 25 सही जवाबों के बाद आपको मिलेगा मौका अपनी पसंद के 5 गीतों को पेश करने का ओल्ड इस गोल्ड पर सुजॉय के साथ. देखते हैं कौन बनेगा हमारा तीसरा (पहले दो गेस्ट होस्ट बने हैं शरद तैलंग जी और स्वप्न मंजूषा जी)"गेस्ट होस्ट". अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं-
१. इस युगल गीत में पुरुष स्वर मुकेश का है.
२. यहाँ भी शैलेन्द्र हैं पर एकदम अलग अंदाज़ में.
३. मुखड़े की दूसरी पंक्ति में शब्द है -"ख्वाब".
पिछली पहेली का परिणाम -
शरद जी १६ अंकों पर पहुंचे हैं आप, पूर्वी जी आप मात्र १ मिनट की देरी से चूक गयी, पर जाहिर है हमारी अगली विजेता आप ही होंगी, चूँकि आपका कोई मेल आइडी हमारे पास उपलब्ध नहीं है, इस कारण आपसे इसी माध्यम से ये गुजारिश करते हैं कि आप अपनी पसंद के ५ गीतों की सूची हमें जल्द से जल्द भेज दें hindyugm@gmail.com पर. दीपावली की पूर्व संध्या पर ओल्ड इस गोल्ड के सभी प्यारे प्यारे श्रोताओं को सुजॉय और सजीव दे रहे हैं समस्त हिंद युग्म परिवार की तरफ से ढेरों शुभकामनाएँ.
खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी
कल शंकर साहब के जन्मदिवस के अवसर पर हमने सुना था फ़िल्म 'असली नक़ली' का युगल गीत। शंकर जयकिशन और देव आनंद के कॊम्बिनेशन का वह एक सदाबहार गीत रहा है। आइए आज भी शंकर जयकिशन और देव आनंद का ही एक और गीत सुनें। कल हमने आपको यह भी बताया था कि शुरु शुरु में जब शंकर जयकिशन देव साहब के लिए गानें बना रहे थे तो पार्श्वगायन के लिए तलत महमूद और हेमन्त कुमार की आवाज़ें ले रहे थे, बाद में रफ़ी साहब बने देव आनंद की आवाज़। तो आज ऐसी एक फ़िल्म जिसमें देव साहब का प्लेबैक किया था तलत साहब और हेमन्त दा ने। यह फ़िल्म है 'पतिता'। इस फ़िल्म में कम से कम तीन एकल गीत हैं तलत महमूद की आवाज़ में और शैलेन्द्र के लिखे हुए जिन्हे बेहद शोहरत हासिल हुई, और एक युगल गीत लता जी और हेमन्त दा का गाया हुआ और हसरत जयपुरी का लिखा हुआ ऐसा था जिसका शुमार आज इस जोड़ी के सदाबहार युगल गीतों में होता है। याद है ना वह युगल गीत "याद किया दिल ने कहाँ हो तुम, झूमती बहार है कहाँ हो तुम"! लेकिन आज हम सुनेंगे तलत महमूद का गाया और शैलेन्द्र का लिखा "अंधे जहाँ के अंधे रास्ते जाऊँ तो जाऊँ कहाँ"। तलत साहब के गाए इस फ़िल्म के दो और गीत हैं "हैं सब से मधुर वो गीत जिन्हे हम दर्द के सुर में गाते हैं" और "तुझे अपने पास बुलाती है तेरी दुनिया, कब से बाहें फैलाती हैं तेरी दुनिया"। 'पतिता' अमीय चक्रबर्ती की फ़िल्म थी। शंकर जयकिशन की ज़बरदस्त कामयाबी के मद्दे नज़र राज कपूर कैम्प के बाहर के फ़िल्मकार भी अपनी फ़िल्मों के लिए इस संगीतकार जोड़ी को साइन करवाना चाहते थे। देवेन्द्र गोयल, डी. डी. कश्यप और रमेश सहगल जैसे नामचीन फ़िल्म निर्माताओं के साथ साथ अमीय चक्रबर्ती ने जब अपने बैनर 'मार्स मूवीज़' की स्थापना की तो अपनी पहली ही फ़िल्म 'दाग़' में शंकर जयकिशन को संगीतकार नियुक्त किया। यह १९५२ की बात थी। इसके अगले ही साल १९५३ में बनी 'पतिता' और एक बार फिर वही सुरीली कामयाबी की दास्तान दोहराई गई।
'पतिता' में देव आनंद की नायिका बनीं उषा किरण। यहाँ यह बताना ज़रूरी है कि अमीय साहब ने अपनी पहली फ़िल्म 'दाग़' में उषा किरण से एक छोटा सा रोल करवाया था, और अगले ही साल 'पतिता' में उन्हे बतौर नायिका कास्ट कर किया। और आइए अब ज़रा सी बातें करें आज के प्रस्तुत गीत के बारे में। भले ही यह गीत समाज में फैली अंधकार की ओर हमारा ध्यान आकर्षित कर रहा है, लेकिन शंकर जयकिशन ने इस गाने का ऐसा ऒर्केस्ट्रेशन किया है कि गीत बड़ा ही शानदार बन पड़ा है। शंकर जयकिशन का भव्य ऒर्केस्ट्रेशन इंडस्ट्री में चर्चा का विषय बन गया था उन दिनों। वो शंकर जयकिशन ही थे जिन्होने फ़िल्मी गीतों में ऐकोर्डियन साज़ का इस्तेमाल लोकप्रिय किया। इस साज़ के इस्तेमाल का एक महत्वपूर्ण उदाहरण है आज का यह गीत। और इस गीत में ख़ुद जयकिशन ने स्वतंत्र रूप से ऐकोर्डियन बजाया था और साहब क्या ख़ूब बजाया था! और संगीत के साथ साथ बोल भी ऐसे कि जो हमारा ध्यान समाज के उस वर्ग की ओर आकृष्ट करती है जो इसी समाज के सताए हुए हैं, जिन्हे अंग्रेज़ी में कहते हैं 'less privileged'| "हमको ना कोई बुलाए, ना कोई पलकें बिछाए, ऐ ग़म के मारों मंज़िल वहीं है दम ये टूटे जहाँ"। इसी उम्मीद के साथ कि समाज के सारे अंधकार दूर होंगे, लोगों की आँखों पर छाए सामाजिक अंधेपन का इलाज होगा, आइए सुनते हैं तलत साहब की मख़मली आवाज़ में आज का यह गीत।
और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाइये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. याद रहे सबसे पहले सही जवाब देने वाले विजेता को मिलेंगें 2 अंक और 25 सही जवाबों के बाद आपको मिलेगा मौका अपनी पसंद के 5 गीतों को पेश करने का ओल्ड इस गोल्ड पर सुजॉय के साथ. देखते हैं कौन बनेगा हमारा तीसरा (पहले दो गेस्ट होस्ट बने हैं शरद तैलंग जी और स्वप्न मंजूषा जी)"गेस्ट होस्ट". अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं-
१. इस युगल गीत में पुरुष स्वर मुकेश का है.
२. यहाँ भी शैलेन्द्र हैं पर एकदम अलग अंदाज़ में.
३. मुखड़े की दूसरी पंक्ति में शब्द है -"ख्वाब".
पिछली पहेली का परिणाम -
शरद जी १६ अंकों पर पहुंचे हैं आप, पूर्वी जी आप मात्र १ मिनट की देरी से चूक गयी, पर जाहिर है हमारी अगली विजेता आप ही होंगी, चूँकि आपका कोई मेल आइडी हमारे पास उपलब्ध नहीं है, इस कारण आपसे इसी माध्यम से ये गुजारिश करते हैं कि आप अपनी पसंद के ५ गीतों की सूची हमें जल्द से जल्द भेज दें hindyugm@gmail.com पर. दीपावली की पूर्व संध्या पर ओल्ड इस गोल्ड के सभी प्यारे प्यारे श्रोताओं को सुजॉय और सजीव दे रहे हैं समस्त हिंद युग्म परिवार की तरफ से ढेरों शुभकामनाएँ.
खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी
ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.
Comments
hamen bhi yahi geet theek laga, par iskee pahli pankti men hi "khwaab" shad hai....
kya yahi sahi hai?
agar haan to aapko bahut bahut badhai
hamaare sabhi saathiyon ke liye diwali kee shubhkaamnaaen
मेहताब तेरा चेहरा,
किस ख्वाब में देखा था
ए हुस्ने जहाँ बतला ,
तू कौन मैं कौन हूँ ।
लता :
ख्वाबों में मिले अक्सर
इक राह चले मिल कर
फिर भी है यही बेहतर
मत पूछ मैं कौन हूँ ।
मुकेश :
मेह्ताब तेरा चेहरा
लता :
हुस्नो इश्क है तेरे जहाँ
दिल की धड़कनें तेरी जु़बां
आज ज़िन्दगी तुझसे जवां
मुकेश :
आगाज़ है क्या मेरा
अंजाम है क्या मेरा
है मेरा मुकद्दर क्या
बतला के मैं कौन हूँ । मेहताब ..
लता :
क्यूं घिरी घटा तू ही बता
क्यूं हंसी फ़िजा तू ही बता
फ़ूल क्यूं खिला तू ही बता
मुकेश :
किस राह पे चलना है
किस गाम पे रुकना है
किस काम को करना है
बतला के मैं कौन हूँ । मेह्ताब तेरा चेहरा
लता :
ज़िन्दगी को तू गीत बना
दिल के साज़ पे झूम के गा
इस जहान को तू प्यार सिखा
मुकेश :
मुकेश :
मेहताब तेरा चेहरा,
किस ख्वाब में देखा था
ए हुस्ने जहाँ बतला ,
तू कौन मैं कौन हूँ ।
लता :
ख्वाबों में मिले अक्सर
इक राह चले मिल कर
फिर भी है यही बेहतर
मत पूछ मैं कौन हूँ ।
मुकेश :
मेह्ताब तेरा चेहरा
जिंदगी आपकी खुशियों से भरी रहे , दीपावली पर हमारी यही शुभकामना !!