ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 701/2011/141
"ओल्ड इज गोल्ड" पर आज से आरम्भ हो रही नई श्रृंखला में अपने पाठकों-श्रोताओं का मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार फिर स्वागत करता हूँ| दोस्तों; आज का यह अंक हम सब के लिए विशेष महत्त्वपूर्ण है| पिछली श्रृंखला के समापन अंक से "ओल्ड इज गोल्ड" ने सात सौ अंकों का आँकड़ा पार कर लिया है| आज हम सब आठवें शतक के पहले अंक में प्रवेश कर रहें हैं| "ओल्ड इज गोल्ड" की श्रृंखलाओं को यह ऐतिहासिक उपलब्धि दिलाने में आप सभी पाठकों-श्रोताओं का ही योगदान है| "आवाज़" के सम्पादक सजीव सारथी तथा "ओल्ड इज गोल्ड" श्रृंखलाओं के संवाहक सुजॉय चटर्जी ने एक बार पुनः मुझे एक नई श्रृंखला का दायित्व दिया, इसके लिए मैं इनके साथ-साथ अपने पाठकों-श्रोताओं के प्रति भी आभार प्रकट करता हूँ|
दोस्तों; इन दिनों आप प्रकृति के अद्भुत वरदान- वर्षा ऋतु का आनन्द ले रहें हैं| आपके चारो ओर परिवेश ने हरियाली की चादर ओढ़ रखी है| तप्त-शुष्क मिट्टी पर वर्षा की फुहारें पड़ने पर जो सुगन्ध फैलती है वह अवर्णनीय है| ऐसे ही मनभावन परिवेश में आपके उल्लास और उमंग को द्विगुणित करने के लिए हम लेकर आए हैं यह नई श्रृंखला -"उमड़ घुमड़ कर आई रे घटा" | इस शीर्षक से यह अनुमान आपको हो ही गया होगा कि श्रृंखला, वर्षा ऋतु के रस-गन्ध से पगे गीतों की है| भारतीय साहित्य और संगीत को सबसे अधिक प्रभावित करने वाली दो ऋतुएँ हैं- बसन्त और पावस; इस श्रृंखला में हम आपको वर्षा ऋतु के रागों का संक्षिप्त परिचय देते हुए उसी राग पर आधारित फिल्म-गीत भी प्रस्तुत करेंगे| इसके साथ ही भारतीय साहित्य में पावस ऋतु के कुछ अनूठे उद्धरण भी आपके साथ बाँटेंगे| संगीत शास्त्र के अनुसार मल्हार के सभी प्रकार पावस ऋतु की अनुभूति कराने में समर्थ हैं| इसके साथ ही कुछ सार्वकालिक राग- वृन्दावनी सारंग, देस और जयजयवन्ती भी वर्षा ऋतु के अनुकूल परिवेश रचने में सक्षम होते हैं|
वर्षाकालीन सभी रागों में सबसे प्राचीन राग मेघ मल्हार माना जाता है| आज के अंक में हम राग मेघ अथवा मेघ मल्हार की ही चर्चा करेंगे| काफी थाट का यह राग औडव-औडव जाति का है; अर्थात आरोह-अवरोह में 5-5 स्वरों का प्रयोग होता है| गन्धार और धैवत स्वरों का प्रयोग नहीं होता| समर्थ कलासाधक कभी-कभी परिवर्तन के रूप में अवरोह में गन्धार का प्रयोग भी करते हैं| ऋषभ का आन्दोलन राग मेघ का प्रमुख गुण होता है| यह पूर्वांग प्रधान राग है| इस राग के माध्यम से आषाढ़ मास के मेघों की प्रतीक्षा, काले मेघों का आकाश पर छा जाने और उमड़-घुमड़ कर वर्षा के प्रारम्भ होने के परिवेश का सजीव चित्रण किया जाता है| वर्षा ऋतु के आगमन की आहट देने वाले राग मेघ की प्रवृत्ति को महाकवि कालिदास ने "मेघदूत" के प्रारम्भिक श्लोकों में बड़े यथार्थ रूप में चित्रित किया है-
आषाढस्य प्रथमदिवसे मेघमाश्लिष्टसानुं
वप्रक्रीडापरिणतगजप्रेक्षणीयं ददर्श ||
अर्थात; रामगिरि पर्वत-श्रृंखला पर शापित यक्ष विरह-ताप से पीड़ित हो चुका था, ऐसे में आषाढ़ मास के पहले दिन आकाश में काले-काले मेघ मँडराने लगे| ऐसा प्रतीत होने लगा मानो मदमस्त हाथियों का झुण्ड पर्वत-श्रृंखलाओं के साथ अटखेलियाँ कर रहे हों|
इस परिवेश से मिलता-जुलता परिवेश हमारे आज के गीत का भी है| आज का गीत हमने 1942 में रणजीत स्टूडियो द्वारा निर्मित और जयन्त देसाई द्वारा निर्देशित फिल्म "तानसेन" से चुना है| फिल्म के प्रसंग के अनुसार अकबर के आग्रह पर तानसेन ने राग "दीपक" गाया, जिसके प्रभाव से उनका शरीर जलने लगा| कोई उपचार काम में नहीं आने पर उनकी शिष्या ने राग "मेघ मल्हार" की अवतारणा की जिसके प्रभाव से आकाश मेघाच्छन्न हो गया और बरखा की बूँदों ने तानसेन के तप्त शरीर का उपचार किया| इस प्रसंग में राग "मेघ मल्हार" गाकर मेघों का आह्वान करने वाली तरुणी को कुछ इतिहासकारों ने तानसेन की प्रेमिका कहा है तो कुछ ने उसे तानसेन की पुत्री तानी बताया है| बहरहाल, इस प्रसंग से यह स्पष्ट हो जाता है कि राग "मेघ मल्हार" मेघों का आह्वान करने में सक्षम है| दूसरे रूप में हम यह भी कह सकते हैं कि इस राग में मेघाच्छन्न आकाश, उमड़ते-घुमड़ते बादलों की गर्जना और वर्षा के प्रारम्भ की अनुभूति कराने की क्षमता है| फिल्म "तानसेन" के संगीतकार खेमचन्द्र प्रकाश थे| फिल्म में तानसेन की प्रमुख भूमिका में कुन्दनलाल सहगल ने राग आधारित कई गीत गाये थे; जिनमे "सप्त सुरन तीन ग्राम..." (राग कल्याण का ध्रुवपद), "रुनझुन रुनझुन चाल तिहारी..." (राग शंकरा), "काहे गुमान करे..." (राग पीलू) सहित खुर्शीद के साथ गाये सभी गीत बेहद लोकप्रिय हुए थे| राग "मेघ मल्हार" पर आधारित आज प्रस्तुत किया जाने वाला गीत अभिनेत्री-गायिका खुर्शीद के स्वरों में है| गीतकार हैं पं. इन्द्र| तीनताल में निबद्ध इस गीत में पखावज की संगति की गई है| एक स्थान पर ध्रुवपद की तरह दोगुन में भी गायन किया गया है| आइए सुनते हैं- वर्षा का आह्वान करते राग "मेघ मल्हार" पर आधारित यह गीत-
क्या आप जानते हैं...
कि 'रनजीत मूवीटोन' के प्रथम संगीतकार थे उस्ताद झंडे ख़ान, जिनकी इस बैनर के लिए पहली फ़िल्म थी 'देवी देवयानी'।
आज के अंक से पहली लौट रही है अपने सबसे पुराने रूप में, यानी अगले गीत को पहचानने के लिए हम आपको देंगें ३ सूत्र जिनके आधार पर आपको सही जवाब देना है-
सूत्र १ - नायक नायिका अलग अलग है और बादलों को लक्ष्य कर अपने विरह की गाथा सुना रहे हैं.
सूत्र २ - संगीतकार हैं नौशाद.
सूत्र ३ - मुखड़े में शब्द है - "तकदीर"
अब बताएं -
किन युगल स्वरों में है ये गीत - २ अंक
गीतकार कौन हैं - २ अंक
किस राग पर आधारित है ये गीत - ३ अंक
पिछली पहेली का परिणाम -
अमित जी, अवध जी, शरद जी, अनजाना जी, इंदु जी और अन्य सभी श्रोताओं को जिनका स्नेह हमें निरंतर मिला है और जो हमारी चिर प्रेरणा है, उन सबको नमन
खोज व आलेख- कृष्ण मोहन मिश्र
"ओल्ड इज गोल्ड" पर आज से आरम्भ हो रही नई श्रृंखला में अपने पाठकों-श्रोताओं का मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार फिर स्वागत करता हूँ| दोस्तों; आज का यह अंक हम सब के लिए विशेष महत्त्वपूर्ण है| पिछली श्रृंखला के समापन अंक से "ओल्ड इज गोल्ड" ने सात सौ अंकों का आँकड़ा पार कर लिया है| आज हम सब आठवें शतक के पहले अंक में प्रवेश कर रहें हैं| "ओल्ड इज गोल्ड" की श्रृंखलाओं को यह ऐतिहासिक उपलब्धि दिलाने में आप सभी पाठकों-श्रोताओं का ही योगदान है| "आवाज़" के सम्पादक सजीव सारथी तथा "ओल्ड इज गोल्ड" श्रृंखलाओं के संवाहक सुजॉय चटर्जी ने एक बार पुनः मुझे एक नई श्रृंखला का दायित्व दिया, इसके लिए मैं इनके साथ-साथ अपने पाठकों-श्रोताओं के प्रति भी आभार प्रकट करता हूँ|
दोस्तों; इन दिनों आप प्रकृति के अद्भुत वरदान- वर्षा ऋतु का आनन्द ले रहें हैं| आपके चारो ओर परिवेश ने हरियाली की चादर ओढ़ रखी है| तप्त-शुष्क मिट्टी पर वर्षा की फुहारें पड़ने पर जो सुगन्ध फैलती है वह अवर्णनीय है| ऐसे ही मनभावन परिवेश में आपके उल्लास और उमंग को द्विगुणित करने के लिए हम लेकर आए हैं यह नई श्रृंखला -"उमड़ घुमड़ कर आई रे घटा" | इस शीर्षक से यह अनुमान आपको हो ही गया होगा कि श्रृंखला, वर्षा ऋतु के रस-गन्ध से पगे गीतों की है| भारतीय साहित्य और संगीत को सबसे अधिक प्रभावित करने वाली दो ऋतुएँ हैं- बसन्त और पावस; इस श्रृंखला में हम आपको वर्षा ऋतु के रागों का संक्षिप्त परिचय देते हुए उसी राग पर आधारित फिल्म-गीत भी प्रस्तुत करेंगे| इसके साथ ही भारतीय साहित्य में पावस ऋतु के कुछ अनूठे उद्धरण भी आपके साथ बाँटेंगे| संगीत शास्त्र के अनुसार मल्हार के सभी प्रकार पावस ऋतु की अनुभूति कराने में समर्थ हैं| इसके साथ ही कुछ सार्वकालिक राग- वृन्दावनी सारंग, देस और जयजयवन्ती भी वर्षा ऋतु के अनुकूल परिवेश रचने में सक्षम होते हैं|
वर्षाकालीन सभी रागों में सबसे प्राचीन राग मेघ मल्हार माना जाता है| आज के अंक में हम राग मेघ अथवा मेघ मल्हार की ही चर्चा करेंगे| काफी थाट का यह राग औडव-औडव जाति का है; अर्थात आरोह-अवरोह में 5-5 स्वरों का प्रयोग होता है| गन्धार और धैवत स्वरों का प्रयोग नहीं होता| समर्थ कलासाधक कभी-कभी परिवर्तन के रूप में अवरोह में गन्धार का प्रयोग भी करते हैं| ऋषभ का आन्दोलन राग मेघ का प्रमुख गुण होता है| यह पूर्वांग प्रधान राग है| इस राग के माध्यम से आषाढ़ मास के मेघों की प्रतीक्षा, काले मेघों का आकाश पर छा जाने और उमड़-घुमड़ कर वर्षा के प्रारम्भ होने के परिवेश का सजीव चित्रण किया जाता है| वर्षा ऋतु के आगमन की आहट देने वाले राग मेघ की प्रवृत्ति को महाकवि कालिदास ने "मेघदूत" के प्रारम्भिक श्लोकों में बड़े यथार्थ रूप में चित्रित किया है-
आषाढस्य प्रथमदिवसे मेघमाश्लिष्टसानुं
वप्रक्रीडापरिणतगजप्रेक्षणीयं ददर्श ||
अर्थात; रामगिरि पर्वत-श्रृंखला पर शापित यक्ष विरह-ताप से पीड़ित हो चुका था, ऐसे में आषाढ़ मास के पहले दिन आकाश में काले-काले मेघ मँडराने लगे| ऐसा प्रतीत होने लगा मानो मदमस्त हाथियों का झुण्ड पर्वत-श्रृंखलाओं के साथ अटखेलियाँ कर रहे हों|
इस परिवेश से मिलता-जुलता परिवेश हमारे आज के गीत का भी है| आज का गीत हमने 1942 में रणजीत स्टूडियो द्वारा निर्मित और जयन्त देसाई द्वारा निर्देशित फिल्म "तानसेन" से चुना है| फिल्म के प्रसंग के अनुसार अकबर के आग्रह पर तानसेन ने राग "दीपक" गाया, जिसके प्रभाव से उनका शरीर जलने लगा| कोई उपचार काम में नहीं आने पर उनकी शिष्या ने राग "मेघ मल्हार" की अवतारणा की जिसके प्रभाव से आकाश मेघाच्छन्न हो गया और बरखा की बूँदों ने तानसेन के तप्त शरीर का उपचार किया| इस प्रसंग में राग "मेघ मल्हार" गाकर मेघों का आह्वान करने वाली तरुणी को कुछ इतिहासकारों ने तानसेन की प्रेमिका कहा है तो कुछ ने उसे तानसेन की पुत्री तानी बताया है| बहरहाल, इस प्रसंग से यह स्पष्ट हो जाता है कि राग "मेघ मल्हार" मेघों का आह्वान करने में सक्षम है| दूसरे रूप में हम यह भी कह सकते हैं कि इस राग में मेघाच्छन्न आकाश, उमड़ते-घुमड़ते बादलों की गर्जना और वर्षा के प्रारम्भ की अनुभूति कराने की क्षमता है| फिल्म "तानसेन" के संगीतकार खेमचन्द्र प्रकाश थे| फिल्म में तानसेन की प्रमुख भूमिका में कुन्दनलाल सहगल ने राग आधारित कई गीत गाये थे; जिनमे "सप्त सुरन तीन ग्राम..." (राग कल्याण का ध्रुवपद), "रुनझुन रुनझुन चाल तिहारी..." (राग शंकरा), "काहे गुमान करे..." (राग पीलू) सहित खुर्शीद के साथ गाये सभी गीत बेहद लोकप्रिय हुए थे| राग "मेघ मल्हार" पर आधारित आज प्रस्तुत किया जाने वाला गीत अभिनेत्री-गायिका खुर्शीद के स्वरों में है| गीतकार हैं पं. इन्द्र| तीनताल में निबद्ध इस गीत में पखावज की संगति की गई है| एक स्थान पर ध्रुवपद की तरह दोगुन में भी गायन किया गया है| आइए सुनते हैं- वर्षा का आह्वान करते राग "मेघ मल्हार" पर आधारित यह गीत-
क्या आप जानते हैं...
कि 'रनजीत मूवीटोन' के प्रथम संगीतकार थे उस्ताद झंडे ख़ान, जिनकी इस बैनर के लिए पहली फ़िल्म थी 'देवी देवयानी'।
आज के अंक से पहली लौट रही है अपने सबसे पुराने रूप में, यानी अगले गीत को पहचानने के लिए हम आपको देंगें ३ सूत्र जिनके आधार पर आपको सही जवाब देना है-
सूत्र १ - नायक नायिका अलग अलग है और बादलों को लक्ष्य कर अपने विरह की गाथा सुना रहे हैं.
सूत्र २ - संगीतकार हैं नौशाद.
सूत्र ३ - मुखड़े में शब्द है - "तकदीर"
अब बताएं -
किन युगल स्वरों में है ये गीत - २ अंक
गीतकार कौन हैं - २ अंक
किस राग पर आधारित है ये गीत - ३ अंक
पिछली पहेली का परिणाम -
अमित जी, अवध जी, शरद जी, अनजाना जी, इंदु जी और अन्य सभी श्रोताओं को जिनका स्नेह हमें निरंतर मिला है और जो हमारी चिर प्रेरणा है, उन सबको नमन
खोज व आलेख- कृष्ण मोहन मिश्र
इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को
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गीत: सावन के बादलो, उनसे ये जा कहो/ तकदीर में यह न था, साजन मेरे न रो.
अवध लाल