ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 523/2010/223
पंडित नरेन्द्र शर्मा और वीरेन्द्र मिश्र के बाद 'दिल की कलम से' शृंखला की तीसरी कड़ी में आज जिस हिंदी साहित्यकार व कवि की चर्चा हम करने जा रहे हैं वो प्रकृति के चितेरे तो थे ही, देश भक्ति का जज्बा भी उनमें कूट कूट कर समाया हुआ था। जी हाँ, हम आज बात कर रहे हैं गोपाल सिंह नेपाली की, जिन्हें हम गीतकार जी. एस. नेपाली के नाम से भी जानते हैं। उनका जन्म बिहार के चम्पारन ज़िले में बेदिया नामक स्थान पर ११ अगस्त १९११ को हुआ था। बालावस्था से ही वे घण्टों एकान्त में बैठकर प्रकृति की सुषमा का आनंद लेते और बाद में इसी प्रकृति से जुड़े कविताएँ लिखने लगे। १९३१ में कलकत्ता में आयोजित अखिल भारतीय कवि सम्मेलन में शामिल होने को वे प्रेरीत हुए, जहाँ पे जाकर साहित्य के कई महान विभुतियों से मिलने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। १९३२ में काशी में आचार्य महावीर प्रसाद द्वारा आयोजित एक बहुत बड़े कवि सम्मेलन में कुल ११५ कवि शामिल हुए जिनमें से केवल १५ कवियों को कविता पाठ करने का मौका मिला। और इनमें से एक गोपाल सिंह नेपाली भी थे। उस सम्मेलन में उनकी लिखी कविताओं के रंग ख़ूब जमे। सुधा पत्रिका के सम्पादक दुरारेलाल जी ने उन्हें लखनऊ आकर उनकी पत्रिका में काम करने का निमंत्रण दिया जहाँ पर वे सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' के सहायक बनें। १९३४ में वे दिल्ली चले गए और एक सिने पत्रिका 'चित्रपट' में संयुक्त सम्पादक की नौकरी कर ली। फिर दो साल तक वे रतलाम में 'रतलाम टाइम्स' से जुड़े रहे। १९३९ में वे पटना चले गए। १९४४ का साल गोपाल सिंह नेपाली के जीवन का एक महत्वपूर्ण साल था जब पी. एल. संतोषी, पटेल और रामानन्द ने उन्हें आमन्त्रित किया उनकी फ़िल्मों में गीत लिखने के लिए। और इस तरह से जी. एस. नेपाली के नाम से उनका पदार्पण हुआ फ़िल्म जगत में।
जी. एस. नेपाली एक तरफ़ जहाँ कोमल भावनाओं वाली, प्रकृति प्रेम से ओत-प्रोत कविताएँ लिखते रहे, वहीं दूसरी तरफ़ देश भक्ति की झंझनाती रचनाएँ भी क्या ख़ूब लिखे। उनकी लिखी हुई 'दिल्ली चलो' कविता पर फ़िल्मिस्तान ने 'समाधि' नामक फ़िल्म का निर्माण भी किया। लेकिन आज हम जो गीत चुन लाए हैं वह है एक बड़ा ही कोमल प्रेम गीत, जिसमें एक अंग दर्द का भी छुपा हुआ है। फ़िल्म 'गजरे' का गीत "दूर पपीहा बोला रात आधी रह गई, मेरी तुम्हारी मुलाक़ात बाक़ी रह गई"। सुरैय्या की आवाज़ और अनिल बिस्वास का संगीत। साल १९४८ में अनिल बिस्वास के संगीत निर्देशन में कुल तीन फ़िल्में आई थीं - अनोखा प्यार, गजरे, और वीणा, जिनमें से पहले दो फ़िल्मों के गानें ख़ासा लोकप्रिय हुए थे। 'गजरे' के मुख्य भूमिकाओं में थे सुरैय्या और मोतीलाल। १९४६ में फ़िल्मिस्तान के 'सफ़र' में सफल गीत लिखने के बाद नेपाली जी ने 'गजरे' के गीतों को भी महकाया। उन्होंने यह सिद्ध किया कि बिना उर्दू शब्दों के इस्तेमाल किए शुद्ध हिंदी में भी लोकप्रिय गीत लिखे जा सकते हैं। अनिल दा हमेशा इस बात का ख़याल रखते थे कि जिस तरह के शब्द गीत में हों, उसी तरह से एक्स्प्रेशन भी आने चाहिए। तभी तो इस गीत के पहले शब्द "दूर" को लम्बा खींच कर सुरैय्या से गवाया ताकि वाक़ई यह लगे कि दूर कहीं से पपीहा बोल रहा है। इसी फ़िल्म में कुछ और सुरैय्या के गाए एकल गीत थे जैसे कि "रह रह के तेरा ध्यान रुलाता है क्या करूँ, हर दिल में मुझको तू नज़र आता है क्या करूँ" और "जलने के सिवा और क्या है यहाँ, चाहे दिल हो किसी का या हो दीया"। लेकिन लोकप्रियता के पयमाने पर आज का प्रस्तुत गीत ही सर्वोपरी रहा। तो आइए अब इस सुमधुर गीत का आनंद लेते हैं सुरैय्या की सुरीली आवाज़ में।
क्या आप जानते हैं...
कि नेपाल के राणा के साथ मिलकर गोपाल सिंह नेपाली ने 'हिमालय फ़िल्म्स' की स्थापना की और इस बैनर तले तीन फ़िल्मों का निर्माण किया - 'नज़राना', 'संस्कारी', और 'ख़ुशबू'।
दोस्तों अब पहेली है आपके संगीत ज्ञान की कड़ी परीक्षा, आपने करना ये है कि नीचे दी गयी धुन को सुनना है और अंदाज़ा लगाना है उस अगले गीत का. गीत पहचान लेंगें तो आपके लिए नीचे दिए सवाल भी कुछ मुश्किल नहीं रहेंगें. नियम वही हैं कि एक आई डी से आप केवल एक प्रश्न का ही जवाब दे पायेंगें. हर १० अंकों की शृंखला का एक विजेता होगा, और जो १००० वें एपिसोड तक सबसे अधिक श्रृंखलाओं में विजय हासिल करेगा वो ही अंतिम महा विजेता माना जायेगा. और हाँ इस बार इस महाविजेता का पुरस्कार नकद राशि में होगा ....कितने ?....इसे रहस्य रहने दीजिए अभी के लिए :)
पहेली ०४ /शृंखला ०३
ये है गीत का आरंभिक शेर -
अतिरिक्त सूत्र - आवाज़ है मन्ना दा की.
सवाल १ - किस कवि का जिक्र होगा कल - २ अंक
सवाल २ - इस सफल फिल्म के संगीतकार बताएं - १ अंक
सवाल ३ - फिल्म का नाम बताएं - १ अंक
पिछली पहेली का परिणाम -
श्याम कान्त जी बढ़त ले चुके हैं मगर अमित जी और शरद जी भी पीछे नहीं हैं. बधाई
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
पंडित नरेन्द्र शर्मा और वीरेन्द्र मिश्र के बाद 'दिल की कलम से' शृंखला की तीसरी कड़ी में आज जिस हिंदी साहित्यकार व कवि की चर्चा हम करने जा रहे हैं वो प्रकृति के चितेरे तो थे ही, देश भक्ति का जज्बा भी उनमें कूट कूट कर समाया हुआ था। जी हाँ, हम आज बात कर रहे हैं गोपाल सिंह नेपाली की, जिन्हें हम गीतकार जी. एस. नेपाली के नाम से भी जानते हैं। उनका जन्म बिहार के चम्पारन ज़िले में बेदिया नामक स्थान पर ११ अगस्त १९११ को हुआ था। बालावस्था से ही वे घण्टों एकान्त में बैठकर प्रकृति की सुषमा का आनंद लेते और बाद में इसी प्रकृति से जुड़े कविताएँ लिखने लगे। १९३१ में कलकत्ता में आयोजित अखिल भारतीय कवि सम्मेलन में शामिल होने को वे प्रेरीत हुए, जहाँ पे जाकर साहित्य के कई महान विभुतियों से मिलने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। १९३२ में काशी में आचार्य महावीर प्रसाद द्वारा आयोजित एक बहुत बड़े कवि सम्मेलन में कुल ११५ कवि शामिल हुए जिनमें से केवल १५ कवियों को कविता पाठ करने का मौका मिला। और इनमें से एक गोपाल सिंह नेपाली भी थे। उस सम्मेलन में उनकी लिखी कविताओं के रंग ख़ूब जमे। सुधा पत्रिका के सम्पादक दुरारेलाल जी ने उन्हें लखनऊ आकर उनकी पत्रिका में काम करने का निमंत्रण दिया जहाँ पर वे सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' के सहायक बनें। १९३४ में वे दिल्ली चले गए और एक सिने पत्रिका 'चित्रपट' में संयुक्त सम्पादक की नौकरी कर ली। फिर दो साल तक वे रतलाम में 'रतलाम टाइम्स' से जुड़े रहे। १९३९ में वे पटना चले गए। १९४४ का साल गोपाल सिंह नेपाली के जीवन का एक महत्वपूर्ण साल था जब पी. एल. संतोषी, पटेल और रामानन्द ने उन्हें आमन्त्रित किया उनकी फ़िल्मों में गीत लिखने के लिए। और इस तरह से जी. एस. नेपाली के नाम से उनका पदार्पण हुआ फ़िल्म जगत में।
जी. एस. नेपाली एक तरफ़ जहाँ कोमल भावनाओं वाली, प्रकृति प्रेम से ओत-प्रोत कविताएँ लिखते रहे, वहीं दूसरी तरफ़ देश भक्ति की झंझनाती रचनाएँ भी क्या ख़ूब लिखे। उनकी लिखी हुई 'दिल्ली चलो' कविता पर फ़िल्मिस्तान ने 'समाधि' नामक फ़िल्म का निर्माण भी किया। लेकिन आज हम जो गीत चुन लाए हैं वह है एक बड़ा ही कोमल प्रेम गीत, जिसमें एक अंग दर्द का भी छुपा हुआ है। फ़िल्म 'गजरे' का गीत "दूर पपीहा बोला रात आधी रह गई, मेरी तुम्हारी मुलाक़ात बाक़ी रह गई"। सुरैय्या की आवाज़ और अनिल बिस्वास का संगीत। साल १९४८ में अनिल बिस्वास के संगीत निर्देशन में कुल तीन फ़िल्में आई थीं - अनोखा प्यार, गजरे, और वीणा, जिनमें से पहले दो फ़िल्मों के गानें ख़ासा लोकप्रिय हुए थे। 'गजरे' के मुख्य भूमिकाओं में थे सुरैय्या और मोतीलाल। १९४६ में फ़िल्मिस्तान के 'सफ़र' में सफल गीत लिखने के बाद नेपाली जी ने 'गजरे' के गीतों को भी महकाया। उन्होंने यह सिद्ध किया कि बिना उर्दू शब्दों के इस्तेमाल किए शुद्ध हिंदी में भी लोकप्रिय गीत लिखे जा सकते हैं। अनिल दा हमेशा इस बात का ख़याल रखते थे कि जिस तरह के शब्द गीत में हों, उसी तरह से एक्स्प्रेशन भी आने चाहिए। तभी तो इस गीत के पहले शब्द "दूर" को लम्बा खींच कर सुरैय्या से गवाया ताकि वाक़ई यह लगे कि दूर कहीं से पपीहा बोल रहा है। इसी फ़िल्म में कुछ और सुरैय्या के गाए एकल गीत थे जैसे कि "रह रह के तेरा ध्यान रुलाता है क्या करूँ, हर दिल में मुझको तू नज़र आता है क्या करूँ" और "जलने के सिवा और क्या है यहाँ, चाहे दिल हो किसी का या हो दीया"। लेकिन लोकप्रियता के पयमाने पर आज का प्रस्तुत गीत ही सर्वोपरी रहा। तो आइए अब इस सुमधुर गीत का आनंद लेते हैं सुरैय्या की सुरीली आवाज़ में।
क्या आप जानते हैं...
कि नेपाल के राणा के साथ मिलकर गोपाल सिंह नेपाली ने 'हिमालय फ़िल्म्स' की स्थापना की और इस बैनर तले तीन फ़िल्मों का निर्माण किया - 'नज़राना', 'संस्कारी', और 'ख़ुशबू'।
दोस्तों अब पहेली है आपके संगीत ज्ञान की कड़ी परीक्षा, आपने करना ये है कि नीचे दी गयी धुन को सुनना है और अंदाज़ा लगाना है उस अगले गीत का. गीत पहचान लेंगें तो आपके लिए नीचे दिए सवाल भी कुछ मुश्किल नहीं रहेंगें. नियम वही हैं कि एक आई डी से आप केवल एक प्रश्न का ही जवाब दे पायेंगें. हर १० अंकों की शृंखला का एक विजेता होगा, और जो १००० वें एपिसोड तक सबसे अधिक श्रृंखलाओं में विजय हासिल करेगा वो ही अंतिम महा विजेता माना जायेगा. और हाँ इस बार इस महाविजेता का पुरस्कार नकद राशि में होगा ....कितने ?....इसे रहस्य रहने दीजिए अभी के लिए :)
पहेली ०४ /शृंखला ०३
ये है गीत का आरंभिक शेर -
अतिरिक्त सूत्र - आवाज़ है मन्ना दा की.
सवाल १ - किस कवि का जिक्र होगा कल - २ अंक
सवाल २ - इस सफल फिल्म के संगीतकार बताएं - १ अंक
सवाल ३ - फिल्म का नाम बताएं - १ अंक
पिछली पहेली का परिणाम -
श्याम कान्त जी बढ़त ले चुके हैं मगर अमित जी और शरद जी भी पीछे नहीं हैं. बधाई
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को
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