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खुदाया खैर...एक बार फ़िर शाहरुख़ की आवाज़ बने अभिजीत


"बड़ी मुश्किल है, खोया मेरा दिल है..." शाहरुख़ खान के उपर फिल्माए गए इस गीत में आवाज़ थी अभिजीत भट्टाचार्य की. जब ये गीत आया तो श्रोताओं को लगा कि यही वो आवाज़ है जो शाहरुख़ के ऑन स्क्रीन व्यक्तित्व को सहज रूप से उभरता है. पर शायद वो ज़माने लद चुके थे जब नायक अपनी फिल्मों के लिए किसी ख़ास आवाज़ की फरमाईश करता था. जहाँ शाहरुख़ के शुरूआती दिनों में कुमार सानु ने उनके गीतों को आवाज़ दी (कोई न कोई चाहिए..., और काली काली ऑंखें...), वहीँ बाद में उनकी रोमांटिक हीरो की छवि पर उदित नारायण की आवाज़ कुछ ऐसे जमी की सुनने वाले बस वाह वाह कर उठे, "डर" और "दिलवाले दुल्हनिया ले जायेंगें" के गीत आज तक सुने और याद किए जाते हैं.

फ़िर हीरो की छवि बदली, पहले जिस नायक का लक्ष्य नायिका को पाना मात्र होता था, वह अब अपने कैरिअर के प्रति भी सजग हो चुका था. वो चाँद तारे तोड़ने के ख्वाब सजाने लगा और ऐसे नायक को परदे पर साकार किया शाहरुख़ ने एक बार फ़िर अपनी फ़िल्म "येस् बॉस" में और यहाँ फ़िर से मिला उन्हें अभिजीत की आवाज़ का साथ और इस फ़िल्म के गीतों ने इस नायक-गायक की जोड़ी को एक नई पहचान दी. पर ये वो दौर था जब समय चक्र तेज़ी से बदल रहा था, और शाहरुख़ खान रुपी नायक ने भी बदलते किरदारों को जीते हुए अलग अलग आवाजों में ख़ुद को आजमाना शुरू किया.

"दिल से" में ऐ आर रहमान ने शाहरुख़ पर फिल्माए गए ४ गीतों में चार अलग अलग आवाजों का इस्तेमाल किया, जिसमें सुखविंदर (छैयां छैयां), उदित नारायण (ऐ अजनबी), सोनू निगम (सतरंगी रे) और ख़ुद ऐ आर आर ने आवाज़ दी फ़िल्म के शीर्षक गीत को. दरअसल अब संगीतकार गायक का चुनाव करते समय गीत के मूड को सर्वोपरि रखने लगे थे, बाकि उस आवाज़ को अपनी आवाज़ से मिलाने का काम नायक का होने लगा. उर्जा से भरे शाहरुख़ खान को अब अपने जोशीले गानों के लिए सुखविंदर जैसी दमदार आवाज़ मिल गई थी वहीँ भावनात्मक गीतों के लिए वो कभी सोनू निगम, कभी उदित तो कभी रूप कुमार राठोड की आवाजों में ख़ुद को ढालने लगे, और इन सब के बीच अभिजीत कहीं पीछे छूट गए.

"चलते चलते" में वो फ़िर से शाहरुख़ की आवाज़ बने, फ़िर बहुचर्चित "मैं हूँ न" में उनका सामना सीधे तौर पर सोनू निगम से हुआ, जब फ़िल्म का शीर्षक गीत जो दो संस्करण में था, एक को आवाज़ दी सोनू ने तो इसी गीत का दर्द संस्करण गाया अभिजीत ने. रजत पटल पर शाहरुख़ ने एक लंबा सफर तय किया है और बेशक अभिजीत ने उनके लिए कुछ बेहद यादगार गीतों को गाकर उनके इस सफर में एक अहम् भूमिका अदा की है. "तुम आए तो..." "अयाम दा बेस्ट.." (फ़िर भी दिल है हिन्दुस्तानी), "तौबा तुम्हारे ये इशारे...", "सुनो न..." "चलते चलते..." (चलते चलते), "चाँद तारे...", "मैं कोई ऐसा..." (येस् बॉस), "रोशनी से...", "रात का नशा..." (अशोक), और "धूम ताना...."( ओम् शान्ति ओम्), जैसे गीत शाहरुख़ के लिए गाने के आलावा अभीजीत ने कुछ और भी बेहतरीन गीत गाये जो अन्य नायकों पर फिल्माए गए जैसे, - "तुम दिल की धड़कन में...", "आँखों में बसे हो तुम..."(टक्कर), "एक चंचल शोख हसीना...","चांदनी रात है..."(बागी), "ये तेरी ऑंखें झुकी झुकी..."(फरेब) और "लम्हा लम्हा दूरी..."(गैंगस्टर).

कानपूर में जन्में अभिजीत ने अपने "ख्वाबों" का पीछे करते हुए १९८१ में अपने परिवार की इच्छाओं को ठुकराकर मुंबई को अपना घर बना लिया और चार्टेड एकाउंटेंट की पढ़ाई को छोड़कर, पार्श्वगायन को अपना लक्ष्य. देव आनंद की फ़िल्म 'आनंद और आनंद" से उन्होंने शुरुआत की, इस फ़िल्म में उनका गाया "मैं आवारा ही सही..." सुनकर एक बार किशोर दा उनसे कहा- "तुम बहुत सुर में गाते हो..". अभिजीत आज भी मानते हैं कि किशोर दा की ये टिपण्णी उनके लिए दुनिया का सबसे बड़ा पुरस्कार है. अपनी एल्बम "तेरे बिना" जो कि बहुत मकबूल भी हुई से अभिजीत ने संगीत निर्देशन के क्षेत्र में भी ख़ुद को उतार दिया है. आजकल वो एक टेलेंट शो में बतौर निर्णायक भी खासी चर्चा बटोर रहे हैं.

शाहरुख़ की सबसे ताज़ा फ़िल्म में भी एक नर्मो नाज़ुक अंदाज़ का गीत उनके हिस्से आया है, अभिजीत को गायिकी की एक और सुरीली पारी की शुभकामनायें देते हुए आईये सुनें फ़िल्म "बिल्लू" (जो कि पहले बिल्लू बार्बर थी) का ये गीत जिसे लिखा है गुलज़ार ने और सुरों में पिरोया है प्रीतम ने -





Comments

चलिए अभिजीत से एक अच्छी पारी की उम्मीद है
neelam said…
inka lamha lamha gaana bhi sunvaaiye ,please

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