स्वरगोष्ठी – 291 में आज 
नौशाद के गीतों में राग-दर्शन – 4 : शमशाद बेगम के स्वर में दिल की बात 
“कभी दिल दिल से टकराता तो होगा, उन्हे मेरा खयाल आता तो होगा...” 
‘रेडियो
 प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी 
श्रृंखला – “नौशाद के गीतों में राग-दर्शन” की चौथी कड़ी में मैं कृष्णमोहन 
मिश्र आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। इस श्रृंखला में 
हम भारतीय फिल्म संगीत के शिखर पर विराजमान नौशाद अली के व्यक्तित्व और 
उनके कृतित्व पर चर्चा कर रहे हैं। श्रृंखला की विभिन्न कड़ियों में हम आपको
 फिल्म संगीत के माध्यम से रागों की सुगन्ध बिखेरने वाले अप्रतिम संगीतकार 
नौशाद अली के कुछ राग-आधारित गीत प्रस्तुत कर रहे हैं। इस श्रृंखला का 
समापन हम आगामी 25 दिसम्बर को नौशाद अली की 98वीं जयन्ती के अवसर पर 
करेंगे। 25 दिसम्बर, 1919 को सांगीतिक परम्परा से समृद्ध शहर लखनऊ के 
कन्धारी बाज़ार में एक साधारण परिवार में नौशाद का जन्म हुआ था। नौशाद जब 
कुछ बड़े हुए तो उनके पिता वाहिद अली घसियारी मण्डी स्थित अपने नए घर में आ 
गए। यहीं निकट ही मुख्य मार्ग लाटूश रोड (वर्तमान गौतम बुद्ध मार्ग) पर 
संगीत के वाद्ययंत्र बनाने और बेचने वाली दूकाने थीं। उधर से गुजरते हुए 
बालक नौशाद घण्टों दूकान में रखे साज़ों को निहारा करता था। एक बार तो दूकान
 के मालिक गुरबत अली ने नौशाद को फटकारा भी, लेकिन नौशाद ने उनसे आग्रह 
किया की वे बिना वेतन के दूकान पर रख लें। नौशाद उस दूकान पर रोज बैठते, 
साज़ों की झाड़-पोछ करते और दूकान के मालिक का हुक्का तैयार करते। साज़ों की 
झाड़-पोछ के दौरान उन्हें कभी-कभी बजाने का मौका भी मिल जाता था। उन दिनों 
मूक फिल्मों का युग था। फिल्म प्रदर्शन के दौरान दृश्य के अनुकूल सजीव 
संगीत प्रसारित हुआ करता था। लखनऊ के रॉयल सिनेमाघर में फिल्मों के 
प्रदर्शन के दौरान एक लद्दन खाँ थे जो हारमोनियम बजाया करते थे। यही लद्दन 
खाँ साहब नौशाद के पहले गुरु बने। नौशाद के पिता संगीत के सख्त विरोधी थे, 
अतः घर में बिना किसी को बताए सितार नवाज़ युसुफ अली और गायक बब्बन खाँ की 
शागिर्दी की। कुछ बड़े हुए तो उस दौर के नाटकों की संगीत मण्डली में भी काम 
किया। घर वालों की फटकार बदस्तूर जारी रहा। अन्ततः 1937 में एक दिन घर में 
बिना किसी को बताए माया नगरी बम्बई की ओर रुख किया। ![]()  | 
| शमशाद बेगम | 
अपने
 सांगीतिक फिल्मी जीवन के पहले दशक में नौशाद ने कड़े संघर्ष के बाद उस समय 
के प्रथम श्रेणी के संगीतकारों में अपना नाम शामिल कराया था। 1944 की फिल्म
 ‘रतन’ के संगीत की व्यावसायिक सफलता से तमाम फिल्म कम्पनी उनकी ओर आकर्षित
 होने लगी थी। फिल्म की सफलता का अनुमान इस तथ्य से आँकी जा सकती है कि 
फिल्म के नेगेटिव की कीमत पचहत्तर हजार रुपये थी जबकि फिल्म के गीतों की 
रायल्टी से तीन लाख, पचास हजार रुपये आए। इस आय से फिल्म ‘खजांची’ के संगीत
 का व्यावसायिक कीर्तिमान टूट गया। 1949 में प्रदर्शित फिल्म ‘अन्दाज’ के 
ट्रेलर में ऊँचे स्वर में यह उद्घोषणा सुनाई देती थी –“चालीस करोड़ में एक ही नौशाद”।
 किसी संगीतकार को फिल्म जगत में इतनी प्रतिष्ठा उस समय तक कभी नहीं मिली 
थी। नौशाद पहले संगीतकार थे जिन्होने अपने व्यक्तित्व और कृतित्व के बल पर 
संगीतकार का दर्जा भी फिल्म के नायक और निर्देशक के समकक्ष ला खड़ा किया। 
नौशाद ऐसे संगीतकार थे जिन्होने अपनी फिल्मों की धुने भारतीय संगीत पद्यति 
के अन्तर्गत ही विकसित की और राग आधारित संगीत का सरलतम रूप प्रस्तुत किया।
 अपने सांगीतिक जीवन के पहले दशक की फिल्मों में विभिन्न रागों के सरल और 
गुनगुनाने योग्य धुने ही रचीं। विशुद्ध शास्त्रीय बन्दिशों को आधार बना कर 
फिल्मी गीतों की रचना उनके सांगीतिक जीवन के दूसरे दशक में रची गई। इस दौर 
के राग आधारित गीत हम ‘स्वरगोष्ठी’ के अगले अंक से शुरू करेंगे। आज के अंक 
में हम नौशाद के फिल्मी सफर के पहले दशक के उत्तरार्द्ध का एक राग आधारित 
गीत प्रस्तुत कर रहे हैं। 1948 में महबूब की फिल्म ‘अनोखी अदा’ से लिया गया
 यह गीत राग दरबारी कान्हड़ा पर आधारित है। कहरवा ताल में निबद्ध यह गीत हम 
आपको उस दौर की मशहूर पार्श्वगायिका शमशाद बेगम की आवाज़ में सुनवा रहे हैं।
 फिल्म में इस गीत के दो संस्करण हैं। शमशाद बेगम के अलावा इस गीत को मुकेश
 ने भी गाया है। हम आपको शमशाद बेगम का गाया संस्करण सुनवाते हैं। अप गीत 
सुनिए और अनुभव कीजिए कि नौशाद ने राग दरबारी का कितना सहज रूपान्तरण किया 
है। 
राग दरबारी कान्हड़ा : “कभी दिल दिल से टकराता तो होगा...” शमशाद बेगम : फिल्म – अनोखी अदा 
![]()  | ||||
| रोनू मजुमदार | 
अभी
 आपने नौशाद का राग दरबारी कान्हड़ा के स्वरों में पिरोया यह गीत सुना। 
दरबारी कान्हड़ा राग का यह नामकरण अकबर के काल से प्रचलित हुआ। मध्यकालीन 
ग्रन्थों में राग का नाम दरबारी कान्हड़ा नहीं मिलता। इसके स्थान पर कर्नाट 
या शुद्ध कर्नाट नाम से यह राग प्रचलित था। तानसेन के दरबार में अकबर के 
सम्मुख राग कर्नाट गाते थे, जो बादशाह और अन्य गुणी संगीत-प्रेमियों को खूब
 पसन्द आता था। राज दरबार का पसंदीदा राग होने से धीरे-धीरे राग का नाम 
दरबारी कान्हड़ा हो गया। प्राचीन नाम ‘कर्नाट’ परिवर्तित होकर ‘कान्हड़ा’ 
प्रचलित हो गया। वर्तमान में राग दरबारी कान्हड़ा आसावरी थाट का राग माना 
जाता है। इस राग में गान्धार, धैवत और निषाद स्वर सदा कोमल प्रयोग किया 
जाता है। शेष स्वर शुद्ध लगते हैं। राग की जाति वक्र सम्पूर्ण होती है। 
अर्थात इस राग में सभी सात स्वर प्रयोग होते हैं। राग का वादी स्वर ऋषभ और 
संवादी स्वर पंचम होता है। मध्यरात्रि के समय यह राग अधिक प्रभावी लगता है।
 गान्धार स्वर आरोह और अवरोह दोनों में तथा धैवत स्वर केवल अवरोह में वक्र 
प्रयोग किया जाता है। कुछ विद्वान अवरोह में धैवत को वर्जित करते हैं। तब 
राग की जाति सम्पूर्ण-षाडव हो जाती है। राग दरबारी का कोमल गान्धार अन्य 
सभी रागों के कोमल गान्धार से भिन्न होता है। राग का कोमल गान्धार स्वर अति
 कोमल होता है और आन्दोलित भी होता है। इस राग का चलन अधिकतर मन्द्र और 
मध्य सप्तक में किया जाता है। यह आलाप प्रधान राग है। इसमें विलम्बित आलाप 
और विलम्बित खयाल अत्यन्त प्रभावी लगते हैं। राग के यथार्थ स्वरूप को समझने
 के लिए अब हम आपको इस राग का संक्षिप्त आलाप और मध्य लय की एक रचना 
बाँसुरी पर प्रस्तुत कर रहे हैं। वादक हैं, सुविख्यात बाँसुरी वादक पण्डित 
रोनू मजुमदार। मन्द्र सप्तक में स्वर का प्रयोग, विलम्बित और मध्य लय की 
रचना, पखावज की संगति और स्वर का आन्दोलन इस प्रस्तुति की प्रमुख विशेषता 
है। आप राग दरबारी कान्हड़ा का रसास्वादन कीजिए और मुंझे आज के इस अंक को 
यहीं विराम लेने की अनुमति दीजिए। 
राग दरबारी कान्हड़ा : बाँसुरी पर आलाप और मध्य लय की रचना : पण्डित रोनू मजुमदार 
संगीत पहेली 
 
‘स्वरगोष्ठी’
 के 291वें अंक की संगीत पहेली में आज हम आपको लगभग 65 वर्ष साल पहले की एक
 क्लासिक फिल्म के गीत का अंश रागदारी संगीत के दिग्गज गवैये की आवाज़ में 
सुनवा रहे हैं। इस गीतांश को सुन कर आपको निम्नलिखित तीन में से किन्हीं दो
 प्रश्नों के उत्तर देने हैं। पहेली क्रमांक 297 के सम्पन्न होने के 
उपरान्त जिस प्रतिभागी के सर्वाधिक अंक होंगे, उन्हें इस वर्ष की पाँचवीं 
श्रृंखला (सेगमेंट) का विजेता घोषित किया जाएगा। 
2 – प्रस्तुत रचना किस ताल में निबद्ध है? ताल का नाम बताइए। 
3 – आप इस महान संगीतज्ञ और गायक की आवाज़ को पहचान कर उनका नाम बताइए। 
आप इन तीन में से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर केवल swargoshthi@gmail.com या radioplaybackindia@live.com पर ही शनिवार, 12 नवम्बर, 2016 की मध्यरात्रि से पूर्व तक भेजें। COMMENTS
 में दिये गए उत्तर मान्य हो सकते है, किन्तु उसका प्रकाशन उत्तर भेजने की 
अन्तिम तिथि के बाद किया जाएगा। विजेता का नाम हम ‘स्वरगोष्ठी’ के 293वें 
अंक में प्रकाशित करेंगे। इस अंक में प्रस्तुत किये गए गीत-संगीत, राग अथवा
 कलासाधक के बारे में यदि आप कोई जानकारी या अपने किसी अनुभव को हम सबके 
बीच बाँटना चाहते हैं तो हम आपका इस मंच पर स्वागत करते हैं। आप पृष्ठ के 
नीचे दिये गए COMMENTS के माध्यम से तथा swargoshthi@gmail.com अथवा radioplaybackindia@live.com पर भी अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं। 
पिछली पहेली के विजेता 
‘स्वरगोष्ठी’
 के 289वें अंक की संगीत पहेली में हमने आपको लगभग सात दशक पुराने, 
लोकप्रिय फिल्म ‘रतन’ से राग आधारित गीत का एक अंश सुनवाया था और आपसे तीन 
में से किसी दो प्रश्न का उत्तर पूछा था। पहले प्रश्न का सही उत्तर है- राग
 – भैरवी, दूसरे प्रश्न का सही उत्तर है- ताल – दादरा और तीसरे प्रश्न का सही उत्तर है- गायिका – जोहराबाई अम्बालेवाली।   
इस बार की पहेली के प्रश्नों के सही उत्तर देने वाले प्रतिभागी हैं, पेंसिलवेनिया, अमेरिका से विजया राजकोटिया, जबलपुर से क्षिति तिवारी, चेरीहिल, न्यूजर्सी से प्रफुल्ल पटेल और वोरहीज़, न्यूजर्सी से डॉ. किरीट छाया। सभी चार प्रतिभागियों को ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ की ओर से हार्दिक बधाई। 
अपनी बात 
मित्रो,
 ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ में अपने 
सैकड़ों पाठकों के अनुरोध पर जारी हमारी ताज़ा लघु श्रृंखला “नौशाद के गीतों 
में राग-दर्शन” के इस अंक में हमने आपको सुनवाने के लिए राग दरबारी पर 
आधारित गीत का चुनाव किया था। इस श्रृंखला के लिए हमने संगीतकार नौशाद के 
आरम्भिक दो दशकों की फिल्मों के गीत चुने हैं। श्रृंखला का आलेख को तैयार 
करने में हमने फिल्म संगीत के जाने-माने इतिहासकार और हमारे सहयोगी 
स्तम्भकार सुजॉय चटर्जी और लेखक पंकज राग की पुस्तक ‘धुनों की यात्रा’ का 
सहयोग लिया है। गीतों के चयन के लिए हमने अपने पाठकों की फरमाइश का ध्यान 
रखा है। यदि आप भी किसी राग, गीत अथवा कलाकार को सुनना चाहते हों तो अपना 
आलेख या गीत हमें शीघ्र भेज दें। हम आपकी फरमाइश पूर्ण करने का हर सम्भव 
प्रयास करते हैं। आपको हमारी यह श्रृंखला कैसी लगी? हमें ई-मेल swargoshthi@gmail.com
 पर अवश्य लिखिए। अगले रविवार को एक नए अंक के साथ प्रातः 8 बजे 
‘स्वरगोष्ठी’ के इसी मंच पर आप सभी संगीतानुरागियों का हम स्वागत करेंगे। 
प्रस्तुति : कृष्णमोहन मिश्र   
 


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