ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 223
'दस राग दस रंग' शृंखला के अंतर्गत आज हम ने जिस राग को चुना है वह है शिवरंजनी। बहुत ही सुरीला राग है दोस्तों जिसे संध्या और रात्री के बीच गाया जाता है (लेट ईवनिंग)। जैसा कि नाम से ही प्रतीत होता है यह राग भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए गाया जाता है। जहाँ एक तरफ़ यह राग रुमानीयत की अभिव्यक्ति कर सकता है, वहीं दूसरी तरफ़ दर्द में डूबे हुए किसी दिल की सदा बन कर भी बाहर आ सकती है। मूल रूप से शिवरंजनी का जन्म दक्षिण भारतीय शास्त्रीय संगीत में हुआ था, जो बाद में हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत मे भी घुल मिल गया। दोस्तों, आप मे से कई लोगों को यह सवाल सताता होगा कि जब एक ही राग पर कई गीत बनते हैं तो फिर वो सब गानें अलग अलग क्यों सुनाई देते हैं? वो एक जैसे क्यों नहीं लगते? दोस्तों, इसका कारण यह है कि किसी एक राग पर कोई गीत तीन सप्तक (ऒक्टेव्ज़) के किसी भी एक सप्तक पर कॊम्पोज़ किया जा सकता है। और यही कारण भी है कि जिन्हे संगीत की तकनीक़ी जानकारी नहीं है, वो सिर्फ़ गीत को सुन कर यह नहीं आसानी से बता पाते कि गीत किस राग पर आधारित है। कुछ गीतों में राग को आसानी से पहचाना जा सकता है और कुछ गीतों में रागों को पहचानने के लिए अच्छे अच्छे जानकारों को भी पसीना बहाना पड़ता है। दूसरी तरफ़ कभी कभी दो गानें जो एक ही राग पर आधारित हैं, वे एक जैसे सुनाई देते हैं, इसके पीछे भी कारण है। जब कोई संगीतकार किसी राग पर आधारित गीत बनाता है तो वो उस राग की बंदिश को भी इस्तेमाल करने की कोशिश करता है। बंदिश ही वह 'कॊमॊन फ़ैक्टर' है जो किसी राग के सभी धुनों में एक जैसा रहता है। और इसी वजह से कभी कभी एक राग पर आधारित दो गीत एक जैसे सुनाई दे जाते हैं।
जैसा कि हमने आपको बताया राग शिवरंजनी रोमांस और दर्द, दोनों के लिए प्रयोग में लाए जा सकते हैं। रोमांस की अगर बात करें तो इस राग पर आधारित कुछ हिट गानें हैं "बहारों फूल बरसाओ मेरा महबूब आया है", "ओ मेरे सनम दो जिस्म मगर एक जान हैं हम", "रिमझिम के गीत सावन गाए", "तेरे मेरे बीच में कैसा है ये बंधन अंजाना", "तुम्हे देखती हूँ तो लगता है ऐसे", "तुम से मिल कर ना जाने क्यों और भी कुछ याद आता है", इत्यादि। है ना इन सभी गीतों की धुनों में एक समानता! और अब एक नज़र उन गीतों पर भी जो हैं दर्द में डूबे हुए। "बनाके क्यों बिगाड़ा रे नसीबा", "दिल के झरोखे मे तुझको बिठाकर", "जाने कहाँ गए वो दिन", "कहीं दीप जले कहीं दिल", "कई सदियों से कई जनमों से", "मेरे नैना सावन भादों फिर भी मेरा मन प्यासा", "ना किसी की आँख का नूर हूँ", आदि। संगीतकार शंकर जयकिशन ने राग शिवरंजनी का विस्तृत सदुपयोग किया है। जितना उन्हे यह राग पसंद था, उतना ही राज कपूर को भी। आज हम ने इस राग पर आधारित जिस दर्द भरे गीत को चुना है वह भी शंकर जयकिशन की ही धुन है फ़िल्म 'प्रोफ़ेसर' से। मोहम्मद रफ़ी और लता मंगेशकर के गाए इस सदाबहार युगलगीत को लिखा है हसरत जयपुरी साहब ने। "आवाज़ देके हमें तुम बुलाओ, मोहब्बत में ना हमको इतना सताओ"। शम्मी कपूर और कल्पना अभिनीत यह फ़िल्म आयी थी सन् १९६२ में, जिसका निर्देशन किया था लेख टंडन ने। संगीत संयोजन में तबले का असरदार प्रयोग सुनाई देता है और इंटर्ल्युड संगीत में किस साज़ का इस्तेमाल हुआ है, यह आपको बताना है। सैक्सोफ़ोन या मेटल फ़्ल्युट या फिर कुछ और? हमें आपके जवाब का इंतज़ार रहेगा। तो दोस्तों पहचानिए यह साज़ और नियमीत सुनते रहिए आवाज़!
लता :
आवाज़ दे के हमें तुम बुलाओ
मुहोब्बत में इतना न हमको सताओ
अभी तो मेरी ज़िन्दगी है परेशां
कहीं मर के हो खाक भी न परेशां
दिये की तरह से न हमको जलाओ - मुहोब्ब्त में
रफ़ी :
मैं सांसों के हर तार में छुप रहा हूँ
मैं धडकन के हर राग में बस रहा हूँ
ज़रा दिल की जानिब निगाहे झुकाओ - मुहोब्बत में
लता :
न होंगे अगर हम तो रोते रहोगे
सदा दिल का दामन भिगोते रहोगे
जो तुम पर मिटा हो उसे न मिटाओ - मुहोब्बत में
और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाइये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. याद रहे सबसे पहले सही जवाब देने वाले विजेता को मिलेंगें 2 अंक और 25 सही जवाबों के बाद आपको मिलेगा मौका अपनी पसंद के 5 गीतों को पेश करने का ओल्ड इस गोल्ड पर सुजॉय के साथ. देखते हैं कौन बनेगा हमारा तीसरा (पहले दो गेस्ट होस्ट बने हैं शरद तैलंग जी और स्वप्न मंजूषा जी)"गेस्ट होस्ट". अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं-
१. अगला राग है दरबारी कानडा.
२. इस कालजयी गीत को रफी साहब ने अपनी आवाज़ से अमर कर दिया है.
३. एक अंतरा शुरू होता है इस शब्द से -"आग".
पिछली पहेली का परिणाम -
शरद जी लौट आये हैं, और ये अन्य सभी प्रतिभागियों के खतरे की घंटी है. २ अंकों के साथ शरद जी पहुंचे ८ अंकों पर, दिलीप जी बहुत अच्छा लगा आपका ये इनपुट पाकर. स्वप्न जी कहाँ व्यस्त हैं आजकल...अनिल चड्डा जी नियमित रहिये....आनंद आएगा
खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी
'दस राग दस रंग' शृंखला के अंतर्गत आज हम ने जिस राग को चुना है वह है शिवरंजनी। बहुत ही सुरीला राग है दोस्तों जिसे संध्या और रात्री के बीच गाया जाता है (लेट ईवनिंग)। जैसा कि नाम से ही प्रतीत होता है यह राग भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए गाया जाता है। जहाँ एक तरफ़ यह राग रुमानीयत की अभिव्यक्ति कर सकता है, वहीं दूसरी तरफ़ दर्द में डूबे हुए किसी दिल की सदा बन कर भी बाहर आ सकती है। मूल रूप से शिवरंजनी का जन्म दक्षिण भारतीय शास्त्रीय संगीत में हुआ था, जो बाद में हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत मे भी घुल मिल गया। दोस्तों, आप मे से कई लोगों को यह सवाल सताता होगा कि जब एक ही राग पर कई गीत बनते हैं तो फिर वो सब गानें अलग अलग क्यों सुनाई देते हैं? वो एक जैसे क्यों नहीं लगते? दोस्तों, इसका कारण यह है कि किसी एक राग पर कोई गीत तीन सप्तक (ऒक्टेव्ज़) के किसी भी एक सप्तक पर कॊम्पोज़ किया जा सकता है। और यही कारण भी है कि जिन्हे संगीत की तकनीक़ी जानकारी नहीं है, वो सिर्फ़ गीत को सुन कर यह नहीं आसानी से बता पाते कि गीत किस राग पर आधारित है। कुछ गीतों में राग को आसानी से पहचाना जा सकता है और कुछ गीतों में रागों को पहचानने के लिए अच्छे अच्छे जानकारों को भी पसीना बहाना पड़ता है। दूसरी तरफ़ कभी कभी दो गानें जो एक ही राग पर आधारित हैं, वे एक जैसे सुनाई देते हैं, इसके पीछे भी कारण है। जब कोई संगीतकार किसी राग पर आधारित गीत बनाता है तो वो उस राग की बंदिश को भी इस्तेमाल करने की कोशिश करता है। बंदिश ही वह 'कॊमॊन फ़ैक्टर' है जो किसी राग के सभी धुनों में एक जैसा रहता है। और इसी वजह से कभी कभी एक राग पर आधारित दो गीत एक जैसे सुनाई दे जाते हैं।
जैसा कि हमने आपको बताया राग शिवरंजनी रोमांस और दर्द, दोनों के लिए प्रयोग में लाए जा सकते हैं। रोमांस की अगर बात करें तो इस राग पर आधारित कुछ हिट गानें हैं "बहारों फूल बरसाओ मेरा महबूब आया है", "ओ मेरे सनम दो जिस्म मगर एक जान हैं हम", "रिमझिम के गीत सावन गाए", "तेरे मेरे बीच में कैसा है ये बंधन अंजाना", "तुम्हे देखती हूँ तो लगता है ऐसे", "तुम से मिल कर ना जाने क्यों और भी कुछ याद आता है", इत्यादि। है ना इन सभी गीतों की धुनों में एक समानता! और अब एक नज़र उन गीतों पर भी जो हैं दर्द में डूबे हुए। "बनाके क्यों बिगाड़ा रे नसीबा", "दिल के झरोखे मे तुझको बिठाकर", "जाने कहाँ गए वो दिन", "कहीं दीप जले कहीं दिल", "कई सदियों से कई जनमों से", "मेरे नैना सावन भादों फिर भी मेरा मन प्यासा", "ना किसी की आँख का नूर हूँ", आदि। संगीतकार शंकर जयकिशन ने राग शिवरंजनी का विस्तृत सदुपयोग किया है। जितना उन्हे यह राग पसंद था, उतना ही राज कपूर को भी। आज हम ने इस राग पर आधारित जिस दर्द भरे गीत को चुना है वह भी शंकर जयकिशन की ही धुन है फ़िल्म 'प्रोफ़ेसर' से। मोहम्मद रफ़ी और लता मंगेशकर के गाए इस सदाबहार युगलगीत को लिखा है हसरत जयपुरी साहब ने। "आवाज़ देके हमें तुम बुलाओ, मोहब्बत में ना हमको इतना सताओ"। शम्मी कपूर और कल्पना अभिनीत यह फ़िल्म आयी थी सन् १९६२ में, जिसका निर्देशन किया था लेख टंडन ने। संगीत संयोजन में तबले का असरदार प्रयोग सुनाई देता है और इंटर्ल्युड संगीत में किस साज़ का इस्तेमाल हुआ है, यह आपको बताना है। सैक्सोफ़ोन या मेटल फ़्ल्युट या फिर कुछ और? हमें आपके जवाब का इंतज़ार रहेगा। तो दोस्तों पहचानिए यह साज़ और नियमीत सुनते रहिए आवाज़!
लता :
आवाज़ दे के हमें तुम बुलाओ
मुहोब्बत में इतना न हमको सताओ
अभी तो मेरी ज़िन्दगी है परेशां
कहीं मर के हो खाक भी न परेशां
दिये की तरह से न हमको जलाओ - मुहोब्ब्त में
रफ़ी :
मैं सांसों के हर तार में छुप रहा हूँ
मैं धडकन के हर राग में बस रहा हूँ
ज़रा दिल की जानिब निगाहे झुकाओ - मुहोब्बत में
लता :
न होंगे अगर हम तो रोते रहोगे
सदा दिल का दामन भिगोते रहोगे
जो तुम पर मिटा हो उसे न मिटाओ - मुहोब्बत में
और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाइये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. याद रहे सबसे पहले सही जवाब देने वाले विजेता को मिलेंगें 2 अंक और 25 सही जवाबों के बाद आपको मिलेगा मौका अपनी पसंद के 5 गीतों को पेश करने का ओल्ड इस गोल्ड पर सुजॉय के साथ. देखते हैं कौन बनेगा हमारा तीसरा (पहले दो गेस्ट होस्ट बने हैं शरद तैलंग जी और स्वप्न मंजूषा जी)"गेस्ट होस्ट". अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं-
१. अगला राग है दरबारी कानडा.
२. इस कालजयी गीत को रफी साहब ने अपनी आवाज़ से अमर कर दिया है.
३. एक अंतरा शुरू होता है इस शब्द से -"आग".
पिछली पहेली का परिणाम -
शरद जी लौट आये हैं, और ये अन्य सभी प्रतिभागियों के खतरे की घंटी है. २ अंकों के साथ शरद जी पहुंचे ८ अंकों पर, दिलीप जी बहुत अच्छा लगा आपका ये इनपुट पाकर. स्वप्न जी कहाँ व्यस्त हैं आजकल...अनिल चड्डा जी नियमित रहिये....आनंद आएगा
खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी
ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.
Comments
Bhagvaan... bhagvaan...bhagvaan...bhagvaan..
Oh dhuniyaa ke rakhwale
Sun dhardh bhare mere naale
Sun dhardh bhare mere naale (Oh dhuniyaa)
Aash niraash ke dho rangom se
Dhuniya thu ne sajaayee
Nayya sang thoofaan banaaya
Milan ke saath judhaayi
Ja dhekliyaa har jayee
Oh..lut gayee mere pyaar ki nagri
Ab tho neer bahaale (2)
Oh........ab tho neer bahaale... (oh dhuniya)
Aag bani saavan ki barkha
Phool bane angaare
Naagan ban gayee raath suhaani
Pathar ban gaye thaare
Sub toot chuke he sahaare
Oh...jeevan apnaa vaapas lele
Jeevan dhene vale (oh Dhuniya)
Chaand ko doonde paagal sooraj
Shaam ko doond savera
Mein bhi doondoom us preetham ko
Ho na saka jo mera
Bhagwaan bhala ho thera
Oh..kismath pootti aasna tootti
Paav mein pad gaye chaale
Oh dhuniya ke rakhwale
Ah.....a.....ah.....
Mehal udhaas aur galiyaam sooni
Chup chup he dheewaare
Dhil kyaa ujdaa dhuniyaa ujdee
Root gayee he bahaare
Hum jeeven kaise gusaare
Oh..mandir girthaa phir ban jaathaa....
Dhil ko kaun sambaale
Oh dhuniyaa ke rakhwale
Sun dhardh bhare mere naale
Sun dhardh bhare mere naale
Oh dhuniyaa ke rakhwale
Rakhwale.....
Rakhwale.....
प्रस्तुत गीत में इंटरल्युड में सॆक्सोफोन बजा है, जिसे बजाया है प्रसिद्ध वादक मनोहारी सिंग जो शंकर जयकिशन के सहायक और अरेंजर रहे हैं. इन्होने और भी कई गीतों में इस वाद्य को बजाया है, जिसके बारे में संयोग से मेरी पिछली पोस्ट में वर्णन है(राग-झॆझ स्टाईल)