स्वरगोष्ठी – 218 में आज
दस थाट, दस राग और दस गीत – 5 : पूर्वी थाट 
राग पूर्वी की मनोहारी रचना - 'कर कपाल लोचन त्रय...'   
‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के 
साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस
 राग और दस गीत’ की पाँचवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब 
संगीत-प्रेमियों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। इस लघु श्रृंखला में हम 
आपसे भारतीय संगीत के रागों का वर्गीकरण करने में समर्थ मेल अथवा थाट 
व्यवस्था पर चर्चा कर रहे हैं। भारतीय संगीत में 7 शुद्ध, 4 कोमल और 1 
तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग होता है। एक राग की रचना के लिए 
उपरोक्त 12 स्वरों में से कम से कम 5 स्वरों का होना आवश्यक है। संगीत में 
थाट रागों के वर्गीकरण की पद्धति है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार
 7 मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते हैं। थाट को मेल भी कहा जाता है। 
दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल प्रचलित हैं, जबकि उत्तर भारतीय 
संगीत पद्धति में 10 थाट का प्रयोग किया जाता है। इसका प्रचलन पण्डित 
विष्णु नारायण भातखण्डे जी ने प्रारम्भ किया था। वर्तमान समय में रागों के 
वर्गीकरण के लिए यही पद्धति प्रचलित है। भातखण्डे जी द्वारा प्रचलित ये 10 
थाट हैं- कल्याण, बिलावल, खमाज, भैरव, पूर्वी, मारवा, काफी, आसावरी, तोड़ी 
और भैरवी। इन्हीं 10 थाटों के अन्तर्गत प्रचलित-अप्रचलित सभी रागों को 
वर्गीकृत किया जाता है। श्रृंखला की आज की कड़ी में हम आपसे पूर्वी थाट पर 
चर्चा करेंगे और इस थाट के आश्रय राग पूर्वी में निबद्ध एक खयाल रचना 
प्रस्तुत करेंगे। साथ ही पूर्वी थाट के अन्तर्गत वर्गीकृत राग पूरिया 
धनाश्री के स्वरों में निबद्ध एक फिल्मी गीत का उदाहरण भी प्रस्तुत करेंगे।
 
आधुनिक भारतीय संगीत में प्रचलित थाट
 पद्धति पर केन्द्रित श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ में हम पण्डित 
विष्णु नारायण भातखण्डे द्वारा प्रवर्तित उन दस थाटों की चर्चा कर रहे हैं,
 जिनके माध्यम से रागों का वर्गीकरण किया जाता है। उत्तर और दक्षिण भारतीय 
संगीत की दोनों पद्धतियों में संगीत के सात शुद्ध, चार कोमल और एक तीव्र, 
अर्थात कुल बारह स्वरों के प्रयोग में समानता है। दक्षिण भारत के ग्रन्थकार
 पण्डित व्यंकटमखी ने सप्तक में 12 स्वरों को आधार मान कर 72 थाटों की रचना
 गणित के सिद्धान्तों पर की थी। भातखण्डे जी ने इन 72 थाटों में से केवल 
उतने ही थाट चुन लिये, जिनमें उत्तर भारतीय संगीत के प्रचलित सभी रागों का 
वर्गीकरण होना सम्भव हो। इस विधि से वर्तमान उत्तर भारतीय संगीत को उन्होने
 पक्की नींव पर प्रतिस्थापित किया। साथ ही उन सभी विशेषताओं को भी, जिनके 
आधार पर दक्षिण और उत्तर भारतीय संगीत पद्धति पृथक होती है, उन्होने कायम 
किया। भातखण्डे जी ने पं॰ व्यंकटमखी के 72 थाटों में से 10 थाट चुन कर 
प्रचलित सभी रागों का वर्गीकरण किया। थाट सिद्धान्त पर भातखण्डे जी ने 
‘लक्ष्य-संगीत’ नामक एक ग्रन्थ की रचना भी की थी। 
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| पण्डित अजय चक्रवर्ती | 
राग पूर्वी : ‘कर कपाल लोचन त्रय...’ : पण्डित अजय चक्रवर्ती  
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| उस्ताद अमीर खाँ | 
राग पूरिया धनाश्री : ‘तोरी जय जय करतार...’ : उस्ताद अमीर खाँ : फिल्म बैजू बावरा 
 
संगीत पहेली 
 
‘स्वरगोष्ठी’ के 218वें अंक की संगीत पहेली में आज हम आपको पाँच दशक से भी अधिक पुरानी ऐतिहासिक हिन्दी फिल्म के एक राग आधारित गीत का अंश सुनवा रहे हैं। इस गीत के अंश को सुन कर आपको निम्नलिखित तीन में से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर देने हैं। ‘स्वरगोष्ठी’ के 220वें अंक की समाप्ति तक जिस प्रतिभागी के सर्वाधिक अंक होंगे, उन्हें इस वर्ष की दूसरी श्रृंखला (सेगमेंट) का विजेता घोषित किया जाएगा।
1 – गीत का यह अंश सुन कर बताइए कि इस अंश में किस राग की झलक है।  
2 – गीत के अंश में प्रयोग किये गए ताल को ध्यान से सुनिए और हमें ताल का नाम बताइए। 
3 – इस गीत के पार्श्वगायक के स्वर को पहचानिए और उनका नाम बताइए। 
आप उपरोक्त तीन में से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर केवल swargoshthi@gmail.com  या  radioplaybackindia@live.com
 पर इस प्रकार भेजें कि हमें शनिवार, 16 मई, 2015 की मध्यरात्रि से पूर्व 
तक अवश्य प्राप्त हो जाए। comments में दिये गए उत्तर मान्य हो सकते है, 
किन्तु उसका प्रकाशन अन्तिम तिथि के बाद किया जाएगा। इस पहेली के विजेताओं 
के नाम हम ‘स्वरगोष्ठी’ के 218वें अंक में प्रकाशित करेंगे। इस अंक में 
प्रकाशित और प्रसारित गीत-संगीत, राग, अथवा कलासाधक के बारे में यदि आप कोई
 जानकारी या अपने किसी अनुभव को हम सबके बीच बाँटना चाहते हैं तो हम आपका 
इस संगोष्ठी में स्वागत करते हैं। आप पृष्ठ के नीचे दिये गए comments के 
माध्यम से तथा swargoshthi@gmail.com अथवा radioplaybackindia@live.com पर भी अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं। 
पिछली पहेली के विजेता  
 
‘स्वरगोष्ठी’ की 216वें अंक की संगीत पहेली में हमने आपको 1962 में प्रदर्शित फिल्म ‘संगीत सम्राट तानसेन’ के एक गीत का अंश सुनवा कर आपसे तीन प्रश्न पूछा गया था। आपको इनमें से किसी दो प्रश्न का उत्तर देना था। पहले प्रश्न का सही उत्तर है- राग जोगिया, दूसरे प्रश्न का सही उत्तर है- ताल खेमटा (6 मात्रा) और कहरवा (8 मात्रा) तथा तीसरे प्रश्न का सही उत्तर है- गायिका कमल बारोट (और महेन्द्र कपूर)। इस बार पहेली के तीनों प्रश्नों के सही उत्तर पेंसिलवेनिया, अमेरिका से विजया राजकोटिया और जबलपुर से क्षिति तिवारी ने दिया हैं। तीन में से दो प्रश्न के सही उत्तर हैदराबाद की डी. हरिणा माधवी ने दिया है। तीनों प्रतिभागियों को ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ की ओर से हार्दिक बधाई।
अपनी बात  
 
मित्रो,
 ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ पर लघु 
श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ जारी है। इसके अन्तर्गत हम प्रत्येक 
अंक में भारतीय संगीत के प्रचलित दस थाट और उनके आश्रय रागों की चर्चा कर 
रहे हैं। साथ ही थाट से जुड़े अन्य रागों पर आधारित फिल्मी गीत भी प्रस्तुत 
कर रहे हैं। आपको यह श्रृंखला कैसी लगी? हमें अवश्य लिखिएगा। ‘स्वरगोष्ठी’ 
पर आगामी लघु श्रृंखला ‘वर्षा ऋतु के रागों’ पर केन्द्रित होगा। यदि आपने 
वर्षा ऋतु के रागों पर कोई आलेख तैयार किया है या इन रागों की कोई रचना 
आपको पसन्द है, तो हमें swargoshthi@gmail.com
 पर शीघ्र भेजें। हम उसे आपके नाम और परिचय के साथ प्रकाशित / प्रसारित 
करेंगे। अगले रविवार को एक नए अंक के साथ प्रातः 9 बजे ‘स्वरगोष्ठी’ के इसी
 मंच पर आप सभी संगीतानुरागियों का हम स्वागत करेंगे। 
प्रस्तुति : कृष्णमोहन मिश्र   
 


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