साथी रे...तुझ बिन जिया उदास रे....मानो या न मानो व्यावसायिक दृष्टि से ये होर्रर फ़िल्में दर्शकों को लुभाने में सदा कामियाब रहीं हैं
ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 578/2010/278
'ओल्ड इज़ गोल्ड' के सभी चाहनेवालों का इस सुरीली महफ़िल में बहुत बहुत स्वागत है। यह निस्संदेह सुरीली महफ़िल है, लेकिन कुछ दिनों से इस महफ़िल में एक और रंग भी छाया हुआ है, सस्पेन्स का रंग, रहस्य का रंग। 'मानो या ना मानो' लघु शृंखला में अब तक हमने अलग अलग जगहों के प्रचलित भूत-प्रेत, आत्मा, और पुनर्जनम के किस्सों के बारे में जाना, और पिछली कड़ी में हमने वैज्ञानिक दृष्टि से इन सब चीज़ों की व्याख्यान पर भी नज़र डाला। आज इस शृंखला की आठवीं कड़ी में मैं, आपका दोस्त सुजॊय, दो ऐसे किस्से आपको सुनवाना चाहूँगा जो मैंने मेरे दो बहुत ही करीब के लोगों से सुना है। इन दो व्यक्तियों मे एक है मेरे स्वर्गीय नानाजी, और दूसरा है मेरा इंजिनीयरिंग कॊलेज का एक बहुत ही क्लोज़ फ़्रेण्ड। पहले बताता हूँ अपने नाना जी की अपनी एक निजी भौतिक अभिज्ञता। उस रात बिजली गई हुई थी। मेरी नानी कहीं गई हुईं थी, इसलिए ऒफ़िस से लौट कर मेरे नाना जी ने लालटेन जलाया और मुंह हाथ धोने बाथरूम चले गये। वापस लौट कर जैसे ही ड्रॊविंग् रूम में प्रवेश किया तो देखा कि कुर्सी पर कोई बैठा हुआ है। नाना जी के शरीर में जैसे एक ठण्डी लहर दौड़ गई। सर्दी की उस अंधेरी सुनसान रात में अगर आप ताला खोल कर घर में घुसें और पाये कि कोई पहले से ही हाज़िर है तो सोचिए ज़रा क्या हालत होगी आपकी। वही हालत उस वक़्त मेरे नानाजी की थी। ख़ैर, नाना जी कुछ देर तक सुन्न ख़ड़े रहे, उनका दिमाग़ ख़ाली हो चुका था। थोड़ी देर बाद वो कह उठे, "कौन है वहाँ?" कोई उत्तर नहीं। फिर नाना जी ने थोड़ा साहस जुटा कर, आँखें फाड़ कर देखने की कोशिश की। धीरे धीरे उन्हें अहसास हुआ कि उन्होंने ऒफ़िस से आकर अपनी कमीज़ उतारकर कुर्सी पर टांग दिया था। और दूसरी तरफ़ टेबल पर रखा हुआ था एक गोलाकार शील्ड, जिसकी परछाई दीवार पर ऐसे पड़ी थी कि बिल्कुल कुर्सी पर बैठे किसी आदमी के सर की तरह प्रतीत हो रहा था। अंधेरे में वह परछाई और कुर्सी पर टंगी कमीज़, दोनों मिलकर किसी आदमी के कुर्सी पर बैठे होने का आभास करवा रहा था। नाना जी की जान में जान आई। मान लीजिए उस रात उस वक़्त बिजली वापस आ गई होती तो शायद उन्हें हक़ीकत पता नहीं चलता और वो लोगों को यही बताते रहते कि उन्होंने भूत देखा है। दोस्तों, इसी तरह के भ्रम भूत-प्रेत की कहानियों को जन्म देते हैं। इसलिए हम सब को यही चाहिए कि अगर कुछ अजीब बात हमें दिख भी जाये तो हम डरने से पहले अपनी बुद्धि और तर्क के ज़रिए उसे जाँच लें, फिर उस पर यकीन करें।
और अब मेरे इंजिनीयरिंग कॊलेज के दोस्त से सुना हुआ क़िस्सा आपको बताता हूँ। पिछले क़िस्से का तो समाधान हो गया था, लेकिन अब जो क़िस्सा मैं बताने जा रहा हूँ वो कुछ और ही तरह का है। 'आसाम इंजिनीयरिंग् कॊलेज' गुवाहाटी के एक कोने में स्थित है जो पहाड़ियों, छोटे झीलों और तालाबों से घिरा हुआ है। बहुत ही प्रकृति के करीब है और बहुत ही अच्छा लगता है वहाँ पर रहना और पढ़ना। लेकिन कभी कभी दूर-दराज़ के जगहों पर कुछ रहस्यमय घटनाएँ भी घट जाया करती हैं जो पैदा करती है डर, भय, रहस्य। यह क़िस्सा है होस्टल नंबर-६ का, जो कैपस के सब से अंत में है और दूसरे होस्टल्स के साथ जुड़ा हुआ भी नहीं है, एक अलग थलग जगह पर है। तो मेरे दोस्त उसी होस्टल का सदस्य था। उस होस्टल में बहुत साल पहले एक छात्र ने आत्महत्या कर ली थी। तभी से उस होस्टल में भूत होने की बातें चालू हुई हैं। लेकिन अगर ये बातें कानों सुनी होती तो शायद मैं यकीन नहीं करता, लेकिन क्योंकि इसे मेरे दोस्त ने ख़ुद महसूस किया है, इसलिए सोचने पर विवश हो रहा हूँ। उसने मुझे बताया कि उस होस्टल के बरामदे में आधी रात के बाद घोड़े के टापों जैसी आवाज़ें कभी कभार सुनाई देती है। और यही नहीं, अभी आवाज़ें यहाँ सुनाई दी तो अगले ही क्षण वो आवाज़ों एकदम से दूसरी तरफ़ सुनाई देती है। कई कई छात्रों ने इस आवाज़ को सुना है, लेकिन किसी की कभी हिम्मत नहीं हुई कि दरवाज़ा खोलकर बाहर जाए और देखे कि माजरा क्या है! हो सकता है घोड़े की टापें ना हो, बल्कि कुछ और हो जो विज्ञान-सम्मत हो, लेकिन डर एक ऐसी चीज़ है जो इंसान को सच्चाई तक पहूँचने में बाधित करती है। घोड़ों के टापों का वह रहस्य अभी तक रहस्य ही बना हुआ है। तो दोस्तों, ये दो ऐसे किस्से थे जिन्हें मैंने ख़ुद अपने निकट के लोगों से सुने। बातें तो बहुत हुईं दोस्तों, आइए अब ज़रा गीत-संगीत की तरफ़ मुड़ा जाये। आज आपको सुनवा रहे हैं किशोर साहू निर्देशित सस्पेन्स थ्रिलर 'पूनम की रात' फ़िल्म का गीत, एक बार फिर लता मंगेशकर की रूहानी आवाज़ में। मनोज कुमार और नंदिनी अभिनीत इस फ़िल्म के गानें लिखे थे शैलेन्द्र ने और संगीत था सलिल चौधरी का। फ़िल्म में लता जी के अलावा आशा भोसले, उषा मंगेशकर, मुकेश और मोहम्मद रफ़ी ने गानें गाये। आज के गीत के बोल हैं "साथी रे, तुझ बिन जिया उदास रे, ये कैसी अनमिट प्यास रे, आजा"।
क्या आप जानते हैं...
कि शैलेन्द्र और सलिल चौधरी का साथ सलिल दा की पहली ही फ़िल्म 'दो बीघा ज़मीन' से ही शुरु हो गया था।
दोस्तों अब पहेली है आपके संगीत ज्ञान की कड़ी परीक्षा, आपने करना ये है कि नीचे दी गयी धुन को सुनना है और अंदाज़ा लगाना है उस अगले गीत का. गीत पहचान लेंगें तो आपके लिए नीचे दिए सवाल भी कुछ मुश्किल नहीं रहेंगें. नियम वही हैं कि एक आई डी से आप केवल एक प्रश्न का ही जवाब दे पायेंगें. हर १० अंकों की शृंखला का एक विजेता होगा, और जो १००० वें एपिसोड तक सबसे अधिक श्रृंखलाओं में विजय हासिल करेगा वो ही अंतिम महा विजेता माना जायेगा. और हाँ इस बार इस महाविजेता का पुरस्कार नकद राशि में होगा ....कितने ?....इसे रहस्य रहने दीजिए अभी के लिए :)
पहेली 09/शृंखला 08
गीत का ये हिस्सा सुनें-
अतिरिक्त सूत्र - इस फिल्म के मेकर वो हैं जो ८० के दशक में भूत प्रेतों की फिल्मों के लिए ही जाने जाते थे.
सवाल १ - संगीतकार बताएं - 2 अंक
सवाल २ - फिल्म का नाम बताएं - 1 अंक
सवाल ३ - फिल्म की नायिकाएं कौन थी - 1 अंक
पिछली पहेली का परिणाम -
अमित जी बहुत बढ़िया खेले एक बार फिर, शरद जी और अनजान जी को सही जवाब की बधाई
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
'ओल्ड इज़ गोल्ड' के सभी चाहनेवालों का इस सुरीली महफ़िल में बहुत बहुत स्वागत है। यह निस्संदेह सुरीली महफ़िल है, लेकिन कुछ दिनों से इस महफ़िल में एक और रंग भी छाया हुआ है, सस्पेन्स का रंग, रहस्य का रंग। 'मानो या ना मानो' लघु शृंखला में अब तक हमने अलग अलग जगहों के प्रचलित भूत-प्रेत, आत्मा, और पुनर्जनम के किस्सों के बारे में जाना, और पिछली कड़ी में हमने वैज्ञानिक दृष्टि से इन सब चीज़ों की व्याख्यान पर भी नज़र डाला। आज इस शृंखला की आठवीं कड़ी में मैं, आपका दोस्त सुजॊय, दो ऐसे किस्से आपको सुनवाना चाहूँगा जो मैंने मेरे दो बहुत ही करीब के लोगों से सुना है। इन दो व्यक्तियों मे एक है मेरे स्वर्गीय नानाजी, और दूसरा है मेरा इंजिनीयरिंग कॊलेज का एक बहुत ही क्लोज़ फ़्रेण्ड। पहले बताता हूँ अपने नाना जी की अपनी एक निजी भौतिक अभिज्ञता। उस रात बिजली गई हुई थी। मेरी नानी कहीं गई हुईं थी, इसलिए ऒफ़िस से लौट कर मेरे नाना जी ने लालटेन जलाया और मुंह हाथ धोने बाथरूम चले गये। वापस लौट कर जैसे ही ड्रॊविंग् रूम में प्रवेश किया तो देखा कि कुर्सी पर कोई बैठा हुआ है। नाना जी के शरीर में जैसे एक ठण्डी लहर दौड़ गई। सर्दी की उस अंधेरी सुनसान रात में अगर आप ताला खोल कर घर में घुसें और पाये कि कोई पहले से ही हाज़िर है तो सोचिए ज़रा क्या हालत होगी आपकी। वही हालत उस वक़्त मेरे नानाजी की थी। ख़ैर, नाना जी कुछ देर तक सुन्न ख़ड़े रहे, उनका दिमाग़ ख़ाली हो चुका था। थोड़ी देर बाद वो कह उठे, "कौन है वहाँ?" कोई उत्तर नहीं। फिर नाना जी ने थोड़ा साहस जुटा कर, आँखें फाड़ कर देखने की कोशिश की। धीरे धीरे उन्हें अहसास हुआ कि उन्होंने ऒफ़िस से आकर अपनी कमीज़ उतारकर कुर्सी पर टांग दिया था। और दूसरी तरफ़ टेबल पर रखा हुआ था एक गोलाकार शील्ड, जिसकी परछाई दीवार पर ऐसे पड़ी थी कि बिल्कुल कुर्सी पर बैठे किसी आदमी के सर की तरह प्रतीत हो रहा था। अंधेरे में वह परछाई और कुर्सी पर टंगी कमीज़, दोनों मिलकर किसी आदमी के कुर्सी पर बैठे होने का आभास करवा रहा था। नाना जी की जान में जान आई। मान लीजिए उस रात उस वक़्त बिजली वापस आ गई होती तो शायद उन्हें हक़ीकत पता नहीं चलता और वो लोगों को यही बताते रहते कि उन्होंने भूत देखा है। दोस्तों, इसी तरह के भ्रम भूत-प्रेत की कहानियों को जन्म देते हैं। इसलिए हम सब को यही चाहिए कि अगर कुछ अजीब बात हमें दिख भी जाये तो हम डरने से पहले अपनी बुद्धि और तर्क के ज़रिए उसे जाँच लें, फिर उस पर यकीन करें।
और अब मेरे इंजिनीयरिंग कॊलेज के दोस्त से सुना हुआ क़िस्सा आपको बताता हूँ। पिछले क़िस्से का तो समाधान हो गया था, लेकिन अब जो क़िस्सा मैं बताने जा रहा हूँ वो कुछ और ही तरह का है। 'आसाम इंजिनीयरिंग् कॊलेज' गुवाहाटी के एक कोने में स्थित है जो पहाड़ियों, छोटे झीलों और तालाबों से घिरा हुआ है। बहुत ही प्रकृति के करीब है और बहुत ही अच्छा लगता है वहाँ पर रहना और पढ़ना। लेकिन कभी कभी दूर-दराज़ के जगहों पर कुछ रहस्यमय घटनाएँ भी घट जाया करती हैं जो पैदा करती है डर, भय, रहस्य। यह क़िस्सा है होस्टल नंबर-६ का, जो कैपस के सब से अंत में है और दूसरे होस्टल्स के साथ जुड़ा हुआ भी नहीं है, एक अलग थलग जगह पर है। तो मेरे दोस्त उसी होस्टल का सदस्य था। उस होस्टल में बहुत साल पहले एक छात्र ने आत्महत्या कर ली थी। तभी से उस होस्टल में भूत होने की बातें चालू हुई हैं। लेकिन अगर ये बातें कानों सुनी होती तो शायद मैं यकीन नहीं करता, लेकिन क्योंकि इसे मेरे दोस्त ने ख़ुद महसूस किया है, इसलिए सोचने पर विवश हो रहा हूँ। उसने मुझे बताया कि उस होस्टल के बरामदे में आधी रात के बाद घोड़े के टापों जैसी आवाज़ें कभी कभार सुनाई देती है। और यही नहीं, अभी आवाज़ें यहाँ सुनाई दी तो अगले ही क्षण वो आवाज़ों एकदम से दूसरी तरफ़ सुनाई देती है। कई कई छात्रों ने इस आवाज़ को सुना है, लेकिन किसी की कभी हिम्मत नहीं हुई कि दरवाज़ा खोलकर बाहर जाए और देखे कि माजरा क्या है! हो सकता है घोड़े की टापें ना हो, बल्कि कुछ और हो जो विज्ञान-सम्मत हो, लेकिन डर एक ऐसी चीज़ है जो इंसान को सच्चाई तक पहूँचने में बाधित करती है। घोड़ों के टापों का वह रहस्य अभी तक रहस्य ही बना हुआ है। तो दोस्तों, ये दो ऐसे किस्से थे जिन्हें मैंने ख़ुद अपने निकट के लोगों से सुने। बातें तो बहुत हुईं दोस्तों, आइए अब ज़रा गीत-संगीत की तरफ़ मुड़ा जाये। आज आपको सुनवा रहे हैं किशोर साहू निर्देशित सस्पेन्स थ्रिलर 'पूनम की रात' फ़िल्म का गीत, एक बार फिर लता मंगेशकर की रूहानी आवाज़ में। मनोज कुमार और नंदिनी अभिनीत इस फ़िल्म के गानें लिखे थे शैलेन्द्र ने और संगीत था सलिल चौधरी का। फ़िल्म में लता जी के अलावा आशा भोसले, उषा मंगेशकर, मुकेश और मोहम्मद रफ़ी ने गानें गाये। आज के गीत के बोल हैं "साथी रे, तुझ बिन जिया उदास रे, ये कैसी अनमिट प्यास रे, आजा"।
क्या आप जानते हैं...
कि शैलेन्द्र और सलिल चौधरी का साथ सलिल दा की पहली ही फ़िल्म 'दो बीघा ज़मीन' से ही शुरु हो गया था।
दोस्तों अब पहेली है आपके संगीत ज्ञान की कड़ी परीक्षा, आपने करना ये है कि नीचे दी गयी धुन को सुनना है और अंदाज़ा लगाना है उस अगले गीत का. गीत पहचान लेंगें तो आपके लिए नीचे दिए सवाल भी कुछ मुश्किल नहीं रहेंगें. नियम वही हैं कि एक आई डी से आप केवल एक प्रश्न का ही जवाब दे पायेंगें. हर १० अंकों की शृंखला का एक विजेता होगा, और जो १००० वें एपिसोड तक सबसे अधिक श्रृंखलाओं में विजय हासिल करेगा वो ही अंतिम महा विजेता माना जायेगा. और हाँ इस बार इस महाविजेता का पुरस्कार नकद राशि में होगा ....कितने ?....इसे रहस्य रहने दीजिए अभी के लिए :)
पहेली 09/शृंखला 08
गीत का ये हिस्सा सुनें-
अतिरिक्त सूत्र - इस फिल्म के मेकर वो हैं जो ८० के दशक में भूत प्रेतों की फिल्मों के लिए ही जाने जाते थे.
सवाल १ - संगीतकार बताएं - 2 अंक
सवाल २ - फिल्म का नाम बताएं - 1 अंक
सवाल ३ - फिल्म की नायिकाएं कौन थी - 1 अंक
पिछली पहेली का परिणाम -
अमित जी बहुत बढ़िया खेले एक बार फिर, शरद जी और अनजान जी को सही जवाब की बधाई
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को
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