स्वरगोष्ठी – 431 में आज 
वर्षा ऋतु के राग – 5 : मीरा मल्हार अथवा मीराबाई की मल्हार 
पण्डित अजय चक्रवर्ती से इस राग में बन्दिश और वाणी जयराम से फिल्मी गीत सुनिए 
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| पण्डित रविशंकर | 
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| पण्डित अजय चक्रवर्ती | 
आज की
 कड़ी में हम मल्हार अंग के राग मीरा मल्हार अथवा मीराबाई की मल्हार के 
स्वरों से निबद्ध कुछ संगीत-रचनाएँ प्रस्तुत कर रहे हैं। । राग के नाम से 
ही स्पष्ट हो जाता है कि इनका नामकरण भक्ति संगीत के विदुषी मीराबाई के नाम
 पर हुआ है। राग मीराबाई की मल्हार मल्हार अंग का राग है। यह माना जाता है 
कि इस राग की रचना सुप्रसिद्ध भक्त कवयित्री मीराबाई ने की थी। आमतौर पर 
राग मीरा मल्हार के गायन-वादन का समय मध्यरात्रि माना जाता है, किन्तु 
वर्षा ऋतु में इसे किसी भी समय गाया-बजाया जा सकता है। राग के स्वरूप का 
अनुभव करने के लिए अब हम आपको 1979 में प्रदर्शित गुलज़ार की फिल्म ‘मीरा’ 
से एक गीत सुनवा रहे हैं।  यह गीत ही नहीं, बल्कि इस राग की संरचना भी 
स्वयं भक्त कवयित्री मीराबाई की है। फिल्म ‘मीरा’ के संगीत पर मैं अपने 
प्रिय मित्र और फिल्म संगीत के सुपरिचित इतिहासकार सुजॉय चटर्जी के आलेख का
 एक अंश उद्धृत कर रहा हूँ।    
"जाने-माने
 गीतकार गुलज़ार को मीरा के जीवन पर एक फिल्म बनाने का प्रस्ताव मिला। 
मीराबाई की मुख्य भूमिका में अभिनेत्री हेमामालिनी का और संगीत निर्देशन के
 लिए लक्ष्मीकान्त प्यारेलाल का चुनाव पहले ही हो चुका था। फ़िल्म की 
स्क्रिप्ट तैयार हो जाने के बाद गुलज़ार ने सिटिंग रखी फ़िल्म के संगीतकार 
लक्ष्मी-प्यारे के साथ। मीराबाई द्वारा लिखी बेशुमार भजनों की चर्चा करते 
हुए अन्त में कुल 12 भजन छाँट लिए गये जो फ़िल्म में रखे जाने थे। फ़िल्म के 
निर्माता ने व्यावसायिक पत्रिकाओं में विज्ञापन प्रकाशित कर दिया - 'आज की 
मीरा' (लता मंगेशकर) 'मीरा' की मुहूर्त शॉट में क्लैप करेंगी। गुलज़ार ने 
पहला भजन "मेरे तो गिरिधर गोपाल..." को सबसे पहले फ़िल्माने की तैयारी भी कर
 ली। लक्ष्मीकान्त प्यारेलाल ने भजन कम्पोज़ किया और लता जी से सम्पर्क किया
 रेकॉर्डिंग के लिए। लक्ष्मी-प्यारे जानते थे कि लता जी ना नहीं करेंगी। पर
 उनके सर पे बिजली आ गिरी जब लता जी ने इसे गाने से इन्कार कर दिया। लता जी
 के अनुसार अभी हाल ही में उन्होंने अपने भाई हृदयनाथ मंगेशकर के लिए मीरा 
भजनों का एक ग़ैर फ़िल्मी ऐल्बम रेकॉर्ड किया है, इसलिए दोबारा किसी कमर्शियल
 फ़िल्म के लिए वही भजन नहीं गा सकती। लता जी किसी विवाद में नहीं पड़ना 
चाहती थीं। मसला इतना नाज़ुक था कि ना तो गुलज़ार लता जी से इस पर बहस कर 
सकते थे और एल.पी. का तो सवाल ही नहीं था। हुआ यूँ कि लता जी के ना कहने पर
 एल. पी ने भी फ़िल्म में संगीत देने से मना कर दिया। उन्हे लगा कि कहीं लता
 जी उनसे नाराज़ हो गईं और भविष्य में उनके गीत गाने से मना कर देंगी तो वो 
बरबाद हो जायेंगे। ख़ैर, लता जी के पीछे हट जाने के बाद गुलज़ार ने आशा भोसले
 से अनुरोध किया। पर आशा जी ने भी यह कहते हुए मना कर दिया कि जहाँ देवता 
ने पाँव रखे हों, वहाँ फिर मनुष्य पाँव नहीं रखते। अब 'मीरा' की टीम डर गई।
 न लता है, न आशा, न एल.पी.। गुलज़ार अगर चाहते तो पंचम को संगीतकार बनने के
 लिए अनुरोध कर सकते थे, पर उन्होंने ऐसा नहीं किया। लता और आशा के गुलज़ार 
को मना करने पर पंचम वैसे ही शर्मिन्दा थे, गुलज़ार उन्हें और ज़्यादा 
शर्मिन्दा नहीं करना चाहते थे। और इस तरह से लता, आशा, एल.पी, पंचम - ये 
दिग्गज इस फ़िल्म से बहुत दूर हो गये। 
गुलज़ार
 ने हार नहीं मानी और सोचने लगे कि ऐसा कौन संगीतकार है जो अपने संगीत के 
दम पर लता और आशा के बिना भी फ़िल्म के गीतों को सही न्याय और स्तर दिला 
सकता है! और तभी उन्हें पण्डित रविशंकर का नाम याद आया। पण्डित जी उस समय 
न्यूयॉर्क में थे; उनसे फोन पर सम्पर्क करने पर उन्होंने बताया कि वो 
सितम्बर-अक्तूबर में भारत आएँगे और आने के बाद स्क्रिप्ट पढ़ कर अपना फ़ैसला 
सुनायेंगे। वह जून का महीना था और गुलज़ार इतने दिनों तक इन्तज़ार नहीं कर 
सकते थे। इसलिए उन्होंने अमरीका का टिकट कटवाया और पहुँच गये पण्डित जी के 
पास। यह गुलज़ार साहब की पहली अमरीका यात्रा थी। पण्डित जी को स्क्रिप्ट 
पसन्द आई, पर उस पर काम वो सितम्बर से ही शुरू कर पायेंगे, ऐसा उन्होंने 
कहा। लेकिन गुलज़ार साहब के फिर से अनुरोध करने पर वो अमरीका में रहते हुए 
ही धुनों पर काम करने को तैयार हो गये। अभी भी पण्डित जी को थोड़ी सी 
हिचकिचाहट थी क्योंकि उन्होंने भी लता मंगेशकर वाले विवाद की चर्चा सुनी 
थी। संयोग से जब गुलज़ार पण्डित जी से मिलने अमरीका गये, उन दिनों लता जी भी
 वहीं थीं। गुलज़ार साहब और पण्डित जी ने लता जी को फ़ोन किया और उन्हें सब 
कुछ बताया तो लता जी ने उनसे कहा कि उन्हें फ़िल्म 'मीरा' के बनने से कोई 
परेशानी नहीं है, बस वो ख़ुद इसमें शामिल नहीं होना चाहती। अब इसके बाद 
पण्डित जी के सामने अगला सवाल था कि कौन सी गायिका इन भजनों को गाने वाली 
हैं? गुलज़ार के मन में वाणी जयराम का नाम था, पर वो पण्डित जी से यह कहने 
की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे थे, यह सोच कर कि वो कैसे रिऐक्ट करेंगे वाणी 
जयराम का नाम सुन कर। इसलिए गुलज़ार साहब ने ही पण्डित जी से गायिका चुनने 
को कहा। और पण्डित जी का जवाब था, "वाणी जयराम कैसी रहेगी?" 
पण्डित
 रविशंकर ने "बाला मैं बैरागन होऊँगी..." को सबसे पहले कम्पोज़ किया। 
गुलज़ार साहब के अनुसार यह इस फिल्म का सबसे बेहतरीन भजन है। कहते हैं कि 
"एरी मैं तो प्रेम दीवानी..." कम्पोज़ करते समय पण्डित जी ने कहा था - "जो 
ट्यून रोशन साहब ने बनायी है 'नौबहार' में, वह दिमाग़ से नहीं जाती। लेकिन 
मैं अपनी तरफ़ से पूरी कोशिश करूँगा कि कुछ अलग हट कर बनाऊँ"। पर जिस भजन के
 लिए वाणी जयराम को पुरस्कार मिला, वह था "मेरे तो गिरिधर गोपाल..."। 
सितम्बर में भारत वापस आने के बाद 'मीरा' के सभी 12 भजन एक के बाद एक 9 
दिनों के अन्दर रेकॉर्ड किये गये वाणी जयराम की आवाज़ में। पण्डित जी ने 
सुबह 9 से रात 9 बजे तक काम करते हुए पूरे अनुशासन के साथ कार्य को समय पर 
सम्पन्न किया। एक दिन ऐसा हुआ कि पण्डित जी बहुत ही थके हुए से दिख रहे थे।
 गुलज़ार साहब के पूछने पर उन्होंने बताया कि अगले दिन वो दोपहर 2 बजे से 
काम शुरू करेंगे। यह कह कर वो निकल गये। अगले दिन पण्डित जी 2 बजे आये, 
बिल्कुल तरो-ताज़ा दिख रहे थे। जब गुलज़ार साहब ने उनसे इसका ज़िक्र किया तो 
उन्होंने कहा कि अब वो बहुत ज़्यादा बेहतर महसूस कर रहे हैं क्योंकि 
उन्होंने लगातार 8 घंटे अपना सितार बजाया है सुबह 4 बजे से बैठ कर; वो 
इसलिए थके हुए से लग रहे थे क्योंकि कई दिनों से उन्हे अपने सितार को छूने 
का मौका नहीं मिल पाया था। इस तरह से 'मीरा' के गानें बने।" आइए, अब हम
 आपको इसी फिल्म का एक गीत (मीराबाई का पद) सुनवाते हैं, राग मीरा मल्हार 
के स्वरों में पिरोया हुआ। ग्रन्थकार के.एल. पाण्डेय ने अपनी पुस्तक "हिन्दी सिने राग इन्साइक्लोपीडिया" में इस गीत में राग मियाँ की मल्हार का स्पर्श बताया है। अन्य गीतों की तरह इसे वाणी जयराम ने स्वर दिया 
है और संगीत पण्डित रविशंकर का है। 
राग मीरा मल्हार : ‘बादल देख डरी...’ : वाणी जयराम : संगीत – पं. रविशंकर : फिल्म – मीरा 
आज
 की कड़ी में हम मल्हार अंग के राग मीराबाई की मल्हार के स्वरों से 
अनुगूँजित कुछ संगीत-रचनाएँ प्रस्तुत कर रहे हैं। । राग के नाम से ही 
स्पष्ट हो जाता है कि इनका नामकरण भक्ति संगीत के विदुषी मीराबाई के नाम पर
 हुआ है। राग मीराबाई की मल्हार मल्हार अंग का राग है। यह माना जाता है कि 
इस राग की रचना सुप्रसिद्ध भक्त कवयित्री मीराबाई ने की थी। यह काफी थाट का
 सम्पूर्ण जाति का राग है, अर्थात इस राग के आरोह और अवरोह में सभी सात 
स्वर प्रयोग किये जाते हैं। राग मीरा मल्हार में गान्धार, धैवत और निषाद 
स्वर के दोनों रूप (शुद्ध और कोमल) प्रयोग किये जाते हैं। राग का वादी स्वर
 मध्यम और संवादी स्वर षडज होता है। राग मीरा मल्हार और रामदासी मल्हार में
 थाट, जाति, वादी और संवादी स्वर समान होते हैं। आरोह और अवरोह के स्वर भी 
लगभग समान होते हैं। केवल कोमल धैवत स्वर का अन्तर होता है। राग रामदासी 
मल्हार में केवल शुद्ध धैवत का प्रयोग होता है, जबकि राग मीरा मल्हार में 
दोनों धैवत का प्रयोग किया जाता है। आमतौर पर राग मीरा मल्हार के गायन-वादन
 का समय मध्यरात्रि माना जाता है, किन्तु वर्षा ऋतु में इसे किसी भी समय 
गाया-बजाया जा सकता है। राग के शास्त्रीय स्वरूप का अनुभव करने के लिए अब 
हम आपको सुप्रसिद्ध संगीतज्ञ पण्डित अजय चक्रवर्ती के स्वर में राग मीराबाई
 की मल्हार में निबद्ध तीनताल की एक रचना सुनवा रहे हैं।आप यह बन्दिश सुनिए
 और हमें आज के इस अंक को यहीं विराम देने की अनुमति दीजिए।
राग मीराबाई की मल्हार : “जगज्जननी माता चण्डी...” : पण्डित अजय चक्रवर्ती 
संगीत पहेली 
 
“स्वरगोष्ठी”
 के 431वें अंक की संगीत पहेली में आज हम आपको वर्ष 1976 में प्रदर्शित एक 
फिल्म के राग आधारित गीत का अंश सुनवा रहे हैं। गीत के इस अंश को सुन कर 
आपको दो अंक अर्जित करने के लिए निम्नलिखित तीन में से कम से कम दो 
प्रश्नों के सही उत्तर देना आवश्यक हैं। यदि आपको तीन में से केवल एक अथवा 
तीनों प्रश्नों का उत्तर ज्ञात हो तो भी आप प्रतियोगिता में भाग ले सकते 
हैं। 440वें अंक की पहेली का उत्तर प्राप्त होने तक जिस प्रतिभागी के 
सर्वाधिक अंक होंगे, उन्हें वर्ष 2019 के चौथे सत्र का विजेता घोषित किया 
जाएगा। इसके साथ ही पूरे वर्ष के प्राप्तांकों की गणना के बाद वर्ष के अन्त
 में महाविजेताओं की घोषणा की जाएगी और उन्हें सम्मानित भी किया जाएगा। 
1 – इस गीतांश को सुन कर बताइए कि इस अंश में किस राग की झलक है? 
2 – इस गीत में प्रयोग किये गए ताल को पहचानिए और उसका नाम बताइए। 
3 – इस गीत में किस पार्श्वगायिका की आवाज़ हैं? 
आप उपरोक्त तीन मे से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर केवल swargoshthi@gmail.com या radioplaybackindia@live.com
 पर ही शनिवार, 24 अगस्त, 2019 की मध्यरात्रि से पूर्व तक भेजें। आपको यदि 
उपरोक्त तीन में से केवल एक प्रश्न का सही उत्तर ज्ञात हो तो भी आप पहेली 
प्रतियोगिता में भाग ले सकते हैं। COMMENTS
 में दिये गए उत्तर मान्य हो सकते हैं, किन्तु उसका प्रकाशन पहेली का उत्तर
 देने की अन्तिम तिथि के बाद किया जाएगा। “फेसबुक” पर पहेली का उत्तर 
स्वीकार नहीं किया जाएगा। विजेता का नाम हम उनके शहर, प्रदेश और देश के नाम
 के साथ ‘स्वरगोष्ठी’ के अंक संख्या 433 में प्रकाशित करेंगे। इस अंक में 
प्रस्तुत गीत-संगीत, राग, अथवा कलासाधक के बारे में यदि आप कोई जानकारी या 
अपने किसी अनुभव को हम सबके बीच बाँटना चाहते हैं तो हम आपका इस संगोष्ठी 
में स्वागत करते हैं। आप पृष्ठ के नीचे दिये गए COMMENTS के माध्यम से तथा swargoshthi@gmail.com अथवा radioplaybackindia@live.com पर भी अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं। 
पिछली पहेली के सही उत्तर और विजेता 
 
“स्वरगोष्ठी”
 के 429वें अंक की पहेली में हमने आपसे वर्ष 1967 में प्रदर्शित फिल्म 
“रामराज्य” के एक गीत का एक अंश सुनवा कर तीन प्रश्नों में से पूर्ण अंक 
प्राप्त करने के लिए कम से कम दो प्रश्नों के सही उत्तर की अपेक्षा की थी। 
पहेली के पहले प्रश्न का सही उत्तर है; राग – सूर मल्हार, दूसरे प्रश्न का सही उत्तर है; ताल – तीनताल और तीसरे प्रश्न का सही उत्तर है; स्वर – लता मंगेशकर। 
‘स्वरगोष्ठी’ की इस पहेली का सही उत्तर देने वाले हमारे विजेता हैं; वोरहीज, न्यूजर्सी से डॉ. किरीट छाया, जबलपुर, मध्यप्रदेश से क्षिति तिवारी, चेरीहिल न्यूजर्सी से प्रफुल्ल पटेल और हैदराबाद से डी. हरिणा माधवी।
 उपरोक्त सभी प्रतिभागियों को ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ की ओर से हार्दिक 
बधाई। सभी प्रतिभागियों से अनुरोध है कि अपने पते के साथ कृपया अपना उत्तर 
ई-मेल से ही भेजा करें। इस पहेली प्रतियोगिता में हमारे नये प्रतिभागी भी 
हिस्सा ले सकते हैं। यह आवश्यक नहीं है कि आपको पहेली के तीनों प्रश्नों के
 सही उत्तर ज्ञात हो। यदि आपको पहेली का कोई एक भी उत्तर ज्ञात हो तो भी आप
 इसमें भाग ले सकते हैं।  
अपनी बात 
मित्रों,
 ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ पर जारी हमारी
 श्रृंखला “वर्षा ऋतु के राग” की पाँचवीं कड़ी में आज आपने मल्हार अंग के 
राग “मीरा मल्हार” का परिचय प्राप्त किया। साथ ही इस राग के शास्त्रीय 
स्वरूप को समझने के लिए सुविख्यात संगीतज्ञ पण्डित अजय चक्रवर्ती के स्वरों
 में प्रस्तुत एक खयाल रचना का रसास्वादन किया। इससे पहले इसी राग पर 
आधारित फिल्म “मीरा” से एक गीत पार्श्वगायिका वाणी जयराम के स्वरों में 
सुनवाया गया। वीआरएसएच 1979 में प्रदर्शित इस फिल्म के संगीतकार पण्डित 
रविशंकर ने इस गीत को राग मीरा मल्हार अथवा मीराबाई की मल्हार के स्वरों 
में संगीतबद्ध किया है। “स्वरगोष्ठी” पर हमारी पिछली कड़ियों के बारे में 
हमें अनेक पाठकों की प्रतिक्रिया लगातार मिल रही है। हमें विश्वास है कि 
हमारे अन्य पाठक भी “स्वरगोष्ठी” के प्रत्येक अंक का अवलोकन करते रहेंगे और
 अपनी प्रतिक्रिया हमें भेजते रहेगे। आज के अंक और श्रृंखला के बारे में 
यदि आपको कुछ कहना हो तो हमें अवश्य लिखें। हमारी वर्तमान अथवा अगली 
श्रृंखला के लिए यदि आपका कोई सुझाव या अनुरोध हो तो हमें swargoshthi@gmail.com
 पर अवश्य लिखिए। अगले अंक में रविवार को प्रातः 7 बजे हम ‘स्वरगोष्ठी’ के 
इसी मंच पर एक बार फिर सभी संगीत-प्रेमियों का स्वागत करेंगे।
प्रस्तुति : कृष्णमोहन मिश्र   
 राग मीरा मल्हार : SWARGOSHTHI – 431 : RAG MIRA MALHAR : 18 अगस्त, 2019


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