ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 227
हालाँकि शास्त्रीय राग संख्या में अजस्र हैं, लेकिन फिर भी शास्त्रीय संगीत के दक्ष कलाकार समय समय पर नए नए रागों का इजाद करते रहे हैं। संगीत सम्राट तानसेन ने कई रागों की रचना की है जो उनके नाम से जाने जाते हैं। उदाहरण के तौर पर मिया की सारंग, मिया की तोड़ी और मिया की मल्हार। यानी कि सारंग, तोड़ी और मल्हार रागों में कुछ नई चीज़ें डाल कर उन्होने बनाए ये तीन राग। तानसेन के प्रतिद्वंदी बैजु बावरा ने भी कुछ रागों का विकास किया था, जैसे कि सारंग से उन्होने बनाया गौर सारंग, और इसी तरह से गौर मल्हार। आधुनिक काल में पंडित रविशंकर ने कई रागों का आविश्कार किया है, इसी शृंखला में आगे चलकर उन पर भी चर्चा करेंगे। दोस्तों, आज 'दस राग दस रंग' में बारी है राग मिया की मल्हार की। इस राग पर बने फ़िल्मी गीतों की जहाँ तक बात है, मेरे ज़हन में बस दो ही गीत आ रहे हैं, एक तो १९५६ की फ़िल्म 'बसंत बहार' में शंकर जयकिशन के संगीत में मन्ना डे का गाया हुआ "भय भंजना वंदना सुन हमारी, दरस तेरे माँगे ये तेरा पुजारी", और दूसरा गीत है आज का प्रस्तुत गीत, वाणी जयराम का गाया "बोल रे पपीहरा, नित घन बरसे, नित मन प्यासा, नित मन तरसे"।
वाणी जयराम दक्षिण की एक बेहद प्रतिभाशाली गायिका रहीं हैं। तमिल, तेलुगू, कन्नड़, मलयालम और मराठी में तो उन्होने गाए ही हैं, हिंदी में भी उनके गीत हैं। पार्श्व गायन में उनके योगदान के लिए तीन बार राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार से उन्हे सम्मानित किया गया है। वाणी को कुद्रत की देन थी, उनका कहना है कि जब वो केवल ५ बरस की थीं तभी से वो शास्त्रीय रागों को अलग अलग पहचान लेती थीं। ८ वर्ष की आयु में उन्होने पहली बार रेडियो पर गीत गाया। कर्नाटक और हिंदुस्तानी शैली, दोनों को उन्होने केवल सीखा ही नहीं, बल्कि दोनों में समान रूप से महारथ भी हासिल की। शादी के बाद वे बम्बई आ गईं और सन् १९७१ में किसी हिंदी फ़िल्म में उनके गाने का सपना तब साकार हो गया जब संगीतकार वसंत देसाई ने उन्हे बुलाया फ़िल्म 'गुड्डी' में तीन गानें गाने के लिए। फ़िल्म की कहानी के हिसाब से एक ऐसी गायिका की ज़रूरत थी जिसे लोगों ने पहले फ़िल्म में सुना ना हो, ताकि फ़िल्म में गुड्डी के किरदार को पूरा पूरा न्याय मिल सके। तो साहब, वाणी जयराम का गाया "बोल रे पपीहरा" गीत ने रातों रात उनका नाम देश भर में फैला दिया। इस गीत के लिए उन्हे शास्त्रीय संगीत पर आधारित सर्वश्रेष्ठ फ़िल्मी गीत के तानसेन सम्मान से सम्मानित किया गया था। इस गीत ने उन्हे कई और पुरस्कारो से नवाज़ा, जैसे कि 'The Lions International Best Promising Singer', 'The All India Cine Goers Association', और 'The All-India Film Goers Association awards for Best Playback Singer'. इस गीत ने उन्हे उस साल का फ़िल्म-फ़ेयर पुरस्कार ज़रूर नहीं जितवाया, लेकिन उन्हे यह पुरस्कार मिला सन् १९८० में फ़िल्म 'मीरा' के लिए उनके गाए भजन "मेरे तो गिरिधर गोपाल" के लिए। तो दोस्तो, आइए आज का यह गीत सुनते हैं आपको यह बताते हुए कि 'गुड्डी' फ़िल्म का निर्माण व निर्देशन किया था ऋषिकेश मुखर्जी ने। यह कहानी थी एक स्कूल में पढ़ने वाली लड़की गुड्डी (जया बच्चन) की जिसे फ़िल्मी नायक धर्मेन्द्र से प्यार हो जाता है। गुलज़ार साहब के गीत और वसंत देसाई का संगीत सुनाई दिया था इस फ़िल्म में।
और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाइये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. याद रहे सबसे पहले सही जवाब देने वाले विजेता को मिलेंगें 2 अंक और 25 सही जवाबों के बाद आपको मिलेगा मौका अपनी पसंद के 5 गीतों को पेश करने का ओल्ड इस गोल्ड पर सुजॉय के साथ. देखते हैं कौन बनेगा हमारा तीसरा (पहले दो गेस्ट होस्ट बने हैं शरद तैलंग जी और स्वप्न मंजूषा जी)"गेस्ट होस्ट". अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं-
१. राजस्थान की मिटटी से जुदा एक राग है ये जिस पर आधारित है ये अगला गीत.
२. लता की आवाज़ में है ये अमर गीत.
३. सुंदर कविताई का उत्कृष्ट उदहारण है ये गीत जिसमें एक अंतरे में शब्द है -"मधुमास".
पिछली पहेली का परिणाम -
शरद जी २ और अंक जुड़े आपके खाते में, पूर्वी जी और रोहित जी काफी करीब थे, दिलीप जी लिंक के लिए धन्येवाद.
खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी
हालाँकि शास्त्रीय राग संख्या में अजस्र हैं, लेकिन फिर भी शास्त्रीय संगीत के दक्ष कलाकार समय समय पर नए नए रागों का इजाद करते रहे हैं। संगीत सम्राट तानसेन ने कई रागों की रचना की है जो उनके नाम से जाने जाते हैं। उदाहरण के तौर पर मिया की सारंग, मिया की तोड़ी और मिया की मल्हार। यानी कि सारंग, तोड़ी और मल्हार रागों में कुछ नई चीज़ें डाल कर उन्होने बनाए ये तीन राग। तानसेन के प्रतिद्वंदी बैजु बावरा ने भी कुछ रागों का विकास किया था, जैसे कि सारंग से उन्होने बनाया गौर सारंग, और इसी तरह से गौर मल्हार। आधुनिक काल में पंडित रविशंकर ने कई रागों का आविश्कार किया है, इसी शृंखला में आगे चलकर उन पर भी चर्चा करेंगे। दोस्तों, आज 'दस राग दस रंग' में बारी है राग मिया की मल्हार की। इस राग पर बने फ़िल्मी गीतों की जहाँ तक बात है, मेरे ज़हन में बस दो ही गीत आ रहे हैं, एक तो १९५६ की फ़िल्म 'बसंत बहार' में शंकर जयकिशन के संगीत में मन्ना डे का गाया हुआ "भय भंजना वंदना सुन हमारी, दरस तेरे माँगे ये तेरा पुजारी", और दूसरा गीत है आज का प्रस्तुत गीत, वाणी जयराम का गाया "बोल रे पपीहरा, नित घन बरसे, नित मन प्यासा, नित मन तरसे"।
वाणी जयराम दक्षिण की एक बेहद प्रतिभाशाली गायिका रहीं हैं। तमिल, तेलुगू, कन्नड़, मलयालम और मराठी में तो उन्होने गाए ही हैं, हिंदी में भी उनके गीत हैं। पार्श्व गायन में उनके योगदान के लिए तीन बार राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार से उन्हे सम्मानित किया गया है। वाणी को कुद्रत की देन थी, उनका कहना है कि जब वो केवल ५ बरस की थीं तभी से वो शास्त्रीय रागों को अलग अलग पहचान लेती थीं। ८ वर्ष की आयु में उन्होने पहली बार रेडियो पर गीत गाया। कर्नाटक और हिंदुस्तानी शैली, दोनों को उन्होने केवल सीखा ही नहीं, बल्कि दोनों में समान रूप से महारथ भी हासिल की। शादी के बाद वे बम्बई आ गईं और सन् १९७१ में किसी हिंदी फ़िल्म में उनके गाने का सपना तब साकार हो गया जब संगीतकार वसंत देसाई ने उन्हे बुलाया फ़िल्म 'गुड्डी' में तीन गानें गाने के लिए। फ़िल्म की कहानी के हिसाब से एक ऐसी गायिका की ज़रूरत थी जिसे लोगों ने पहले फ़िल्म में सुना ना हो, ताकि फ़िल्म में गुड्डी के किरदार को पूरा पूरा न्याय मिल सके। तो साहब, वाणी जयराम का गाया "बोल रे पपीहरा" गीत ने रातों रात उनका नाम देश भर में फैला दिया। इस गीत के लिए उन्हे शास्त्रीय संगीत पर आधारित सर्वश्रेष्ठ फ़िल्मी गीत के तानसेन सम्मान से सम्मानित किया गया था। इस गीत ने उन्हे कई और पुरस्कारो से नवाज़ा, जैसे कि 'The Lions International Best Promising Singer', 'The All India Cine Goers Association', और 'The All-India Film Goers Association awards for Best Playback Singer'. इस गीत ने उन्हे उस साल का फ़िल्म-फ़ेयर पुरस्कार ज़रूर नहीं जितवाया, लेकिन उन्हे यह पुरस्कार मिला सन् १९८० में फ़िल्म 'मीरा' के लिए उनके गाए भजन "मेरे तो गिरिधर गोपाल" के लिए। तो दोस्तो, आइए आज का यह गीत सुनते हैं आपको यह बताते हुए कि 'गुड्डी' फ़िल्म का निर्माण व निर्देशन किया था ऋषिकेश मुखर्जी ने। यह कहानी थी एक स्कूल में पढ़ने वाली लड़की गुड्डी (जया बच्चन) की जिसे फ़िल्मी नायक धर्मेन्द्र से प्यार हो जाता है। गुलज़ार साहब के गीत और वसंत देसाई का संगीत सुनाई दिया था इस फ़िल्म में।
और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाइये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. याद रहे सबसे पहले सही जवाब देने वाले विजेता को मिलेंगें 2 अंक और 25 सही जवाबों के बाद आपको मिलेगा मौका अपनी पसंद के 5 गीतों को पेश करने का ओल्ड इस गोल्ड पर सुजॉय के साथ. देखते हैं कौन बनेगा हमारा तीसरा (पहले दो गेस्ट होस्ट बने हैं शरद तैलंग जी और स्वप्न मंजूषा जी)"गेस्ट होस्ट". अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं-
१. राजस्थान की मिटटी से जुदा एक राग है ये जिस पर आधारित है ये अगला गीत.
२. लता की आवाज़ में है ये अमर गीत.
३. सुंदर कविताई का उत्कृष्ट उदहारण है ये गीत जिसमें एक अंतरे में शब्द है -"मधुमास".
पिछली पहेली का परिणाम -
शरद जी २ और अंक जुड़े आपके खाते में, पूर्वी जी और रोहित जी काफी करीब थे, दिलीप जी लिंक के लिए धन्येवाद.
खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी
ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.
Comments
shaayad !!!???
अभी भी शायद ?
संगीत : जय देव
राग : देस
गीत : तू चन्दा मैं चाँदनी
फ़िल्म : रेशमा और शेरा
पूर्वी जी बधाई
फिल्म - रेशमा और शेरा 1971
तू चन्दा मैं चांदनी, तू तरुवर मैं शाख रे,
तू बादल मैं बिजुरी, तू पंछी मैं पात रे......
sharad ji,
agle teen - chaar dinon tak shaayad hi aa paaun, meri taraf se aapke liye maidaan khali hai :)
राजस्थान से जुडी हुई हूँ, इसलिए वहाँ का नाम आते ही एक दो गाने याद आये, जो सबसे पहले ठीक लगा, उसका नाम पोस्ट कर दिया, इसलिए साथ में शायद भी लिख दिया... :) :)
आपने राग - देस लिखा है, जबकि मुझे इसका राग - मांड मिला.....!!!
तू चन्दा मैं चाँदनी, तू तरुवर मैं शाख रे
तू बादल मैं बिजुरी, तू पंछी मैं पाख रे ।
न सरवर ना बावडी़ ना कोई ठ्ण्डी छांव
ना कोयल ना पपीहरा ऐसा मेरा गांव री
कहाँ बुझे तन की तपन
ओ सैयां सिरमोर
चन्द्र किरन को छोड़कर
जाए कहाँ चितचोर
जाग उठी है सावंरे
मेरी कुआंरी प्यास रे
अंगारे भी लगने लगे पिया
आज मुझे मधुमास रे ।
तुझे आँचल में रक्खूंगी ओ सांवरे
काळी अलकों से बाधूंगी ये पांव रे
गलबहियां वो डालूं कि छूटे नहीं
मेरा सपना सजन अब टूटे नहीं
मेंह्दी रची हथेलियां मेरे काजर वारे नैन रे
पल पल तोहे पुकारते पिया
हो हो कर बैचेन रे ।
ओ मेरे सावन सजन, ओ मेरे सिन्दूर
साजन संग सजनी भली मौसम संग मयूर
चार पहर की चाँदनी
मेरे संग बिता
अपने हाथों से पिया मुझे लाल चुनर उढ़ा
केसरिया धरती लगे, अम्बर लालम लाल रे
अंग लगा कर सायबा
कर दे मुझे निहाल रे ।
पूर्वी जी को बधाई, मान गए आप सब उस्तादोंको.
पराग
शायद छोटी मुंह बडी बात, स्वर देवी लता अगर इन गानों को गाती तो इससे शायद बेहतर नहीं हो पाता क्योंकि कहीं ना कहीं लता झांकती इन गीतों में, जबकि वाणी जयराम का व्यक्तित्व और स्वर घुल गया मीरा के आध्यात्मिक चरित्र में और सिर्फ़ मीरा ही बची रह गयी.(जैसे मीरा समा गयी श्री कृष्ण के विराट स्वरूप में)