स्वरगोष्ठी – ८२ में आज
विदुषी प्रभा अत्रे ने गायी कजरी - ‘घिर के आई बदरिया राम, सइयाँ बिन सूनी नगरिया हमार...’
विदुषी प्रभा अत्रे ने गायी कजरी - ‘घिर के आई बदरिया राम, सइयाँ बिन सूनी नगरिया हमार...’
आज भारतीय पञ्चाङ्ग के अनुसार भाद्रपद मास, कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि है। इस दिन पूरे उत्तर भारत की महिलाएँ कजली तीज नामक पर्व मनातीं हैं। उत्तर प्रदेश के पूर्वाञ्चल और बिहार के तीन चौथाई हिस्से में यह इस पर्व के साथ कजरी गीतों का गायन भी जुड़ा हुआ है। वर्षा ऋतु में गायी जाने वाली लोक संगीत की यह शैली उपशास्त्रीय संगीत से जुड़ कर देश-विदेश में अत्यन्त लोकप्रिय हो चुकी है।
पावस ऋतु ने अनादि काल से ही जनजीवन को प्रभावित किया है। ग्रीष्म ऋतु के प्रकोप से तप्त और शुष्क मिट्टी पर जब वर्षा की रिमझिम फुहारें पड़ती हैं तो मानव-मन ही नहीं पशु-पक्षी और वनस्पतियाँ भी लहलहा उठती है। विगत चार सप्ताह से हमने आपसे वर्षा ऋतु में गाये-बजाये जाने वाले मल्हार अंग के रागों पर चर्चा की है। आज ‘स्वरगोष्ठी’ के एक नए अंक में हम आपसे मल्हार अंग के रागों पर नहीं, बल्कि वर्षा ऋतु के अत्यन्त लोकप्रिय लोक-संगीत- कजरी अथवा कजली पर चर्चा करेंगे। मूल रूप से कजरी लोक-संगीत की विधा है, किन्तु उन्नीसवीं शताब्दी के आरम्भ में जब बनारस (अब वाराणसी) के संगीतकारों ने ठुमरी को एक शैली के रूप में अपनाया, उसके पहले से ही कजरी परम्परागत लोकशैली के रूप विद्यमान रही। उपशास्त्रीय संगीत के रूप में अपना लिये जाने पर कजरी, ठुमरी का एक अटूट हिस्सा बनी। इस प्रकार कजरी का मूल लोक-संगीत का स्वररोप और ठुमरी के साथ रागदारी संगीत का हिस्सा बने स्वरूप का समानान्तर विकास हुआ। अगले अंक में हमारी चर्चा का विषय कजरी का लोक-स्वरूप होगा, किन्तु आज के अंक में हम आपसे कजरी के रागदारी संगीत के कलासाधकों द्वारा अपनाए गए स्वरूप पर चर्चा करेंगे। आज की संगोष्ठी का प्रारम्भ हम देश की सुविख्यात गायिका विदुषी (पद्मभूषण) डॉ. प्रभा अत्रे के स्वर में प्रस्तुत एक मोहक कजरी से करते हैं। इस कजरी में वर्षा ऋतु के चित्रण के साथ विरहिणी नायिका के मनोभावों उकेरा गया है। कजरी में लोक-तत्वों की सार्थक अभिव्यक्ति के साथ राग मिश्र पीलू का अनूठा रंग भी घुला है। इसके बोल हैं- ‘घिर के आई बदरिया राम, सइयाँ बिन सूनी नगरिया हमार...’। दादरा ताल में निबद्ध और कहरवा की लग्गी-लड़ी से अलंकृत इस कजरी का रसास्वादन आप करें-
कजरी : ‘घिर के आई बदरिया राम...’ : स्वर - डॉ. प्रभा अत्रे
मूलतः लोक-परम्परा से विकसित कजरी आज गाँव के चौपाल से लेकर प्रतिष्ठित शास्त्रीय मंचों पर सुशोभित है। कजरी-गायकी को ऊँचाई पर पहुँचाने में अनेक लोक-कवियों, साहित्यकारों और संगीतज्ञों का स्तुत्य योगदान है। कजरी गीतों की प्राचीनता पर विचार करते समय जो सबसे पहला उदाहरण हमें उपलब्ध है, वह है- तेरहवीं शताब्दी में हज़रत अमीर खुसरो रचित कजरी-‘अम्मा मोरे बाबा को भेजो जी कि सावन आया...’। अन्तिम मुगल बादशाह बहादुरशाह जफर की एक रचना- ‘झूला किन डारो रे अमरैया...’, आज भी गायी जाती है। कजरी को समृद्ध करने में कवियों और संगीतज्ञों योगदान रहा है। भोजपुरी के सन्त कवि लक्ष्मीसखि, रसिक किशोरी, शायर सैयद अली मुहम्मद ‘शाद’, हिन्दी के कवि अम्बिकादत्त व्यास, श्रीधर पाठक, द्विज बलदेव, बदरीनारायण उपाध्याय ‘प्रेमधन’ की कजरी रचनाएँ उच्चकोटि की हैं। भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने तो ब्रज, भोजपुरी के अलावा संस्कृत में भी कजरियों की रचना की है। भारतेन्दु की कजरियाँ विदुषी गिरिजा देवी आज भी गाती हैं। कवियों और शायरों के अलावा कजरी को प्रतिष्ठित करने में अनेक संगीतज्ञों की स्तुत्य भूमिका रही है। वाराणसी की संगीत परम्परा में बड़े रामदास जी का नाम पूरे आदर और सम्मान के साथ लिया जाता है। उन्होने भी अनेक कजरियों की रचना की थी। अब हम आपको बड़े रामदास जी द्वारा रचित एक कजरी का रसास्वादन कराते है। इस कजरी को प्रस्तुत कर रहे हैं- उन्हीं के प्रपौत्र और गायक पण्डित विद्याधर मिश्र। दादरा ताल में निबद्ध इस कजरी के बोल है- ‘बरसन लागी बदरिया रूम-झूम के...’।
कजरी : ‘बरसन लागी बदरिया रूम-झूम के...’ : स्वर – पण्डित विद्याधर मिश्र
कजरी गीतों के सौन्दर्य से केवल गायक ही नहीं, वादक कलाकार भी प्रभावित रहे हैं। अनेक वादक कलाकार आज भी वर्षा ऋतु में अपनी रागदारी संगीत-प्रस्तुतियों का समापन कजरी धुन से करते हैं। सुषिर वाद्यों पर तो कजरी की धुन इतनी कर्णप्रिय होती है कि श्रोता मंत्रमुग्ध हो जाते हैं। उस्ताद बिस्मिल्लाह खाँ की शहनाई पर तो कजरी ऐसी बजती थी, मानो कजरी की उत्पत्ति ही शहनाई के लिए हुई हो। आज हम आपको देश के दो दिग्गज कलसाधकों की अनूठी जुगलबन्दी सुनवाते हैं। सुविख्यात गायिका विदुषी गिरिजा देवी के गायन और उस्ताद अमजद अली खाँ के सरोद-वादन की इस अविस्मरणीय जुगलबन्दी एक रसभरी बनारसी कजरी- ‘झिर झिर बरसे सावन बुँदिया अब बरखा बहार आई गइले ना...’ के साथ हुई है। लीजिए, आप भी यह आकर्षक जुगलबन्दी सुनिए।
जुगलबन्दी : कजरी गायन और सरोद वादन : विदुषी गिरिजा देवी और उस्ताद अमजद अली खाँ
भारतीय फिल्मों का संगीत आंशिक रूप से ही सही, अपने समकालीन संगीत से प्रभावित रहा है। कुछेक फिल्मों में ही कजरी गीतों का प्रयोग हुआ है। फिल्म ‘बड़े घर की बेटी’ में पारम्परिक मीरजापुरी कजरी का इस्तेमाल तो किया गया, किन्तु इस ठेठ भोजपुरी कजरी को राजस्थानी कजरी का रूप देने का असफल प्रयास किया गया है। इसे अलका याज्ञिक और मोहम्मद अज़ीज़ ने स्वर दिया है। फिल्म में संगीत लक्ष्मीकान्त-प्यारेलाल का है। अब आप फिल्म ‘बड़े घर की बेटी’ की इसी कजरी गीत का रसास्वादन कीजिए।
फिल्मी कजरी : ‘मने सावन में झूलनी गढ़ाय द s पिया...’ : फिल्म ‘बड़े घर की बेटी’
आज की पहेली
आज की ‘संगीत-पहेली’ में हम आपको भोजपुरी, अवधी, ब्रज और बुन्देलखण्ड क्षेत्रों में बेहद लोकप्रिय एक गीत का अन्तरा सुनवा रहे हैं। इसे सुन कर आपको हमारे दो प्रश्नों के उत्तर देने हैं। ‘स्वरगोष्ठी’ के ९०वें अंक तक सर्वाधिक अंक अर्जित करने वाले पाठक-श्रोता हमारी चौथी श्रृंखला (सेगमेंट) के ‘विजेता’ होंगे।
१_ आपने बेहद लोकप्रिय गीत का यह अन्तरा सुना। आपको इस गीत के स्थायी अर्थात मुखड़े की पंक्ति लिख भेजना है।
२_ इस गीत में किस ताल (या किन तालों) का प्रयोग हुआ है? प्रयोग किए गए ताल का नाम बताइए।
आप अपने उत्तर हमें तत्काल swargoshthi@gmail.com पर भेजें। विजेता का नाम हम ‘स्वरगोष्ठी’ के ८४ वें अंक में प्रकाशित करेंगे। इस अंक में प्रस्तुत गीत-संगीत, राग, अथवा कलासाधक के बारे में यदि आप कोई जानकारी या अपने किसी अनुभव को हम सबके बीच बाँटना चाहते हैं तो हम आपका इस संगोष्ठी में स्वागत करते हैं। आप पृष्ठ के नीचे दिये गए comments के माध्यम से अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं। हमसे सीधे सम्पर्क के लिए swargoshthi@gmail.com पर अपना सन्देश भेज सकते हैं।
पिछली पहेली के उत्तर और तीसरे सेगमेंट के विजेता
‘स्वरगोष्ठी’ के ८०वें अंक की पहेली में हमने आपको १९६७ की फिल्म ‘रामराज्य’ का एक गीत सुनवा कर आपसे दो प्रश्न पूछे थे। पहले प्रश्न का सही उत्तर है- राग सूर मल्हार और दूसरे का सही उत्तर है- संगीतकार बसन्त देसाई। दोनों प्रश्नों के सही उत्तर लखनऊ के प्रकाश गोविन्द, जबलपुर की क्षिति तिवारी और मीरजापुर (उ.प्र.) के डॉ. पी.के. त्रिपाठी ने दिया है। इन्हें मिलते हैं २-२ अंक। तीनों प्रतिभागियों को रेडियो प्लेबैक इण्डिया की ओर से हार्दिक बधाई। तीसरी श्रृंखला (सेगमेंट) के अन्त में पहेली के प्रतिभागियों के प्राप्तांक इस प्रकार रहे।
१– क्षिति तिवारी, जबलपुर – २०
२- डॉ. पी.के. त्रिपाठी, मीरजापुर – १४
३– अर्चना टण्डन, पटना – ९
४– प्रकाश गोविन्द, लखनऊ – ८
५- अभिषेक मिश्रा, वाराणसी – २
५– अखिलेश दीक्षित, मुम्बई – २
५– दीपक मशाल, बेलफास्ट (यू.के.) – २
इस प्रकार जबलपुर, मध्य प्रदेश की श्रीमती क्षिति तिवारी संगीत-पहेली की तीसरी श्रृंखला (सेगमेंट) में सर्वाधिक २० अंक अर्जित कर विजेता बनीं हैं। १४ अंक प्राप्त कर मीरजापुर, उत्तर प्रदेश के डॉ. पी.के. त्रिपाठी ने दूसरा स्थान और ९ अंक पाकर पटना, बिहार की सुश्री अर्चना टण्डन ने तीसरा स्थान प्राप्त किया है। इस संगीत-पहेली को हमने १०-१० कड़ियों की ५ श्रृंखलाओं में बाँटा था और घोषित किया था कि वर्ष के अन्त में यानी १००वें अंक तक जो प्रतियोगी पाँच में से सर्वाधिक श्रृंखला के विजेता होंगे, उन्हें ‘महाविजेता’ के रूप में पुरस्कृत किया जाएगा। हमारी प्रतियोगी क्षिति तिवारी न केवल तीसरी श्रृंखला, बल्कि पहली और दूसरी श्रृंखला जीत कर ‘महाविजेता’ बन गई हैं। परन्तु हम प्रतियोगिता को यहीं विराम नहीं दे रहे हैं। हमें दूसरे और तीसरे स्थान के उपविजेताओ को भी पुरस्कृत करना है, इसलिए यह प्रतियोगिता पाँचवीं श्रृंखला तक जारी रहेगी। आप सब पूर्ववत संगीत-पहेली में भाग लेते रहिए और उलझनों को सुलझाते रहिए।
२- डॉ. पी.के. त्रिपाठी, मीरजापुर – १४
३– अर्चना टण्डन, पटना – ९
४– प्रकाश गोविन्द, लखनऊ – ८
५- अभिषेक मिश्रा, वाराणसी – २
५– अखिलेश दीक्षित, मुम्बई – २
५– दीपक मशाल, बेलफास्ट (यू.के.) – २
इस प्रकार जबलपुर, मध्य प्रदेश की श्रीमती क्षिति तिवारी संगीत-पहेली की तीसरी श्रृंखला (सेगमेंट) में सर्वाधिक २० अंक अर्जित कर विजेता बनीं हैं। १४ अंक प्राप्त कर मीरजापुर, उत्तर प्रदेश के डॉ. पी.के. त्रिपाठी ने दूसरा स्थान और ९ अंक पाकर पटना, बिहार की सुश्री अर्चना टण्डन ने तीसरा स्थान प्राप्त किया है। इस संगीत-पहेली को हमने १०-१० कड़ियों की ५ श्रृंखलाओं में बाँटा था और घोषित किया था कि वर्ष के अन्त में यानी १००वें अंक तक जो प्रतियोगी पाँच में से सर्वाधिक श्रृंखला के विजेता होंगे, उन्हें ‘महाविजेता’ के रूप में पुरस्कृत किया जाएगा। हमारी प्रतियोगी क्षिति तिवारी न केवल तीसरी श्रृंखला, बल्कि पहली और दूसरी श्रृंखला जीत कर ‘महाविजेता’ बन गई हैं। परन्तु हम प्रतियोगिता को यहीं विराम नहीं दे रहे हैं। हमें दूसरे और तीसरे स्थान के उपविजेताओ को भी पुरस्कृत करना है, इसलिए यह प्रतियोगिता पाँचवीं श्रृंखला तक जारी रहेगी। आप सब पूर्ववत संगीत-पहेली में भाग लेते रहिए और उलझनों को सुलझाते रहिए।
झरोखा अगले अंक का
मित्रों, ‘स्वरगोष्ठी’ के आज के अंक में हमने वर्षा ऋतु की अत्यन्त लोकप्रिय शैली ‘कजरी’ के विषय में आपसे चर्चा की है। अगले अंक में इसी शैली के एक अन्य स्वरूप पर आपसे चर्चा करेंगे। ‘स्वरगोष्ठी’ के कई संगीत-प्रेमी और कलासाधक स्वयं अपना और अपनी पसन्द का आडियो हमें निरन्तर भेज रहे है और हम विभिन्न कड़ियों में हम उनका इस्तेमाल भी कर रहे है। यदि आपको कोई संगीत-रचना प्रिय हो और आप उसे सुनना चाहते हों तो आज ही अपनी फरमाइश हमें मेल कर दें। इसके साथ ही यदि आप इनसे सम्बन्धित आडियो ‘स्वरगोष्ठी’ के माध्यम से संगीत-प्रेमियों के बीच साझा करना चाहते हों तो अपना आडियो क्लिप MP3 रूप में भेज दें। हम आपकी फरमाइश को और आपके भेजे आडियो क्लिप को ‘स्वरगोष्ठी’ आगामी किसी अंक में शामिल करने का हर-सम्भव प्रयास करेंगे। अगले रविवार को प्रातः ९-३० पर आयोजित अपनी इस गोष्ठी में आप हमारे सहभागी बनिए। हमें आपकी प्रतीक्षा रहेगी।
कृष्णमोहन मिश्र
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