स्वरगोष्ठी – 336 में आज 
फिल्मों के आँगन में ठुमकती पारम्परिक ठुमरी – 3 : ठुमरी भैरवी 
श्रृंगार रस की ठुमरी को मन्ना डे ने हास्य रस में रूपान्तरित किया - “फूलगेंदवा न मारो...” 
![]()  | 
| रसूलन बाई | 
![]()  | 
| मन्ना डे | 
‘रेडियो
 प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी 
श्रृंखला “फिल्मों के आँगन में ठुमकती पारम्परिक ठुमरी” की इस तीसरी कड़ी 
में मैं कृष्णमोहन मिश्र अपनी सहयोगी संज्ञा टण्डन के साथ आप सभी 
संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। पिछली श्रृंखला की भाँति इस 
श्रृंखला में भी हम एक नया प्रयोग कर रहे हैं। गीतों का परिचयात्मक आलेख हम
 अपने सम्पादक-मण्डल की सदस्य संज्ञा टण्डन की रिकार्ड किये आवाज़ में 
प्रस्तुत कर रहे हैं। आपको हमारा यह प्रयोग कैसा लगा, अवश्य सूचित कीजिएगा।
 दरअसल यह श्रृंखला पूर्व में प्रकाशित / प्रसारित की गई थी। हमारे पाठकों /
 श्रोताओं को यह श्रृंखला सम्भवतः कुछ अधिक रुचिकर प्रतीत हुई थी। अनेक 
संगीत-प्रेमियों ने इसके पुनर्प्रसारण का आग्रह किया है। सभी सम्मानित 
पाठकों / श्रोताओं के अनुरोध का सम्मान करते हुए और पूर्वप्रकाशित श्रृंखला
 में थोड़ा परिमार्जन करते हुए यह श्रृंखला हम पुनः प्रस्तुत कर रहे हैं। आज
 से शुरू हो रही हमारी नई लघु श्रृंखला 'फिल्मों के आँगन में ठुमकती 
पारम्परिक ठुमरी’ के शीर्षक से ही यह अनुमान हो गया होगा कि इस श्रृंखला का
 विषय फिल्मों में शामिल की गई उपशास्त्रीय गायन शैली ठुमरी है। सवाक 
फिल्मों के प्रारम्भिक दौर से फ़िल्मी गीतों के रूप में तत्कालीन प्रचलित 
पारसी रंगमंच के संगीत और पारम्परिक ठुमरियों के सरलीकृत रूप का प्रयोग 
आरम्भ हो गया था। विशेष रूप से फिल्मों के गायक-सितारे कुन्दनलाल सहगल ने 
अपने कई गीतों को ठुमरी अंग में गाकर फिल्मों में ठुमरी शैली की आवश्यकता 
की पूर्ति की थी। चौथे दशक के मध्य से लेकर आठवें दशक के अन्त तक की 
फिल्मों में सैकड़ों ठुमरियों का प्रयोग हुआ है। इनमे से अधिकतर ठुमरियाँ 
ऐसी हैं जो फ़िल्मी गीत के रूप में लिखी गईं और संगीतकार ने गीत को ठुमरी 
अंग में संगीतबद्ध किया। कुछ फिल्मों में संगीतकारों ने परम्परागत ठुमरियों
 का भी प्रयोग किया है। इस श्रृंखला में हम आपसे ऐसी ही कुछ चर्चित-अचर्चित
 फ़िल्मी ठुमरियों पर बात करेंगे। आज के अंक में हम आपसे पूरब अंग की एक 
विख्यात ठुमरी गायिका रसूलन बाई के व्यक्तित्व पर और उन्हीं की गायी एक 
अत्यन्त प्रसिद्ध ठुमरी- ‘फूलगेंदवा न मारो, लगत करेजवा में जाय...’ पर 
चर्चा करेंगे। इसके साथ ही इस ठुमरी के फिल्म ‘दूज का चाँद’ में संगीतकार 
रोशन और पार्श्वगायक मन्ना डे द्वारा किये प्रयोग पर भी आपसे चर्चा करेंगे।
   
ठुमरी भैरवी : “फूलगेंदवा न मारो, लगत करेजवा में जाय...” : रसूलन बाई 
ठुमरी भैरवी : “फूलगेंदवा न मारो, लगत करेजवा में चोट...” : मन्ना डे : फिल्म – दूज का चाँद 
संगीत पहेली 
 
‘स्वरगोष्ठी’
 के 336वें अंक की संगीत पहेली में आज हम आपको एक फिल्मी ठुमरी गीत का एक 
अंश सुनवा रहे हैं। संगीत के इस अंश को सुन कर आपको निम्नलिखित तीन में से 
किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर देने हैं। यदि आपको तीन में से केवल एक ही 
उत्तर ज्ञात हो तो भी आप प्रतियोगिता में भाग ले सकते हैं। ‘स्वरगोष्ठी’ के
 340वें अंक की पहेली के सम्पन्न होने तक जिस प्रतिभागी के सर्वाधिक अंक 
होंगे, उन्हें इस वर्ष के चौथे सत्र का विजेता घोषित किया जाएगा। 
1 – इस ठुमरी रचना का अंश सुन कर बताइए कि यह किस राग में निबद्ध है? 
2 – संगीत में प्रयोग किये गए ताल का नाम बताइए। 
3 – यह किस विख्यात गायिका की आवाज़ है? 
आप उपरोक्त तीन मे से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर केवल swargoshthi@gmail.com या radioplaybackindia@live.com पर ही शनिवार 30 सितम्बर, 2017 की मध्यरात्रि से पूर्व तक भेजें। आपको यदि उपरोक्त तीन में से केवल एक प्रश्न का सही उत्तर ज्ञात हो तो भी आप पहेली प्रतियोगिता में भाग ले सकते हैं। COMMENTS
 में दिये गए उत्तर मान्य हो सकते हैं, किन्तु उसका प्रकाशन पहेली का उत्तर
 देने की अन्तिम तिथि के बाद किया जाएगा। विजेता का नाम हम उनके शहर, 
प्रदेश और देश के नाम के साथ ‘स्वरगोष्ठी’ के 338वें अंक में 
प्रकाशित करेंगे। इस अंक में प्रस्तुत गीत-संगीत, राग, अथवा कलासाधक के 
बारे में यदि आप कोई जानकारी या अपने किसी अनुभव को हम सबके बीच बाँटना 
चाहते हैं तो हम आपका इस संगोष्ठी में स्वागत करते हैं। आप पृष्ठ के नीचे 
दिये गए COMMENTS के माध्यम से तथा swargoshthi@gmail.com अथवा radioplaybackindia@live.com पर भी अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं। 
पिछली पहेली के विजेता 
 
‘स्वरगोष्ठी’
 की 334वीं कड़ी की पहेली में हमने आपको 1960 में प्रदर्शित फिल्म – “मंज़िल”
 से लिये गए दादरा का अंश सुनवा कर हमने आपसे तीन में से दो प्रश्नों का 
उत्तर पूछा था। पहले प्रश्न का सही उत्तर है, राग भैरवी, दूसरे प्रश्न का सही उत्तर है, ताल – दादरा और तीसरे प्रश्न का सही उत्तर है, स्वर – पार्श्वगायक – मन्ना डे। 
इस अंक की पहेली प्रतियोगिता में प्रश्नों के सही उत्तर देने वाले हमारे नियमित प्रतिभागी हैं - पेंसिलवेनिया, अमेरिका से विजया राजकोटिया, चेरीहिल न्यूजर्सी से प्रफुल्ल पटेल, वोरहीज, न्यूजर्सी से डॉ. किरीट छाया, जबलपुर मध्यप्रदेश से क्षिति तिवारी और हैदराबाद से डी. हरिणा माधवी।
 आशा है कि हमारे अन्य पाठक / श्रोता भी नियमित रूप से साप्ताहिक स्तम्भ 
‘स्वरगोष्ठी’ का अवलोकन करते रहेंगे और पहेली प्रतियोगिता में भाग लेंगे। 
उपरोक्त सभी प्रतिभागियों को ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ की ओर से हार्दिक 
बधाई। 
अपनी बात 
मित्रों,
 ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ पर जारी हमारी
 श्रृंखला “फिल्मों के आँगन में ठुमकती पारम्परिक ठुमरी” की इस तीसरी कड़ी 
में आपने राग भैरवी की ठुमरी का रसास्वादन किया। आपके अनुरोध पर 
पुनर्प्रसारित इस श्रृंखला के अगले अंक में हम आपको एक और पारम्परिक ठुमरी 
और उसके फिल्मी रूप पर चर्चा करेंगे और शास्त्रीय और उपशास्त्रीय संगीत और 
रागों पर चर्चा करेंगे और सम्बन्धित रागों तथा संगीत शैली में निबद्ध कुछ 
रचनाएँ भी प्रस्तुत करेंगे। हमारी आगामी श्रृंखलाओं के लिए विषय, राग, रचना
 और कलाकार के बारे में यदि आपकी कोई फरमाइश हो तो हमें  swargoshthi@gmail.com पर अवश्य लिखिए। अगले अंक में रविवार को प्रातः 8 बजे हम ‘स्वरगोष्ठी’ के इसी मंच पर सभी संगीत-प्रेमियों का स्वागत करेंगे। 
   
वाचक स्वर : संज्ञा टण्डन    
आलेख व प्रस्तुति : कृष्णमोहन मिश्र
 आलेख व प्रस्तुति : कृष्णमोहन मिश्र


Comments